अमेरिकी संस्थाएं नहीं बनी राग दरबारी, ट्रंप के मामले में निभाया राजधर्म

अमेरिका के इतिहास में राष्ट्रपति चुनाव में पराजित वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह येन केन प्रकारेण अपनी पराजय को विजय में बदलने के लिए विभिन्न राज्यों की अदालतों और अंततः सुप्रीम कोर्ट का सहारा लेने की कोशिश की, वह इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई है। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट से लेकर राज्यों की अदालतों ने ट्रंप  के दावों को ख़ारिज कर दिया और ट्रंप के सहयोगी उप राष्ट्रपति पेंस, कुछ राज्यों की रिपब्लिकन सरकारों और रिपब्लिकन सेनेटरों ने ट्रंप के कारनामों में साथ देने के बजाय संविधान को तरजीह दी, वह दुनिया भर की न्यायपालिका और लोकतंत्र के लिए मिसाल बन गया है।

चुनाव रुझान और परिणाम जब आने लगे तो अमेरिकी कांग्रेस में ज्यादातर रिपब्लिकन राजनेताओं ने शुरुआत से ही ट्रंप के चुनावी धांधली के आरोपों पर चुप्पी साध रखी थी। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों की राज्य-केंद्रित प्रकृति को देखते हुए, स्विंग राज्यों में राज्य के अधिकारियों का व्यवहार बहुत महत्वपूर्ण रहा। पांच स्विंग राज्यों में से दो, एरिज़ोना और जॉर्जिया में रिपब्लिकन सरकारें हैं। फिर भी उनके अधिकारी ट्रंप की इच्छाओं के आगे नहीं झुके।

जॉर्जिया के राज्य सचिव को ट्रंप के फोन कॉल के एक लीक टेप से पता चला कि बिडेन द्वारा जीते गए राज्य को फ्लिप करने के लिए, ट्रंप ने सचिव को ‘11,780 वोट खोजने’ के लिए कहा। रिपब्लिकन होने के बावजूद, सचिव ब्रैड रैफेंसपर ने सही काम करने के बजाय, मना कर दिया।

सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अमेरिका की अदालतों ने निभाई है। ट्रंप के चुनाव अभियान ने 60 से अधिक कानूनी चुनौतियां राज्य अदालतों से लेकर संघीय न्यायालयों, अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट तक तक दर्ज कीं। ट्रंप सभी मामलों में हार गए सिवाय एक जीत के जो बहुत छोटी थी, लेकिन हार बहुत बड़ी थी।

संघीय न्यायालयों में कई न्यायाधीशों को ट्रंप द्वारा नियुक्त किया गया था, जो अक्सर दावा करते थे कि यदि आवश्यक हो, तो उनकी न्यायिक नियुक्तियां उन्हें चुनाव जिताएंगी, लेकिन व्यक्तिगत निष्ठा प्रदर्शित करने के बजाय न्यायाधीशों ने कानून का पालन किया। कानूनी तौर पर धोखाधड़ी के सबूतों को परखा और इसे मनगढ़ंत करार दिया। अधिकांश रिपब्लिकन के लिए इतने सारे अदालती फैसलों के खिलाफ जाना असंभव हो गया। न्यायालयों ने राजनीति की अनुमन्य सीमाओं को परिभाषित किया।

अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति चुनाव के परिणामों को पलटने वाली याचिकाओं को दिसंबर के दूसरे हफ्ते में ही खारिज कर दिया था। इन याचिकाओं को डोनाल्ड ट्रंप की पार्टी रिपब्लिकन और उसके समर्थकों ने दायर की थीं। इनमें कहा गया था कि कोर्ट उन अहम राज्यों के चुनाव परिणामों को पलट दे, जिसमें डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदार जो बाइडन की जीत दर्ज की थी।

सुप्रीम कोर्ट ने टेक्सस में दायर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थन वाले उस मुकदमे को खारिज कर दिया है, जिसमें जॉर्जिया, मिशिगन, पेंसिल्वेनिया और विस्कॉन्सिन राज्यों में 3 नवंबर के राष्ट्रपति चुनाव परिणामों को पलटने की मांग की गई थी।  सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि संविधान के अनुच्छेद-3 के तहत टेक्सस के शिकायत के लिए मजबूत आधार की कमी होने के कारण इसे खारिज कर दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा कि टेक्सास ने उस प्रकार से न्यायिक संज्ञेय में दिलचस्पी नहीं दिखाई, जिस प्रकार से अन्य राज्य चुनाव आयोजित करते हैं। सभी लंबित प्रस्ताव विवादित करार देते हुए खारिज किए जाते हैं। कम से कम 126 रिपब्लिकन सांसदों ने इस वाद का समर्थन किया था। खुद डोनाल्ड ट्रंप ने भी इन याचिकाओं को लेकर खुशी जाहिर की थी।

गौरतलब है कि ट्रंप और उनके प्रचार अभियान दल ने चुनाव में बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए थे और कई राज्यों में बाइडन की जीत को अदालत में चुनौती दी थी। वहीं राज्य चुनाव अधिकारियों और मुख्यधारा के मीडिया का कहना है कि उन्हें धोखाधड़ी के संबंध में कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं।

अमेरिका की अदालतें रागदरबारी गाने या कथित राष्ट्रवादी मोड में आने के बजाय  अमेरिका की चुनाव अखंडता की रक्षा करने वाली संस्था के रूप में स्थापित हुई हैं, लेकिन यह लोकतंत्र को एक प्रणाली के रूप में संरक्षित करने में न्यायपालिका की भूमिका के बारे में भी कुछ कहता है। यदि स्वतंत्र और बेखौफ हैं, तो अदालतें राजनीतिज्ञों के पंखों को तोड़ सकती हैं।

राष्ट्रपति ट्रंप का समर्थन करने वाले प्रदर्शनकारियों के एक दल ने 6 जनवरी, 2021 को, यूएस कैपिटल बिल्डिंग के सामने रैली की और यहां तक कि हिंसा और तोड़फोड़ करते हुए इसमें प्रवेश करने की कोशिश की, ताकि अमेरिकी कांग्रेस चुनाव में जो बिडेन के विजय की पुष्टि न कर सके। सेना द्वारा तठस्थता का रुख अपनाए जाने के कारण ट्रंप समर्थकों का उपद्रव असफल हो गया।

इधर मौजूदा उपराष्ट्रपति माइक पेंस की देखरेख में मतगणना संपन्न हुई और उपराष्ट्रपति माइक पेंस ने अगले राष्ट्रपति के तौर पर जो बिडेन की विजय की पुष्टि कर दी। इन वोटों में से 306 वोट जो बिडेन के पक्ष में और 232 वोट राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पक्ष में पड़े थे। गौरतलब है कि यूएस कैपिटल बिल्डिंग अमेरिकी संसद के दोनों सदनों, अमेरिकी सीनेट और प्रतिनिधि सभा की मेजबानी करती है।

यूएस कैपिटल बल्डिंग में ट्रंप समर्थकों के खूनी उत्पात ने दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका को पूरी दुनिया के सामने शर्मसार कर दिया। इस घटना से देश के सांसदों और बुद्धिजीवियों में इस हद तक गुस्सा है कि अब वे डोनाल्ड ट्रंप को राष्ट्रपति की कुर्सी पर नहीं देखना चाहते, भले ही उनके कार्यकाल में चंद दिन बचे हैं। खास बात ये है कि ट्रंप को हटाने की मांग सिर्फ विरोधी डेमोक्रेट ही नहीं, बल्कि उनकी ही पार्टी रिपब्लिक के कई नेता भी कर रहे हैं।

स्पीकर नैंसी पेलोसी ने तो चेतावनी देते हुए ये तक कह दिया कि अगर ट्रंप को संविधान के 25वें संशोधन के तहत राष्ट्रपति पद से नहीं हटाया जाता है, तो अमेरिकी संसद महाभियोग की कार्यवाही की ओर बढ़ सकती है। उन्होंने उपराष्ट्रपति माइक पेंस से अपील की है कि वे इस कार्रवाई को लेकर आगे बढ़ें।

दरअसल साल 1967 में अमेरिकी संविधान में 25वें संशोधन को लागू किया गया। इसके तहत, ये व्यवस्था की गई कि अगर राष्ट्रपति शासन करने में अक्षम है या उसका निधन हो जाता है तो उसकी जगह किसी और को ये जिम्मेदारी दी जा सकती है। इसके साथ ही, ये भी प्रावधान किया गया था कि राष्ट्रपति के इस्तीफे या निधन की स्थिति में उप-राष्ट्रपति को स्थायी रूप से सत्ता सौंपी जा सकती है। नया उप-राष्ट्रपति बनाने की ताकत राष्ट्रपति और कांग्रेस को संयुक्त रूप से दी गई है।

दिसंबर 1973 में, अमेरिका के उप राष्ट्रपति स्पीरो एग्न्यू ने इस्तीफा दे दिया था। इस्तीफे के दो महीने बाद, गेराल्ड फोर्ड को 25वें संविधान संशोधन के जरिए राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने उप-राष्ट्रपति बनाया था। 25वें संविधान संशोधन के तीसरे सेक्शन में राष्ट्रपति को अस्थायी तौर पर उप-राष्ट्रपति को अपनी शक्तियां और जिम्मेदारियां सौंपने की अनुमति दी गई है। इसका इस्तेमाल साल 1985 में हुआ था, जब अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन की सर्जरी होनी थी। साल 2002 और 2007 में जॉर्ज ड्ब्ल्यू बुश को जब एनिस्थीसिया दी गई थी तो भी इसी सेक्शन का इस्तेमाल किया गया था।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और इलाहाबाद में रहते हैं।)

जेपी सिंह
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