Wednesday, April 17, 2024

उत्तराखंड में दिखा जातिवाद का बर्बर चेहरा

देहरादून/अल्मोड़ा। उत्तराखंड पढ़े-लिखे लोगों का राज्य है। यहां न सिर्फ साक्षरता का प्रतिशत देश के औसत से ज्यादा है, बल्कि इस राज्य में उच्च शिक्षित लोगों की संख्या भी अच्छी-खासी है। 2011 में हुई अंतिम जनगणना के अनुसार उत्तराखंड में साक्षरता दर 78.8 प्रतिशत थी। जबकि देश की साक्षरता दर 74.04 प्रतिशत ही थी। यानी के उत्तराखंड में पढ़े-लिखे लोगों की संख्या बाकी देश की तुलना में ज्यादा है। इस उपलब्धि के बावजूद यह राज्य जातिवाद के चंगुल से उबर नहीं पा रहा है। इस राज्य में समय-समय पर जाति आधारित अपराध की घटनाएं सामने आती रही हैं, लेकिन इस पर अंकुश लगाने के भी लगातार प्रयास होते रहे हैं। हाल के वर्षों में स्थिति में सुधार आने के बजाय हालात बिगड़ते प्रतीत हुए हैं। इस राज्य में अब जातिवादी जहर पहले से ज्यादा आक्रामकता के साथ मौजूदगी दर्ज करवा रहा है।

फिलहाल हम यहां उत्तराखंड के औसत से भी ज्यादा साक्षर राज्य के अल्मोड़ा जिले की एक घटना की बात कर रहे हैं। अल्मोड़ा जिले की साक्षरता दर 2011 की जनगणना के अनुसार 80.47 प्रतिशत है। यानी राज्य के औसत से ज्यादा। पुरुष साक्षरता की दर अल्मोड़ा में 92.86 प्रतिशत है। राज्य में पुरुष साक्षरता से अल्मोड़ा जिले से करीब 4 प्रतिशत कम 87.4 प्रतिशत है। इस तरह हम अल्मोड़ा जिले को अच्छे-खासे पढ़े-लिखे लोगों का जिला कह सकते हैं। लेकिन, इस जिले में होने वाली जाति आधारित हिंसा की घटनाओं पर नजर डालें तो स्थिति आज भी चिन्ताजनक बनी हुई है। जातीयता का दंभ यहां लोगों में इस कदर भरा हुआ है कि दलित समुदाय के लोगों की हत्या करने तक भी नहीं चूकते।

ताजा घटना 1 सितंबर की है, जब अल्मोड़ा जिले के भिकियासैंण क्षेत्र के पनुवाद्योखन गांव के दलित युवक जगदीश चंद्र की हत्या कर दी गई। जगदीश चंद्र ने करीब एक हफ्ते पहले की गीता नाम की युवती से विवाह किया था। गीता के मां-बाप उच्च जाति से संबंध रखते हैं।

21 अगस्त को गीता और जगदीश ने मंदिर में की शादी। घर पहुंचकर लिया जगदीश के पिता का आशीर्वाद।

गीता की दुखभरी कहानी

जगदीश चंद्र की हत्या से पहले हम गीता की दुखभरी कहानी पर एक नजर डालें। गीता जब 8वीं में पढ़ती थी तो उसके पिता ने उसके तीन भाई-बहनों के साथ उसकी मां भावना को छोड़ दिया था। भावना तीनों बच्चों के साथ इसी क्षेत्र के जोग सिंह के साथ रहने लगी। इसके बाद 8वीं की छात्रा गीता की पढ़ाई छूट गई और उसे घर के कामों में लगा दिया गया। सौतेले पिता के दुर्व्यवहार और घर के कामों से जूझती गीता की मुलाकात प्लंबर का काम करने वाले जगदीश चंद्र से हुई। जगदीश चंद्र सामाजिक कार्यकर्ता भी था और प्रतिशील विचारों की समर्थक मानी जाने वाली उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी का सदस्य भी। उसने पार्टी के टिकट पर विधानसभा चुनाव भी लड़ा था। जगदीश दलित समुदाय का था, इसके बावजूद गीता ने जगदीश के साथ शादी करने का निश्चय कर लिया। गीता को लगता था कि सौतेले बाप और पराई हो चुकी मां को एक न एक दिन तो उसे छोड़ना ही पड़ेगा, ऐसे में जगदीश जैसा जीवनसाथी सबसे बेहतर विकल्प हो सकता है। 21 अगस्त को जगदीश और गीता ने विवाह कर लिया। दोनों अल्मोड़ा में किराये के मकान में रहने चले गये।

अल्मोड़ा आने के बाद से गीता और जगदीश को लगने लगा था कि उनकी जान खतरे में है। 27 अगस्त को गीता ने अल्मोड़ा के डीएम और एसपी को पत्र लिखकर अपने और अपने पति की जान के लिए खतरा बताया और सुरक्षा उपलब्ध करवाने की गुहार लगाई। डीएम के स्तर पर इस मामले में कोई कदम उठाये जाने संबंधी कोई पत्र सामने नहीं आया है, लेकिन एसपी ने मामले की गंभीरता को जाने बिना ही इस पत्र को राजस्व पुलिस के पास भेज दिया। यानी जिले के दोनों आला अधिकारियों ने इस विवाहित जोड़े को सुरक्षा उपलब्ध करवाने की कोई जरूरत नहीं समझी।

1 सितंबर को आखिरकार जगदीश चंद्र की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी गई। अभी तक जो कुछ जांच में सामने आया उससे पता चलता है कि अल्मोड़ा में रहने के लिए जगदीश को पैसों की जरूरत थी। भिकियासैंण में उसने किसी का काम किया था। जगदीश अपने पैसे लेने के लिए अल्मोड़ा से भिकियासैंण चल पड़ा। लेकिन, जगदीश भूल गया कि भिकियासैंण अब उसके लिए अपना क्षेत्र नहीं रह गया है। गीता से शादी करते ही यह पूरा इलाका उसके लिए ऐसा जंगल बन चुका है, जहां जातिवादी भेड़िये उस पर झपटने के लिए तैयार बैठे हैं। जगदीश के भिकियासैंण में होने की खबर गीता के मां-बाप को मिली तो वे जगदीश को बहला-फुसलाकर और मिलजुल कर रहने का झांसा देकर घर ले गये।

हथौड़े मार-मारकर हत्या

बताते हैं कि घर पहुंचते ही सबसे पहले एक बड़े हथौड़े से जगदीश के घुटने पर वार कर उसका घुटना तोड़ दिया गया। वह लड़खड़ा कर गिरा तो पंजे पर भी इसी तरह हथौड़ा मार दिया गया। इसके बाद गीता के बारे में पूछताछ शुरू की गई। घायल जगदीश से जानकारी लेकर परिवार के लोग गीता की तलाश में अल्मोड़ा पहुंचे। समझा जाता है कि उनका इरादा जगदीश के साथ ही गीता की हत्या करने का था। लेकिन, गीता नहीं मिली। आरोपी अल्मोड़ा से लौट आये। उसके बाद जगदीश को अंतिम यात्रा पर भेजने का दौर शुरू हुआ। बताया जाता है कि गीता के सौतेले बाप, सगी मां और सगे भाई ने जगदीश के शरीर के एक-एक हिस्से पर हथौड़े से वार किया और यह सिलसिला तब तक चलता रहा, जब तक उसकी मौत नहीं हो गई।

गीता और पूजा बंधे विवाह बंधन में।

उधर अल्मोड़ा में गीता को अनहोनी को अंदेशा हुआ तो उसने अपने जानकारों को मामले की जानकारी दी। सूचना पुलिस तक पहुंची। जगदीश चंद्र की लाश ठिकाने लगाने का प्रयास कर रहे गीता के सौतेले बांप, सगी मां और सगे भाई को गिरफ्तार कर लिया गया। पोस्ट मार्टम करवाने के बाद शव जगदीश के परिजनों को उपलब्ध करवाने के बजाए तीन थानों की पुलिस के पहरे में पनुवाद्योखन गांव के पास अंतिम संस्कार कर दिया गया। जगदीश का अंतिम दर्शन न उसके माता-पिता कर पाये और न ही पत्नी गीता। शादी के 10 दिन बाद ही विधवा हो चुकी गीता के लिए फिलहाल दुनिया के सभी रास्ते लगभग बंद हो चुके हैं। उसे नारी निकेतन भेज दिया गया है।

जाति जाती नहीं

अल्मोड़ा जिले का सल्ट और भिकियासैंण क्षेत्र जातिवादी हिंसा के मामले में कुख्यात माने जाते हैं। 1980 में इस जिले के सल्ट क्षेत्र में हुए एक घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था। कफल्टा गांव में हुई इस घटना में दलित समुदाय के 14 लोगों की हत्या कर दी गई थी। मामला दलित दूल्हे को पालकी में बिठाकर ले जाने को लेकर शुरू हुआ। कफल्टा गांव से गुजर रही बारात में दूल्हा पालकी पर था। गांव की सवर्ण महिलाओं ने दूल्हे को पालकी से उतारने को कहा तो दलित समुदाय के लोगों ने मना कर दिया। महिलाओं ने शोर मचाया तो छुट्टी पर आया फौजी खीमानंद मौके पर पहुंचा।

बारातियों ने खीमानंद पर हमला कर दिया, जिससे खीमानंद की मौत हो गई। इस बीच गांव के सभी सवर्ण मौके पर जमा हो गये। अनुसूचित जाति के लोगों ने गांव के एक मात्र अनुसूचित जाति के परिवार नरीराम के घर शरण ली। और एक कमरे में जाकर अंदर से कुंडी लगा दी। सवर्णों ने घर को घेर लिया छत तोड़ी और छत से मिट्टी का तेल छिड़ककर कमरे में आग लगा दी। घटना में 6 लोग जिन्दा जले। 8 युवक कमरे की खिड़की तोड़कर कुछ बाहर भागे तो उन्हें खेतों में दौड़ाकर मार डाला गया। इस घटना में 1997 में अंतिम फैसला हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट ने 16 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई। हालांकि तब तक 3 की मौत हो चुकी थी। 2016 में बागेश्वर जिले में भी एक स्कूल अध्यापक ने आटाचक्की छू जाने पर एक दलित युवक की गला काटकर हत्या कर दी थी।

जगदीश और उसके परिवार को न्याय देने के लिए आवाज उठा रहे उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के अध्यक्ष पीसी तिवारी कहते हैं कि यदि पुलिस और प्रशासन चाहते तो जगदीश की जान बचाई जा सकती थी। गीता ने जान की सुरक्षा की गुहार लगाते हुए अधिकारियों को जो पत्र भेजा था, उस पर ध्यान नहीं देने की जरूरत नहीं समझी गई। वे कहते हैं कि जगदीश के परिवार को न्याय दिलाने के लिए हर संभव लड़ाई लड़ी जाएगी। रामनगर के सामाजिक कार्यकर्ता प्रभात ध्यानी भी लगातार जगदीश के परिवार को न्याय देने के लिए आवाज उठा रहे हैं। इस मामले को लेकर रामनगर और जगदीश के गांव में प्रदर्शन भी किया गया।

(वरिष्ठ पत्रकार त्रिलोचन भट्ट की रिपोर्ट।)

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