गुजरात में मुस्लिम मुक्त हो गई है राजनीति

अहमदाबाद। गुजरात को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी की प्रयोगशाला यूं ही नहीं कहा जाता है। इस सूबे में 10 फीसदी के करीब मुस्लिम आबादी है लेकिन पिछले दो दशक से यह स्थिति बनी हुई है कि कोई भी पार्टी मुसलमानों को आबादी के अनुपात में टिकट नहीं देती है। यही कारण है कि गुजरात की 182 सदस्यों वाली विधानसभा में 10 फीसदी मुस्लिम आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले विधायकों की संख्या दो फीसदी भी नहीं है।

मौजूदा विधानसभा में सिर्फ तीन मुस्लिम विधायक हैं और अभी चल रहे चुनाव के बाद हो सकता है कि यह संख्या और कम हो जाए। इसका कारण यह है कि राजनीतिक दलों की ओर से गिनती के मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में हैं। भाजपा ने हर बार की तरह इस बार भी किसी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया है। भाजपा ने आखिरी बार 25 साल पहले एक मुस्लिम उम्मीदवार को उतारा था। उस समय गुजरात की राजनीति में नरेंद्र मोदी और अमित शाह का कोई दखल नहीं था।

कांग्रेस पर मुस्लिमपरस्त राजनीति करने के आरोप लगते रहे हैं लेकिन उसने भी अपने 182 उम्मीदवारों में से सिर्फ छह मुस्लिम उम्मीदवार दिए हैं। कांग्रेस की जगह लेने की राजनीति कर रही आम आदमी पार्टी ने तो सिर्फ दो ही टिकट मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं।

माधव सिंह सोलंकी जब सूबे में कांग्रेस पार्टी के सबसे बड़े नेता और मुख्यमंत्री थे, तब एक समय ऐसा था कि गुजरात विधानसभा में 17 मुस्लिम विधायक होते थे। लेकिन अब संख्या तीन पर आ गई है। इसका कारण यह है कि भाजपा को मुस्लिम वोट चाहिए नहीं और अब तक अकेले कांग्रेस लड़ती थी तो वह मान कर चलती थी कि मुसलमान मजबूरी में उसको ही वोट देंगे। आम आदमी पार्टी ने भी यही मान कर औपचारिकता पूरी करने के लिए दो मुस्लिम उउम्मीदवार मैदान में उतारे हैं।

(अहमदाबाद से वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन की रिपोर्ट।)

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