Saturday, April 20, 2024

नफरत और हिंसा का इस्तेमाल जनता की एकता तोड़ने के लिए: सुभाषिनी

पूर्व सांसद तथा अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की उपाध्यक्षा सुभाषिनी अली ने नफ़रत फैलाने की योजनाबद्ध मुहिम के पीछे छुपी साजिश को बेनकाब करते हुए उसकी असली राजनीति को उजागर किया।  उन्होंने कई अनुभव गिनाते हुए कहा कि इसका असली मकसद नकली दुश्मन खड़े करके सरकार की विनाशकारी नीतियों से उपजे आक्रोश और असंतोष को पथभ्रष्ट करना है; शोषणकारी ताकतों की हरकतों से ध्यान बंटाना है। ये बातें उन्होंने शैली स्मृति व्याख्यान में कहीं।  

उन्होंने कहा कि अपने इस काम को अंजाम देने के लिए भाजपा और आरएसएस भारतीय समाज में पहले से मौजूद वर्णाश्रम और जाति  के विभाजन को गहरा कर रही हैं इसी के साथ साम्प्रदायिकता भी भड़का रही हैं।  सरकार में होने की स्थिति का फायदा उठाकर हिंसा  उकसाने, उसे संरक्षण देने और हत्याओं तक के अपराधियों को बचाने के आपराधिक कामों में जुटी हुयी हैं। इसी का नतीजा है कि न सिर्फ अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा बढ़ी है बल्कि दलितों और महिलाओं के खिलाफ भी हिंसक घटनाओं में जबरदस्त तेजी आयी है।  मध्यप्रदेश में भी ऐसी घटनाओं की संख्या में बढ़ोत्तरी हुयी है।  हालत यहां तक है कि मजदूरी मांगने पर भी हत्या कर दी जाती है, शादी में घोड़े पर चढ़ने पर मार दिया जाता है,  अम्बेडकर की प्रशंसा के गीत गाने पर हमले कर दिए जाते हैं।  ऐसी तरह तरह की घटनाएं बढ़ी हैं।  पिछले 6 साल में कुछ ज्यादा ही तेजी के साथ बढ़ी हैं। 

उन्होंने कहा कि यह हिंसा न अपने आप भड़कती है ना ही स्वतःस्फूर्त है; इसे बाकायदा योजनाबद्ध प्रचार से नफ़रत पैदा करके विकसित किया जाता है।  इसकी शुरुआत भले अल्पसंख्यकों से की जाती है मगर इसका असली निशाना  महिला और दलित हैं।  हाल के वर्षों में यह उसी दिशा में मुड़ी है। खतरनाक बात यह है कि वह फिलहाल अपना असर दिखाती भी नजर आ रही है।  डीजल पेट्रोल  कीमतों के बढ़ने और जनता के जीवन पर महंगाई, बेरोजगारी के हमलों के बीच भी आबादी का एक हिस्सा ऐसा भी है जो इन बातों से नाराज होने के बाद भी सरकार को सिर्फ इसलिए ठीक मानता है क्योंकि वह मुसलमानों को “ठीक” कर रही है और आरक्षण खत्म करके दलितों और “नीची जातियों” को उनकी हैसियत में पहुंचा रही है।  इसके कुछ उदाहरण भी उन्होंने गिनाये। 

प्रतिप्रश्न करते हुए सुभाषिनी अली ने पूछा कि क्या इसका खामियाजा और नुक्सान सिर्फ अल्पसंखयकों, दलितों और महिलाओं को उठाना पड़ रहा है? इसका जवाब नहीं में देते हुए उन्होंने बताया कि किस तरह इसका ज्यादा बड़ा घाटा सारे भारतीयों को उठाना पड़ता है।  इस विभाजन और ध्रुवीकरण से मजदूरों सहित मेहनतकश अवाम की एकता टूटती है- जनविरोधी नीतियों और अपने जीवन पर हमलों के विरुद्ध उसका प्रतिरोध कमजोर होता है।  उसके लड़ने की क्षमता और एकता दोनों कमजोर होती हैं।  उन्होंने बताया  कि मुसलमानों, दलितों या महिलाओं के प्रति नफ़रत पैदा करके बाकी हिन्दू और सवर्ण मेहनतकश भी इन हमलों से नहीं बच पाता है।  इस तरह वास्तव में यह सारी साजिश समूची जनता को लूटने का काम आसान बनाने और लूटने वाले के खिलाफ विरोध को भ्रमित और कमजोर करने की है।   

देश की प्रमुख वामपंथी नेता और सीपीएम पोलित ब्यूरो की सदस्य सुभाषिनी अली ने कहा कि इसका एक ही निदान है; वर्गीय चेतना को  आगे बढ़ाना।  दिमाग से लेकर मैदान तक यह काम करना।  उन्होंने कहा कि आंदोलन और संघर्षों की गर्माहट चेतना का विकास करती है।  इस संबंध में उन्होंने किसान आंदोलन का उदाहरण दिया जिसने न सिर्फ साम्प्रदायिक विभाजन को तोड़ा है बल्कि जेंडर आधारित पिछड़ेपन को भी साफ़ किया।  हरियाणा की महिलाओं का उदाहरण देते दिया जो पर्दा-घूंघट छोड़ ट्रेक्टर चलाती हुयी किसान आंदोलन और किसान महापंचायतों में शामिल हुयीं।  मेवात में साम्प्रदायिक उन्माद की साजिशों के खिलाफ जनता को एकजुट किया।  

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)

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