Wednesday, April 24, 2024

कश्मीर में अब पत्रकारों पर क़हर, महिला पत्रकार मसरत ज़हरा के ख़िलाफ़ यूएपीए के तहत एफआईआर दर्ज

18 अप्रैल, शनिवार को, जम्मू-कश्मीर की युवा फोटो-पत्रकार मसरत ज़हरा को श्रीनगर के साइबर पुलिस थाने से फोन आया और उन्हें थाने में रिपोर्ट करने के लिए कहा गया। ज़हरा को हैरानी हुई कि आखिर उन्हें थाने में क्यों बुलाया जा रहा है, वह भी तब जब वह कोरोना वायरस के चलते आज कल कोई रिपोर्टिंग नहीं कर रहीं हैं।  

ज़हरा को तब तक नहीं पता था कि उनके खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज हो चुकी है। उन्होंने तुरंत इस फोन के बारे में कश्मीर प्रेस क्लब को सूचित किया। कुछ समय पश्चात उन्हें प्रेस क्लब से पता लगा कि उन्होंने पुलिस से बात कर ली है, छोटा सा मामला है, सुलझ जाएगा।  

सोमवार को ज़हरा को सोशल मीडिया से पता लगा कि एक महिला पत्रकार के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है। वह समझ गईं हो न हो यह महिला पत्रकार वह खुद हैं।

मसरत के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी में लिखा है, “साइबर पुलिस को विश्वसनीय स्रोतों के माध्यम से जानकारी मिली है कि एक फेसबुक उपयोगकर्ता मसरत ज़हरा युवाओं को भड़काने और सार्वजनिक शांति भंग करने के आपराधिक इरादे से राष्ट्र-विरोधी पोस्ट अपलोड कर रही है।”

मसरत ज़हरा कश्मीर की दूसरी पत्रकार हैं जिसके खिलाफ “यूएपीए” के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। 2018 में, श्रीनगर के एक अन्य पत्रकार आसिफ सुल्तान को भी इसी अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था। वह अब तक हिरासत में हैं।

हफ्फपोस्ट इण्डिया से बातचीत करते हुए ज़हरा ने बताया, “मैं तो सिर्फ अपने प्रोफेशनल काम को अपलोड कर रही थी। मुझे समझ ही नहीं आ रहा कि मैं इस पर क्या कहूँ।”

“मुझे जब कभी पता लगता कि किसी पत्रकार को पुलिस ने उठा लिया है तो मुझे बहुत बुरा लगता था, मैंने कभी नहीं सोचा था कि अपना प्रोफेशनल काम करते हुए किसी दिन मेरे साथ भी ऐसा हो जाएगा।”

“मैंने अपने परिवार को बड़ी मुश्किल से समझाया था कि मैं पत्रकार बनना चाहती हूँ। उन्हें आज भी मेरा काम ख़ास पसंद नहीं है। उन्हें जब पता लगेगा कि मेरे खिलाफ “यूएपीए” जैसे सख्त क़ानून के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है तो मैं नहीं जानती कि उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी। मेरे पिता बिजली विकास विभाग में ड्राइवर हैं और माँ गृहिणी हैं। उन्हें तो पता ही नहीं है कि “यूएपीए” क्या बला है। मुझे उन लोगों के लिए डर लग रहा है।” 

आज घर से निकलने से पहले मैंने अपनी मां को जोर से गले लगाया क्योंकि मैं नहीं जानती थी कि मैं घर वापस आऊँगी भी अथवा नहीं। मेरी मां को पता है कि मेरे खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है, लेकिन वह यूएपीए के बारे में कुछ नहीं जानती। मुझे यह भी नहीं पता कि मेरे परिवार की क्या प्रतिक्रिया होगी।” 

“सोशल मीडिया पर मैंने जो भी तस्वीरें पोस्ट कीं, वे मेरे प्रोफेशनल काम का हिस्सा हैं। इन तस्वीरों में कुछ भी आधारहीन अथवा फर्जी नहीं हैं। मैं नहीं जानती उन्हें इन तस्वीरों में क्या आपत्तिजनक लगा।”

मसरत ज़हरा ने एक और मीडिया संस्थान अल ज़जीरा को टेलीफोन पर बताया कि पुलिस और सरकार “कश्मीर में पत्रकारों की आवाज़ को खत्म करने” की कोशिश कर रहे हैं।

“पुलिस ने कहीं नहीं उल्लेख किया है कि मैं एक पत्रकार हूं। उन्होंने कहा है कि मैं एक फेसबुक उपयोगकर्ता हूं,” 

“मैं तो मेरे द्वारा खींची गईं पुरानी तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा कर रही थी, जो पहले ही अनेक जगहों पर प्रकाशित हो चुकी हैं।” 

ज़हरा द्वारा खींचे गए फोटो “वाशिंगटन पोस्ट”, “द न्यू ह्यूमैनिटेरियन”, “टीआरटी वर्ल्ड”, “अल जज़ीरा”, “द कारवां” सहित कई संस्थानों द्वारा प्रकाशित किये जाते रहे हैं।

नई दिल्ली स्थित इन्डियन एक्सप्रेस के उप-संपादक मुजामिल जलील ने पोस्ट किया है कि “अपने चार साल के करियर में अपनी तस्वीरों के माध्यम से ज़हरा ईमानदारी से कश्मीर की कहानी बयान करती रहीं हैं।”

“उन पर यूएपीए के तहत मुकदमा दर्ज करना अपमानजनक है। हम अपनी  सहयोगी के साथ एकजुट खड़े हैं और एफआईआर वापस लेने की मांग करते हैं। पत्रकारिता अपराध नहीं है। धमकी अथवा सेंसरशिप से कश्मीर के पत्रकारों को चुप नहीं कराया जा सकता।”

कांग्रेस पार्टी के सांसद शशि थरूर ने ट्वीट किया है कि, “मैंने लोकसभा में “यूएपीए” की शुरूआत के समय ही आपत्ति जताई थी, क्योंकि मुझे डर था कि इसका दुरुपयोग किया जा सकता है। जम्मू-कश्मीर की पत्रकार मसरत ज़हरा के खिलाफ ‘राष्ट्रविरोधी’ पोस्ट के लिए दर्ज एफआईआर “यूएपीए” का दुरुपयोग कर असहमति के स्वर कुचलने का एक और उदाहरण है।”

जानी-मानी पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता नेहा दीक्षित ने मसरत के खिलाफ श्रीनगर की साइबर पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर को वापस लेने की मांग करते हुए ट्वीट किया है कि नेटवर्क ऑफ़ विमेन इन मीडिया, इण्डिया (NWMI मांग करता है कि कश्मीर और देश भर में पुलिस और सुरक्षा बलों द्वारा पत्रकारों को डराने की रणनीति बंद की जाए।

इस बीच कश्मीर में कार्यरत “द हिन्दू” के पत्रकार पीरज़ादा आशिक के खिलाफ भी 19 अप्रैल को प्रकाशित एक ख़बर को “फे़क” करार देते हुए एफआईआर दर्ज कर दी गई है।

(लेखक-अनुवादक और सोशल एक्टिविस्ट कुमार मुकेश कैथल में रहते हैं। वे सांस्कृतिक मोर्चे पर निरंतर सक्रिय रहते हैं।)

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