Tuesday, April 23, 2024

सरकारी निकम्मेपन का नतीजा है किसानों की रबी फसल के लिए खाद की कमी

गेहूं, सरसों, चना, मसूर, आलू, प्याज और अन्य रबी फसलों की बुवाई शुरू होने वाली है। सितंबर के बाद से हुई अतिरिक्त बारिश के कारण मिट्टी की नमी की स्थिति भी सबसे अनुकूल है। किसानों को उत्साहित होना चाहिए था लेकिन किसान परेशान हैं कि उनको जरूरत भर खाद उपलब्ध नहीं है। आम तौर पर किसान di-ammonium phosphate, (DAP), muriate of potash ( MOP) और Urea इस्तेमाल करता है। रबी की सबसे महत्वपूर्ण अनाज, गेहूं, की खेती के लिए किसान को प्रति एकड़ 110 किलो यूरिया, 50 किलो DAP और 20 किलो MOP चाहिए। सबसे पहले किसान DAP खेत को बुवाई से पहले तैयार करने के लिए इस्तेमाल करता है। नाइट्रोजन और फास्फोरस युक्त DAPफसलों के लिए प्राथमिक पोषक तत्व हैं। बाद में नवम्बर में किसानों को बुवाई के 25/26 दिन बाद यूरिया भी चाहिए।

लेकिन बाज़ार में इन सबकी कमी है। स्वाभाविक तौर पर खेती पर निर्भर किसान परेशान है, बदहवास है। बाज़ार में न DAPऔर न यूरिया आसानी से निर्धारित दामों पर उपलब्ध है। पंजाब के किसान कह रहे हैं कि DAP की कमी के कारण उर्वरक की कालाबाजारी हो रही है। किसान इस खाद को पड़ोसी हरियाणा से महंगे दामों पर लाने को मजबूर हैं। DAP के एक बैग की कीमत 1,200 रुपये है जो 1,400 रुपये में बिक रहा है। इतना ही नहीं किसानों को DAP के साथ अन्य सामान भी खरीदने को मजबूर किया जा रहा है। पंजाब के एक किसान ने बहुत दुखी हो कर Indian express अख़बार को बताया कि आम तौर पर किसान जो धान बेचने जाते हैं (वर्तमान में जिसकी कटाई की जा रही है) डीजल बचाने के लिए उसी ट्रैक्टर ट्रॉली पर अपनी अगली गेहूं की फसल के लिए डीएपी वापस लाते हैं।

लेकिन इस बार वे सभी खाली लौट रहे हैं। राजस्थान के भरतपुर और अलवर के किसान राज्य में यूरिया उर्वरक की भारी कमी से जूझ रहे हैं। कांग्रेस नेता जय राम रमेश ने आरोप लगाया है कि सरकार मणिपुर में किसानों को जरूरत भर यूरिया उपलब्ध न करा के उसको पिछले 4 सालों से अफीम की खेती करने वालों को दे रही है। ऐसे में कोई आश्चर्य नहीं कि देश के कोने-कोने से किसान आक्रोश की सूचनाएँ मिल रही हैं। मध्य प्रदेश में कृषि मंत्री के चुनाव क्षेत्र समेत कई जगहों से सीधे ट्रक से ही किसानों द्वारा खाद के बोरे लूटने की खबर आ रही है। श्योपुर, मध्य प्रदेश, में पुलिस संरक्षण में किसानों को खाद उपलब्ध करायी जा रही है।ऐसा ही देश के अन्य भागों में भी हो रहा है।

वर्तमान खाद का संकट कोई अकस्मात घटी घटना नहीं है। महीनों से पता था कि देश में खाद की कमी है। इस साल सितंबर में सब्जी उत्पादकों ने भी डीएपी उर्वरक की कमी की शिकायत की थी।

तब सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों है और कौन है इसका जिम्मेदार। अगर हम विभिन्न खादों के स्टॉक की स्थिति देखते हैं तो पाते हैं कि पिछले सालों के मुकाबले इस साल स्टॉक काफी कम है। DAP और MOP का स्टॉक तो पिछले साल के मुकाबले आधा है। ( देखें खाद के स्टॉक सम्बन्धी तालिका लेख के अंत में) ऐसा इसलिए है कि अन्तराष्ट्रीय बाज़ार में खाद की कीमत बढ़ी हुई है और सरकारी मदद के आभाव में व्यापारियों ने महंगा खाद आयात नहीं किया क्योंकि उसको देश में ऊंची कीमत पर बेचना इतना आसान न होता।

और यह जब सभी जान रहे हैं तो यह मानने का कोई आधार नहीं है कि सरकार को या उसके अफसरों को यह नहीं पता होगा कि 2020 से दुनिया में सभी प्रकार के खाद के दाम बढ़ने लगे थे और यह महंगाई 2022 तक तो कम से कम रहेगी। कारण खाद के पेट्रोल आधारित कच्चा माल महंगा हुआ है। होना तो यह चाहिए था कि सरकार समय रहते जागती। लेकिन निकम्मेपन की वजह से या बदनीयती के चलते सरकार को इस साल 12 अक्टूबर को ही होश आया कि किसानों को सही दामों में खाद उपलब्ध कराने के लिए ज्यादा सब्सिडी देनी होगी। और उसने सब्सिडी को बढ़ाने का फैसला लिया। अब व्यापारी लोग खाद आयात करेंगे। यदि आयातक बहुत मुस्तैदी भी दिखायेंगे तो किसानों को खाद मिलने में देरी होगी। लोग उम्मीद कर रहे हैं कि शायद नवम्बर के शुरुआती दिनों में किसानों को खाद मिल जाये। लेकिन 20/25 दिन देर से खाद मिलने के टोटे की भरपाई किसानों को ही करनी होगी।


(रवींद्र गोयल सेवा निवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर, सत्यवती कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय।)

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