शहीद भगत सिंह की बहन बीबी अमर कौर ही उनके सभी भाई बहनों में उनकी सबसे अच्छी राजनीतिक दोस्त थी। वे उनसे तीन साल छोटी थी। 9 साल की उम्र में भगत सिंह के साथ जलियांवाला बाग के शहीदों की मिट्टी की पूजा करने से लेकर जवानी में रात को अपने तीनों शहीद भाइयों के अधजले टुकड़े लाने से लेकर फिर बुढ़ापे में भी जनता के हकों के लिए पूरी राजनीतिक सक्रियता से काम करने वाली बीबी अमर कौर 1984 में हमें छोड़ गई।
बीबी अमर कौर पर अमोलक सिंह ने पंजाबी भाषा में एक पुस्तक लिखी है जिसका हिंदी अनुवाद प्रकाशित होने वाला है। उसी पुस्तक पर आधारित शहीद बीबी अमर कौर के शब्द सबूत हैं कि वो भी भगत सिंह के विचारों वाला वैज्ञानिक समाजवाद, मजदूर राज बनाना चाहती थी।
शहीद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के संसद भवन में पर्चे फेंकने के ठीक 54 साल बाद अमर कौर ने भी उसी संसद में यह पर्चा फेंका था ।
(आज उस संसद में भगत सिंह की आत्मा काले अंग्रेज यानि टाटा बिरला अंबानी अडानी के वफादार मजदूर मोदी को डरा रही है। कारण 1929 के अंग्रेजो के ट्रेड डिस्प्यूट बिल की तरह ही मजदूर विरोधी 4 काले कानून मोदी संसद में पास करा रहे हैं। इसीलिए बीस हजार करोड़ रूपए खर्च कर नई संसद बनाई गई है।)
पेश है बीबी अमर कौर द्वारा 8 अप्रैल,1983 को फेंका गया पैंफलेट…
“मैं भारतीय लोगों की बुरी हालत जनतांत्रिक अधिकारों की घोर दुर्दशा और सबसे बढ़कर काले कानून ठोकने के खिलाफ अपना सख्त विरोध और रोष प्रकट करने के लिए आई हूं। अपने क्रांतिकारी भाइयों को आज के दिन सलाम करते हुए मैं सभी देशभक्त, लोकतंत्र में यकीन रखने वाले, न्याय पसंद लोगों खासकर नौजवानों का आह्वान करती हूं कि वह निडरता से आगे बढ़े और सच्चे अर्थों में आजाद और लोकतांत्रिक समाजवादी समाज बनाने के लिए आगे बढ़े। ऐसा समाज जो शहीदों के सिद्धांतों के अनुसार रचा जाए।”
15 अगस्त 1983 को बीबी अमर कौर का मेहनती लोगों के नाम संदेश….
“आज जो कोई भी धर्म, जाति पाति, फिरकापरस्ती के नाम पर लोगों को बांटता है वह इस धरती की पवित्रता, शहीदों के आजादी समतावादी समाज और आदमी के हाथों आदमी की लूट खत्म करने वाले सुखदायक सिद्धांतों के साथ खेलता है। अतः मेरे मेहनती जागृत देशवासियों ! अब जागो संगठित होकर हमला करो और इस तरह अपनी हिम्मत को जिंदा करो जो इस डरावने माहौल में तुम्हें बुजदिल बना रही है। शहीदों के विचार के अनुसार मनुष्य के हाथों मनुष्य की लूट खत्म करने, मजदूरों की आजादी और बराबरी प्राप्त करने के लिए जितनी जल्दी संगठित हो सकते हो, हो जाओ। अपनी रक्षा आप ही करो। तुम्हीं पर भविष्य का भार है। तुम ही भविष्य की उम्मीद हो। 15 अगस्त आजादी के आज के दिन को अपनी आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक मुक्ति का दिन बना डालो। कसम उठाओ।”
शुभकामनाओं के साथ
बीबी अमर कौर।
वैसाखी की त्यौहार पर संदेश…
” आज लोग आर्थिक मंदी के शिकार हैं, नौजवान बेरोजगार हैं। 1947 में 35 करोड़ लोग आजाद हुए और आज 35 करोड लोग भूख से तड़पते हैं। फिर मैं सोचती हूं कि समाज में पक्षपात भी है अन्याय भी है जुल्म भी है। पर यह सब जुल्म है मेहनती लोगों, मजदूर, किसान , छोटी नौकरी वालों और छोटे छोटे धंधे वाले दुकानदारों धंधे वालों पर ही। पर समाज में इनकी कोई संगठित आवाज नहीं है।”
कुछ और संदेश( 22 मार्च 1982)…
“शहीदों की शहादत के पचासवें साल के समारोह की आड़ में वैसे ही ( अंग्रेजो की तरह के) काले कानून नाम बदल के पास किए गए हैं। दूसरी राजनैतिक पार्टियां भी विरोध का नाटक करके चुप बैठी रहती हैं। क्या यह सब राजनैतिक व्यवस्था भगत सिंह की विचारों को कत्ल करने और उन देश की सपूतों की दुबारा हत्या करने का प्रयास नहीं है ?
मुझे बहुत दुख से कहना पड़ता है जब गरीब लोगों के सिर पर काले कानूनों का आरा चल रहा है तो घोर पाखंडी विनोबा भावे को गरीब जनता की बजाए गौ हत्या रोकने की बात सूझ रही है।
क्या वह चाहते हैं कि इस देश में जनता ना रहे केवल ये गाय रहें । वह भी ऐसी जो सिर भी ना हिलाएं। चुप करके भूखी मरें या सुखी परालियां खाएं। गरीब किसान मजदूर की मेहनत रूपी दूध को कुछ मोटे मोटे पूंजीपति पी जायें? “
वसीयतनामा : एक संदेश…
“वैसे तो मैंने सारा जीवन अपनी समझ से ऐसे जिया है जिसमें मैंने कोशिश की है कि मैं अपने शहीद भाईयों की बहन कहला सकने की हकदार बनी रहूं। हो सकता है मैं किसी कठोर परीक्षा में पूरी ना उतर सकी हूं। मुझे इस चीज की खुशी है कि मैंने अपने लिए या अपने नजदीकी रिश्तेदारों के लिए कोई भी लाभ नहीं उठाया है।इसके लिए मैं अपनी औलाद की शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने अपनी मेहनत पर ज्यादा यकीन किया है और कोई लाभ उठाने के लालच से अपने आप को बहुत दूर रखा है। लोग मुझसे एक सवाल करते हैं कि क्या भगत सिंह के सिद्धांतों को अपनाने वाला और लोक सेवा करने के लिए खानदान में कोई और बच्चा है? मैंने अपने एक लड़के को इस काम के लिए तैयार किया है और समाज के लोगों की जरूरत उसको बताती रही हूं। मुझे तसल्ली है कि उसने मेरी उम्मीद को पूरी करने के लिए मेहनत की है ( नाम लिए बगैर 40 वर्षों से इसी काम में लगे वर्तमान में लुधियाना में रहने वाले रिटायर्ड प्रोफेसर जगमोहन सिंह की बात कर रही हैं)”
….” शहीदों के सिद्धांतों को कैसे फेंक दिया गया है। मुझे बहुत दुख है कि संसद भवन तो एक कबूतरखाना बन गया है। जहां न कोई गंभीर बहस होती है न कोई लोगों के दुखों की बात करता है, ना किसी के चेहरे पर शिकन होती है । एक आदमी बात करता है तो दूसरा शोर करके उसे चुप करा देता है। लोगों का प्रतिनिधित्व न करके संसद तो एक चिड़ियाघर नजर आती हैएफ के लिए संसद गई थी।”
इस लंबी वसीयत में बीबी अमर कौर ने अपनी मृत्यु के उपरांत कोई भी धार्मिक पाठ न करने की इच्छा व्यक्त की थी। दूसरी इच्छा यह थी कि वे सड़ी गली परंपरा के खिलाफ जाएं और उनकी अर्थी को उठाने वालों में एक दलित जाति का भाई भी शामिल हो। इच्छा यह भी थी कि उनकी राख भारत के ही नहीं भारत-पाकिस्तान के बॉर्डर हुसैनीवाला में उसी सतलुज में प्रवाहित की जाए जहां भाई आए थे । बीबी अमर कौर के लिए भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश कभी तीन देश नहीं रहे। वे कहती हैं मैं एक साझा बहन हूं।