Wednesday, April 24, 2024

बंगाल का युद्ध भी मोदी हार ही गए

मोदी जी, आज दो मई है और दीदी वही हैं! जो रुझान सामने आया है अब तक उससे साफ़ है बंगाल का चुनावी युद्ध भी मोदी हार रहे हैं। तीन लाख से ज्यादा कार्यकर्ताओं की फौज के साथ मोदी ने बंगाल पर चढ़ाई की थी। वे चुनाव नहीं युद्ध लड़ रहे थे। साम, दाम, दंड, भेद क्या बचा था। समूची पार्टी को बंगाल में झोक दिया था। सट्टा बाजार भी उनके साथ खड़ा था तो मीडिया भी कदमताल कर रहा था। पर बंगाल में मजहबी गोलबंदी ध्वस्त हो गई। भाजपा ने तो ‘श्रीराम’ को भी चुनावी दांव पर लगा दिया था पर कुछ काम नहीं आया। बांग्ला अस्मिता और बांग्ला भाषा भारी पड़ी। जात धर्म कुछ नहीं चला। मां काली को पूजने वाले बंगाल ने स्त्री अस्मिता की वोट से रक्षा ही नहीं कि बल्कि महाबली को भाषा की मर्यादा भी सीखा दी। ममता बनर्जी ने एक पैर से ही समूचा बंगाल जीत लिया है। ध्यान रखें आज दो मई है। याद है न, दो मई-दीदी गई। बंगाल में कौन गया यह देश ने देख लिया। दाढ़ी बढ़ा कर कोई टैगोर नहीं बन जाता न ही धोती पहन कर गांधी बना जा सकता है। दीदी तो नहीं गई पर साहब नाक तो कट ही गई है।


मोदी ने इसी बंगाल के लिए तो समूचे देश को दांव पर लगा दिया था। इसके चलते ही देश की बड़ी आबादी कोरोना की भेंट चढ़ गई, पर मिला क्या? कितनी सीट? क्या इसी के लिए समूचा देश दांव पर लगा दिया गया था। ऐसा नहीं है कि मोदी पहले नहीं हारे। पहले भी हारे क्षेत्रीय क्षत्रपों से हारे। छतीसगढ़ में भूपेश बघेल से हारे। राजस्थान में अशोक गहलोत से हारे, पंजाब में अमरिंदर सिंह से हारे तो मध्य प्रदेश में कमलनाथ से हार चुके है। दिल्ली की नगरपालिका जैसी विधानसभा में वे केजरीवाल से भी हार चुके है। यह कुछ उदाहरण उनके लिए जो मोदी को बाहुबली मान चुके है। और दूसरी तरफ ममता ने एक पैर से बंगाल फिर जीत लिया मोदी को परास्त कर दिया। याद है न मोदी ने क्या कहा था दो मई- दीदी गई। पर चले गए खुद मोदी जो सत्ता के अहंकार और कारपोरेट के दबाव में पूरी तरह डूब चुके है। यह बड़ा सबक है जिसकी कीमत पूरे देश ने दी है। उत्तर भारत के कई शहर के शमशान का दायरा बढ़ गया है। अस्पताल में जगह नहीं है, आक्सीजन नहीं है। बाजार से दवा गायब है। यह सिर्फ इसलिए कि जब सरकार को कोरोना के मोर्चे पर लड़ना था तो उसका मुखिया बंगाल के गाँवों में दीदी ओ दीदी का जुमला बोल रहा था। खेला खत्म, दीदी गई बोल रहा था। लाखों की रैलियां वह भी बिना मास्क और कोविड प्रोटोकाल की धज्जियां उड़ाते हुए। और चुनाव आयोग यह सब आँख बंद किए देख रहा था। सत्तापरस्ती में डूबे चुनाव आयोग ने देश को कितना पीछे धकेल दिया है इसका आकलन करने में अभी समय लगेगा।

देश अभूतपूर्व संकट से अगर जूझ रहा है तो उसके पीछे बंगाल के चुनाव की बड़ी भूमिका है। मीडिया ने कितनी घटिया भूमिका निभाई इसका अंदाजा चुनाव बाद एक्जिट पोल के आधार पर बंगाल में भाजपा की सरकार बनाने की भविष्यवाणी करने वाले चैनलों को देखकर लगाया जा सकता है। ये कोई छोटे चैनल नहीं थे टीआरपी के खेल में ये नंबर एक, दो या तीन वाले चैनल थे। इन चैनलों ने कभी अस्पताल, बेड, आक्सीजन, वेंटिलेटर का सवाल उठाया होता तो यह नौबत ही नहीं आती। समूचे देश को मजहबी गोलबंदी में बांटने का जो प्रयास सत्तारूढ़ दल ने किया ये चैनल उसके ढिंढोरची बन कर रह गए। इसलिए देश के इस अभूतपूर्व संकट के लिए सिर्फ सरकार ही नहीं राजा का बाजा बना मीडिया भी जिम्मेदार है। जो बंगाल के चुनाव में पहले दिन से भाजपा को जिताने में जुटा हुआ था। पर फिर भी बंगाल मोदी हार गए यह वास्तविकता है पर इसके साथ ही देश भी एक बड़ी महामारी से हारता नजर आ रहा है। संकट इस बार बहुत ज्यादा गंभीर है। इतना गंभीर कि बड़े लोग देश छोड़कर बाहर जा रहे हैं। विभिन्न राज्यों की शीर्ष अदालतों ने मोर्चा संभाल लिया है। अब तो प्रधानमंत्री को कुछ दिन प्रचार से दूर रहकर देश को बचाने का प्रयास करना चाहिए।

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