कांग्रेस ने फौजियों पर केंद्र सरकार के रवैये की तीखी आलोचना की है। पार्टी ने कहा है कि शहीद सैनिकों की वीरता और राष्ट्रवाद के नाम पर वोट बटोरने वाली मोदी सरकार देश के इतिहास की पहली सरकार बनने जा रही है, जो सीमा पर रोजाना अपनी जान की बाजी लगाने वाले सैन्य अफसरों की पेंशन काटने और ‘सक्रिय सेवा’ (Active Service) के बाद उनके दूसरे करियर विकल्प पर डाका डालने की तैयारी में है। इस बारे में बाकायदा 29 अक्तूबर, 2020 के पत्र से प्रस्ताव मांगा गया है।
कांग्रेस के महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि एक तरफ तो स्वांग रच प्रधानमंत्री मोदी सेना के लिए दिया जलाने की बात करते हैं और दूसरी तरफ साहसी और बहादुर सैन्य अफसरों के जीवन में उनकी पेंशन काट अंधेरा फैलाने का दुस्साहस कर रहे हैं। यही भाजपा का झूठा राष्ट्रवाद है। उन्होंने कहा कि सेना में भर्ती यानी ‘सैन्य कमीशन’ के समय ‘इंडियन मिलिटरी एकेडमी’ में हर अधिकारी से 20 साल का अनिवार्य सर्विस बॉन्ड भरवाया जाता है। 20 साल की सेवा के बाद सैन्य अफसर ‘Last Drawn Salary’ यानी 20 साल की सेवा पूरी होने पर जो मूल तनख्वाह मिल रही हो, उसकी 50 प्रतिशत पेंशन पाने का हकदार है। परंतु मोदी सरकार का ताजा सेना विरोधी प्रस्ताव उस 50 प्रतिशत पेंशन को भी आधी कर देने का है।
उन्होंने कहा कि उदाहरण के तौर पर यदि 20 साल की सेवा उपरांत किसी सैन्य अधिकारी को आखिरी मूल तनख्वाह 1,00,000 रु. प्रति माह थी, तो पिछले 73 वर्षों से उसकी पेंशन 50,000 रुपये प्रति माह मिलना सुनिश्चित है, यानी आखिरी मूल तनख्वाह का 50 प्रतिशत। पर मोदी सरकार का नया प्रस्ताव अब सैन्य अधिकारी की पेंशन 50,000 रु. प्रतिमाह से घटाकर 25,000 रुपये प्रतिमाह कर देगा। अपनी जान की बाजी लगाकर देश की सेवा करने वाले अधिकारियों की आधी पेंशन काटने की ऐसी निर्मम और निर्दयी प्रस्तावना केवल सेना विरोधी मोदी सरकार ही कर सकती है।
सुरजेवाला ने कहा कि सेना में भर्ती हुए 100 अफसरों में से औसतन 65 प्रतिशत सैन्य अफसर लेफ्टिनेंट कर्नल के पद तक ही सीमित रह जाते हैं। केवल 35 प्रतिशत अधिकारी ही कर्नल या उससे ऊपर के पदों पर जा पाते हैं। ऐसे में 20 साल सेवाएं देने के बाद वो सैन्य अधिकारी पूरी पेंशन के साथ जिंदगी में एक दूसरा करियर विकल्प तलाश कर लेते हैं तथा प्रभावी तरीके से राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देते हैं। सेना को इसका सीधा फायदा यह है कि फौज सदा युवा बनी रहती है, जिसे मिलिटरी की भाषा में ‘Lean & Mean Fighting Force’ कहा जाता है। अगर मोदी सरकार की प्रस्तावना लागू हो जाएगी, तो सदा के लिए 65 प्रतिशत सैन्य अफसरों का दूसरा करियर विकल्प भी खत्म हो जाएगा और सेना से बाहर सिविलियन क्षेत्र में राष्ट्र निर्माण में उनका रचनात्मक सहयोग भी।
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की नई प्रस्तावना के मुताबिक केवल उस सैन्य अफसर को पूरी पेंशन मिलेगी, जिसने 35 साल से अधिक सेना की सेवा में बिताए हों। परंतु सेना के 90 प्रतिशत अफसर तो 35 साल की सेवा से पहले ही रिटायर हो जाते हैं। ऐसे में मोदी सरकार 90 प्रतिशत सेना के अफसरों को पूरी पेंशन से वंचित करने का षड़यंत्र रच रही है। सैन्य अफसरों की सेवाओं की शर्तों को भी ‘Back Date’ से संशोधित नहीं किया जा सकता है। जब सेना में भर्ती होते हुए 20 साल की अनिवार्य सेवा और 20 साल के बाद फुल पेंशन पर रिटायरमेंट की शर्त रखी गई है, तो आज मोदी सरकार उन सारी सेवा शर्तों को कैसे संशोधित कर सकती है? इससे सैन्य अधिकारियों का मनोबल टूटेगा।
कांग्रेस महासचिव ने कहा कि भारत की तीनों सेनाओं में पहले से ही 9,427 अफसरों की कमी है। जून, 2019 के आंकड़े बताते हैं कि थल सेना में 7,399, नौसेना में 1,545 और वायु सेना में 483 अफसर कम हैं। मोदी सरकार की सेना का मनोबल तोड़ने वाली इस प्रस्तावना से देश के युवाओं का सेना में भर्ती होने के प्रति आकर्षण घटेगा तथा आखिर में देश का नुकसान होगा।
सुरजेवाला ने कहा कि सच्चाई यह है कि मोदी सरकार लगातार सेना विरोधी कार्य कर रही है। मोदी सरकार ने आज तक ‘वन रैंक, वन पेंशन’ (OROP) लागू नहीं की। मोदी सरकार ने सेना की ‘नॉन फंक्शनल यूटिलिटी बेनेफिट स्कीम’ खत्म कर दी, जिसे कांग्रेस की सरकार ने लागू किया था, ताकि ऑटोमेटिक टाइम बाउंड पे प्रमोशन हो सकें। यहां तक कि मोदी सरकार ने सेना की कैंटीन (CSD) से सैनिकों द्वारा इस्तेमाल के लिए खरीदे जाने वाले सामान की मात्रा पर भी सीमा लगा दी। चार साल अदालती मुकदमों के बाद ही यह निर्णय वापस हो पाया। मोदी सरकार ने सियाचिन और लद्दाख में सैनिकों के लिए खरीदे जाने वाले सर्दी के ईक्विपमेंट, जूते, बुलेटप्रूफ जैकेट की खरीद में भयंकर देरी की।
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने ‘डिसएबिलिटी पेंशन’ पाने वाले सेना के अधिकारियों तथा सैनिकों पर टैक्स लगा दिया। मोदी सरकार ने ‘Short Service Commission’ पर देश सेवा करने वाले अधिकारियों और सैनिकों की मेडिकल सुविधा खत्म कर दी। यहां तक कि 70,000 सैनिकों वाली माउंटेन कोर, जो चीन की सीमा पर देश की रक्षा के लिए तैनात की जानी थी, का गठन भी मोदी सरकार ने पैसे की कमी बताकर खारिज कर दिया। और अब सेना पर मोदी सरकार के ताजे हमले की इस प्रस्तावना ने झूठे राष्ट्रवादियों का सेना विरोधी चेहरा उजागर कर दिया है।