टूर एंड ट्रैवेल का बिजनेस करने वाले लखनऊ के प्रताप चंद्र गुप्ता ने पुलिस में शिक़ायत दर्ज़ करवाते हुये कहा है कि उनके साथ धोखा हुआ है, क्योंकि कंपनी के दावे के बावजूद उनके शरीर में एंटीबॉडी नहीं बनी। इसलिए कंपनी के साथ उसे अनुमति देने वाली संस्थाओं पर भी FIR दर्ज़ किया जाये ।
प्रताप चंद्र गुप्ता ने यह शिकायत लखनऊ के आशियाना थाने में दर्ज़ कराई है। शिक़ायतकर्ता ने अपने शिक़ायत पत्र में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के CEO अदार पूनावाला, ICMR के डायरेक्टर बलराम भार्गव, WHO के DG डॉ. टेड्रोस एधोनम गेब्रेसस, स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की डायरेक्टर अपर्णा उपाध्याय के नाम का जिक्र किया है।
आशियाना थाने के इंस्पेक्टर पुरुषोत्तम गुप्ता ने मीडिया को बताया है कि मामले की जांच के लिए स्वास्थ्य अधिकारियों से संपर्क किया गया है। शासन स्तर पर इसकी जांच होगी। इस संबंध में पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत करा दिया गया है। साथ ही स्वास्थ्य विभाग को भी अवगत कराया गया है।
वहीं इस शिक़ायत पर इंस्पेक्टर पुरुषोत्तम गुप्ता का कहना है कि मामले की जांच के लिए स्वास्थ्य अधिकारियों से संपर्क किया गया है। शासन स्तर पर इस पूरे मामले की जांच की जाएगी।
धोखा, जान से खिलवाड़ किया गया
व्यापारी प्रताप चंद्र गुप्ता का कहना है कि वैक्सीन लगवाने के बाद उनकी तबीयत खराब हो गई थी जिसके कारण उनकी प्लेटलेट्स घट गईं। प्रताप चंद्र गुप्ता ने आगे आरोप लगाते हुये कहा है कि “मुझे बताया जाए वैक्सीन लगी थी या उसमें पानी भरकर लगा दिया था। मैं अकेला नहीं हूं, जिसमें एंटीबॉडी नहीं बनी है। मेरे जैसे कई लोग और भी हैं।
उन्होंने कोर्ट जाने की धमकी देते हुये कहा है कि “अगर मेरी शिक़ायत को अनसुना किया जाता है या कि जिम्मेदार लोगों के खिलाफ़ एफआईआर दर्ज़ नहीं की गई तो वह कोर्ट जायेंगे। मुझे बताया जाए वैक्सीन लगी थी या उस में पानी भरकर लगा दिया था”।
पीड़ित प्रताप चंद्र गुप्ता ने मीडिया से कहा है कि “मैंने 21 मई को आईसीएमआर और स्वास्थ्य मंत्रालय की प्रेस कॉन्फ्रेंस देखी थी। इसमें उसके डायरेक्टर जनरल बलराम भार्गव ने स्पष्ट तौर पर बताया था कि कोविशील्ड की पहली डोज लेने के बाद से ही शरीर में अच्छी एंटीबॉडी बनने लगती है। जबकि कोवैक्सिन की दोनों डोज के बाद एंटीबॉडी तैयार होती है। इसके बाद उन्होंने 24 मई को सरकारी लैब में एंटीबॉडी जीटी टेस्ट कराया। जिसमें पता लगा कि उनमें अभी तक एंटीबॉडी नहीं बनी है। बल्कि प्लेटलेट्स भी घटकर तीन लाख से डेढ़ लाख पहुंच गई। उनका कहना है कि उनके साथ धोखा हुआ है। उनकी जान के साथ खिलवाड़ किया गया है।”
अपने शिक़ायत पत्र में प्रताप चंद्र गुप्ता ने कहा कि “एसआईआई ने इस वैक्सीन को बनाया। आईसीएमआर, डब्ल्यूएचओ और स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसकी मंजूरी दी। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने इसका प्रचार किया। इसलिए यह लोग भी दोषी हैं। उन्होंने कहा कि मैं शुद्ध शाकाहारी हूं। इसके बावजूद मुझे आरएनए बेस्ड इंजेक्शन लगा है। ये सीरम इंस्टीट्यूट ने अपनी वेबसाइट में खुद लिखा है। यह पूरी दूनिया में बैन है, लेकिन हमारे यहां चल रहा है। इससे मेरी जान जा सकती है। इसलिए मैंने हत्या के प्रयास और धोखाधड़ी की धारा लगवाने के लिए एप्लीकेशन दी है”।
(जनचौक ब्यूरो की रिपोर्ट।)