Saturday, April 27, 2024

जेएनयूः जिंदा रहने के लिए है यह लड़ाई

जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी, दिल्ली (जेएनयू) के छात्रों की मुक्तिगामी आवाज और तानाशाही सत्ता का दमन जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के छात्र एक बार फिर दिल्ली की सड़कों पर अपना खून दबी-कुचली आवाम की शिक्षा के लिए बहा रहे हैं। एक बार फिर से भारतीय तानाशाही सत्ता को ललकारते हुए गीत गा रहे हैं… ‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजु-ऐ-कातिल में है।’

जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी जो पिछले कई दशकों से हिंदुस्तान में ही नहीं पूरे विश्व में साम्राज्यवादी सत्ताओं और उनकी अंधी श्रम और प्राकृतिक संसाधनों की लूट के खिलाफ विपक्ष की भूमिका निभाती आ रही है। इसी विपक्ष को खत्म करने के लिए विश्व की साम्राज्यवादी सत्ता और उनकी सहयोगी भारत की सत्ता और दलाल नौकरशाही जेएनयू को मिटाने के लिए साम-दाम-दण्ड-भेद सभी हथकंडे अपनाए हुए हैं।

इसीलिए सत्ता के चौतरफे हमले जेएनयू पर जारी हैं। जेएनयू को बदनाम करने के लिए हिंदुत्त्ववादी खेमा दिन-रात झूठा प्रचार जारी रखे हुए है। बीजेपी विधायक द्वारा जेएनयू में हजारों कंडोम मिलने की झूठी खबर हो या जेएनयू को देशद्रोही, आतंकवादीयों का अड्डा साबित करने के लिए सोशल मीडिया से लेकर मेन स्ट्रीम का मीडिया दिन-रात झूठे प्रचार में लगे रहते हैं। जेएनयू छात्रों के खिलाफ झूठे वीडियो रोजाना फासीवादी संगठनों के आईटी सेल से जारी किए जाते हैं। जेएनयू छात्रों के अंदर डर बैठाने के लिए नजीब को फासीवादी खेमे ने गायब कर दिया। उन्हें आज तक भारतीय प्रशासन ने नहीं ढूंढा। जेएनयू छात्रों पर झूठे मुकदमे भी सत्ता द्वारा प्रायोजित था।

जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी अपने आप में एक अदभुत जगह है। इस कैंपस में विश्व में पाने वाली सभी विचारधाराएं मानने वाले छात्र आपको मिल जाएंगे। उन सभी छात्रों को अपनी बात कहने का पूरा अधिकार ईमानदारी से ये कैंपस उपलब्ध करवाता है। सबको समानता का अधिकार कहीं देखने को मिलता है तो सिर्फ जेएनयू में ही मिल सकता है। भारत की लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों में यहां के छात्र प्रमुख भूमिका निभाते मिल जाएंगे। इसके साथ ही नौकरशाही में देश-विदेश में जेएनयू के छात्र खास भूमिका निभा रहे है। जेएनयू ही है, जिसमें एक गरीब मजदूर-किसान, आदिवासी, दलित, मुस्लिम का बच्चा पढ़ सकता है और बिना किसी जातीय, धार्मिक, इलाकाई भेदभाव को झेलते हुए अपनी शिक्षा पूरी कर सकता है। जेएनयू ही है जो शिक्षा के साथ-साथ छात्रों को जनतांत्रिक, मानवीय मुद्दों पर परिपक्व बनाती है।

छात्र चुनाव जितना जनतांत्रिक तरीके से होता है वो देश के किसी भी यूनिवर्सिटी में नहीं होता है। जेएनयू कैंपस में महिला, दलित, आदिवासी, पहाड़ी, पूर्वोत्तर, समलैंगिक, गे, थर्ड जेंडर सबको एक इंसान की तरह देखने और उनके साथ इंसान जैसा व्यवहार करने के कारण ही जेएनयू समाज के हाशिये पर रही आवाम के लिए जन्नत है। इसके विपरीत आमानवीय फासीवादी ताकतों की आंख की किरकिरी बनी हुई है। इसलिए भारत की वर्तमान फासीवादी सत्ता हो या इससे पहले की कांग्रेसी सत्ता हो, क्यों जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी को खत्म करना चाहती है? क्यों लम्बे समय से जेएनयू के खिलाफ एक सुनियोजित झूठा प्रचार किया जा रहा है?

इसको जानने के लिए जेएनयू को जानना, जेएनयू की आबो-हवा को जानना और जेएनयू की उस क्रांतिकारी विरासत को जानना जरूरी है जिसका आधार ही अन्याय के खिलाफ, न्याय के लिए एक लोकयुद्ध है। देश के अंदर हजारों साल से अन्याय के खिलाफ मेहनतकश वाम मजबूती से संघर्ष करती आ रही है। इस संघर्ष को अलग-अलग समय पर अलग-अलग प्रगतिशील शिक्षण संस्थान के अध्यापक और छात्र एक सही दिशा देते रहे हैं। इन शिक्षण संस्थानों के छात्रों ने मेहनतकश आवाम के  संघर्षों को नेतृत्व प्रदान किया है।

आजादी के आंदोलन में लाहौर का नेशनल कॉलेज, जिसके छात्र-अध्यापक आजादी की लड़ाई को एक नई दिशा और नेतृव दे रहे थे। इस कॉलेज के माहौल में ही भगत सिंह, सुखदेव और उनके साथी क्रांतिकारी बने। उन्होंने भारत की आजादी ही नहीं विश्व के मेहनतकश आवाम की आजादी का नक्शा आवाम के सामने पेश किया। ऐसी ही जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी, जिसने आजादी के बाद विश्व की साम्राज्यवादी ताकतों और उनकी दलाल भारतीय नौकरशाही और भारतीय सत्ता के खिलाफ हर मौके पर आवाज बुलंद की। साम्राज्यवादी अमरीका और उसके साझेदार मुल्कों द्वारा चाहे वियतनाम युद्ध हो या उसके बाद के एशिया महाद्वीप के खाड़ी देशों पर तेल पर कब्जे के लिए अफगानिस्तान, ईराक, ईरान, लीबिया, सीरिया, फिलीस्तीन को उजाड़ने के लिए थोपे गए युद्ध हों या अमरीकी ओर अफ्रीकी महाद्वीप के देश हों, जहां अमरीका अपनी लूट जारी रखने के लिए दमनकारी कार्यवाहियों को अंजाम दे रहा था। जेएनयू ने आगे बढ़कर कर सभी का मजबूती से विरोध किया।

देश की सत्ता ने जब भी देश के किसानों पर अत्याचार किया तो किसानों के पक्ष में जेएनयू से आवाज आई। देश की सत्ता ने जब भी मजदूरों पर गोलियां चलवाईं जेएनयू से विरोध की लहर उठी। सामंतों ने जब भी जातीय आधार पर दलितों को मारा चाहे वो बिहार हो, उतर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल हो या चाहे हरियाणा हो, दलितों के पक्ष में कौन खड़ा मिला, जेएनयू।

आज सत्ता में विराजमान फासीवादी पार्टी बीजेपी जिसका आधार ही सांप्रदायिक राजनीति है, जिसने अलग-अलग समय पर जातीय और धार्मिक दंगे करवाए हैं। मुंबई, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, जहां अल्पसंख्यको का कत्लेआम किया गया। इस कत्लेआम के खिलाफ बोलने वाली ताकत अगर कोई थी तो जेएनयू थी।

पूरे देश मे छेड़खानी से लेकर बलात्कार के खिलाफ और महिला सुरक्षा के लिए लड़ने वाले छात्र जेएनयू से ही थे।

रंग लहू का तब भी लाल था,

रंग लहू का अब भी लाल है।

दुश्मन तब भी सामराज था,

दुश्मन अब भी सामराज है।।

हमने जब छात्र राजनीति में एबीसीडी सीखने के लिए कदम रखा। उस समय देश और विश्व की प्रत्येक घटना पर हमारा यानी प्रगतिशील आंदोलन का क्या स्टैंड रहे। इसके लिए देश का प्रगतिशील आंदोलन दो संस्थानों की तरफ मुंह बाए देखता था। जवाहर लाल यूनिवर्सिटी और हिंदी समाचार पत्र जनसत्ता। इन दोनों की दिशा से देश का प्रगतिशील आंदोलन सही और गलत को परख कर अपनी दिशा तय कर लेता था।

2014 में देश के अंदर लोकतंत्र के रास्ते फासीवादी विचारधारा देश की सत्ता पर काबिज हो गई। उनके सत्ता में बैठते ही भारत का क्रांतिकारी समाचार पत्र जनसत्ता फासीवादी सत्ता के सामने नतमस्तक हो गया, लेकिन जेएनयू ने पहले से भी ज्यादा उत्साह के साथ मजबूती से फासीवादी सत्ता के खिलाफ आवाज को बुलंद किया। फासीवादी पार्टी के सत्ता में बैठते ही उसके संघठनों ने गाय-गोबर के नाम पर जैसे ही मुस्लिमों को मारने का अभियान चलाया तो जेएनयू ने विरोध में हुंकार भरी। प्रगतिशील लेखकों, कलाकारों, नाटककारों, फिल्मकारों, पत्रकारों पर जब हमले हुए तो उनके साथ मजबूती से जेएनयू के हजारों छात्र खड़े हुए  और उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए लड़े भी।

सत्ता ने जब-जब अपने फासीवादी एजेण्डे और जनविरोधी नीतियों को लागू करने के लिए कदम बढ़ाए जेएनयू ने मजबूती से उनका विरोध किया। सता द्वारा आरक्षण को खत्म करने, निजीकरण करने, देश के जल-जंगल-जमीन को कार्पोरेट के हवाले करने के खिलाफ अगर कोई मजबूती से खड़ा है तो सिर्फ जेएनयू ओर उसके छात्र ही हैं। लोकतंत्र का गला घोंट कर जम्मू-कश्मीर के जनतांत्रिक अधिकारों को छीना गया तो जेएनयू ने कश्मीरी आवाम के साथ खड़े होकर ये संदेश दिया कि देश के किसी हिस्से के जनतांत्रिक अधिकार छीने जाएंगे तो हम इसका विरोध करेंगे। आज देश की मेहनतश अवाम को भी अपने जनतांत्रिक अधिकारों और भविष्य को बचाए रखने के लिए जेएनयू और वहां के छात्रों के पक्ष में मजबूती से आवाज बुलंद करनी जरूरी है।

जवाहर लाल यूनिवर्सिटी की आबो-हवा, जिसमें क्रांति, विद्रोह की चिंगारियां तैर रही हैं, जिसको जितना दबाने की कोशिश की जाएगी ये उतने जोश से उठेगी। खुद भी उठेगी और पीड़ित आवाम को भी उठाएगी।

तू कर संग्राम ऐ साथी

घड़ी संकट की आई है

न फौजों की न सरहद की

ये जीने की लड़ाई है

उदय चे

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और हिसार में रहते हैं।)

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