Thursday, April 18, 2024

झारखंड में आदिम जनजाति असुर की 300 आबादी दूषित पानी पीने को मजबूर  

 वैसे तो झारखण्ड में बारह महीने ही पेयजल की भारी किल्लत रहती है, प्रायः ग्रामीण नदी, चुंआ (खेतों में या नदी-नालों के पास गड्ढा खोदकर बनाया गया एक मिनी कुंआ जिसमें रस्सी व बाल्टी की जरूरत नहीं होती), चापाकल आदि से अपनी प्यास बुझाते हैं। लेकिन गर्मी के मौसम में झारखंडी जनता का हाल और बेहाल हो जाता है।

वैसे तो झारखण्ड सरकार की ओर से गांवों में पेयजल के लिए डीप बोरिंग के साथ पानी की टंकियां भी खड़ी की गयी हैं, जो बिजली के अभाव में चू-चू का मुरब्बा ही साबित हो रही हैं। लेकिन इस योजना से क्षेत्र के कतिपय ठेकेदारों और दलालों की रोजी-रोटी की मुकम्मल व्यवस्था हो गई है।

सरकारी घोषणाओं पर भरोसा करें तो राज्य के 59.23 लाख ग्रामीण परिवारों को चरणबद्ध तरीके से वर्ष 2024 तक नल से जल पहुंचाने की योजना पर काम हो रहा है। दिसंबर 2021 तक राज्य में करीब 10 लाख ग्रामीण परिवारों तक नल से जल पहुंचाया जा चुका है। 34.20 लाख परिवारों को पानी पहुंचाने की योजनाएं अनुमोदित कर दी गई हैं।

इनमें से 7.85 लाख परिवारों तक पानी पहुंचाने के लिये 5,401 करोड़ रुपये की 85 (बहुग्राम पेयजलापूर्ति) योजनाओं और 10.92 लाख परिवारों के लिये 3, 842 करोड़ रुपये की 44, 458 (लघु या एकल ग्राम पेयजलापूर्ति) के लिए योजनाओं का 29 दिसंबर, 2021 को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा शिलान्यास किया गया है।

दूसरी ओर, 9830.28 करोड़ की जलापूर्ति योजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन किया गया, जिससे 19.99 लाख परिवारों में रहने वाले करीब एक करोड़ ग्रामीण आबादी को इस योजना का लाभ मिलेगा। शेष 15.06 लाख परिवारों में से 7.47 लाख परिवारों में जल से नल योजना का डीपीआर तैयार कर लिया गया है। इसका भी अनुमोदन जल्द कर दिया जाएगा। इसके अलावा बाकी के 7.58 लाख परिवारों को इस योजना का लाभ देने के लिए मार्च 2022 में योजनाओं का डीपीआर तैयार कर लिया गया है। पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री मिथिलेश कुमार ठाकुर के मुताबिक सरकार की महत्वाकांक्षी योजना जल जीवन मिशन के तहत राज्य के सभी ग्रामीण परिवारों और ग्रामीण संस्थाओं में गुणवत्तापूर्ण पेयजल की उपलब्धता निरंतर हो इसके लिए झारखंड सरकार संकल्पित है। ग्रामीण परिवारों के जीवन में स्वछता, स्वास्थ्य, स्वशासन, सुरक्षा, सम्मान के साथ 2024 तक हर ग्रामीण परिवार को घरेलू नल से जल कनेक्शन उपलब्ध कराना है।

बता दें इस डपोरशंखी योजना का पोल खोलने के लिए हम एक नजर राज्य के कोडरमा ज़िला अन्तर्गत मरकच्चो प्रखंड के देवीपुर पंचायत के देवीपुर गांव पर डालें जहां के ग्रामीण करीब चार हजार की आबादी में एक मात्र चापानल से अपनी प्यास बुझाने को मजबूर हैं। वह भी चापानल गांव से दूर नदी किनारे लगा है। जहां से ग्रामीण चिलचिलाती धूप में एक-एक बाल्टी पानी ढो रहे हैं।

ऐसा नहीं है कि गांव में और चापाकल नहीं है, पूरे गांव में चार चापाकल लगे हुए हैं, लेकिन सभी चापाकल से आयरन युक्त पीला-पीला पानी निकलता है, जो पीने योग्य नहीं है।

वहीं गुमला जिले के घाघरा प्रखंड के आदर पंचायत अंतर्गत सलगी गांव के टोला हरडूबा व पीरहा पत्थल में रहने वाले असुर जनजाति के लगभग 300 आबादी वाले गांव के लोग दूषित पानी पीने को मजबूर हैं। घाघरा प्रखंड के पहाड़ी तलहटी पर बसे हरडूबा व पीरहा पत्थल टोला में निवास करने वाले असुर जनजाति के सैकड़ों परिवार कच्चा चुंआ व पहाड़ी झरना से अपनी प्यास बुझा रहे हैं।

सलगी के हरडूबा व पीरहा पत्थल में पीने के पानी के लिए ना तो कोई सरकारी व्यवस्था है और ना ही कोई इस ओर ध्यान दे रहा है। असुर जनजाति के लोगों को गांव से दूर कच्चा चुआं से पीने का पानी लाना पड़ रहा है।

स्वच्छ पेयजल के लिए सरकार की विभिन्न योजनाओं से दूर हरडूबा व पीरहा पत्थल के असुर जनजाति को आज भी पानी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। सलगी गांव के हरडूबा व पीरहा पत्थल में इस संरक्षित जनजाति के परिवार के लिए आज तक गांव में न तो कुआं है और ना ही हैंडपंप, जिसके चलते सर्दी, गर्मी और बरसात में ये ग्रामीण गड्ढे व पहाड़ों से उतरने वाले पानी को ही पीने के लिए मजबूर हैं। इससे बड़ा इस राज्य की जनता के लिए और क्या दुर्भाग्य हो सकता है।

इस संबंध में हरडूबा के ग्रामीण बुद्ध असुर, सुखमनिया, धूमेश्वर व पीरहा पत्थल के राजेंद्र, रति, बुधवा, रतिया, सुखना का कहना है कि कई बार प्रशासनिक अधिकारियों को हमने पानी की समस्या बताई, पर कोई व्यवस्था नहीं हो सकी है।

इस संबंध में बीडीओ विष्णु देव कच्छप कहते हैं कि ग्रामीणों को स्वच्छ पेयजल मुहैया कराने को लेकर प्रशासन द्वारा आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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