Wednesday, April 24, 2024

घर के गहने-बर्तन बेचकर बनेंगे पांच ट्रिलियन इकोनॉमी

गांव में एक कहावत है, “भले घर जल गया, बच्चों ने फायर ब्रिगेड तो देख लिया।” मोदी सरकार का भी वही हाल है। सरकार एक साथ 26 सरकारी कंपनियां बेच रही है, ताकि एनआरसी कराने, डिटेंशन कैंप बनाने जैसे ऊलजुलूल काम पूरे हो सकें। साल 2015 में ही मोदी सरकार ने रणनीतिक विनिवेश की नीति को फिर से शुरू किया था। पर मोदी सरकार-2 का पूरा फोकस सिर्फ़ और सिर्फ़ सरकारी संपत्तियों को बेचने पर है। भारत सरकार ने ट्रांसमिशन लाइन, टेलिकॉम टावर, गैस पाइपलाइन, हवाई अड्डे और PSU के मालिकाना हक़ वाली जमीन सहित सरकारी कंपनियों की कई संपत्ति बेचने या लीज पर देने की तैयारी कर ली है। दरअसल मोदी सरकार ने इस कदम से तीन लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है।

2019 के लोकसभा चुनाव के बाद मोदी सरकार के सेल्स एजेंट नीति आयोग ने कई मंत्रालयों से बात करने के बाद यह योजना तैयार की थी। इस योजना के तहत रेलवे की ज़मीन, पावरग्रिड की इलेक्ट्रिसिटी ट्रांसमिशन लाइन, बीएसएनएल और एमटीएनएल के टावर, गेल इंडिया लिमिटेड की पाइपलाइन, कुछ शहरों में हवाई अड्डे और कुछ कंपनियों की जमीन की लिस्ट नीति आयोग ने बनाई है। इसके तहत सेंट्रल पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइजेज को अपनी मौजूदा संपत्ति बेचने और उससे हासिल पैसे से नई संपत्ति बनाने को कहा गया।

वित्त वर्ष 2020-21 के लिए 2.10 लाख करोड़ रुपये के विनिवेश का लक्ष्य
आरटीआई से खुलासा हुआ है कि सरकार 26 सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (पीएसयू) की हिस्सेदारी बेचने पर काम कर रही है। इसमें एलआईसी, कुछ सरकारी बैंक और एचएएल भी शामिल है। इन पीएसयू को बेचने के लिए कैबिनेट भी हरी झंडी दिखा चुका है। 2 जुलाई 2020 को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि सरकार पीएसयू में उस समय हिस्सेदारी बेचना चाहती है जब वह सही मूल्य प्राप्त करती है।

बता दें कि बजट 2020 में वित्त वर्ष 2020-21 के लिए सरकार ने 2.10 लाख करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य तय किया था। इसमें से 1.20 लाख करोड़ रुपये पीएसयू में हिस्सा बेच कर और बाकी 90,000 करोड़ रुपये वित्तीय संस्थानों में हिस्सेदारी बेच कर हासिल किया जाएगा। इस साल सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में रणनीतिक हिस्सेदारी बिक्री पर भी ज्यादा फोकस है, क्योंकि सरकार को कुछ कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी 51% से नीचे लाना है।

आरटीआई में सामेन आई 26 पीएसयू की सूची
निर्मला सीतारमण ने 27 जुलाई को एक अहम घोषणा की थी और कहा था कि सरकार करीब 23 पब्लिक सेक्टर की कंपनियों का निजीकरण करने की तैयारी कर रही है, जिसे पहले ही कैबिनेट की मंजूरी मिल चुकी है। हालांकि सरकार ने 23 सरकारी कंपनियों को बेचने का जिक्र किया था, लेकिन आरटीई में 26 कंपनियों को बेचने का खुलासा हुआ है। सूचना का अधिकार यानी आरटीआई से उनका नाम पता चला है, बल्कि उससे ज्यादा ही नाम पता चले हैं। उनकी सूची ये रही, 1. प्रोजेक्ट एंड डेवलपमेंट इंडिया लिमिटेड (PDIL)
2. इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट इंडिया लिमिटेड (EPIL)
3. पवन हंस लिमिटेड (PHL)
4. बी एंड आर कंपनी लिमिटेड (B&R)
5. एयर इंडिया6. सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (CEL)
7. सीमेंट कॉर्पोरेशन इंडिया लिमिटेड (CCIL नयागांव इकाई)8. इंडियन मेडिसिन एंड फार्मास्युटिकल्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड (IMPCL)
9. सलेम स्टील प्लांट, भद्रावती स्टील प्लांट दुर्गापुर स्टील प्लांट 10. फेरो स्क्रैप निगम लिमिटेड (FSNL)
11. एनडीएमसी का नगरनार स्टील फ्लांट (NDMC)
12. भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड (BEML)
13. एचएलएल लाइफकेयर (HLL Lifecare)
14. भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (BPCL)
15. शिपिंग कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (SCI)
16. कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (CONCOR)
17. नीलांचल इस्पात निगम लिमिटेड (NINL).
18. हिंदुस्तान प्रफेब लिमिटेड (HPL)
19. भारत पम्प्स एंड कम्प्रेसर्स लिमिटेड (BCPL)
20. स्कूटर्स इंडिया लिमिटेड (SIL)
21. हिंदुस्तान न्यूजप्रिंट लिमिटेड (HNL)
22. कर्नाटक एंटीबायोटिक्स एंड फॉर्मास्युटिकल्स लिमिटेड (KAPL)
23. बंगाल केमिकल्स एंड फॉर्मास्युटिकल्स लिमिटेड (BCPL)
24. हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमिटेड (HAL)
25. इंडियन टूरिज्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (ITDC)
26. हिंदुस्तान फ्लोरोकॉर्बन लिमिटेड (HFL)

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2019 के अपने बजट भाषण में यह भी घोषणा की थी कि वर्तमान वृहद आर्थिक मानकों के मद्देनजर रणनीतिक विनिवेश के लिए अधिक सार्वजनिक उपक्रमों की पेशकश की जाएगी। सरकार ने साल 2019-20 में PSU के विनिवेश से 1.05 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा था। 23 सीपीएसई में रणनीतिक विनिवेश की सैद्धांतिक मंजूरी पहले ही दी जा चुकी है। रेलवे के अलावा जिन कुछ कंपनियों की जमीन बेचने की कोशिश की जा सकती है, उनमें नेशनल टेक्सटाइल कॉर्पोरेशन, हिंदुस्तान एंटीबायॉटिक्स और एनटीपीसी लिमिटेड शामिल हैं।

रेल पटरियों को रेलगाड़ी परिचालन से अलग करने की तर्ज़ पर गेल के पाइपलाइन बिजनेस को मूल कंपनी से अलग किया जा सकता है और उसे लॉन्ग टर्म लीज पर देने या पूरी तरह बेचने का हर तरह के विकल्प खुले रखे थे। बता दें कि गेल लिमिटेड के पास देश में नेचुरल गैस की 11,500 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन है।

इसी तरह बीएसएनएल और एमटीएनएल के टावर को लीज पर दिया जा सकता है और कुछ मामलों में उन्हें बेचा भी जा सकता है। बता दें कि बीएसएनएल और एमटीएनएल ने निजी टेलिकॉम कंपनियों को पहले ही 13,051 और 392 मोबाइल टावर साइट रेंट पर दिए हैं। पावरग्रिड के पास करीब 1,45,400 सर्किट किलोमीटर ट्रांसमिशन लाइन हैं।

नवंबर 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की बैठक के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल), भारतीय जहाजरानी निगम और कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया समेत पांच प्रमुख सार्वजनिक उपक्रमों में सरकार की हिस्सेदारी बेचने की  मंजूरी दी थी। इनमें हिस्सेदारी बेचने के साथ प्रबंधन नियंत्रण भी दूसरे हाथों में सौंपा जाएगा।

वित्तमंत्री सीतारमण ने कहा था कि नुमालीगढ़ रिफाइनरी को बीपीसीएल के नियंत्रण से बाहर कर सरकार पेट्रोलियम कंपनी में अपनी 53.29 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचेगी। इसके अलावा सरकार ने टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (टीएचडीसी) और नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनईईपीसीओ) में अपनी हिस्सेदारी सार्वजनिक क्षेत्र की एनटीपीसी लिमिटेड को बेचने पर मुहर लगाई थी।

डीएमके सांसद पी वेलुसामी ने वित्त मंत्री से घाटे में चल रही उन कंपनियों का ब्योरा मांगा था, जिन्हें हिस्सेदारी बेचने के लिए चिह्नि‍त किया गया है। इसके जवाब में लोकसभा में वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर ने इन कंपनियों का पूरा ब्योरा देते हुए बताया था कि 2019-20 के दौरान सरकार ने विनिवेश से 65,000 करोड़ जुटाने का लक्ष्य रखा है और इसके लिए सरकार वित्तवर्ष 2019-20 के लिए मोदी सरकार कुल 28 सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (पीएसयू) में हिस्सेदारी बेचेगी।

वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने लिखित जवाब में 28 सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के नाम भी बताए, जिनमें विनिवेश यानी हिस्सेदारी बेचने की सैद्धांतिक मंजूरी मिली है। ये कंपनियां हैं,
1. स्कूटर्स इंडिया लिमिटेड
2. ब्रिज ऐंड रूफ कंपनी इंडिया लिमिटेड
3. हिंदुस्तान न्यूज प्रिंट लिमिटेड
4. भारत पंप्स ऐंड कम्प्रेसर्स लिमिटेड
5. सीमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड
6. सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड
7. भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड
8. फेरो स्क्रैप निगम
9. पवन हंस लिमिटेड
10. एअर इंडिया और उसकी पांच सहायक कंपनियां और एक संयुक्त उद्यम
11. एचएलएल लाइफकेयर
12. हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमिटेड
13. शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया
14. बंगाल केमिकल्स एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड
15. नीलांचल इस्पात निगम लिमिडेट में विनिवेश की सैद्धांतिक मंजूरी बीते आठ जनवरी को दी गई
16. हिंदुस्तान प्रीफैबलिमिटेड (HPL)
17. इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट्स इंडिया लिमिटेड
18. भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन
19. कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (CONCOR)
20. एनएमडीसी का नागरनकर स्टील प्लांट
21. सेल का दुर्गापुर अलॉय स्टील प्लांट, सलेम स्टील प्लांट और भद्रावती यूनिट
22. टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड (THDCIL)
23. इंडियन मेडिसीन ऐंड फार्मास्यूटिकल्स कॉरपोरेशन लिमिटेड (IMPCL)
24. कर्नाटक एंटीबायोटिक्स
25. इंडियन टूरिज्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (ITDC) की कई ईकाइयां
26. नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (NEEPCO)
27. प्रोजेक्ट ऐंड डेवलपमेंट इंडिया लि
28. कामरजार पोर्ट

वित्त वर्ष 2018-19 में हिस्सेदारी बेचकर 31,500 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य
वित्त वर्ष 2018-19 में सरकार ने आईओसी, सेल और एनटीपीसी समेत सात सार्वजनिक उपक्रमों (पीएसयू) में हिस्सेदारी बेचकर 31,500 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा था। इसके लिए सरकार ने मर्चेंट बैंकर्स और कानूनी सलाहकारों की तलाश शुरू की थी। निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) ने इनकी नियुक्ति के लिए रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (आरएफपी) जारी किया था।

जिन अन्य पीएसयू में विनिवेश होना है, उनमें एनएचपीसी, पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन (पीएफसी), आरईसी और एनएलसी इंडिया लिमिटेड शामिल थे। आरएफपी के मुताबिक तब सरकार का इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (आईओसी) में तीन फीसदी, सेल, एनटीपीसी, एनएचपीसी और पीएफसी जैसे पीएसयू में 10-10 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की योजना है। इसके अलावा 15 फीसदी हिस्सेदारी एनएलसी इंडिया (पहले नैवेली लिग्नाइट कॉर्पोरेशन) और पांच फीसदी हिस्सेदारी आरईसी में बेचने का प्रस्ताव था।

क्या है कंपनियों का हिस्सा बेचने का आधार
वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने संसद में दिए लिखित जवाब में बताया था कि सरकार हानि और लाभ के आधार पर विनिवेश का फैसला नहीं करती, बल्कि उन सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में विनिवेश का फैसला करती है जो प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में नहीं हैं, लेकिन हक़ीक़त ये है कि सरकार की प्राथमिकता सिर्फ़ बेचना होता है, घाटे वाले उपक्रम के खरीदार ये विनिवेशक नहीं मिलते तो सरकार लाभ वाले उपक्रम बिक्री के लिए आगे कर देती है। जैसे इस समय सरकार ने एलआईसी को बिक्री के लिए सबसे आगे कर दिया है।

भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (BPCL), शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (SCI) और कंटेनर कॉरपोरेशन (कानकॉर) की रणनीतिक बिक्री के जरिए केंद्र सरकार अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय कंपनियों की गहराई की थाह लेने की कोशिश एक साल से कर रही है। अगर इन तीनों कंपनियों में केंद्र सरकार की हिस्सेदारी की रणनीतिक बिक्री सफलतापूर्वक हो गई तो अगले वर्ष यह प्रक्रिया और तेज की जाएगी। योजना यह है कि वर्ष 2020-21 और वर्ष 2021-22 में रणनीतिक बिक्री के लिए चयनित 30 अन्य कंपनियों का भी विनिवेश हो जाए।

सरकारी ने कंपनियों की बिक्री की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए बनाई ‘वैकल्पिक व्यवस्था’
7 मार्च 2019 को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने सरकारी कंपनियों की रणनीतिक बिक्री की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए ‘वैकल्पिक व्यवस्था’ को उपक्रमों की बिक्री के समय, मूल्य और शेयरों के बारे में निर्णय लेने की मंजूरी दी थी। तब एक आधिकारिक बयान में कहा गया था, “मंत्रीमंडल की आर्थिक मामलों की समिति (सीसीईए) ने सरकारी कंपनियों के विनिवेश के उन सभी मामलों में वैकल्पिक व्यवस्था को मंजूरी दे दी है जहां सीसीईए पहले ही रणनीतिक विनिवेश की मंजूरी दे चुका है।

इससे तेजी से निर्णय लेना सुनिश्चित होगा तथा एक ही सरकारी कंपनी के लिए सीसीईए से कई मंजूरियों लेने के मामले को टाला जा सकेगा। वैकल्पिक प्रणाली इस संबंध में सचिवों के समूह के प्रस्ताव पर भी निर्णय लेगी। सचिवों का कोर समूह रणनीतिक बिक्री के बारे में समय, मूल्य और तय शर्तों के बारे में अपने प्रस्ताव देगा।”

हालांकि यह मैकेनिज्म वर्ष 2017 से ही काम कर रहा था, लेकिन वर्ष 2019 में इसे विनिवेश को लेकर सारे अधिकार सौंप दिए गए हैं। इसके बाद विनिवेश से जुड़े हर छोटे बड़े फैसलों के लिए सीसीईए की इज़ाज़त ज़रूरी नहीं रह गई थी। वित्त मंत्री के अलावा सड़क परिवहन मंत्री इसके सदस्य हैं, जबकि संबंधित पीएसयू के प्रशासनिक विभाग के मंत्री को इसमें बतौर आमंत्रित सदस्य रखा गया है। मसलन, बीपीसीएल से जुड़े फैसले करने के लिए समूह में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को शामिल किया जाएगा।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव का लेख।)

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