Friday, March 29, 2024

पीएम मोदी का संकट गहराया, फ्रांस में होगी राफेल डील की न्यायिक जांच

भारत के साथ करीब 59,000 करोड़ रुपये के राफेल सौदे में कथित भ्रष्टाचार और पक्षपात की अब फ्रांस में न्यायिक जांच होगी और इसके लिए एक फ्रांसीसी जज को नियुक्त किया गया है। क्या तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की आँखें खुलेंगी कि जिस राफेल घोटाले को उन्होंने न्यायिक म्रत्युदंड दे दिया था वह फ़्रांस में उसी तरह जिंदा है जैसे स्वीडन में बोफोर्स जिंदा था।  

दरअसल यूपीए 2 की तरह मोदी सरकार का दूसरा कार्यकाल बहुत भारी पड़ रहा है। एक के बाद एक ऐसे मामलों की परतें खुल रही हैं जिन्हें राष्ट्रवाद के छद्म और उच्चतम न्यायालय के कथित प्रतिबद्ध चीफ जस्टिसों की मेहरबानी से कालीन के नीचे दबा दिया गया था। देश में कोरोना महामारी से निपटने में मोदी सरकार की विफलता, बैंकों की लूट, खर्चा चलाने के लिए पेट्रोल डीजल रसोई गैस पर टैक्स की मार से भीषण मंहगाई, अर्थव्यवस्था की सर्वकालिक दुरावस्था और ऋणात्मक जीडीपी के बीच कोढ़ में खाज राफेल डील घोटाले के जिन्न का बोतल से एक बार फिर बाहर निकलना। राफेल सौदे की जांच को लेकर फ्रांस सरकार ने बड़ा कदम उठाया है।

एक फ्रांसीसी ऑनलाइन जर्नल मीडियापार्ट की एक रिपोर्ट ने ये जानकारी दी है। मीडियापार्ट ने कहा है कि 2016 में हुई इस इंटर गवर्नमेंट डील की अत्यधिक संवेदनशील जांच औपचारिक रूप से 14 जून को शुरू की गई थी। इसमें कहा गया कि शुक्रवार को फ्रांसीसी लोक अभियोजन सेवाओं की वित्तीय अपराध शाखा  द्वारा इस बात की पुष्टि की गई।

फ्रांसीसी वेबसाइट ने अप्रैल 2021 में राफेल सौदे में कथित अनियमितताओं पर कई रिपोर्टें प्रकाशित की थीं। उन रिपोर्टों में से एक में  मीडियापार्ट ने दावा किया कि फ्रांस की सार्वजनिक अभियोजन सेवाओं की वित्तीय अपराध शाखा के पूर्व प्रमुख, इलियाने हाउलेट ने सहयोगियों की आपत्ति के बावजूद राफेल जेट सौदे में भ्रष्टाचार के कथित सबूतों की जांच को रोक दिया। इसने कहा कि हाउलेट ने फ्रांस के हितों, संस्थानों के कामकाज को संरक्षित करने के नाम पर जांच को रोकने के अपने फैसले को सही ठहराया।

 राफेल डील पर फ्रांस में 14 जून से जांच शुरू हो गई है। फ्रांस की पब्लिक प्रॉसिक्यूशन सर्विस (पीएनएफ) के मुताबिक जांच के लिए एक जज की नियुक्ति की गई है। मीडियापार्ट के मुताबिक पीएनएफ ने कहा है कि डील में भ्रष्टाचार के अलावा पक्षपात के आरोप की भी जांच की जाएगी। फ्रांस में काम करने वाले एनजीओ शेरपा ने 2018 में जांच के लिए शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके बाद मीडियापार्ट ने इस मामले पर लगातार रिपोर्ट प्रकाशित की थी। हालांकि, उस समय पीएनएफ ने जांच की मांग को खारिज कर दिया था। लेकिन अब पीएनएफ के नए प्रमुख जीन-फ्रेंकोइस बोहर्ट ने जांच को मंजूरी दे दिया है।

आपराधिक जांच तीन लोगों के आसपास के सवालों की जांच करेगा। इसमें पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद, जो सौदे पर हस्ताक्षर किए जाने के समय पद पर थे, वर्तमान फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन, जो उस समय हॉलैंड की अर्थव्यवस्था और वित्त मंत्री थे और विदेश मंत्री जीन-यवेस ले ड्रियन, जो उस समय रक्षा विभाग संभाल रहे थे शामिल हैं। फ्रांस और भारत के बीच राफेल फाइटर प्लेन की खरीदी के लिए 7.8 बिलियन यूरो (59,000 करोड़ रु.) की डील की गई थी।

जांच के घेरे में अनिल अंबानी की भूमिका का आना तय माना जा रहा है। अनिल अंबानी के रिलायंस समूह द्वारा निभाई गई केंद्रीय भूमिका को देखते हुए, 36 विमानों के सौदे में डसॉल्ट के भारतीय भागीदार- जांच में दोनों कंपनियों के बीच सहयोग की प्रकृति की भी जांच होने की संभावना है। राफेल के बाद, निष्क्रिय अनिल अंबानी कंपनी में डसॉल्ट निवेश ने रिलायंस को 284 करोड़ रुपये का लाभ दिया। राफेल सौदे के हिस्से के रूप में अनिल अंबानी के साथ एक संयुक्त उद्यम में अपने छोटे निवेश के साथ किसी भी प्रचार के बिना, फ्रांसीसी फर्म ने अनिल अंबानी की रिलायंस कंपनी में 35 फीसद हिस्सेदारी के लिए लगभग 40 मिलियन यूरो का भुगतान किया था।

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के सार्वजनिक रूप से 10 अप्रैल, 2015 को घोषित निर्णय से पता चला था कि भारत और डसॉल्ट के बीच आधिकारिक तौर पर 126 राफेल जेट की खरीद और निर्माण के पहले सौदे को रद्द कर दिया गया और नये सिरे से 36 लड़ाकू विमानों की एकमुश्त खरीद शर्तों पर बातचीत की जा रही थी। उस समय भारत के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर अंत तक मोदी के फैसले से अनजान थे, लेकिन अब ऐसा लगता है कि अनिल अंबानी को इसकी भनक लग गई थी क्योंकि डसॉल्ट और अनिल अंबानी की कंपनी के बीच पहला समझौता ज्ञापन वास्तव में 26 मार्च, 2015 को हस्ताक्षरित किया गया था।

समझौता ज्ञापन डसॉल्ट और रिलायंस, दोनों कंपनियों के बीच “कार्यक्रम और परियोजना प्रबंधन”, “अनुसंधान और विकास”, “डिजाइन और इंजीनियरिंग”, “असेंबली और निर्माण”, “रख रखाव” और “प्रशिक्षण” को शामिल करने के लिए “संभावित संयुक्त उद्यम” की अनुमति दी। हालांकि डसॉल्ट अभी भी 126 राफेल के मूल अनुबंध के निष्पादन के लिए हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ बातचीत कर रहा था, लेकिन नया समझौता ज्ञापन एचएएल के साथ किसी भी जुड़ाव या भागीदारी के बारे में चुप था।

मीडियापार्ट ने डसॉल्ट एविएशन और अनिल अंबानी की रिलायंस के बीच हस्ताक्षरित साझेदारी अनुबंध के नए विवरणों का भी खुलासा किया है, जिसने 2017 में नागपुर के पास एक औद्योगिक संयंत्र के निर्माण के लिए डसॉल्ट रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड नामक एक संयुक्त उद्यम कंपनी बनाई गयी थी।

दरअसल वर्ष 2016 में भारत सरकार ने फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने की डील की थी। इनमें से एक दर्जन विमान भारत को मिल भी गए हैं और 2022 तक सभी विमान मिल जाएंगे। जब ये डील हुई थी, तब भी भारत में काफी विवाद हुआ था। यह मामला उच्चतम न्यायालय में भी गया था, लेकिन तत्कालीन चीफ जस्टिस ने एक ओर कहा था कि आर्टिकल 32 के तहत कोर्ट इस पर विचार नहीं कर सकता और दूसरी ओर अपने फैसले में इस डील की मेरिट पर प्रकारांतर से पुष्टि भी कर दी थी।

यह सौदा भारत और फ्रांस में गहन राजनीतिक जांच के दायरे में आया, जब विपक्ष ने आरोप लगाया कि अनिल अंबानी के स्वामित्व वाली रिलायंस डिफेंस को हथियार निर्माता डसॉल्ट एविएशन द्वारा ऑफसेट पार्टनर के रूप में हस्ताक्षरित किया गया था, जबकि कंपनी के पास कोई अनुभव नहीं था।

लोकसभा चुनाव से पहले राफेल लड़ाकू विमान की डील में भ्रष्टाचार के मसले पर कांग्रेस ने मोदी सरकार पर निशाना साधा था। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने यूपीए शासन के दौरान बातचीत की तुलना में बहुत अधिक कीमत पर फ्रांस के साथ अनुबंध पर हस्ताक्षर किए। राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेताओं ने मांग की कि सरकार को राफेल की कीमत का खुलासा करना चाहिए। अभी तक राफेल की कीमत का खुलासा नहीं हो पाया है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कुछ महीनों पहले दावा किया कि राफेल सौदे में 21,075 करोड़ रुपए का भ्रष्टाचार हुआ है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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