Friday, April 19, 2024

छुट्टा जानवर: हिंदूवादी सरकार, गौ वंशों में देवत्व स्थापना और किसानों की पीड़ा

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के बिहार ब्लाक स्थित बेधन गाँव के किसान अनुज कुमार सिंह इन दिनों बहुत परेशान हैं। दरअसल, उनकी चार एकड़ की गेहूं की फसल को गाँव में घूम रहे छुट्टा जानवर चर-रौंद कर नष्ट कर चुके हैं। इससे उनकी लागत तक डूब गई है। इससे पहले, इसी खेत से उन्हें मिलने वाली धान की फसल भी इन्हीं जानवरों के कारण चौपट हो चुकी है। उनके पास परिवार के भरण-पोषण के लिए केवल एक एकड़ गेहूं की फसल शेष है जो कि गाँव से कुछ दूर है।

अब साल भर परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी इससे उपजी फसल पर ही निर्भर है। अनुज पर एक लाख रुपये का कर्ज है जिसे उन्होंने बेटी के इलाज के लिए किसान क्रेडिट कार्ड द्वारा बैंक से लिया है। इसे चुकाने का अब कोई रास्ता उन्हें नहीं दिख रहा है क्योंकि पूरी फसल आवारा जानवरों की भेंट चढ़ चुकी है।

यह सिर्फ एक कहानी नहीं है। यह उत्तर प्रदेश में आवारा जानवरों से होने वाले नुकसान से तबाह हो चुके हजारों किसानों के दर्द का एक छोटा सा प्रस्फुटन भर है। इस दर्द की वजह प्रदेश में एक कथित हिंदूवादी सरकार की वो नीतियां हैं जो गौवंशों को सुरक्षित और संरक्षित रखने का दावा करती हैं।

हालाँकि, राज्य सरकार के पास प्रदेश में सब कुछ ‘ठीक’ चलने और चौतरफा विकास होने के दावे के उलट, आवारा जानवरों से किसानों को मिल रहे इस ‘स्थायी’ दर्द का कोई ‘ठोस’ समाधान नहीं है। किसानों की जिन्दगी में जो अस्थिरता और तबाही इन जानवरों ने पैदा की है उसकी सैकड़ों कहानियां पूरे प्रदेश में अनायास ही मिल जा रही हैं।

बेधन गाँव के बगल में एक और गाँव है जमलामऊ। यहां के किसान हरदयाल का दर्द अनुज के दर्द से और ज्यादा गहरा है। पिछली गर्मी में उन्होंने दो एकड़ खेत में उर्द की फसल बोई थी। खेत में कंटीले बाड़ लगे होने के बावजूद, आवारा जानवरों का एक झुण्ड बाड़ तोड़कर खेत में कूद गया। जब उन्हें बाहर करने के लिए हरदयाल का बेटा शंकर खेत पर गया तो उसे एक सांड ने पटक दिया जिससे उसकी तीन पसली टूट गईं और उसे इलाज के लिए अस्पताल भेजना पड़ा। उसके इलाज में जहाँ सत्तर हजार का खर्च आया, वहीं उर्द की फसल भी नष्ट हो गई। कर्ज लेकर इलाज करवाने के एवज में लड़के को दिल्ली में मजदूरी करने जाना पड़ा।

आवारा जानवरों द्वारा प्रदेश के किसानों पर इस तरह के हमले बहुत आम हैं। फसल की रखवाली करते किसानों की मौत आवारा जानवरों के हमलों से हो रही है या फिर खेतों की सुरक्षा में लगे ये किसान रात में ठंड लगने से अपने खेत में ही दम तोड़ रहे हैं।

प्रदेश के राजमार्गों पर आवारा जानवरों के ‘समूह’ बैठे हुए बहुत आसानी से देखे जा सकते हैं और इनके कारण आये दिन सड़क हादसों में कई लोग अपनी जान गंवा रहे हैं। यही नहीं, दुर्घटना में इन जानवरों की भी मौत हो रही है। राजमार्गों के किनारे मृत इन जानवरों के सड़े शवों से भयानक दुर्गन्ध आना बहुत आम दृश्य है।

आवारा जानवरों की इस विकराल समस्या पर बात करते हुए मेरी मुलाकात जमलामऊ के सरपंच राजा बाबू से हुई। उन्होंने जो बताया उससे स्थिति की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि “जब मैंने पशुपालन विभाग से गाँव में बढ़ रहे आवारा जानवरों को पकड़ने का अनुरोध किया और उनसे मदद करने की बात कही, तब मुझसे कहा गया कि जानवर पकड़वाने की स्थिति में उन्हें प्रति जानवर 40 किलो भूसा भी इकट्ठा करके पकडे़ गए जानवर के साथ गौशाला में देना होगा। क्योंकि जो बजट चारे के लिए सरकार ने दिया था वह भूसे के महंगा होने के कारण आवश्यकता से बहुत कम है”।

हालाँकि, उन्होंने जब गौशाला में संपर्क किया तो गौशाला के जिम्मेदारों ने उन्हें बताया कि “यह पहले से ही अपनी क्षमता से तीन गुना ज्यादा जानवर से भरी है और नए जानवर रखने की जगह इसमें नहीं है”। उन्होंने आगे जोड़ा “यही नहीं, गाँव के कई लोगों ने आवारा जानवरों की समस्या पर सरकार के जिम्मेदारों, पशुपालन विभाग को कई लिखित आवेदन दिए, लेकिन सिवाय कागजों के आवारा जानवर कभी पकडे़ ही नहीं गए”।  उन्होंने कहा कि “ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि गौशालाओं में जगह ही नहीं है, फिर पकडे़ गए जानवर कहाँ भेजे जाते?”

ग्राम प्रधान राजा बाबू से बातचीत के क्रम में गाँव के ही एक बुजुर्ग छेदी लाल ने बताया कि “जब गाँव में आवारा जानवर बहुत ज्यादा बढ़ जाते हैं तो गाँव के ही किसान मिलजुलकर आपस में चंदा लगाकर इन आवारा जानवरों को पकड़ कर ट्रक में भरवाकर गाँव की सरहद से दूर दूसरे गाँव में रात के अँधेरे में छोड़ आते हैं। लेकिन दूसरे गाँव के लोग भी इसी तरह रात में ट्रक भरकर जानवरों को यहाँ छोड़ जाते हैं। और इस तरह समस्या जस की तस फिर हो जाती है”।

ये आवारा जानवर बस्ती के आस-पास के खेत ज्यादा क्यों उजाड़ रहे हैं, इसे समझने के क्रम में मेरी मुलाकात गाँव के ही एक ऐसे व्यक्ति बंशीलाल से हुई, जो काफी बुजुर्ग थे और पशुओं के स्वाभाव के बारे में जानकारी रखते थे। उन्होंने बताया कि “बस्ती के नजदीक के खेत में आवारा जानवरों से ज्यादा नुकसान होता है जबकि बस्ती से दूर जो खेत हैं वहां आवारा जानवर कम जाते हैं”।

उन्होंने इसकी वजह बताई कि “यदि किसी पालतू जानवर को आप छुट्टा या खुला छोड़ दें तो उसे अपने मूल स्वाभाव में लौटने में बहुत समय लग जाता है। क्योंकि ये जानवर छोड़ दिए जाने के बाद भी भोजन के लिए लम्बे समय तक मानव पर ही आश्रित रहे होते हैं, इसलिए ये जानवर समूह में मानव बस्तियों के आस-पास ही रहते हैं और जब भी यह भोजन के लिए बस्ती के नजदीक के खेतों में जाते हैं तो पूरे समूह में जाते हैं। इससे किसान का बहुत नुकसान होता है। सब मिलकर एक ही खेत में चरते हैं और घंटे भर में किसान का पूरा खेत बर्बाद हो जाता है”।

“क्या यह सब राज्य सरकार को नहीं पता है? सरकार इस समस्या को हल क्यों नहीं करती? वह क्या कर रही है? इस सवाल का जवाब वहीं खड़े सरकार समर्थक एक युवा लड़के ने मुझे दिया। उन्होंने अपना नाम हर्ष पंडित बताया और कहा कि “गौ माता के चरने से किसी का नुकसान नहीं हो सकता और बाकी जो थोडा बहुत नुकसान हो रहा है उसकी भरपाई मोदी जी मुफ्त गल्ला देकर और दो हजार तिमाही देकर कर रहे हैं”। उन्होंने आगे जोड़ा कि “गाय का दूध खाने वाले किसान बहुत स्वार्थी हो गए हैं। जब तक गाय दूध देती है तब तक उसे बांध कर रखते हैं और उसके बाद भगा देते हैं। अब ऐसा करोगे तो सरकार कितने जानवर पालेगी? आखिर गाय के बछड़े क्यों छोड़ दिया…?”

अपनी पूरी बातचीत में हर्ष पंडित इसे समस्या मानने को तैयार नहीं हुए। उनके मुताबिक मोदी जी पर गाय माता की कृपा है जो देश सेवा करके हिन्दुओं को मजबूत कर रहे हैं और हिन्दूराष्ट्र बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि “आवारा गौवंशों को पालने पर योगी जी की सरकार आर्थिक मदद देती है”। लेकिन वह किसी ऐसे लाभुक का नाम नहीं बता पाए जो इस सन्दर्भ में आर्थिक मदद पा रहा हो। सरपंच राजाबाबू ने भी ऐसे किसी लाभार्थी या योजना की जानकारी से इनकार कर दिया।

इसी गाँव के एक अन्य किसान मोहन कुमार अलग समस्या बताने लगे। वो अपने खेत की बाड़बंदी चाहकर भी नहीं करवा पाए। उनके पास कुल एक एकड़ खेत है। लेकिन, आवारा जानवरों के आतंक से अब वह खेत पिछले साल से परती पड़ा है। उनकी समस्या यह है कि वह दिन में शहर के एक ज्वेलरी शॉप पर सेक्युरिटी गार्ड की नौकरी करते हैं और आवारा जानवरों से खेत की देखरेख नहीं कर सकते।

मोहन कुमार ने खेत में बाड़बंदी करवाने के लिए कंटीला तार मंगवाया। लेकिन, उनको यह कहकर स्थानीय पुलिस ने रोक दिया कि सरकार की तरफ से इसकी मनाही है क्योंकि कटीले तार का इस्तेमाल पशु क्रूरता के तहत आता है। इसकी जगह रस्सी का इस्तेमाल करिए। अब मोहन ने अपना खेत बोना ही छोड़ दिया क्योंकि जानवर रस्सी तोड़कर खेत में घुस जाते हैं। अब इनकी यही नौकरी ही परिवार के भरण पोषण का जरिया है। अब वह सरकार से मिलने वाले मुफ्त राशन पर निर्भर हैं।

आवारा जानवरों द्वारा किये जा रहे नुकसान से उपजा किसानों का यह दर्द तब और गंभीर हो जाता है जब समूचा देश गेहूं की फसल में जलवायु परिवर्तन की मार के चलते कम उत्पादन पाने को विवश हो गया है। कम उत्पादन सीधे किसान की आय कम करता है। यही नहीं, पिछले साल गेहूं की फसल अचानक मौसम गर्म होने के चलते अपने कुल लक्ष्य का लगभग 10 फीसद कम पैदा हुई।

उत्पादन में यह गिरावट तब और ज्यादा चिंता में डाल देती है जब प्रदेश के किसानों पर औसत कर्ज 75 हजार रुपये हो और उनकी औसत आय ही 70 हजार सालाना हो। जाहिर है ऐसी स्थिति में यह कर्ज किसान कभी चुकता नहीं कर पायेगा। और फिर, अगर आवारा जानवरों का बोझ भी इन्हीं किसानों को उठाना पड़ेगा तो फिर वह तबाह हो जायेंगे।

किसानों की इस तबाही का असर देश की खाद्य सुरक्षा पर भी पड़ेगा। वर्तमान समय में ही, प्रदेश में गेहूं के इस संकट का आलम यह है कि राज्य सरकर ने पीडीएस के अनाज में गेहूं देना बंद कर दिया है। यह उन परिवारों में भयानक कुपोषण लायेगा जो अपने भोजन के लिए पूरी तरह से इस योजना पर ही निर्भर हैं।

छुट्टा जानवर हिंदूवादी सरकार
छुट्टा जानवर हिंदूवादी सरकार

यही नहीं, भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक देश की कृषि विकास दर जहाँ महज तीन फीसद है वहीं उत्तर प्रदेश की कृषि विकास दर दशमलव दो फीसद है। मतलब यह कि पहले से ही प्रदेश का कृषि और किसान दोनों बहुत संकट में है। आवारा जानवरों की इस समस्या ने किसानों को अत्यधिक संकट में डाल दिया है। लेकिन, इस संकट के लिए असल में कौन जिम्मेदार है? किसान क्या सोचता है? क्या इन जानवरों से किसानों की तबाही चुनावी मुद्दा नहीं है?

असल में प्रदेश का आम किसान इन आवारा जानवरों से निजात चाहता है, लेकिन अपनी धार्मिक मानसिकता के चलते वह इनकी स्लाटरिंग के एकदम खिलाफ है। किसान चाहता है कि इन आवारा गौ वंशों के लिए और ज्यादा गौशालाएं बनाई जाएं और इन्हें उसमें संरक्षित किया जाये। गौ वंशों के बारे में उनकी धार्मिक मनोवृत्ति ही राज्य सरकार को इस समस्या पर किसी सियासी नुकसान से अभयदान देती है।

बाकी, संघ और भाजपा से जुड़े लोग इस समस्या पर बात करते हुए कहते हैं कि यह कोई राजनैतिक मामला नहीं है। बिना किसानों के साथ दिए सरकार इस समस्या पर अंकुश नहीं लगा सकती। सरकार गायों को और ज्यादा लाभदायक बनाने की दिशा में काम कर रही है। इसमें समय लगेगा। किसान अगर इसे समस्या मानते तो हम 2022 जनादेश प्राप्त नहीं करते। यह जनादेश बताता है कि सरकार सही दिशा में काम कर रही है।

हालाँकि इलाके के एक सामाजिक कार्यकर्त्ता क्षेत्र के आवारा जानवरों की समस्या पर पर बात करते हुए मानते हैं कि मोदी-योगी सरकार को इससे किसी नुकसान का अंदेशा नहीं है क्योंकि इस सरकार ने गौवंशों को जानवर से उठाकर एक नागरिक की हैसियत वाले प्राणी के बतौर जन मानस के बीच स्थापित कर दिया है।

जनता को यह समझा दिया गया है कि गाय का ‘गौरव’ वापस लौटे बिना भारत और हिन्दुओं का गौरव नहीं लौटेगा। इसीलिए भारत के पुराने गौरव की वापसी तक सिर्फ ‘इंतजार’ ही इस समस्या का एकमात्र हल है। वह आगे कहते हैं कि यह संकट इसलिए भी बहस का मुद्दा नहीं बन पा रहा है क्योंकि विपक्ष पर बहुसंख्यक हिन्दू आस्था का दबाव है। वह सियासी नुकसान के दबाव में चुप है।

कुल मिलाकर, गाय और गौवंशों में दैवीय तत्व की प्रस्थापना का यह सियासी खेल सिर्फ किसानों को ही नहीं, उनकी प्रगति और देश की खाद्य सुरक्षा को भी संकट में डाल चुका है। हिंदुत्व राजनीति कब तक इस समस्या को गौवंशों में देवत्व स्थापना के सहारे ‘डील’ कर पायेगी यह वक्त ही बताएगा।

(यूपी से स्वतंत्र पत्रकार हरे राम मिश्र की ग्राउंड रिपोर्ट)

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