Thursday, April 25, 2024

चुनाव आयोग के दावों को धता बताते हुए सहारनपुर के कम्प्यूटर ऑपरेटर ने आईडी हैक करके 10 हजार वोटर कॉर्ड बनाये

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में भारत के निर्वाचन आयोग की वेबसाइट हैक करके और दस हजार से अधिक फर्जी वोटर आईडी कार्ड बनाने के मामले में पुलिस ने उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले से विपुल सैनी नामक युवक को गिरफ्तार किया है। इस मामले में चुनाव आयोग में काम करने वाला डेटा एंट्री ऑपरेटर भी गिरफ्तार हुआ है।

हालांकि अभी तक मिली सूचना के अनुसार आरोपी विपुल सैनी का किसी भी राजनीतिक दल के साथ जुड़ाव होने के साक्ष्य नहीं मिले हैं। यूपी में 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसलिए पुलिस इस लाइन पर भी जांच कर रही है कि कहीं किसी पार्टी के इशारे पर तो विपुल काम नहीं कर रहा था। जिनके वोटर पहचान पत्र मिले हैं पुलिस उनका राजनीतिक कनेक्शन तलाश रही है।

कम्प्यूटर की दुकान चलाता है आरोपी

गिरफ्तार युवक सहारनपुर में कम्प्यूटर शॉप चलाता है। आरोपी विपुल सैनी ने गंगोह स्थित शोभित यूनिवर्सिटी से कम्प्यूटर एप्लीकेशन में स्नातक (बीसीए) है। बीसीए की पढ़ाई के दौरान ही विपुल साथियों के इंटरनेट से जुड़े मुद्दों को सॉल्व कर देता था। क्लास में उसे सहपाठी इंटरनेट का बादशाह कहते थे। जबकि उसके पिता किसान हैं।

कैसे आया पकड़ में

निर्वाचन आयोग के सूत्रों के मुताबिक दो तीन हफ्ते पहले आयोग में मतदाता सूची अपडेट रखने वाले विभाग के आला अधिकारियों को अपने मेल अकांउट और वेबसाइट ऑपरेशन के दौरान कुछ गड़बड़ी होने की आशंका हुई। पहले तो उनको अपने ऊपर ही शक हुआ कि ये वाकई हो रहा है या कोई टेक्निकल ग्लिच यानी खामी है। लेकिन अधिकारियों के बीच आपस में बातचीत से पता चला की कई अधिकारियों के साथ यही हो रहा है।

निर्वाचन आयोग ने जांच एजेंसियों को इसकी जानकारी दी। एजेंसियों की जांच के दौरान आरोपी विपुल सैनी शक़ के दायरे में आया। एजेंसियों ने सहारनपुर पुलिस को सैनी के बारे में जानकारी दी। इसके बाद उसकी गतिविधियों पर निगरानी रखते हुए पुलिस ने जांच आगे बढ़ाई। पुलिस ने विपुल सैनी के घर पर छापा मारा और फिर गिरफ्तार कर लिया।

सहारनपुर पुलिस को विपुल के बारे में दिल्ली की एक बड़ी एजेंसी से इनपुट मिला था। इसी इनपुट के आधार पर पुलिस ने विपुल को गिरफ्तार किया है। पुलिस ने इसके घर से दो कम्प्यूटर भी जब्त किए हैं। उनकी हार्ड ड्राइव को रीड करके अब सारा डाटा खंगालने की तैयारी जा रही है। पुलिस का कहना है कि विपुल के तार आतंकी गिरोह से भी जुड़े हो सकते हैं। विपुल ने कुछ निजी कंपनियों का डाटा भी चुराया हुआ है।

पुलिस बयान

सहारनपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक एस चेन्नपा के मुताबिक गिरफ्तार किये गए आरोपी विपुल सैनी ने यहां के नकुड़ इलाके में अपनी कम्प्यूटर की दुकान में कथित तौर पर हजारों की संख्या में मतदाता पहचान पत्र बनाए थे। आरोपी विपुल सैनी आयोग की वेबसाइट में उसी पासवर्ड के जरिए लॉगइन करता था, जिसका इस्तेमाल आयोग के अधिकारी करते थे। आयोग को वेबसाइट पर जब कुछ गड़बड़ी का अंदेशा हुआ तो मामला सामने आया। आयोग ने जांच एजेंसियों को इसकी जानकारी दी। एजेंसियों की जांच के दौरान सैनी शक के दायरे में आया और उन्होंने सहारनपुर पुलिस को सैनी के बारे में जानकारी दी। पुलिस के हत्थे चढ़ने के बाद आरोपी के बैंक खाते से 60 लाख रुपए जमा मिले। इतनी रकम कहां से आई इस सवाल के जवाब में विपुल ने पुलिस को बताया कि मतदाता पहचान पत्र बनाकर उसने यह कमाई की। काम के आधार पर उसके बैंक खाते में पैसा आता था हालांकि, पुलिस ने इसका खुलासा नहीं किया कि राशि कहां से ट्रांसफर होती थी। विपुल की गिरफ्तारी के बाद साइबर सेल ने उसके बैंक खातों की डिटेल के लिए रात में ही बैंक को खुलवाया। बैंक खाते से करीब 60 लाख रुपये का ट्रांजक्शन मिला है। पुलिस पता लगा रही है कि यह पैसा किन-किन स्थानों से पास आया।

पूछताछ के दौरान पुलिस अधिकारियों को पता चला कि आरोपी विपुल सैनी चुनाव आयोग की वेबसाइट में उसी पासवर्ड के जरिए लॉगइन करता था, जिसका इस्तेमाल आयोग के अधिकारी करते थे। उसने अधिकारियों के पासवर्ड तक हैक कर रखे थे। क़रीब तीन महीने से वो ये सब कर रहा था। इस दौरान उसने दस हजार से ज्यादा फर्जी मतदाता पहचान पत्र बनाये। प्रत्येक पहचान पत्र के लिए उसे अमूमन सौ से तीन सौ रुपए तक मिलते थे।

पुलिस को गिरफ्तार आरोपी ने बताया है कि वह मध्य प्रदेश के हरदा निवासी अरमान मलिक के इशारे पर काम कर रहा था और उसने तीन माह में दस हजार से ज्यादा मतदाता पहचान पत्र बना लिए थे। साइबर सेल और सहारनपुर अपराध शाखा के संयुक्त दल ने बृहस्पतिवार को सैनी को गिरफ्तार कर लिया।

निर्वाचन आयोग का बयान

अब इस मामले में चुनाव आयोग का आधिकारिक बयान आया है। आयोग के मुताबिक असिस्टेंट इलेक्टोरल रोल ऑफिसर्स (AERO) नागरिक सेवाओं को मुहैया कराने के लिए कृतसंकल्प हैं। ‘कोई भी वोटर ना छूटने पाए’ की थीम के साथ वोटर आईडी की प्रिंटिंग और तय समय के अंदर उनका वितरण किया जा रहा है।

आयोग का कहना है – “AERO ऑफिस के एक डेटा एंट्री ऑपरेटर ने गैरकानूनी तरीके से सहारनपुर के नकुड़ में एक अनाधिकृत प्राइवेट सर्विस प्रोवाइडर को अपनी यूजर आईडी और पासवर्ड शेयर किया था। जानकारी मिली है कि कुछ वोटर आईडी प्रिंट करने के लिए ऐसा किया गया था। दोनों आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है। निर्वाचन आयोग का डेटाबेस पूरी तरह सुरक्षित है।”

इसी निर्वाचन आयोग ने दो साल पहले यह दावा भी किया था कि आयोग की साइट हैकर हैक नहीं कर सकते। तब साइबर ख़तरों से निबटने के लिए आयोग ने सुरक्षा अधिकारियों की नियुक्ति के साथ थर्ड पार्टी सिक्योरिटी ऑडिट की व्यवस्था की थी। आयोग ने एसएसएल (सिक्योर सॉकेट लेयर) सर्टिफिकेट को अपने डोमेन में शामिल किया था। आयोग ने डोमेन नेम के शुरू में लगने वाले एचटीटीपी यानी हाइपरटेक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकॉल की जगह सुरक्षित माने जाने वाले एचटीटीपीएस यानी हाइपरटेक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकॉल सिक्योर पर स्विच किया था। आयोग ने साइबर ख़तरों से निबटने के लिए दिल्ली मुख्यालय में एक मुख्य सूचना सुरक्षा अधिकारी के अलावा राज्यों में साइबर सुरक्षा नोडल अधिकारियों की नियुक्ति की थी। लेकिन उनके सारे दावे धरे के धरे रह गये हैं।

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