Friday, April 26, 2024

अडानी-भूपेश बघेल की मिलीभगत का एक और नमूना, कानून की धज्जियां उड़ाकर परसा कोल ब्लॉक को दी गई वन स्वीकृति

रायपुर। हसदेव अरण्य क्षेत्र में प्रस्तावित परसा ओपन कास्ट कोयला खदान परियोजना को दिनांक 21 अक्टूबर, 2021 को केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, नई दिल्ली द्वारा स्टेज-II वन स्वीकृति जारी की गई है | इस खनन परियोजना से हसदेव अरण्य के 2 गाँव पूरी तरह 3 गाँव आंशिक रूप से विस्थापित होंगे और 841 हेक्टेयर क्षेत्रफल में लगभग 1 लाख पेड़ों का विनाश होगा। परसा खदान की वन भूमि डायवर्जन की प्रक्रिया फर्जी ग्राम सभा दस्तावेजों पर आधारित है जिस पर जांच और कार्यवाही की मांग को लेकर हसदेव के लोगों का सतत आंदोलन जारी है। कूटरचित फर्जी ग्राम सभा दस्तावेज को रद्द करने और दोषी अधिकारीयों पर कार्यवाही की मांग लगातार 2018 से हसदेव के आदिवासी समुदाय आन्दोलन करते आ रहे है, इन माँगों को लेकर 2019 में ग्राम फत्तेपुर में हसदेव अरण्य के लोगों ने लगातार 73 दिनों तक धरना प्रदर्शन किया | आज की तारीख तक उन शिकायतों पर न ही कलेक्टर द्वारा कोई कार्यवाही हुई है और न ही लिखित शिकायत के बावजूद कोई भी एफआईआर दर्ज की गई।

हाल ही में हसदेव अरण्य क्षेत्र से बड़ी संख्या में आदिवासियों ने पदयात्रा निकाली और दिनांक14 अक्टूबर को रायपुर पहुचंकर राज्यपाल और मुख्यमंत्री से मिल कर अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा और प्रस्तावित कोयला खदानों को निरस्त किए जाने की अपनी ग्राम सभा की मांगों को मुखरता से उनके सामने उठाया। वाबजूद इसके केंद्र सरकार ने समस्त प्रक्रियाओं को दरकिनार करते हुए गैरकानूनी रूप से यह वन स्वीकृति जारी कर दी।

आदिवासियों की आपत्तियों पर कोई संज्ञान लिए बिना सिर्फ अडानी कम्पनी के दबाव में गैरकानूनी रूप से जारी की गई इस वन स्वीकृति का छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन पुरजोर विरोध कर रहा है और राज्य सरकार से मांग किया है कि इसे तत्काल निरस्त किया जाये एवं फर्जी ग्रामसभाओं के प्रस्तावों की जाँच कर दोषियों पर कार्यवाही की जाये।

फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव के आधार पर हासिल की गई वन स्वीकृति

परसा कोयला खनन परियोजना की स्टेज-Iवन स्वीकृति 13 फरवरी, 2019 को केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने जारी की थी जिस पर हसदेव अरण्य क्षेत्र के खनन प्रभावित ग्रामीणों ने आपत्ति दर्ज कर इसे निरस्त करने की मांग की थी। प्रावधानुसार किसी भी परियोजना हेतु वन स्वीकृति के पूर्व “वनाधिकार मान्यता कानून 2006” के तहत वनाधिकारों की मान्यता की प्रक्रिया की समाप्ति और ग्रामसभा की लिखित सहमति आवश्यक है। ग्रामीणों का सपष्ट कहना है कि आज भी उनके वनाधिकार के दावे लंबित हैं और 24 जनवरी 2018 ग्राम हरिहरपुर एवं 27 जनवरी 2018 साल्ही एवं 26 अगस्त 2017 को फतेहपुर गाँव में दिखाई गई ग्रामसभाए फर्जी थीं और इनकी जांच के लिए मुख्यमंत्री और राज्यपाल को ज्ञापन सोंपे गए हैं।


ग्रामीणों की शिकायतों का संज्ञान लिए बिना ही खनन कम्पनी के दबाव में पर्यावरण मंत्रालय ने लिया फैसला

पांचवीं अनुसूची क्षेत्र और पेसा कानून के तहत ग्राम सभा के अधिकारों की धज्जियां उड़ा जिस परसा खदान को स्टेज-I स्वीकृति जारी किया गया था जिसका लोगों ने लगातार विरोध किया। उसी प्रक्रिया को आगे बढ़ा कर बिना लोगों की शिकायतों को संज्ञान में लिए और प्रक्रियान्तर्गत केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के वन सलाहकार समिति के बैठक के बिना स्टेज-IIस्वीकृति जारी करना अपने आप में कई सवाल खड़े करता है।

सम्पूर्ण हसदेव अरण्य अपनी समृद्ध जैव विविधता, वनों का घनत्व और पर्यावरणीय संवेदनशील क्षेत्र होने के कारण वर्ष 2009 में नो-गो का इलाका था। वर्ष 2012 में जब परसा ईस्ट केते बासन खनन परियोजना को स्टेज-II वन स्वीकृति जारी की गई थी तब उसमें भी यह शर्त थी कि हसदेव में नयी किसी भी कोयला परियोजना को अनुमति नहीं दी जाएगी। वर्तमान सरकार ने इस क्षेत्र को लेमरू हाथी में भी शामिल करने का निर्णय लेकर ग्रामसभाओं से सहमति पत्र मांगे थे। इन सब के बावजूद खनन कंपनी के दबाव में हसदेव को खोले जाने का रास्ता ICFRE की रिपोर्ट द्वारा तैयार किया गया है। जबकि ICFREकी रिपोर्ट ने स्वयं यह माना है कि खनन से इस क्षेत्र पर अपरिवर्तनीय प्रभाव पड़ेंगे जिसकी भरपाई कठिन है। खनन से हाथी मानव द्वन्द में भी वृद्धि होगी साथ ही बांगो बाँध और पूरे क्षेत्र की हाइड्रोलॉजी पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा| इस वन क्षेत्र के पर्यावरणीय महत्त्व और आदिवासियों की आजीविका, संस्कृति और उनकी पहचान साथ ही पांचवीं अनुसूची होने के नाते इस क्षेत्र को प्राप्त संवैधानिक विशेषाधिकार को ताक पर रख के हसदेव अरण्य में कोयला खदानों को स्वीकृति दी जा रही है।
(छत्तीसगढ़ से जनचौक के संवाददाता तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट।)

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