Friday, March 29, 2024

पेसा के स्थापना दिवस पर लगा ‘गुंजा मावा नाटे, मावा राज’ का नारा

रायपुर। पेसा कानून का 25वां स्थापना दिवस धमतरी के नगरी ब्लॉक के ग्राम बोराई में मनाया गया। इस मौके पर पेसा कानून विशेषज्ञ अश्विनी कांगे द्वारा बेहद सरल तरीके से पेसा कानून के बारे में जानकारी दी गयी।

पेसा की रजत जयंती पर आयोजित भारत के मध्यक्षेत्र के पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों  के सम्मेलन में आज ‘अपने गांव में, अपना राज’ स्थापित करने के लिए 7 राज्यों असम, झारखंड, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश से आये लोगों ने आवाज बुलंद की। उन्होंने अपनी-अपनी भाषा मे इसके लिए नारा लगाया।

असम से पहुंचे आदिवासी समुदाय के सदस्यों ने “मेंठाग रोग मेंठाग अजक कोंग” का नारा लगाया, झारखंड से आये लोगों ने “अबुवा दिशुम अबुवा राज” का नारा लगाया वहीं महाराष्ट्र के लोगों ने “आमच्या गावांत आमच्या सरकार” का नारा लगाया, उड़ीसा से आये लोगों ने “आमोरो गारे आमोरो  शासन” का नारा दिया। जबकि मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के लोगों ने “मावा नाटे मावा राज” का नारा दिया। 

पेसा के बारे में बताते हुए अश्वनी कांगे ने कहा कि इस साल और अगले साल  केंद्र सरकार आजादी का अमृत महोत्सव  मना रही है। 15 अगस्त 2022  को  भारत की आजादी के 75 साल हो रहे हैं। इस अमृत महोत्सव में छत्तीसगढ़ के  पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों के आमजन भी अलग अलग अवसरों में सहभागी बनते आ रहे हैं। अमृत महोत्सव के साथ उनके लिए उत्सव का एक और कारण है। जल-जंगल-जमीन का अधिकार देने वाला पेसा कानून 24 दिसंबर 2021 को  25 साल का हो रहा है। इसलिए आदिवासियों के पास अमृत महोत्सव और  रजत जयंती मनाये जाने का विषय एक साथ है।   

उन्होंने इसको विस्तारित हुए कहा कि हर  उत्सव  खुशी का  होता  है,  पर  इस  अमृत  महोत्सव  और  रजत  जयंती  को लेकर पांचवीं  अनुसूची  क्षेत्रों  के   लोगों के  मन में आशंका है। थोड़ा डर भी है। सवाल  है कि, “हम उत्सव मनायें की  नहीं?” क्या यह दोनों उत्सव आम जनता के  लिए सच में खुशहाली लाये हैं या  फिर उनके  जल-जंगल-जमीन को धीरे-धीरे निजी हाथों में दिए जाने की ख़ुशी में  पांचवीं अनुसूची क्षेत्र के लोगों का उपहास उड़ा रहे हैं? 

इसके इतिहास में जाते हुए उन्होंने कहा कि आजादी  के 75  साल  को  देखें  तो  लोकतांत्रिक व्यवस्था में जिस प्रकार हर प्रावधान और कानून लिखित में होता है  वो आज तक जंगल में रहने वाले भोले भाले लोगों को समझ नहीं आ पाया है।  ऐसा क्यों? क्योंकि आदिवासी समुदाय का लिखित संविधान और कानून नहीं  होता है। वह तो अलिखित संविधान से चलते  हैं। लेकिन जब हम खोजते है कि  पिछले 75 साल में सरकारों के सैकड़ों अलिखित कानूनों में ऐसा कौन सा कानून  है जो आदिवासियों के जल, जंगल,जमीन, संस्कृति और जीवन यापन के  अलिखित कानूनों को समेटे हुए है तो एक ही नाम सामने आता है “पेसा कानून”। 

सन 1996 की 24 दिसम्बर से लागू यह पेसा कानून के बारे में उन्होंने कहा कि यह हमारे लिए आज यह  चिंतन करने का अवसर दे रहा है कि क्या आजादी के 75  साल बाद भी जो स्वतंत्रता और आजादी सभी को मिली थी क्या वह  आदिवासियों और  पांचवीं अनुसूची क्षेत्र के  निवासियों को भी  पूर्ण  रूप  से  मिली है या पूर्व की आजादी भी उनसे धीरे-धीरे छिनती जा रही  है।

पेसा कानून के लिए 25 साल में अब तक मध्य भारत के 10 राज्यों में जहां यह कानून लागू होता है उसमें से छत्तीसगढ़, मध्य  प्रदेश, उड़ीसा और झारखंड मे नियम ही नहीं बने हैं। जिस कानून के नियम ही नहीं बने हों वह  कानून  25 सालों  में कैसे  चला होगा  यह  सोचने  का  विषय  है। केंद्र सरकार और राज्य सरकार  इस पर जवाब दे कि 25 सालों तक उन्होंने क्या किया है।

इन 25  सालों  के  लिए हमारी ओर से 25 सवाल तो खड़े करना तो लाजमी  है। इन सभी के  जवाब तो केंद्र और राज्य सरकार दोनों को ही देने होंगे। शायद इनका जवाब देते हुए वह इस बात पर चिंतन कर पाए कि संविधान के अनुच्छेद 40 में  लिखित पंचायती राज व्यवस्थाओं को स्वायत्त इकाई बनाने के  लिए सरकार ने अब तक क्या कदम उठाये हैं।

क्या उन्होंने ग्राम सभा और पंचायतों को  स्वशासन की इकाई बनने के लिए कुछ पहल की है या उनके पूर्व में चले आ रहे  स्वशासन को छीनने का काम किया है? अगर सरकार इस बात का जवाब नहीं दे  पाती है तो हमें उनके नियत पर शक करना लाजमी है। 25 साल तक पेसा के  झुनझुना से आदिवासी समाज और पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में रहने वाला हर समाज  खेलता रहा है। अब समाज को कानून के साथ साथ वयस्क हो कर अपने अधिकार पाने के  लिए स्वयं रोड पर,पंचायत पर, विधानसभा और लोकसभा  के  साथ साथ कोर्ट  में अपनी लड़ाई लड़नी होगी, नहीं तो अगले 25  साल के लिए फिर पेसा के नाम का झुनझुना के साथ लालीपॉप पकड़ा दिया जायेगा।

कार्यशाला में प्रमुख रूप से सर्व आदिवासी समाज प्रदेश उपाध्यक्ष ललित नरेटी जी, झाडू राम नागेश सलाहकार गोड़वाना समाज, इतवारी नेताम, ईश्वर नेताम, भगवान सिंह नेताम, बलराम शोरी , मोहन मरकाम, निच्छल मरकाम, सोना राम नेताम हरक मंडावी , रामप्रसाद मरकाम, कुंदन साक्षी, बुधराम साक्षी, देवनाथ मरकाम , पिलाराम नेताम, मयाराम नागवंशी , सोपसिंग मंडावी, जिला पंचायत सदस्य मनोज साक्षी , सर्व आदिवासी समाज के युवा प्रभाग के अध्यक्ष प्रमोद कुंजाम, असम से अमृत इंगति, जयराम इंगहि, प्रदीप किलिंग,उड़ीसा से सुकडु मरकाम, अश्वनी नेताम, बुद्धु नेताम , मध्यप्रदेश से कमल किशोर आर्मो, कमलेश मरकाम, झारखंड से सूरज प्रसाद, महाराष्ट्र से चन्द्र शेखर पद्दा, परस राव , तेलंगाना से नेहरू मड़ावी, सर्व आदिवासी समाज युवा प्रभाग अध्यक्ष जिला गौरेया, पेन्द्रा मरवाही मनीष धुर्वे , जीवन शांडिल्य, सूरजपुर जिला युवा प्रभाग अध्यक्ष राजा छितिज उइके शामिल रहे।

(छत्तीसगढ़ से जनचौक संवाददाता तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट।)

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