Thursday, March 28, 2024

टीआरपी घोटाला: तो इस तरह पहले पायदान पर पहुंचा था रिपब्लिक टीवी

टीआरपी घोटाला में सीनियर टीवी पत्रकार और रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ अर्णब गोस्वामी के न्यूज चैनल पर गड़बड़झाले का आरोप पुलिस ने दोहराया है। शुक्रवार को शहर के ज्वॉइंट कमिश्नर (क्राइम) मिलिंद भारंबे ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान बताया कि रेटिंग्स के साथ खिलवाड़ किया गया था। ऐसा इसलिए किया गया, ताकि अंग्रेजी खबरिया चैनल टाइम्स नाऊ को शीर्ष पायदान से दूसरे नंबर पर लाया जा सके और रिपब्लिक टीवी नंबर-1 बन सके।

अफसरों के हवाले से अंग्रेजी अखबार TOI की खबर में कहा गया कि इसी तरह अन्य न्यूज चैनल सीएनएन-न्यूज़ 18 (जो पहले सीएनएन –आईबीएन था) को भी दूसरे स्थान से घसीट कर तीसरे पर लाया गया। भांबरे के अनुसार, टाइम्स नाऊ नंबर-1 चैनल था, पर 2017 में रिपब्लिक टीवी के लॉन्च होने के हफ्ते भर के अंदर, BARC (ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल) ने ‘साठ-गांठ’ कर टाइम्स नाऊ को नंबर-2 और सीएनएन-न्यूज 18 को तीसरे पायदान पर पहुंचा दिया।

भांबरे ने कहा कि इसी साल जून में जब थर्ड पार्टी से फॉरेंसिक ऑडिट कराया, तब यह गड़बड़ी सामने आई। पर जो चीजें उसमें सामने आई थीं, वे पुलिस के साथ साझा नहीं की गईं। कुछ महीने पहले मामले में जांच शुरू की गई और अक्तूबर में एफआईआर भी दर्ज की गई। 44 हफ्तों तक अंग्रेजी और तेलुगू चैनलों की डिटेल में ऑडिटिंग हुई, जबकि कुछ एंटरटेनमेंट चैनल्स भी रडार पर रहे। इस दौरान बड़े स्तर पर टीआरपी में गड़बड़ी की बात सामने आई।

भांबरे ने कहा कि टीआरपी रेटिंग्स तो पहले से ही तय रहती थीं और सबसे अधिक टीआरपी कुछ चुनिंदा चैनल्स की रहती थी। व्यूवरशिप डेटा के साथ तीन तरीकों से खिलवाड़ किया जाता था।

यह भी बताया गया कि उसे मामले में वॉट्सऐप चैट्स और ईमेल्स भी मिले हैं, जो बार्क कर्मचारियों के बीच के हैं। इन चैट्स और मेल्स में इस बात पर चर्चा की गई है कि आखिर कैसे टीआरपी के साथ छेड़खानी की जाए। ऐसे ही एक चैट का हवाला देते हुए भांबरे बोले- टाइम्स नाऊ के इंप्रेशंस में दुनिया भर में तेजी से गिरावट आई है, जबकि रिपब्लिक टीवी के इंप्रेशंस में कोई बदलाव नहीं आया है।

गौरतलब है की टाइम्स नाऊ वही चैनल है, जिसमें कभी (रिपब्लिक टीवी लॉन्च होने से पहले) अर्णब अहम भूमिका में नजर आते थे। मौजूदा समय में टाइम्स नाऊ टाइम्स ग्रुप का हिस्सा है, जबकि बार्क इंडिया टीवी चैनलों की व्यूवरशिप मापता है। यह चीज प्रसारकों के लिए खासा अहम हो जाती है, क्योंकि यह विज्ञापन को प्रभावित करती है।

टीआरपी घोटाला मामले की जांच में बड़ा खुलासा हुआ है। क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट (सीआईयू) को बार्क के सर्वर से मिले सबूत से बड़ी साजिश का भंडाफोड़ किया गया है। टाइम्स नाऊ को जान बूझकर नंबर 1 से नंबर 2 किया गया और रिपब्लिक टीवी को अवैध तरीके से नंबर वन बनाया गया।

फर्जी टीआरपी केस की जांच कर रही क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट ने गुरुवार को ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (BARC) के पूर्व CEO पार्थ दासगुप्ता को गिरफ्तार किया था। पिछले पखवाड़े में BARC के सीओओ रोमिल रामगढ़िया को अरेस्ट किया गया था। दोनों के खिलाफ क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट को बार्क के सर्वर से महत्वपूर्ण सबूत मिले हैं।

पार्थ दासगुप्ता को शुक्रवार को किला कोर्ट में पेश किया गया, जिसके बाद मैजिस्ट्रेट ने उन्हें 28 दिसंबर तक क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट की कस्टडी में भेज दिया। पार्थ दासगुप्ता के साथ सीओओ रोमिल रामगढ़िया ने कुछ महीने पहले बार्क से इस्तीफा दे दिया था।

पार्थ दासगुप्ता साल 2013 से 2019 तक बार्क से जुड़े रहे। उनके कार्यकाल में कई बार टीआरपी में हेरफेर के कई आारोप लगे थे। बाद में बार्क के वर्तमान प्रशासन ने थर्ड पार्टी से फरेंसिक ऑडिट करवाने का फैसला किया। उस ऑडिट की रिपोर्ट जुलाई 2020 में बार्क को भेज दी गई थी। वह रिपोर्ट क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट को पिछले सप्ताह मिली है।

दरअसल टीआरपी के साथ मूल रूप से तीन तरह से हेरफेर की गई। आउटलेयर मेथड, मैटा रूल और चैनल ऑडियंस कंट्रोल। आउटलेयर मेथड क्या होता है, सीआईयू के एक अधिकारी ने विस्तार से समझाया। जैसे, जिस घर में बैरोमीटर लगा है, उस घर में एक ही चैनल 8 घंटे, 10 घंटे, 12 घंटे देखा जा रहा है। उनका आउटलेयर डेटा बताता है कि यह डेटा संदिग्ध है। नियम यह है कि ऐसे डेटा को टीआरपी मांपते समय हटा देना चाहिए, लेकिन बार्क से जुड़े आरोपियों ने वह डेटा हटाया नहीं।

इसके पहले उच्चतम न्यायालय ने रिपब्लिक टीवी की उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें चैनल ने 1922 के पुलिस एक्ट को चुनौती देते हुए मुंबई पुलिस द्वारा अक्तूबर में दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई थी। चैनल ने इस एक्ट को अंग्रेजों को जमाने का कानून बताया था। न्यायालय ने इस याचिका को यह कहते हुए खारिज किया कि इसे वापस लेना माना जाए और याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट जाने की छूट है। उच्चतम न्यायालय ने टिप्पणी की कि मामला महाराष्ट्र का है इसलिए उच्चतम न्यायालय इसे वापस लिए जाने के आधार पर खारिज करते हुए रिपब्लिक टीवी को हाईकोर्ट जाने की अनुमति देता है।

 (वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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