Saturday, April 20, 2024

हॉस्पिटल, बेड और ऑक्सीजन की कमी से लोग मर रहे हैं पर सेंट्रल विस्टा का काम चालू है

कोरोना की दूसरी लहर ने देश और प्रदेश में मूलभूत सुविधाओं की उपलब्धता को उघाड़ करके रख दिया है। यूपी सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्वीकार किया है कि बिजनौर की कुल आबादी की तुलना में मात्र 0.01 फीसद के लिए ही स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध हैं। एक अनुमान के अनुसार यूपी के महानगरों में आबादी के सापेक्ष 10 फीसद के लिए भी स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। कमोवेश पूरे देश की स्थिति यही है। करोना संकट में हॉस्पिटल, बेड और ऑक्सीजन की कमी ने हाहाकार मचा रखा है। संसाधनों की भरी कमी है, पेट्रोल और डीजल पर लगे टैक्स से सरकार के रोजमर्रा के काम चल रहे हैं, अर्थव्यवस्था रसातल में चली गयी है, लेकिन देश की ऐसी विपरीत परिस्थिति में भी नरेंद्र मोदी सरकार की फिजूलखर्ची जारी है। ऐसे ही फिजूलखर्ची के सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर कोई असर नहीं पड़ा है। लॉकडाउन के दौरान भी धड़ल्ले से इस प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य जारी है। जबकि विशेषज्ञों का कहना है कि अभी कमसे कम 75 साल संसद भवन चल सकता है। मोदी सरकार ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को आवश्यक सेवाओं की सूची में शामिल कर दिया है ताकि समय पर निर्माण कार्य पूरा हो सके।

इस बीच दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को सेंट्रल विस्टा एवेन्यू में चल रहे निर्माण पर रोक लगाने की मांग वाली एक याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। हाई-कोर्ट में सुनवाई के दौरान तीखी बहस हुई। यहां तक कि ‘ऑशविट्ज़’ का हवाला दिया गया और परियोजना को मौत का किला कहा गया। ऑशविट्ज़ का अभिप्राय उस जगह से है जहां नाजियों द्वारा यहूदियों पर जुल्म किए जाते थे।

हाईकोर्ट में केंद्र ने दलील दी कि जनहित याचिका कुछ व्यक्तियों के अहं को तुष्ट करने के लिए है। जवाब में याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि सरकार संदेशवाहक को ही गोली मारने का काम कर रही है और सार्वजनिक स्वास्थ्य के बारे में दिए जा रहे संदेश की परवाह नहीं कर रही है। अन्या मल्होत्रा और सोहेल हाशमी ने यह याचिका दायर की है, जिस पर 17 मई को सुनवाई हुई। याचिका में मांग की गई है कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का काम तुरंत रोका जाना चाहिए, क्योंकि दिल्ली में लॉकडाउन लगा हुआ है। इन मजदूरों को दिल्ली के अलग-अलग इलाकों से रोजाना काम के लिए यहां लाया और ले जाया जा रहा है। इससे इलाके में कोरोना फैलने का खतरा है। परियोजना स्थल पर निरंतर निर्माण सुपर स्प्रेडर साबित हो सकता है, जो कि मजदूरों के लिए खतरनाक है।

चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की खंडपीठ ने सोमवार को मामले में दलीलें सुनीं और फैसला सुरक्षित रख लिया। याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील सिद्धार्थ लूथरा पेश हुए जबकि केंद्र का प्रतिनिधित्व सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने किया। जबकि शापूरजी पल्लोनजी एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड की ओर से मनिंदर सिंह ने दलील रखी।

सिद्धार्थ लूथरा ने खंडपीठ से कहा कि जब याचिकाकर्ताओं ने अदालत का दरवाजा खटखटाया तब जाकर अधिकारियों ने रातों-रात मजदूरों के लिए एक ऑन-साइट बुनियादी ढांचा बनाया। केंद्र ने अभी तक नहीं बताया है कि कैसे सेंट्रल विस्टा एवेन्यू बनाया जाना एक आवश्यक सेवा है ? लूथरा ने तर्क दिया कि जब हम आपके पास आए, तो हमें डर था कि कहीं केंद्र दिल्ली के बीचों-बीच एक ऑशविट्ज़ न बना दे। एसजी मेहता ने तर्क किया कि परियोजना के आलोचकों का अपना तबका है, जिसका अंतिम उद्देश्य हमें परियोजना पसंद नहीं है, हम इसे चुनौती देंगे और हम इसे रोक देंगे है। मेहता ने सेंट्रल विस्टा एवेन्यू के निर्माण के संदर्भ में लूथरा के ऑशविट्ज़ के उल्लेख पर भी आपत्ति जताई। मेहता ने तर्क दिया कि कुछ लोग किसी न किसी बहाने से परियोजना को रोकना चाहते हैं। जनहित याचिका महज एक बहाना है।

सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को अभी सेंट्रल विस्टा नहीं बल्कि सेंट्रल फोर्टरेस्ट ऑफ डेथ यानी मौत का किला कहना चाहिए। उन्होंने मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए कहा कि साइट पर एक कमरे में सात मजदूरों को रखा जा रहा है। वहीं, सरकार के वकील तुषार मेहता ने याचिकाकर्ताओं की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं का पब्लिक इंट्रेस्ट केवल एक प्रोजेक्ट को लेकर वहीं, आसपास चल रहे दूसरे प्रोजेक्ट में वो ऐसा क्यों नहीं करते।

बिल्डर शापोरजी पलोनजी की ओर के वकील ने कहा की इस प्रोजेक्ट के लिए आधे राजपथ को खोदा गया है। अगर बरसात आने के पहले इस काम को तेजी से करना है नहीं तो बारिश में ये गड्ढे भर जाएंगे। साथ ही, अगले साल की गणतंत्र दिवस की परेड पर भी इसका असर पड़ेगा।

इस मामले में केंद्र सरकार ने भी हलफनामा दायर कर इस याचिका को बेबुनियाद बताते हुए कहा था कि ये प्रोजेक्ट में बाधा डालने का तरीका है। हाईकोर्ट पूरे मामले पर 17 मई फिर सुनवाई हुई। कोर्ट ने सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

पहले भी इस मामले पर पर्यावरण, भूमि उपयोग जैसे कई मुद्दों पर अलग-अलग याचिकाएं दाखिल की गई थीं। जुलाई 2020 में उच्चतम न्यायालय ने इन सभी याचिकाओं को एक साथ  मिलाकर सुनवाई शुरू की। तीन जजों की पीठ ने दो एक से फैसला सुनाया और जनवरी 2021 में प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य शुरू करने की अनुमति दे दी।

इस बार की याचिका दायर की गई है वो दिल्ली डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के 19 अप्रैल के एक ऑर्डर को आधार बनाकर की गई है। इस ऑर्डर में लॉकडाउन के दौरान सभी तरह की निर्माण गतिविधियों पर रोक लगाई गई है। याचिकाकर्ता ने इसी को आधार बनाकर सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के निर्माण कार्य पर रोक लगाने की मांग की है।

प्रोजेक्ट की घोषणा के बाद से ही तमाम विपक्षी दल इसके विरोध में हैं। राहुल गांधी समेत तमाम बड़े नेता आए दिन सरकार को घेरते रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान भी निर्माण कार्य चलते रहने से आलोचनाएं और तीखी हो गई हैं। सरकार ने इस प्रोजेक्ट को आवश्यक सेवाओं की सूची में शामिल कर दिया है ताकि लॉकडाउन के दौरान भी काम नहीं रुके, इसके बाद विरोध और बढ़ गया है। नेताओं का कहना है कि देश की वर्तमान हालात को देखते हुए ये गैर जरूरी खर्च है। इसके बजाय स्वास्थ्य सुविधाओं पर ये खर्च किया जा सकता है। राहुल गांधी ने सेंट्रल विस्टा को आपराधिक बर्बादी करार दिया है। उन्होंने एक ट्वीट में लिखा कि लोगों की जिंदगी को केंद्र में रखिए, न कि नया घर पाने के लिए अपनी जिद।

विपक्ष इस मुद्दे पर लगातार सरकार को घेरता आया है। छत्तीसगढ़ में भी नई विधानसभा, राज्यपाल भवन और सीएम निवास का निर्माण कार्य जारी था। हाल ही में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उस पर भी रोक लगा दी है। भूपेश सरकार के इस कदम को सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर सरकार पर दबाव बढ़ाने के प्रयासों के तौर पर देखा जा रहा है।

सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक कई इमारतों का रिडेवलपमेंट और कंस्ट्रक्शन शामिल है। इसमें एक नया संसद भवन जिसमें लोकसभा और राज्यसभा के लिए एक-एक बिल्डिंग होगी, मंत्रालय के कार्यालयों के लिए केंद्रीय सचिवालय, प्रधानमंत्री आवास, उप-राष्ट्रपति आवास का निर्माण किया जाना है। अभी जो संसद भवन है उसके सामने एक तिकोना नया संसद भवन बनाया जाएगा। करीब 15 एकड़ में प्रधानमंत्री के नए आवास का निर्माण भी होगा। सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की घोषणा सितंबर 2019 में की गई थी। 10 दिसंबर 2020 को प्रधानमंत्री ने प्रोजेक्ट की आधारशिला रखी थी। सरकार ने पूरे प्रोजेक्ट के लिए 20 हजार करोड़ का बजट रखा है। सेंट्रल विस्टा का काम नवंबर 2021 तक, नए संसद भवन का काम मार्च 2022 तक और केंद्रीय सचिवालय का काम मार्च 2024 तक पूरा करने की डेडलाइन रखी गई है।

सेंट्रल विस्टा राजपथ के दोनों तरफ के इलाके को कहते हैं। इसके तहत राष्ट्रपति भवन, संसद, नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक, उपराष्ट्रपति आवास आता है। इसके अलावा नेशनल म्यूजियम, नेशनल आर्काइव्ज, इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स, उद्योग भवन, बीकानेर हाउस, हैदराबाद हाउस, निर्माण भवन और जवाहर भवन भी सेंट्रल विस्टा का ही हिस्सा हैं।

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