Saturday, April 20, 2024

किसान कानूनः राग दरबारी के लिए जुटा ली गई है पूरी चारण मंडली

उच्चतम न्यायालय के चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन की तीन-न्यायाधीश पीठ ने कृषि कानून के अमल पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है। पीठ ने चार सदस्यों की कमेटी का गठन किया है, जो दोनों पक्षों से बातचीत कर अपनी अनुशंसा के साथ रिपोर्ट उच्चतम न्यायालय को सौंपेगी। पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि कमेटी 10 दिनों में किसानों के साथ एक बैठक करेगी। इस बैठक में किसान क्या चाहते हैं और तमाम मुद्दों पर एक रिपोर्ट बना कर दो महीने के बाद कोर्ट में सौंपेगी। पीठ ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा है कि किसानों की ज़मीन की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। कोई किसान कृषि क़ानून के चलते अपनी ज़मीन न खोए।

कृषि कानूनों को लेकर उच्चतम न्यायालय के लिखित आदेश में कहा गया है कि अगले आदेश तक तीनों नए कृषि क़ानूनों, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम 2020 के किसानों (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता, किसान व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम और उत्पादन आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन पर रोक रहेगी। अगले आदेश तक कृषि कानून से पहले जिस स्थिति में एमएसपी थी, वैसी स्थिति में ही रहेगी। किसानों की जमीन का मालिकाना हक बना रहेगा। कृषि कानून के आधार पर किसानों की जमीन से उनका हक किसी भी तरह से नहीं लिया जा सकेगा।

चार सदस्यों की कमेटी का गठन किया जाता है, जिसमें भूपेंद्र सिंह मान (भारतीय किसान यूनियन के प्रेसिडेंट), अनिल घनवट (प्रेसिडेंट शेतकरी संगठन, महाराष्ट्र), प्रमोद कुमार जोशी (डायरेक्टर फॉर साउश एशिया, इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट) और अशोक गुलाटी (एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट) शामिल हैं।

उच्चतम न्यायालय में तीन तरह की याचिकाएं दाखिल की गई हैं। इनमें पहली कैटेगरी में कृषि कानून की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाया गया है। दूसरी तरह की याचिका में वैधता को सही ठहराया गया और कानून को लाभकारी बताया गया है। तीसरी याचिका में दिल्ली के लोगों ने प्रदर्शन के कारण उनके आने-जाने के संवैधानिक अधिकार के उल्लंघन का मामला उठाया है। साथ ही कमेटी किसान संगठन के प्रतिनिधि और सरकार के प्रतिनिधियों का पक्ष सुनेगी और अपनी अनुशंसा सुप्रीम कोर्ट के सामने रिपोर्ट के तौर पर पेश करेगी।

कमेटी के गठन का खर्च केंद्र सरकार उठाएगी। कमेटी 10 दिनों में पहली बैठक करेगी और दो महीने में रिपोर्ट पेश करेगी। कोर्ट ने कहा कि हम किसानों के प्रदर्शन को नहीं रोक रहे हैं, लेकिन पीठ ने विशेष आदेश पारित किया है और कानून के अमल पर रोक लगाई है ताकि किसान संगठन अपने मेंबर को कह सकें कि वह आजीविका के लिए लौटें और अपने साथ-साथ दूसरे के जीवन को बचाने का प्रयास करें।

मामले में किसान संगठनों की कई दौर की बातचीत सरकार से हुई है, लेकिन नतीजा नहीं निकला है। मौके पर प्रदर्शनकारियों के साथ-साथ बुजुर्ग, महिलाओं और बच्चे भी बैठे हुए हैं। स्वास्थ्य बड़ी समस्या है। हिंसा और प्रदर्शन के कारण किसी की मौत नहीं हुई है, लेकिन बीमार होने से कई मौतें हुई हैं और आत्महत्या का भी मामला सामने आया है।

कोर्ट ने कहा कि कानून के अमल पर हम इसलिए स्टे कर रहे हैं ताकि किसान बाततीच के लिए टेबल पर आएं। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि संसद द्वारा बनाए गए कानून को कोर्ट स्टे नहीं कर सकता। कोर्ट के पास अधिकार है कि वह ऐसा कर सकता है। सराहनीय तौर पर ये बात कही जा सकती है कि प्रदर्शन अहिंसक है। प्रदर्शन के बीच में कुछ गड़बड़ी की आशंका भी जताई गई है, उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

एक अर्जी में ये भी कहा गया है कि कई बैन संगठन के लोग भी आंदोलन में घुस गए हैं, जिनमें सिख फॉर जस्टिस भी शामिल है जो देश विरोधी आंदोलन के कारण बैन है। अटॉर्नी जनरल ने भी इस बात की पुष्टि की है। अटॉर्नी जनरल ने बताया कि किसानों ने 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर ट्रैक्टर रैली निकालने और गणतंत्र दिवस परेड को डिस्टर्ब करने की बात कही है। हालांकि कुछ किसान संगठन के वकील दुष्यंत दवे ने इस बात को खारिज किया था और कहा था कि किसान ऐसा नहीं करेंगे। हालांकि, मंगलवार को सुनवाई के दौरान दवे पेश नहीं हुए।

इसके पहले सोमवार केंद्र सरकार ने कृषि क़ानूनों पर अपना पक्ष रखते हुए आनन-फ़ानन में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफ़नामा दायर किया था। दरअसल इस मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में लंबी सुनवाई हुई, जिसमें पीठ ने केंद्र सरकार से अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर दी थी। पीठ ने सख़्त तेवर दिखाते हुए कहा कि सरकार ने किसी राय-मशविरे के इस क़ानून को पारित किया है, जिसका नतीजा है कि किसान एक महीने से भी ज़्यादा समय से धरने पर बैठे हुए हैं।

सोमवार को सुनवाई ख़त्म होने के बाद सरकार ने जल्दबाज़ी में हलफ़नामा दायर किया है और प्रदर्शनकारी किसानों के उन आरोपों को ख़ारिज किया है, जिसमें कहा गया है कि सरकार और संसद ने इस बिल को पास करने से पहले किसी भी कन्सलटेटिव प्रक्रिया का पालन नहीं किया था।

सरकार ने कहा कि कुछ तथ्यों को सामने लाना ज़रूरी था, इसीलिए यह हलफ़नामा दायर किया जा रहा है। अपने हलफ़नामे में सरकार का कहना है कि कृषि सुधारों के लिए केंद्र सरकार पिछले दो दशकों से राज्य सरकारों से गंभीर चर्चा कर रही है।

सरकार का दावा है कि देश के किसान इन कृषि क़ानूनों से ख़ुश हैं, क्योंकि इनके ज़रिए उन्हें अपनी फ़सल बेचने के लिए मौजूदा सुविधाओं के अलावा अतिरिक्त अवसर मिलेंगे। सरकार के अनुसार इन क़ानूनों से उनके किसी भी अधिकार को नहीं छीना गया है।

हलफ़नामे में कहा गया है कि कुछ किसान जो इसको लेकर विरोध कर रहे हैं, उनकी शिकायतों को दूर करने के लिए सरकार ने हर संभव कोशिश की है। सरकार ने कहा कि पूरे देश में किसानों ने इस क़ानून को स्वीकार किया है और केवल कुछ ही किसान और दूसरे लोग जो इस क़ानून के ख़िलाफ़ हैं उन्होंने इसको वापस लिए जाने की शर्त रखी है।

सरकार ने अपने हलफ़नामे में एक बार फिर कहा था कि क़ानूनों की वापसी की मांग न तो न्यायसंगत है और न ही केंद्र सरकार को स्वीकार्य है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

जौनपुर में आचार संहिता का मजाक उड़ाता ‘महामानव’ का होर्डिंग

भारत में लोकसभा चुनाव के ऐलान के बाद विवाद उठ रहा है कि क्या देश में दोहरे मानदंड अपनाये जा रहे हैं, खासकर जौनपुर के एक होर्डिंग को लेकर, जिसमें पीएम मोदी की तस्वीर है। सोशल मीडिया और स्थानीय पत्रकारों ने इसे चुनाव आयोग और सरकार को चुनौती के रूप में उठाया है।

AIPF (रेडिकल) ने जारी किया एजेण्डा लोकसभा चुनाव 2024 घोषणा पत्र

लखनऊ में आइपीएफ द्वारा जारी घोषणा पत्र के अनुसार, भाजपा सरकार के राज में भारत की विविधता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला हुआ है और कोर्पोरेट घरानों का मुनाफा बढ़ा है। घोषणा पत्र में भाजपा के विकल्प के रूप में विभिन्न जन मुद्दों और सामाजिक, आर्थिक नीतियों पर बल दिया गया है और लोकसभा चुनाव में इसे पराजित करने पर जोर दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 100% ईवीएम-वीवीपीएटी सत्यापन की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

सुप्रीम कोर्ट ने EVM और VVPAT डेटा के 100% सत्यापन की मांग वाली याचिकाओं पर निर्णय सुरक्षित रखा। याचिका में सभी VVPAT पर्चियों के सत्यापन और मतदान की पवित्रता सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया। मतदान की विश्वसनीयता और गोपनीयता पर भी चर्चा हुई।

Related Articles

जौनपुर में आचार संहिता का मजाक उड़ाता ‘महामानव’ का होर्डिंग

भारत में लोकसभा चुनाव के ऐलान के बाद विवाद उठ रहा है कि क्या देश में दोहरे मानदंड अपनाये जा रहे हैं, खासकर जौनपुर के एक होर्डिंग को लेकर, जिसमें पीएम मोदी की तस्वीर है। सोशल मीडिया और स्थानीय पत्रकारों ने इसे चुनाव आयोग और सरकार को चुनौती के रूप में उठाया है।

AIPF (रेडिकल) ने जारी किया एजेण्डा लोकसभा चुनाव 2024 घोषणा पत्र

लखनऊ में आइपीएफ द्वारा जारी घोषणा पत्र के अनुसार, भाजपा सरकार के राज में भारत की विविधता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला हुआ है और कोर्पोरेट घरानों का मुनाफा बढ़ा है। घोषणा पत्र में भाजपा के विकल्प के रूप में विभिन्न जन मुद्दों और सामाजिक, आर्थिक नीतियों पर बल दिया गया है और लोकसभा चुनाव में इसे पराजित करने पर जोर दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 100% ईवीएम-वीवीपीएटी सत्यापन की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

सुप्रीम कोर्ट ने EVM और VVPAT डेटा के 100% सत्यापन की मांग वाली याचिकाओं पर निर्णय सुरक्षित रखा। याचिका में सभी VVPAT पर्चियों के सत्यापन और मतदान की पवित्रता सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया। मतदान की विश्वसनीयता और गोपनीयता पर भी चर्चा हुई।