Friday, March 29, 2024

सुप्रीम कोर्ट के वकीलों के विवाद में बार काउंसिल ऑफ इंडिया कूदा

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) में वकीलों के बीच जस्टिस अरुण मिश्रा द्वारा प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा को लेकर विवाद गहराता जा रहा है।स्थिति की गम्भीरता इससे समझी जा सकती है कि इसमें बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) भी कूद पड़ा है जबकि बीसीआई को अच्छी तरह मालूम है कि एससीबीए उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। बीसीआई का गठन एडवोकेट्स एक्ट के तहत हुआ है जबकि एससीबीए हो या बार का कोई अन्य संगठन ये सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत पंजीकृत संस्थाएं हैं जिनका अपना नियम /परिनियम है, जिसके अनुरूप उनका संचालन होता है।

दरअसल बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के उस फैसले पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है, जिसके तहत एसोसिएशन के सचिव अशोक अरोड़ा को पद से निलंबित कर दिया गया था।

एससीबीए के अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने बीसीआई के फैसले को ख़ारिज कर दिया है और कहा है कि यह फैसला एससीबीए को स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने कहा कि बीसीआई का कथित आदेश गैरकानूनी, अनधिकृत और विकृत है। यह एससीबीए ही नहीं, पूरे देश की बार एसोसिएशनों ‌की स्वतंत्रता पर हमला है। बीसीआई का उन बार एसोसिएशनों पर कोई पर्यवेक्षण अधिकार क्षेत्र या नियंत्रण नहीं है, जो कि अधिवक्ता अधिनियम, 1961 द्वारा संचालित नहीं हैं। यह आदेश अधिनियम की धारा 7 के दायरे से बाहर है, जो बीसीआई के कार्यों को परिभाषित और सीमित करता है। आदेश का कोई आधार नहीं है। वास्तव में यह किसी सम्मान के लायक भी नहीं है और इसे एससीबीए अनदेखा कर देगी।

7. Functions of Bar Council of India –

 (1) The functions of the Bar council of India shall be

          a. (Note:- Clause (a) omitted by Act 60of 1973, sec.7)

b. To lay down standards of professional conduct and etiquette for advances.

c.  To lay down the procedure to be followed by its disciplinary committee and the disciplinary committee of each State Bar Council

d.  To safeguard the rights, privileges and interest of advocates

e.  To promote and support law reform

etc

बार काउंसिल ऑफ यूपी के पूर्व अध्यक्ष, वर्तमान सदस्य और इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के नव निर्वाचित अध्यक्ष अमरेन्द्र नाथ सिंह ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के इस निर्णय की भर्त्सना की है और कहा है कि बीसीआई का गठन एडवोकेट्स एक्ट के तहत हुआ है जबकि एससीबीए हो या बार का कोई अन्य संगठन ये सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत पंजीकृत संस्थाएं हैं,जिनका अपना नियम /परिनियम है, जिसके अनुरूप उनका संचालन होता है। इसलिए बीसीआई का उन बार एसोसिएशनों पर कोई पर्यवेक्षण अधिकार क्षेत्र या नियंत्रण नहीं है, जो कि अधिवक्ता अधिनियम, 1961 द्वारा संचालित नहीं हैं।राजनीतिक लाभ पाने के लिए कुछ लोग बीसीआई का दुरुपयोग कर रहे हैं।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने अशोक अरोड़ा को 8 मई को सचिव पद से हटाने का फैसला किया था। बार काउंसिल ऑफ इंडिया का यह कदम असाधारण माना जा रहा है, क्योंकि बीसीआई आमतौर पर एससीबीए, या किसी भी बार एसोसिएशन के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता है। बार काउंसिल ऑफ इं‌डिया ने अपने संकल्प में कहा था कि मौजूदा स्थिति ने कई सदस्यों को व्यथित और निराश कर दिया है। बार काउंसिल ऑफ इं‌डिया ने सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव में एससीबीए को याद दिलाया है कि इस प्रकार की घटना का देश भर के बार एसोसिएशनों के कामकाज पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।

प्रस्ताव में कहा गया है कि अगर 8 मई के प्रस्ताव को जारी रखा जाता है तो एससीबीए के एक चुने हुए पदाधिकारी को असाध्य क्षति होगी। आम तौर पर परिषद किसी भी बार एसोसिएशन के कामकाज में हस्तक्षेप करने से बचती है। मगर, यहां एक चरम मामला है, जहां परिषद को नोटिस लेना जरूरी लगा है, हालांकि, ‌फिर भी, परिषद ने मामले की मेरिट की जांच करना या सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के मामलों में हस्तक्षेप करना उचित नहीं समझा है। लेकिन, इस मुद्दे का देश के बार एसोसिएशनों के कामकाज पर दूरगामी प्रभाव पड़ना है।

अरोड़ा ने 8 मई को एससीबीए के सचिव पद से निलंबित होने के तुरंत बाद, उन्होंने एसोस‌िएशन के अध्‍यक्ष दुष्यंत दवे और कार्यकारी समिति के कामकाज पर सवाल उठाया ‌था। बीसीआई ने 11 मई की बैठक में उन सवालों की चर्चा की। चूंकि बीसीआई अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा एससीबीए के वोटिंग मेंबर हैं, इसलिए उन्होंने इस चर्चा में भाग नहीं लिया है। बैठक की अध्यक्षता बीसीआई उपाध्यक्ष सतीश ए देशमुख ने की। काउंसिल ने कहा कि वह 8 मई की घटनाओं से ‘बेहद दुखी और चिंतित है’, जिसके तहत एससीबीए की कार्यकारी समिति ने अरोड़ा को निलंबित करने का निर्णय लिया था। काउंसिल ने निलंबन को अवैध, अलोकतांत्रिक और निरंकुश करार दिया।

 (जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ क़ानूनी मामलों के जानकार भी हैं।)

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