Friday, April 19, 2024

यह कैसा ‘सम्मान’ है जो किसी को मार कर बढ़ता है?

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर जब परिचर्चाएं इस बात को लेकर हो रही हैं कि आज महिलाओं ने जमीन से लेकर आसमान तक अपनी जीत का परचम लहराया है,  हर क्षेत्र में आगे बढ़कर खुद को साबित किया है, अब दुश्मन के भी छक्के छुड़ाने को तैयार हैं महिलाएं आदि तो एकाएक ध्यान तस्वीर के उस रुख की ओर भी जाता है जहां एक लड़की को केवल इसलिए मार दिया जाता है कि उसने अपनी जाति या धर्म से बाहर जाकर प्रेम विवाह करने की हिम्मत की और अपने परिवार की तथाकथित इज्जत की धज्जियां उड़ा दी, तब उसके सम्मान में कही गई बातों से ज्यादा समाज और परिवार में कायम उसकी वस्तुस्थिति को स्वीकार करना ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। और आज भी महिलाओं के सन्दर्भ में वस्तु स्थिति यही है कि भले ही वह आसमान तक पहुंच गई हो लेकिन जमीन पर उसकी हकीक़त हमारे इस पुरुष प्रधान समाज में दोयम दर्जे की है जहां उसको सांस लेने तक के लिए भी इजाजत लेनी पड़ती हो तो अपनी मर्जी से अपने जीवन की राह चुनने का मामला तो बहुत दूर की बात ठहरी। इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है  कि जहां प्रेम करने पर लड़कियों को मार दिया जाता हो।

क्या सचमुच प्रेम करना इतना बड़ा अपराध हो गया कि कोई पिता अपनी ही बेटी का सिर धड़ से अलग कर दे। हरदोई की इस  घटना को जिसने भी पढ़ा, सुना, देखा स्तब्ध रह गया। एक पिता को अपनी बेटी का प्रेम करना इतना नागवार गुजरा कि बेटी का सिर काटकर उसे हाथ में उठाए स्वयं पुलिस थाने भी पहुंच गया। जिस घटना की कल्पना मात्र हमें अंदर तक हिला कर रख दे और एक क्षण हम खुद से यह सवाल करने लगें कि क्या सचमुच ऐसा संभव है, उस घटना को कोई व्यक्ति आराम से अंजाम तक पहुंचा दे और उसे मलाल तक न हो तो ऐसी घटनाएं यह बताती हैं कि लोगों के संघर्षों के बावजूद आज भी महिला समाज के सामने यह प्रश्न अटल रूप से खड़ा है कि अन्य बदलाव तो छोड़िए क्या हमें इंसान होने तक का भी दर्जा प्राप्त है? एक तरफ़ हरदोई में एक पिता “इज्जत के नाम पर” अपनी बेटी का सिर काट रहा था तो दूसरी तरफ एक और बेटी “इज्जत के नाम पर” मारी जा रही थी।

राजस्थान के दौसा में एक परिवार ने इसलिए अपनी नवविवाहित बेटी को मार डाला क्योंकि वह भी उनकी इच्छा के विरुद्ध किसी से प्रेम करती थी। उसके प्रेम को दरकिनार करते हुए परिवार ने उसकी शादी जबरन कहीं और करवा दी। शादी के कुछ दिन बाद जब लड़की अपने घर आई तो सामाजिक और पारिवारिक बंधनों को तोड़कर उस युवक के साथ चली गई जिससे वह प्रेम करती थी। हमारी जिस परंपरागत व्यवस्था में आज भी महिला समाज को अपने मुताबिक पढ़ाई करने से लेकर करियर चुनने तक की स्वतंत्रता से वंचित रखा गया हो, वहां कोई लड़की जब इतना बड़ा कदम उठा ले तो भला पितृसत्तात्मक समाज के पैरोकारों को कैसे बर्दाश्त हो और वही हुआ जो “इज्जत के नाम” की दुहाई देकर होता आया है, एक और बेटी अपनों के ही हाथों मार दी गई। इस घटना में भी मारने के बाद लड़की के पिता ने खुद थाने जाकर अपनी गिरफ्तारी दी। 

  आख़िर यह कैसा “सम्मान” है जो हत्याओं से बढ़ता है? ऑनर किलिंग के मामलों में दो बातें जो समान रूप से देखी जाती हैं कि हत्या करने वाला हमेशा लड़की का ही परिवार या घर का कोई सदस्य होता है और दूसरा कि हत्या करने के बाद हत्यारा कोई अफसोस नहीं करता बल्कि इसे अपनी शान की बात समझता है। ऑनर किलिंग की घटनाएं यह बताती हैं कि आज भी हमारा समाज किस हद तक दकियानूसी और रूढ़िवादी सोच में जकड़ा हुआ है। “इज्जत के नाम पर हत्याएं” हमारे समाज के भीतर जातिवाद और धार्मिक कट्टरता की गहरी होती जड़ों का ही परिणाम हैं जिसका ख़ामियाजा सबसे ज्यादा महिला समाज को ही भुगतना पड़ा है। “अपनी मर्जी से अपना जीवन साथी चुनने की आज़ादी” क्या इतना बड़ा अपराध है कि एक लड़की को अपनी जान से हाथ धोना पड़ जाए। कभी शादी से पहले तो कभी शादी के बाद दंपति को सरेआम मारने की घटनाएं एक सभ्य समाज की तस्वीर कभी नहीं हो सकती। बीते दिनों उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में एक ऑनर किलिंग का मामला सामने आया जहां एक बहन अपने ही भाइयों द्वारा मार दी गई। 

24 वर्षीय चांदनी किशनी थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले ग्राम फरंजी की रहने वाली थी। वह जिस लड़के को पसंद करती थी परिवार उसके ख़िलाफ़ था और चांदनी की शादी अपने मुताबिक करना चाहती थी। चांदनी ने हिम्मत करके घर वालों के विरुद्ध जाकर जाति का बंधन तोड़कर पिछले साल जून में उसी लड़के अर्जुन से विवाह कर लिया जिसके साथ उसने जिंदगी के सुनहरे सपने देखे थे और उसके इस साहस में अर्जुन ने उसका पूरा साथ दिया। अर्जुन का  परिवार इस शादी से संतुष्ट था लेकिन चांदनी के भाइयों को उसका यह साहस इतना नागवार गुजरा कि शादी के छह महीने बाद उसकी हत्या कर डाली। चांदनी शादी करके अर्जुन के साथ दिल्ली चली गई थी। अर्जुन वहीं नौकरी करता था।

सब कुछ उनके मुताबिक चल रहा था,  लेकिन एक दिन चांदनी के भाइयों ने उसे सब कुछ ठीक होने की बात कहकर गांव बुला लिया। चांदनी खुश थी कि उसके भाइयों ने दोनों का रिश्ता स्वीकार कर लिया है और इसी विश्वास के भरोसे वह अपने भाइयों और मां से मिलने गांव चली गई लेकिन उसे क्या पता था कि जो भाई उसे प्यार से बुला रहे हैं उसके पीछे उनकी हैवानियत छुपी है। भाइयों के द्वारा चांदनी को मार दिया गया और खेत में दफन कर दिया गया। जब चांदनी के पति अर्जुन और उसके परिवार द्वारा चांदनी की खोज शुरू की गई और पुलिस में रिपोर्ट लिखाई गई तब कहीं जाकर बीते दिसंबर में इस वीभत्स घटना का खुलासा हुआ। इस हत्या में भाइयों के साथ मां की भी भूमिका देखी गई। अब पूरा परिवार सलाखों के पीछे है। कोई उनसे पूछे ताउम्र जेल में रहने से उनकी कौन सी इज्जत बढ़ गई। 

हमारी परंपरागत व्यवस्था यानी पितृसत्तात्मक समाज ने महिलाओं को “करुणा की मूर्ति”” त्याग और बलिदान की प्रतिमूर्ति” “सेवाभाव की देवी” जैसे शास्त्रीय परिभाषाओं में तो जरूर गढ़ा लेकिन जब बात वास्तविक हक़ देने की आई तो उसे सिरे से ख़ारिज कर दिया गया। जिस व्यवस्था में पुरुष को श्रेष्ठ और महिला को निम्न दर्जे की श्रेणी में रखा गया हो, यानी प्रथम पुरुष और उसके बाद महिला का स्थान आंका गया हो, वहां फैसले लेने का संपूर्ण अधिकार पुरुष की मुठ्ठी में कैद कर दिया गया। फ्रेंच लेखिका सिमोन द बुआ की बहुचर्चित पुस्तक “द सेकेंड सेक्स” पुरुष प्रधानता की इसी ओर इशारा करती है। इस किताब की एक बेहतरीन लाइन है जो स्त्री समाज का पूरा सच बताती है वह लिखती हैं ” स्त्री पैदा नहीं होती, उसे बनाया जाता है”  सीमोन का मानना था कि स्त्रियोचित गुण दरअसल समाज और परिवार द्वारा लड़की में भरे जाते हैं, क्योंकि वह भी वैसे ही जन्म लेती है जैसे कि पुरुष और उसमें भी वे सभी क्षमताएं, इच्छाएं और गुण होते हैं जो कि किसी लड़के में।

सीमोन कहती हैं “एक महिला को उसके जीवन में उसकी पसंद-नापसंद के अनुसार रहने और काम करने का हक़ होना चाहिए, ऐसा करके वह पुरुष से आगे बढ़ सकती है, और स्थिरता से आगे बढ़कर श्रेष्ठता की ओर अपना जीवन विकसित कर सकती है, ऐसा करने से  स्त्री को उनके जीवन में कर्तव्य के चक्रव्यूह से निकलकर स्वतंत्र जीवन की ओर कदम बढ़ाने का हौसला मिलता है” दशकों पहले लिखी इस किताब ने यह साबित कर दिया कि तब भी महिलाओं के संदर्भ में समाज एक दकियानूसी सोच की पैरवी करता था और आज भी हालात बहुत कुछ बदले नहीं हैं और कहीं न कहीं यह भय पुरुष के भीतर आज भी कायम है कि स्त्री स्वतंत्रता उनके पुरुषत्व को खत्म कर सकती है उस पुरुषत्व को जिसके दम पर उसने अपने को सदैव से स्त्री से श्रेष्ठ समझा ।

हमारे देश को आज़ाद हुए सात दशक से ज्यादा बीत चुका है, आज़ादी के इतने लंबे सफर में हमने विभिन्न क्षेत्रों में खूब तरक्की  की, हम विश्व के समक्ष महाशक्ति बनने की ओर भी बढ़ रहे हैं लेकिन सामाजिक स्तर पर आज भी हम पिछड़े ही साबित हो रहे हैं। एक तरफ हमारा यह पितृसत्तात्मक समाज महिलाओं के पक्ष में वही रूढ़िवादी सोच का पोषक बना हुआ है तो दूसरी तरफ जाति-धर्म की प्रधानता इंसानी रिश्तों पर हावी है और इस पूरे परिवेश का खमियाजा लगातार स्त्री समाज को ही भुगतना पड़ रहा है। पर यह कहना गलत नहीं होगा कि आज महिलाओं ने अपने हक में जो कुछ भी हासिल किया है वे अपने संघर्षों के ही बूते हासिल किया है। बेशक उसका यह संघर्ष आसान नहीं लेकिन कहते हैं न कि लड़ना तो होगा क्योंकि लड़े बिना आप वह चीज हासिल नहीं कर सकते जिसके आप हकदार हैं और जब लड़ाई संकीर्ण विचारधारा के ख़िलाफ़ हो तो उसे गति देना और लाज़िम हो जाता है। 

(सरोजिनी बिष्ट स्वतंत्र लेखिका और टिप्पणीकार हैं। आप आजकल लखनऊ में रहती हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

जौनपुर में आचार संहिता का मजाक उड़ाता ‘महामानव’ का होर्डिंग

भारत में लोकसभा चुनाव के ऐलान के बाद विवाद उठ रहा है कि क्या देश में दोहरे मानदंड अपनाये जा रहे हैं, खासकर जौनपुर के एक होर्डिंग को लेकर, जिसमें पीएम मोदी की तस्वीर है। सोशल मीडिया और स्थानीय पत्रकारों ने इसे चुनाव आयोग और सरकार को चुनौती के रूप में उठाया है।

AIPF (रेडिकल) ने जारी किया एजेण्डा लोकसभा चुनाव 2024 घोषणा पत्र

लखनऊ में आइपीएफ द्वारा जारी घोषणा पत्र के अनुसार, भाजपा सरकार के राज में भारत की विविधता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला हुआ है और कोर्पोरेट घरानों का मुनाफा बढ़ा है। घोषणा पत्र में भाजपा के विकल्प के रूप में विभिन्न जन मुद्दों और सामाजिक, आर्थिक नीतियों पर बल दिया गया है और लोकसभा चुनाव में इसे पराजित करने पर जोर दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 100% ईवीएम-वीवीपीएटी सत्यापन की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

सुप्रीम कोर्ट ने EVM और VVPAT डेटा के 100% सत्यापन की मांग वाली याचिकाओं पर निर्णय सुरक्षित रखा। याचिका में सभी VVPAT पर्चियों के सत्यापन और मतदान की पवित्रता सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया। मतदान की विश्वसनीयता और गोपनीयता पर भी चर्चा हुई।

Related Articles

जौनपुर में आचार संहिता का मजाक उड़ाता ‘महामानव’ का होर्डिंग

भारत में लोकसभा चुनाव के ऐलान के बाद विवाद उठ रहा है कि क्या देश में दोहरे मानदंड अपनाये जा रहे हैं, खासकर जौनपुर के एक होर्डिंग को लेकर, जिसमें पीएम मोदी की तस्वीर है। सोशल मीडिया और स्थानीय पत्रकारों ने इसे चुनाव आयोग और सरकार को चुनौती के रूप में उठाया है।

AIPF (रेडिकल) ने जारी किया एजेण्डा लोकसभा चुनाव 2024 घोषणा पत्र

लखनऊ में आइपीएफ द्वारा जारी घोषणा पत्र के अनुसार, भाजपा सरकार के राज में भारत की विविधता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला हुआ है और कोर्पोरेट घरानों का मुनाफा बढ़ा है। घोषणा पत्र में भाजपा के विकल्प के रूप में विभिन्न जन मुद्दों और सामाजिक, आर्थिक नीतियों पर बल दिया गया है और लोकसभा चुनाव में इसे पराजित करने पर जोर दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 100% ईवीएम-वीवीपीएटी सत्यापन की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

सुप्रीम कोर्ट ने EVM और VVPAT डेटा के 100% सत्यापन की मांग वाली याचिकाओं पर निर्णय सुरक्षित रखा। याचिका में सभी VVPAT पर्चियों के सत्यापन और मतदान की पवित्रता सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया। मतदान की विश्वसनीयता और गोपनीयता पर भी चर्चा हुई।