कृषि कानून नहीं, यह मोदी की अडानी-अंबानी को 62 लाख करोड़ की सौगात है!

मोदी सरकार किसानों को व्यापारी बनाने का नाम देकर पूंजीपतियों की मैनेजमेंट समिति, बड़े पूंजीपतियों को पूंजी निवेश और बेरोकटोक लाभ कमाने के अवसर प्रदान करने के लिए कृषि क्षेत्र का लगभग 62 लाख करोड़ का व्यापार सोने की तश्तरी में रखकर पूंजीपतियों को अर्पित कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एमएसपी को खत्म न करने की बात कर रहे हैं पर बिल में यह बात मेंशन न होने की वजह से बाहर की मंडियों को फसल की कीमत तय करने की अनुमति देने पर किसान आशंकित हैं।

मोदी सरकार के कार्यकाल की बात करें तो स्थिति साफ हो जाती है कि यह सरकार किसान, मजदूर और युवाओं का भविष्य दांव पर लगाकर कॉरपोरेट घरानों के लिए ही काम कर रही है। चाहे नोटबंदी का मामला हो या फिर कोरोना वायरस के बहाने किए गए लॉकडाउन का, कॉरपोरेट घरानों ने भरपूर फायदा उठाया है। जहां नोटबंदी में इन घरानों ने अपने काले धान को सफेद में बदल लिया वहीं लॉकडाउन के बहाने बड़े स्तर पर छंटनी भी की। साथ ही बचे कर्मचारियों को नौकरी जाने का भय दिखाकर उनका भरपूर शोषण किया जा रहा है। इन कॉरपोरेट घरानों का यही खेल अब किसानों के साथ भी खेले जाने की आशंका जताई जा रही है।

मोदी सरकार जिन किसानों को फायदा पहुंचाने की बात कर रही है, उनसे तो सरकार ने बात करना तक मुनासिब नहीं समझा। हां, किसान कानून बनाने के लिए पूंजपीतियों से बैठक जरूर की। इससे यह पूरी तरह से साफ हो जाता है कि यह कानून किसके लिए लाया जा रहा है। अब केंद्र सरकार मामला राज्यों पर छोड़ने की बात कर रही है, पर अध्याधेश लाने से पहले राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आने वाले कृषि विभाग और मंडी समितियों के मामले में आमूल चूल परिवर्तन करने के लिए किसी भी राज्य से कोई सलाह-मशविरा नहीं किया गया।

यह मोदी सरकार की तानाशाही और किसानों की जमीन हड़पने की नीति ही रही कि राज्यसभा में अल्पमत होने के बावजूद अध्यादेश पास कराने के लिए सरकार ने हर धोखाधड़ी, जैसे जबरदस्ती समय बढ़ाना, विपक्ष के विरोध के शोर को ‘ध्वनि मत’ बताना जैसे हथकंडे अपनाए। कृषि बाज़ार में पूंजी के इस तरह से और बेरोकटोक हमले के बहुत भयानक परिणाम होने वाले हैं। देश के किसानों में जो लघु एवं सीमांत किसान 80 फीसद हैं, उनकी तबाही निश्चित है। ये छोटे किसान जोतों से बेदखल होकर बेरोजगारों की फौज में खड़े हुए पाए जाएंगे। मजबूरन इन्हें शहरों की ओर रुख करना पड़ेगा, जहां पर पहले ही रोजगार खत्म कर दिए गए हैं।

देश के हालात देखिए कि जब कोरोना काल में देश में बड़े स्तर पर छंटनी चल रही हैं। काम कर रहे श्रमिकों का वेतन 50 फीसद तक कम कर दिया गया है। ऐसे में मुकेश अंबानी की संपत्ति हर घंटे 90 करोड़ रुपये की रफ्तार से बढ़ रही है। मतलब जनता की खून-पसीने कमाई को पूंजीपतियों पर लुटाया जा रहा है।

मोदी सरकार के छह वर्ष के कार्यकाल की समीक्षा करें तो यह पाएंगे कि किसान को बस ठगा ही गया है। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मित्रों अडानी और अंबानी को किसान के खेत से मोटा मुनाफा दिलवाने की जुगत पूरी तरह से भिड़ा दी है। ‘कृषि सुधार’ के नाम पर मोदी सरकार जो तीन कानून लाई है, ये कानून उद्योगपतियों को किसान के खेत में पूरा हस्तक्षेप करने की अनुमति देते हैं। कृषि वाणिज्य व्यापार में लाए गए ये बदलाव सीधे तौर पर 80 करोड़ लोगों को गंभीर रूप से प्रभावित करने वाले हैं। हमें यह बात भी समझने की है कि इससे सिर्फ किसान ही नहीं, हर व्यक्ति प्रभावित होगा, क्योंकि खाना तो हर व्यक्ति खाता है।

अपनी गलत नीतियों से देश को बेरोजगारी और महंगाई देने के बाद मोदी सरकार ने अब कॉरपोरेट को खुश करने के लिए अन्नदाता को दांव पर लगा दिया है। नए कृषि कानून के तहत मोदी सरकार ने एक तरह से देश के शीर्षस्थ उद्योगपतियों को किसानों की फसल का फायदा लेने का  ठेका दे दिया है। जैसे आजादी से पहले अंग्रेज किसानों से अपनी मनमाफिक फसल पैदा कराते थे और उसे कम दामों पर खरीदकर मोटा मुनाफा कमाते थे।

ठीक उसी प्रकार से इन नए कृषि कानूनों के चलते देश के पूंजपीति अपनी मर्जी की फसल किसानों से उगवाएंगे और उन्हें कम दाम पर बेचने के लिए मजबूर कर मोटा मुनाफा कमाएंगे। किसान अपने ही खेत में बंधुआ बनकर रह जाएंगे। इस नए कृषि कानून के खिलाफ देश भर में किसान सड़कों और रेल की पटरियों पर जमे हुए हैं। 25-26 नवंबर को भारत बंद और दिल्ली घेराव का एलान भी हो चुका है। इसके बावजूद मोदी सरकार पर इन सबका कोई असर नहीं पड़ रहा है।

मोदी सरकार की नीयत देखिए कि उसने बदलाव लाने का बहाना बना कर यह अध्यादेश लाने के लिए 5 जून का दिन चुना। उस वक्त देश में कोरोना की महामारी अपनी भयावहता का पूरा तांडव दिखा रही थी। देश में एक लाख से ज्यादा लोग अपनी जान से हाथ धो चुके हैं और 70 लाख से अधिक संक्रमित हो चुके हैं। देश कोरोना संक्रमण के मामले में दुनिया में दूसरे नंबर पर है और मोदी सरकार आत्मनिर्भरता का राग अलाप रही है।

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में ही संकट के दौर से गुजर रही अर्थव्यवस्था कोरोना काल में बुरी तरह से चौपट हो चुकी है। उत्पादन हर क्षेत्र में 50 फीसद से भी नीचे स्तर पर है। देश की इस बर्बादी पर मोदी सरकार के दरबारियों की भूमिका निभा रहे  तमाम अर्थशास्त्रियों ने भी अपनी आंखें बंद कर रखी हैं। मोदी सरकार के आत्मनिर्भता के झांसे में आकर 41 करोड़ छोटे किसानों, छोटे कारोबारी, व्यापारी बेरोजग़ारी की भेंट चढ़ चुके हैं।

(चरण सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल नोएडा से प्रकाशित होने वाले एक दैनिक में कार्यरत हैं।)

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