Friday, March 29, 2024

विजाग गैस कांड पर आंध्रा हाईकोर्ट शख्त ; एलजी पॉलीमर परिसर की ज़ब्ती के आदेश, निदेशकों के देश से बाहर जाने पर रोक

विशाखापट्टनम में एलजी पॉलीमर रासायनिक संयंत्र से 7 मई को हुए जहरीली  स्टाइलिन गैस के रिसाव से कम से कम 11 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई थी और हजार से अधिक अन्य लोग इससे प्रभावित हुए थे। इस घटना ने 36 साल पुरानी भोपाल गैस त्रासदी की याद फिर एक बार ताज़ा कर दिया है। भोपाल में 03 दिसम्बर 1984 को अमेरिकी कम्पनी यूनियन कार्बाइड से जहरीली गैस लीक होने से 15 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई थी और हजारों लोग सांस और दूसरी शारीरिक बीमारियों से ग्रसित हुए थे। काफी संख्या में लोग अंधे और विस्थापित हो गए थे। इतने सालों बाद भी पीड़ितों को आज तक न्याय नहीं मिल पाया।

आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को राज्य सरकार को विशाखापट्टनम में एलजी पॉलीमर रासायनिक संयंत्र के कंपनी परिसर को जब्त करने का आदेश दिया, जहां से 7 मई की सुबह के दौरान स्टाइलिन गैस का रिसाव हुआ। कोर्ट ने कंपनी के निदेशकों को अदालत के आदेश के बिना देश छोड़ने से भी रोक दिया है। चीफ जस्टिस जे के माहेश्वरी और जस्टिस ललिता कान्नेग्नेची की खंडपीठ ने यह आदेश पारित किया है।  

पीठ ने निर्देश दिया है कि कंपनी का परिसर पूरी तरह से जब्त कर लिया जाए। किसी को कंपनी के निदेशकों सहित परिसर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। यदि कोई समिति, यदि कोई नियुक्त है, परिसर का निरीक्षण करना चाहती है, तो वह इसके लिए स्वतंत्र हैं। हालाँकि वह उक्त निरीक्षण के बारे में कंपनी के गेट पर रखे रजिस्टर पर एक नोट लिखेगा/लिखेगी और लौटते समय, परिसर में अधिनियम के बारे में नोट किया जाना चाहिए। कोई भी संपत्ति, चल या अचल, स्थिरता, मशीनरी और सामग्री अदालत की अनुमति के बिना स्थानांतरित करने की अनुमति नहीं है।

पीठ ने निर्देश दिया है कि कंपनी निदेशकों के आत्मसमर्पित पासपोर्ट को अदालत की अनुमति के बिना जारी नहीं किया जायेगा। कंपनी निदेशक बिना अनुमति के भारत से बाहर नहीं जा सकेंगे। शासन अदालत को बताएगा कि लॉकडाउन के दौरान कंपनी का संचालन फिर से शुरू करने के लिए कोई अनुमति हासिल की गई थी या नहीं। यदि नहीं, तो इस पहलू पर एक कार्रवाई की रिपोर्ट दायर की जाएगी। इस समस्या को देखते हुए कि इस मुद्दे पर कई समितियों का गठन किया गया है (एनजी, केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा) सरकारी अधिकारी अदालत को इस बात से अवगत करा सकते हैं कि समिति उठाए गए सवालों में किस मुद्दे का जवाब देगी और किस मुद्दे का नहीं।

पीठ ने यह भी कहा कि राज्य और केंद्र सरकार द्वारा दायर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट में जिन मुद्दों का जवाब नहीं दिया गया उनमें एलजी पॉलीमर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से एक वैध पर्यावरणीय मंजूरी के बिना काम कर रहा है या नहीं, भंडारण टैंक में अवरोधक एकाग्रता की जाँच की गई थी या नहीं। प्रशीतन प्रणाली ठीक से काम नहीं कर रही थी। कमजोर क्षेत्र की त्रिज्या को स्रोत से 6.3 किमी तक बढ़ाया गया था।

कई अस्पताल, शैक्षणिक संस्थान, पूजा स्थल, रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डे असुरक्षित क्षेत्र में हैं, दर्शकों की आबादी को उस जोखिम के बारे में सूचित किया जाना चाहिए जो वे खतरनाक रसायन नियमों के निर्माण, भंडारण और आयात के अनुसार दुर्घटना की स्थिति में निकासी प्रक्रियाओं में प्रशिक्षित किए गए थे। लेकिन ऐसा नहीं किया गया है। सायरन / अलार्म सिस्टम काम नहीं करता था।

इन पहलुओं पर जवाब देने के लिए सरकार के अधिकारियों ने समय देने के लिए प्रार्थना की थी। पीठ ने यह रिकॉर्ड कर लिया है।

पीठ ने सरकार से पूछा है कि एलजी पॉलीमर प्राइवेट की कुल संपत्ति कितनी है। लिमिटेड कंपनी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, लेकिन पुस्तक मूल्य के अनुसार नहीं? स्टाइलर मोनोमर को दक्षिण कोरिया में ले जाने की अनुमति क्यों दी गई थी और इसके लिए जिम्मेदार व्यक्ति कौन है, जब इसके लिए कोई अदालत की अनुमति नहीं दी गई थी और जब अपराध का पंजीकरण कर लिया गया तब कोई जांच / निरीक्षण टीम नियुक्त क्यों नहीं की गई और कोई मैजेस्ट्रियल जांच क्यों नहीं की गई? कोर्ट ने घातक गैस रिसाव के बाद उसका स्वत: संज्ञान लेकर निर्देश पारित किया है।

सात मई को इस त्रासदी की आत्महत्या का नोटिस लेते हुए, हाईकोर्ट ने कहा था कि स्टाइरीन को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम और रासायनिक दुर्घटना (आपातकालीन योजना, तैयारी और प्रतिक्रिया) 1996 के नियमों के तहत एक खतरनाक पदार्थ के रूप में अधिसूचित किया गया है। न्यायालय ने कहा था कि यह जांच और आकलन का विषय है कि उक्त नियमों के प्रावधान देखे गए हैं या नहीं ।

इसके पहले उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार 19 मई को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के उस आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया था जिसमें विशाखापट्टनम गैस लीक त्रासदी मामले की आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस बी शेषासायण रेड्डी की अध्यक्षता में जांच कमेटी का गठन किया गया था। उच्चतम न्यायालय ने एलजी पॉलीमर्स से स्पष्ट कर दिया है कि उसके आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम स्थित संयंत्र में हुए गैस रिसाव के मामले की जांच के लिए कई समितियां गठित करने के नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश से जुड़े सवालों के बारे में उसे उसके समक्ष उपस्थित होना होगा। जस्टिस उदय यू ललित, जस्टिस एमएम शांतानागौडार और जस्टिस विनीत सरन की पीठ ने मामले को लंबित रखा है और याचिकाकर्ता कंपनी एलजी पॉलीमर इंडिया को इस संबंध में एनजीटी के समक्ष अपना आवेदन देने को कहा है। उच्चतम न्यायालय  ने मामले को 8 जून को सूचीबद्ध किया है। 

दरअसल एलजी पॉलीमर इंडिया ने उच्चतम न्यायालय में सात मई को हुई त्रासदी को लेकर बनाई गई जांच कमेटियों को लेकर याचिका दाखिल की है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने पीठ को बताया कि एनजीटी के आदेशानुसार 50 करोड़ रुपये जमा कराए गए हैं। लेकिन इस मामले की जांच के लिए सात अलग- अलग कमेटी बना दी गई हैं। एनजीटी की कमेटी ने बिना नोटिस दिए तीन बार प्लांट का दौरा किया। एनजीटी के पास स्वत: संज्ञान लेकर कार्रवाई शुरू करने का क्षेत्राधिकार नहीं है क्योंकि पहले ही हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई कर आदेश जारी किए थे। 

मुकुल रोहतगी ने पीठ को बताया कि केंद्र एनएचआरसी और राज्य के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी जांच कमेटी बना दी है और एनजीटी  की कमेटी पर रोक लगाई जानी चाहिए। लेकिन पीठ ने कहा कि ये मामला पूरी तरह कानूनी है और एनजीटी  को पता नहीं होगा कि हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई की है। पीठ ने कहा कि मामला एनजीटी में लंबित है इसलिए वो कोई आदेश जारी नहीं करेगा और ना ही नोटिस जारी करेगा। पीठ ने कहा कि इस मामले को 1 जून को एनजीटी के समक्ष उठाया जा सकता है। यह मामला 8 जून को विचार के लिए लंबित रखा गया है। दरअसल आठ मई को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने सात मई को विशाखापट्टनम में गैस लीक मामले को लेकर एलजी पॉलीमर इंडिया को 50 करोड़ रुपये की अंतरिम राशि जमा करने का निर्देश दिया था। पीठ ने इसके अलावा केंद्र और एलजी पॉलीमर और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड समेत अन्य को भी नोटिस जारी किया था। 

एनजीटी में न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस घटना की जांच करने के लिए न्यायमूर्ति बी शेषासायण रेड्डी की की अगुआई में पांच सदस्यीय समिति का गठन किया। 18 मई से पहले इसे रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी। गैस लीक होने से 11 मजदूरों की मौत हो गई थी और सैंकड़ों लोगों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था । एनजीटी का कहना था कि इस मामले को देखकर स्पष्ट पता चलता है कि कंपनी नियमों और दूसरे वैधानिक प्रावधानों को पूरा करने में नाकाम रही है, जिसकी वजह से ये हादसा हुआ है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ कानूनी मामलों के जानकार भी हैं।)

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