Friday, April 26, 2024

दीदी नहीं, अब बीजेपी गयी का बंगाल से निकल रहा है संदेश

2 मई की तारीख भारतीय राजनीति में अहम है। इस दिन पश्चिम बंगाल के चुनाव नतीजे आए थे। जनता ने बीजेपी के उस नारे को उलट दिया था- ‘2 मई दीदी गयी’। ‘2 मई दीदी आ गयी’- का संदेश विधानसभा चुनाव नतीजों में दिखा। 292 सीटों में टीएमसी 215 सीटें जीत चुकी थी। बीजेपी का आंकड़ा तीन अंकों तक नहीं पहुंच पाया। कांग्रेस-वाममोर्चे का सफाया हो गया।

‘2 मई दीदी गयी’- का नारा सिर्फ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ या मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान या फिर केद्रीय मंत्रियों और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने नहीं दिया था। यह नारा स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिया था। एक बार नहीं, बारंबार। ‘दीदी ओ दीदी’ के नारे के जरिए पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री का प्रधानमंत्री ने बतौर बीजेपी स्टार प्रचारक खूब मजाक उड़ाया था। उसी मजाकिया शैली को गंभीर रूप देने की कोशिश थी- ‘2 मई दीदी गयी’।

बंगाल की जनता लगातार बीजेपी को दे रही है करारा जवाब

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव नतीजों ने तत्काल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जवाब दिया था। मगर, जनता इतने से संतुष्ट नहीं हुई। वह लगातार जवाब देती चली गयी और यह सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है। अब तक हुए उपचुनावों और नगर निगम चुनावों के नतीजे देखें तो तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में भारी वोटिंग और बीजेपी को खारिज करने का रुझान साफ-साफ नज़र आता है। महज एक साल बाद ही ऐसा लग रहा है मानो अब नारा ‘2 मई दीदी गयी’ बदलकर ‘2 मई बीजेपी गयी’ हो चुका है।

चुनाव दर चुनाव टीएमसी लगातार सफलता हासिल कर रही है और उसे मिलने वाले वोट भी बड़ी तेजी से बढ़ रहे हैं। वहीं, बीजेपी को न सिर्फ असफलताओं का सामना करना पड़ा है बल्कि उसके वोटों में भारी गिरावट जारी है। इस हिसाब से देखें तो जनता ने बीजेपी के नारे को ही उलट दिया- “2 मई बीजेपी गयी”

आसनसोल, बालीगंज के उपचुनाव नतीजों में दिखा बीजेपी गयी”: 12 अप्रैल 2022 को हुआ उपचुनाव ताजा तरीन उदाहरण है। आसनसोल लोकसभा सीट पर शत्रुघ्न सिन्हा ने तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर 3 लाख से ज्यादा वोटों से भारी जीत हासिल की। इस सीट पर बीजेपी लगातार दो बार चुनाव जीत चुकी थी। पिछले चुनाव में बाबुल सुप्रियो लगभग 2 लाख के अंतर से चुनाव जीते थे। ऐसे में ताजा उपचुनाव नतीजे में टीएमसी ने न सिर्फ बाजी पलट दी बल्कि मजबूत बढ़त ले ली।

विधानसभा के उपचुनाव नतीजे तो और भी चौंकाने वाले रहे। बालीगंज में बीजेपी से टीएमसी में लौटे पूर्व केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो ने सीपीएम की सायरा शाह हलीम को 20 हजार से अधिक वोटों से हरा दिया। यहां बीजेपी तीसरे नंबर पर रही। उसे महज 12,967 वोट मिले, जबकि सीपीएम को 30,818 और विजेता बाबुल सुप्रियो को 50,722 वोट मिले।

नंदीग्राम में भी बदल गया नज़ारा : नंदीग्राम का संग्राम लंबे समय तक याद रखा जाएगा। यहां मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को 1956 वोटों से शुभेन्दु अधिकारी के हाथों हार का सामना करना पड़ा। शुभेन्दु कभी ममता बनर्जी के दाहिने हाथ हुआ करते थे। मगर, नंदीग्राम के संग्राम को बीते अभी साल भर भी नहीं हुए थे जब ममता बनर्जी के नेतृत्व में टीएमसी ने वोटरों का मन बदल डाला।

पश्चिम बंगाल में मार्च 2022 को आए 108 नगर निकायों के चुनाव नतीजों में तृणमूल कांग्रेस ने 102 पर जीत हासिल की। बीजेपी को कहीं भी बढ़त नहीं मिल सकी। यहां तक कि शुभेन्दु अधिकारी के गढ़ नन्दीग्राम में भी बीजेपी कुछ नहीं कर पायी। यहां भी बीजेपी का सूपड़ा साफ हो गया।

चार नगर निगमों में भी तृणमूल, जनता भूली कमल का फूलफरवरी 2022 में तृणमूल कांग्रेस ने चार नगर निगम चुनावों में एकतरफा जीत हासिल की और विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया। इन चार में से दो नगर निगम चुनावों में तो बीजेपी और सीपीएम दोनों ही साफ हो गये। तृणमूल के लिए उत्तर बंगाल में ऐसी चुनावी सफलता उत्साहजनक है।

  • तृणमूल ने सिलीगुड़ी नगर निगम में 47 में से 37 वार्ड पर जीत हासिल की। बीजेपी को पांच, सीपीएम को चार और कांग्रेस को एक वार्ड में जीत नसीब हो सकी। तृणमूल कांग्रेस को 78.72 फीसदी, बीजेपी को 10.64 फीसदी और माकपा को महज 8.5 फीसदी वोट मिले।
  • बिधाननगर नगर निगम की 41 में से 39 सीटें टीएमसी ने जीत लीं जबकि बीजेपी और सीपीएम का खाता तक नहीं खुला। कांग्रेस एक और निर्दलीय एक सीट जीतने में कामयाब हो सकी।
  • चंदन नगर में टीएमसी ने 32 में से 31 सीटों पर कब्जा जमा लिया। सीपीएम को एक सीट मिली।
  • आसनसोल में भी टीएमसी ने 106 में से 91 सीटें टीएमसी ने जीत ली। बीजेपी को 7, कांग्रेस को 3, सीपीएम को 2 और निर्दलीय को 3 सीटें हासिल हुईं।

कोलकाता नगर निगम में टीएमसी ने क्लीन स्वीप कर दिखाया  : 19 दिसंबर 2021 को कोलकाता नगर निगम का चुनाव हुआ। तृणमूल कांग्रेस ने 144 वार्ड में से 134 पर एकतरफा जीत हासिल की। 3 सीटें बीजेपी और 2-2 सीटें वाम मोर्चा और कांग्रेस जीत सकी।

अक्टूबर 2021 के उपचुनाव में चारों सीटों पर टीएमसी जीतीं  : 30 अक्टूबर 2021 को हुए एक और उपचुनाव में सभी चार विधानसभा सीटें तृणमूल कांग्रेस ने जीत ली। इनमें से कूच बिहार जिले की दिनहाटा और नदिया जिले की शांतिपुर सीट टीएमसी ने बीजेपी से भारी वोटों के अंतर से छीन ली। उत्तरी 24 परगना जिले की खारडाह और और दक्षिणी 24 परगना जिले की गोसाबा सीटों पर टीएमसी का कब्जा बरकरार रहा। चारों सीटों पर टीएमसी को 75.02 फीसदी वोट मिले जबकि बीजेपी को 14.48 फीसदी।

सितंबर 2021 के उपचुनाव मे तीनों सीटें टीएमसी के खाते में : 30 सितंबर 2021 में हुए उपचनाव में ममता बनर्जी ने भवानीपुर की अपनी पुरानी सीट पर 59 हजार वोटों से बड़ी जीत दर्ज की। अप्रैल 2022 में हुए चुनाव में टीएमसी के उम्मीदवार को 29 हजार वोटों से मिली जीत के मुकाबले यह दुगुने वोटों से मिली जीत थी। मुर्शिदाबाद जिले की शमशेरगंज और जंगीपुर सीटों पर भी तृणमूल कांग्रेस ने भारी अंतर से जीत का परचम लहराया।

बीजेपी को सबक सिखाने का मकसद पूरा कर सकेंगी ममता?

भवानीपुर में जीत के बाद ममता बनर्जी ने देशभर में बीजेपी को सबक सिखाने की सार्वजनिक घोषणा की। इससे पहले पश्चिम बंगाल चुनाव के समय ममता बनर्जी ने कहा था कि एक टांग से वह पश्चिम बंगाल का चुनाव जीतेंगी और दोनों टांगों से वह बीजेपी को दिल्ली की गद्दी से खदेड़ेंगी।

ममता बनर्जी को केंद्रीय राजनीति में विकल्प देने के नजरिए से भी देखा जाने लगा। हालांकि इसमें अभी बहुत सफलता नहीं मिली है। गोवा में विधानसभा चुनाव लड़ने का कोई राजनीतिक फायदा टीएमसी को नहीं मिला है। इसके बावजूद अपने व्यक्तिगत संबंधों और प्रयासों के कारण वह क्षेत्रीय दलों के साथ संपर्क में रही हैं। उन्हें पहले से अधिक गंभीरता के साथ लिया जा रहा है।

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने यह साबित कर दिखाया कि वह बीजेपी को चुनाव में हरा दे सकती हैं। इतना ही नहीं, बीजेपी के उभार को रोकने में भी वह कामयाब रहीं। बीजेपी गये नेताओं में तृणमूल में लौटने की होड़-सी मच गयी। मुकुल राय, बाबुल सुप्रियो जैसे नेता ही नहीं, बड़ी संख्या में विधायक, पूर्व विधायक और नेता तृणमूल में लौटे। यह सिलसिला जारी है।

भारतीय राजनीति में एक संदेश जाता ज़रूर नज़र आया है कि बीजेपी को ममता बनर्जी टक्कर दे सकती हैं। हालांकि इस होड़ में आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल भी आ गये हैं जिन्होंने पंजाब में कांग्रेस की जगह अपनी सरकार बनायी है। हालांकि महत्वपूर्ण बात यह भी है कि इन दोनों नेताओं की गोवा और उत्तराखण्ड में सक्रियता का फायदा बीजेपी को मिला और दोनों जगहों पर बीजेपी की सरकार बन गयी।

कांग्रेस के साथ चलकर या कांग्रेस से अलग हटकर बीजेपी का विकल्प होगा- इस सवाल का उत्तर खोजे बगैर ममता के बढ़ते कदम ऐसा नहीं लगता कि किसी निश्चित लक्ष्य को हासिल कर पाएंगे। फिर भी पश्चिम बंगाल की सियासत से ‘2 मई बीजेपी गयी’  वाले संदेश को वह आगे बढ़ाने को राष्ट्रव्यापी बनाने के लिए वे तत्पर नज़र आ रही हैं। क्या यह संदेश 2024 तक मजबूत होकर उभर पाएगा- इस सवाल का उत्तर फिलहाल नहीं दिया जा सकता।

(प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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