Friday, April 26, 2024

खोरी से लेकर अल बूस्तान तक एक जैसी बेबसी

साम्राज्यवादी ताक़तें सिर्फ़ लक्षद्वीप या दिल्ली के पास खोरी में ही नहीं ग़रीबों और मेहनतकशों को उजाड़ने पर आमादा हैं। ऐसी ताक़तें दुनिया के हर कोने में कहीं न कहीं लोगों को उजाड़ रही हैं। सुदूर फिलिस्तीन के अल बूस्तान बस्ती और खोरी या लक्षद्वीप के मूल निवासियों का दर्द एक जैसा है। अल बूस्तान वो बस्ती है जो यरुशलम के पूर्वी इलाके में स्थित सिलवन उपनगर में पड़ती है। यहां के लोगों को 48 घंटे में यह इलाका छोड़ने का आदेश इस्राइली सरकार ने दिया है।

यरुशलम म्युनिसिपैलिटी पर इस्राइल का कब्जा है। यहां 1500 फिलिस्तीनियों के 124 परिवार रहते हैं। आप सोच रहे होंगे कि ऐसी बस्तियां तो आए दिन उजड़ रही हैं, फिर इसकी चर्चा क्यों। दरअसल, फिलिस्तीनी मूल के पत्रकार दुनिया के जिस भी हिस्से में रहते हैं, उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील जारी कर अल बूस्तान को बचाने की अपील की है। फिलिस्तीनी मूल की अमेरिकी पत्रकार मुना हौव्वा ने कुछ तस्वीरें और वहां की कहानी मुझसे भी शेयर की है।    

अल बूस्तान का ऐतिहासिक महत्व है। बाइबल के मुताबिक यहां पर हजरत ईसा ने एक नेत्रहीन शख्स को ठीक किया था। हिब्रू (इस्राइलियों की भाषा) में लिखी गई बाइबल में भी इस घटना का जिक्र है। इस्राइल हुकूमत अल बूस्तान को उजाड़ कर यहूदी थीम पार्क बनाना चाहती है। वो उस ऐतिहासिक कस्बे पर अपना ठप्पा लगाना चाहती है। अल बूस्तान के मूल निवासी मुस्लिम हैं। उनकी मान्यता है कि हजरत ईसा जब आएंगे तो इसी रास्ते से यरुशलम में प्रवेश करेंगे। वो अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए अल बूस्तान का वजूद जिन्दा रखना चाहते हैं ताकि पैगम्बर ईसा का स्वागत किया जा सके। बता दें कि कुरान हजरत ईसा को एक ऐसी अहम शख्सियत के रूप में देखता है जो पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब से बहुत पहले आए थे। कुरान में ईसा को जन्म देने वाली मदर मरियम का भी जिक्र है।  

पत्रकार मुना हौव्वा बताती हैं कि अल बूस्तान के 124 परिवारों में हर किसी की एक कहानी है। फखरी अबू दियाब की तीन पीढ़ी की कहानियां अल बूस्तान में बिखरी हुई हैं। फखरी पेशे से अकाउंटेंट हैं और सिलवन भूमि रक्षा समिति के प्रवक्ता भी हैं। उनका और उनके भाई नादिर अबू दियाब का घर उन मकानों में शामिल है, जिन्हें अगले 48 घंटे में गिरा दिया जाएगा। उनको समझ नहीं आ रहा है कि वो अपना, भाई और चचेरे भाइयों के 30 लोगों के परिवार को लेकर अब कहां शरण लेंगे। हालांकि यरुशलम नगर निगम ने कहा है कि यहां से उजाड़े जाने वालों के लिए एक मैदान में हमने टेंट लगा दिए हैं।

खालिद अल जीर का घर इस्राइल के दक्षिणपंथी कब्जाधारियों ने तो 2018 में ही गिरा दिया था। उन्होंने एक पहाड़ी पर गुफा तलाशी। छेनी-हथौड़ी से पत्थरों के बीच एक दरवाजा बनाया और अपने बच्चों के साथ उसी गुफा में शरण ले रखी है। इस्राइली कब्जाधारी फिर बुलडोजर लेकर उस गुफा को तोड़ने आए। लेकिन खालिद के विरोध पर लौट गए। खालिद ने मुना हौव्वा से कहा कि अब वो दूसरा घर कभी नहीं बना पाएंगे क्योंकि अभी तो पेट भरने की समस्या सामने है।

मुना हौव्वा इस युवक को नहीं जानतीं लेकिन उसकी परेशानी उन्हें याद है। 16 जुलाई को उस युवक की शादी की तारीख पड़ी है। वो जब शादी की तैयारियों में व्यस्त था तो यरुशलम नगर निगम का नोटिस आया कि अपना घर खाली करो, नहीं तो गिरा दिया जाएगा। उसे इस नोटिस की धमकी पर जब तक यकीन होता, एक जेसीबी पहुंच चुकी थी और उसने अपना पीला पंजा उसके घर पर गड़ा दिया था।

मुना हौव्वा कहती हैं कि दुनिया ने फिलिस्तीन को अकेला छोड़ दिया है। हालांकि इसके बावजूद अमेरिका में कुछ लोग कोशिश कर रहे हैं। यूएस कांग्रेस के 73 सांसदों, 600 बुद्धिजीवियों, वामपंथी डेमोक्रेट्स ने बाइडेन को पत्र लिखकर कहा है कि फिलिस्तीन से इस्राइल का नाजायज कब्जा खत्म किया जाए। अमेरिका के अधिकतर लोग इस्राइल मुक्त फिलिस्तीन देखना चाहते हैं। अमेरिकियों ने बाइडेन से पूछा है कि आखिर किस इंतजार में हैं आप।  

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने एक रिपोर्ट जारी कर बताया कि फिलिस्तीनियों को उजाड़ने के लिए किस बर्बर तरीके से इस्राइली पुलिस और सेना अपना आपरेशन वहां चला रही हैं। एमनेस्टी ने इस्राइली पुलिस से भिड़ते फिलिस्तीनियों की हिला देने वाले फोटो और वीडियो जारी किए हैं। एमनेस्टी ने कहा कि हमने 20 मामलों के ऐसे दस्तावेज तैयार किए हैं, जहां इस्राइली पुलिस फिलिस्तीनियों पर बर्बर तरीके इस्तेमाल कर उन्हें उजाड़ रही है। एमनेस्टी ने कहा कि इस्राइली पुलिस किसी भी समय किसी भी फिलिस्तीनी को बिना कोई नोटिस दिए उठा ले जाती है। हिरासत में उन्हें प्रताड़ित किया जाता है। प्रदर्शन करने पर सेना का इस्तेमाल किया जाता है।

इस्राइली मीडिया के मुताबिक सिलवन इलाके में इस्राइली सरकार ने दक्षिणपंथी गुट एतरत कोहानिम को यहूदी आबादी को बसाने की जिम्मेदारी सौंपी है। यह दक्षिणपंथी गुट किसी भी फिलिस्तीनी घर को निशाने पर लेता है। वहां कब्जा करता है और उसका साथ व समर्थन इस्राइली पुलिस और सेना देती है। उस घर पर कब्जा करके किसी यहूदी परिवार के हवाले उस घर को कर दिया जाता है। 

भारत के कश्मीर में कभी ऐसी बस्तियाँ बसाने की कल्पना कुछ सत्ताधारियों ने की थी। उसके लिए क़ानून तक बदले गए और कुछ बेवकूफ कश्मीरी लड़कियों से शादी के बारे में बातें करने लगे थे। कश्मीर तो अल बूस्तान नहीं बन पाया लेकिन साम्राज्यवादियों की सोच कितनी ख़तरनाक हो सकती है, उसका नंगा स्वरूप कश्मीर ही नहीं दुनिया के हर कोने में दिख रहा है।

(यूसुफ किरमानी वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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