महात्मा गांधी ने एक बार कहा था, “मैं पुनर्जन्म नहीं चाहता लेकिन अगर मुझे फिर से जन्म लेना पड़े तो मैं ऐसे अछूत परिवार में ही जन्म लूं, जिससे कि उनके अपमान का हिस्सेदार बन सकूं और उनकी मुक्ति के लिए मैं लगातार कार्य कर सकूं”। उनकी कामना में उनका गांधीपन दिखता है लेकिन ऐसी इच्छा शायद ही कोई करे। यदि पुनर्जन्म का विकल्प डॉ. अंबेडकर के सामने होता तो वे किस जाति में जन्म लेना पसंद करते?
लेकिन उसी गांधी के हरिजन सेवा के सारे प्रयत्न उन्ही दलितों द्वारा संदेह के में ला दिए गए हैं और नकार दिए गए हैं जिनकी सेवा का व्रत वे आजाद भारत में निभाना चाहते थे। गांधी के दलित मुक्ति के प्रयत्नों को उन्ही के जीवन मे आंबेडकर ने चुनौती दी थी, और ठीक ही दी थी, कि भारत की आजादी में दलितों का स्थान कहां है? गांधी के प्रति अंधभक्ति में आलोचनात्मक भाव हो तो अंबेडकर की मांग गलत नहीं लगेगी।
महाराष्ट्र के जलगांव की रहने वाली पायल तड़वी हमेशा से डॉक्टर ही बनना चाहती थीं। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वो आदिवासी इलाक़े में काम करना चाहती थीं। वो टोपीवाला मेडिकल कॉलेज में गाइनोकोलॉजी (स्त्री रोग विशेषज्ञ) की पढ़ाई कर रहीं थीं। लेकिन अब उनके सभी सपने अधूरे रह गए हैं। पायल ने 22 मई को आत्महत्या कर ली। पायल के परिवार ने उनकी कुछ सीनियर सहपाठियों पर उत्पीड़न करने के आरोप लगाए हैं। कैसे आज 21वीं सदी में भी अस्पृश्यता न तो ख़त्म हो रही है बल्कि दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। निम्न जाति में पैदा होने के बाद अनेक समस्याओं के साथ कई बार आपको अपनी जान भी देनी पड़ जाती है।
लेकिन इनकी आत्महत्या बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती है – जब एससी-एसटी समाज की कोई लड़की या लड़का डॉक्टर, इंजीनियर, जज, प्रोफेसर तो क्या मास्टर और पटवारी भी बन जाती/जाता है तो उसे लगता है कि वह समाज के बाकी लोगों से बहुत सुपीरियर है l उसका और उसकी फ़ैमिली का घमंड इतना बढ़ जाता है कि वे समाज के दूसरे लोग क्या अपने उन मित्रों से तक से कन्नी काटने लगते हैं जिन्होंने उन्हें उनकी मंजिल तक पहुंचने में सहयोग किया l
ये लोग किसी भी सामाजिक ग्रुप का हिस्सा नहीं होते ये सवर्णों जैसी जिंदगी जीना चाहते हैं। उनसे दोस्ती करना चाहते हैं फिर जब उन सवर्ण सहपाठियों से दुत्कार मिलती है तो अंदर से टूट जाते हैं l
और यही टूटन और अकेलापन उन्हें जिंदगी की जंग हारने पर मजबूर करता हैl पायल इसलिए हार गई क्योंकि उसका समाज उसके साथ नहीं था उसके सच्चे मित्र उसके साथ नहीं थे l उसने सिर्फ कोर्स की किताबें पढ़ीं थी l क्योंकि सिर्फ डॉक्टर बन कर एक आराम की सुकून की जिंदगी चाहती थी l उसने उन तीन औरतों को उस समय इग्नोर किया जब उन्होंने पहली बार उसकी जाति पर कमेंट किया था l और जब कोई मरने की ठान चुका है तो पहले उन्हें मारे जिनकी वजह से उसे मरना पड़ रहा हैl
“हमें तो मरना ही है लेकिन जीने तुम्हें भी नहीं देंगे” ऐसी सोच बनाओ फिर कोई किसी को प्रताड़ित नहीं कर पाएगा l मुंबई में स्थित वीवाईएल नायर अस्पताल की एमडी की छात्रा आदिवासी लड़की “पायल तड़वी” ने सुसाइड इसलिए किया क्योंकि उनकी तीन सीनियर महिला डॉक्टरों ने रैगिंग ली, मानसिक प्रताड़ना दी और साथ में स्टूडेंट्स के Whatsapp ग्रुप में पायल तड़वी को लेकर जातिगत टिप्पणियां कीं…! पायल की तीन सीनियर्स डॉ. हेमा आहूजा, डॉ. भक्ति और डॉ. अंकिता खण्डेलवाल ने पायल पर जातिवादी टिप्पणी करते हुए कहा कि “तुम आदिवासी लोग जगंली होते हो, तुमको अक्कल नहीं होती.. तू आरक्षण के कारण यहाँ आई है… तेरी औकात है क्या हम ब्राम्हण से बराबरी करने की..! तू किसी भी मरीज को हाथ मत लगाया कर वो अपवित्र हो जाएंगे… तू आदिवासी नीच जाति की लड़की मरीज़ों को भी अपविञ कर देगी..!”
डॉ. पायल की आत्महत्या सिर्फ़ आत्महत्या नहीं है बल्कि मनुवादी सोच द्वारा किया गया संस्थानिक मर्डर है l इस तरह की घटनाओं का विरोध करना बेहद ज़रूरी है क्योंकि इससे पहले भी हम रोहित वेमुला, मुथु कृष्णन, सर्वानन जैसे बहुत से संस्थानिक मर्डर देख चुके हैं..! आप सभी साथियों से अपील है कि पायल के लिए आवाज़ उठाइए ताकि इस तरह के इंस्टीट्यूशनल मर्डर और टॉर्चर रुकें..!
पायल तड़वी की आत्महत्या के बाद पूरा देश शोक मना रहा है वहीं कुछ लोग पायल को डरपोक और कमजोर कह रहे हैं। लेकिन पायल की मौत की खबर सुनकर मेरे जैसे कुछ लोगों का दर्द हरा हो जाता है पायल कमजोर नहीं थी ना ही कोई भी व्यक्ति जो सुसाइड करता है वह कमजोर होता है बस कई बार परिस्थितियां ऐसी हो जाती हैं कि आप और हम दर्द बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। जाति का दंश जो जीने नहीं देता है। रोहित पायल जैसे लोग हमेशा याद रखे जाएंगे कैसे हम और आप जैसे लोगों ने उनकी मदद नहीं की। हम कैसे कर पाते उनकी मदद लेकिन सवाल बहुत ही गंभीर है। क्या हम कभी जानने की कोशिश करते हैं कि हमारे आसपास जो लोग रह रहे हैं उन्हें कोई तकलीफ तो नहीं है। यह सिर्फ हम अपने व्यक्तिगत विकास में ही लगे हुए हैं। कैंडल मार्च या भाषण से ही समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। इस समाज को नए सिरे से सोचने की जरूरत है। क्यों हम लोग इतने कमजोर हो रहे हैं क्या आपने कभी यह सोचा है?
(टीना कर्मवीर शोध छात्रा हैं।)