Wednesday, April 17, 2024

झारखंड में 10 जून की घटना के निहितार्थ

भाजपा की नूपुर शर्मा के पैगंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी को लेकर देश के कई भागों सहित झारखंड की राजधानी रांची में पिछले 10 जून को हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा में पुलिस की गोली से कैफी उर्फ तौशीर और साहिल अंसारी की मौत हो गई थी। जबकि कई पुलिस कर्मी सहित करीब डेढ़ दर्जन लोग घायल हो गए थे। उसके बाद रांची में 144 धारा लगाने के साथ ही इन्टरनेट सेवा भी बंद कर दिया गया था।

अब इन्टरनेट सेवा तो बहाल कर दिया गया है लेकिन 144 धारा अभी भी कई थाना क्षेत्रों में लागू है।

जो घटनाक्रम सामने आया है उससे स्पष्ट हो गया है कि 10 जून को रांची में नमाज के बाद निकाले गए जुलूस की कोई योजना स्थानीय लोगों की नहीं थी, यह हिंसा फैलाने और दंगा करवाने की मंशा के तहत किया गया ऐसा प्रायोजित कार्यक्रम था, जो सीधे तौर पर राजनीतिक लाभ साधने की ओर इशारा कर रहा है।

तब एक सवाल उठता है कि आखिर इससे राजनीतिक लाभ किसको हो सकता है? तो जवाब कोई छिपा नहीं है सर्वविदित है।

राष्ट्रीय स्तर की बात करें या प्रांतीय स्तर की, तो आज सत्ता लोलुपता में सामाजिक व संवैधानिक मर्यादाओं की सारी हदें पार होती जा रही हैं।

बताना जरूरी होगा कि नूपुर शर्मा के पैगंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान 10 जून को देश के कई हिस्सों में हिंसा की स्थिति उत्पन्न हुई और इसके बहाने देश के मुसलमानों को टार्गेट करते हुए उन्हें एक बार फिर आतंकी का जामा पहनाने की कोशिश हुई है, जो एक तरफ कश्मीर से पलायन कर रहे पंडितों से ध्यान भटकाने का प्रयास है तो दूसरी तरफ अरब देशों की ओर से भारत की हुई फजीहत को भी ढंकने का प्रयास है।

जो इस बात की ओर इशारा करता है कि 10 जून की घटना प्रायोजित थी। अब यह बताना जरूरी नहीं है कि इन घटनाओं का सूत्रधार कौन है। इसकी निष्पक्ष जांच हो तभी सब कुछ सामने आएगा।

एक तरह से कहा जाए तो अंतरराष्ट्रीय मामले को घरेलू मुद्दा बनाने की साजिश का भी हिस्सा है 10 जून की घटना।

दूसरी तरफ हम झारखंड की राजधानी रांची में हुई घटना की बात करें तो उक्त घटना के बाद हेमंत सरकार निशाने पर है।

रांची में हुए उपद्रव की घटना को लेकर मुख्य विपक्षी दल भाजपा लगातार हेमंत सरकार पर हमलावर है। भाजपा नेताओं ने कथित उपद्रवियों की गिरफ्तारी को लेकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर दबाव बनाने के साथ ही सवाल उठाया है कि आखिर किस बात को लेकर राज्य सरकार इतनी बेबस है।

पूर्व मुख्यमंत्री एवं भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास ने राज्य सरकार पर सीधे आरोप लगाते हुए कहा है कि हेमंत सरकार घटना की लीपापोती में लगी है।

उन्‍होंने कहा कि हेमंत सोरेन सरकार के आने के बाद से पोपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की गतिविधियां राज्य में बढ़ गई हैं। हमारी सरकार ने पीएफआइई पर बैन लगाकर कड़ी कार्रवाई की थी। गृहमंत्रालय के द्वारा चेतावनी दिए जाने के बावजूद राज्य सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। सवाल है कि गृहमंत्रालय की चेतावनी क्या थी? रघुवर दास ने स्पष्ट नहीं किया है।

शायद भाजपा चाहती है कि झारखंड पुलिस भी सहारनपुर की तरह जज की भूमिका में आ जाए। जिस पर मीडिया की कोई नजर होती है। जबकि सहारनपुर की पुलिस द्वारा कथित उपद्रवियों को गिरफ्तार कर थाने में बेरहमी से पिटाई करते हुए वीडियो बनाकर वायरल किया जाता है जो उतना ही बड़ा अपराध की श्रेणी में आएगा, जितना कि उपद्रवियों द्वारा किए गए अपराध।

बता दें कि सहारनपुर में 64 कथित उपद्रवियों को गिरफ्तार करके थाना कोतवाली में रखा गया था और आरोपियों का थाने में जमकर पिटाई ही नहीं की गई बल्कि वीडियो बनाकर वायरल भी किया गया। वीडियो में साफ दिख रहा है कि पुलिसकर्मी हवालात के अंदर उनपर पर डंडे बरसा रहे हैं। गजब तो तब है कि सहारनपुर के SSP आकाश तोमर को इस वीडियो के बारे में कोई जानकारी नहीं है। वे कहते हैं “I don’t know about the video” यानी उन्हें इस वीडियो की कोई जानकारी नहीं है। जबकि पूरा देश वह वीडियो देख चुका है।

वहीं मेन स्टीम की मीडिया को भी यह वीडियो नजर नहीं आया है, यही कारण है कि सहारनपुर के थाने में आरोपियों की पुलिसकर्मी द्वारा की गई पिटाई की खबर नदारद रही, जबकि रांची की घटना को सहारनपुर से जोड़कर काफी सनसनीखेज तरीके से परोसने में इनमें कोई कोताही नहीं रही है।

झारखंड की राजधानी रांची में 10 जून को हुई हिंसा को लेकर एक राष्ट्रीय अखबार की सनसनीखेज रिपोर्ट ने जहां उक्त घटना को सहारनपुर से जोड़कर दिखाने की जैसी कोशिश की है, जिससे साफ लगता है कि अखबार को एक एक पल की खबर है, लेकिन उसे इस बात की खबर नहीं है कि उक्त घटना का असली साजिश कर्ता कौन है और इस घटनाक्रम से किसे फायदा होने वाला है?

अगर हम अखबार की रिपोर्ट को सही मान भी लेते हैं तो सबसे बड़ा सवाल खड़ा होता है कि एक अखबार इतनी गहराई से इस साजिश तक पहुंच गया, तो सरकार का गुप्तचर विभाग क्या कर रहा था?

जिस तरह से अखबार लिखता है कि चार जून से ही उपद्रव की तैयारी शुरू हो गई थी। यूपी के सहारनपुर से 12 लोगों की टीम चार और सात जून को रांची पहुंची थी।

ये लोग मेन रोड में होटल-लॉज में रुके। यहां तीन टीमें बनीं। एक टीम खूंटी भी गई थी। इन्होंने ही इलाही नगर, हिंदपीढ़ी और गुदड़ी में बैठक कर जुलूस निकालने और हिंसक प्रदर्शन करने के लिए भड़काया।

कुछ लोगों ने आपत्ति की तो टीम ने 16 से 24 साल के युवाओं को फांसना शुरू कर दिया। वे बहकावे में आ गए और उपद्रव का प्लॉट तैयार हो गया। हिंसा के पीछे एक झामुमो कार्यकर्ता और पानी व्यवसायी का नाम आ रहा है। कार्यकर्ता से पुलिस ने पूछताछ भी की है।

अखबार को इतनी गहराई की जानकारी हुई और इन्टेलिजेंस ब्यूरो हाथ पर हाथ धरे बैठा था। तो क्या हिंसा का इंतजार था? यह भी कई सवालों को जन्म दे रहा है।

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता सिरफिरों की कमी नहीं है, अति उत्साह भी खतरनाक है जिसे युवा वर्ग नहीं समझ पाता है, चाहे वह किसी भी धर्म, संप्रदाय या समुदाय का क्यों ना हो।

इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि जो हुआ वो काफी खतरनाक हुआ, नहीं होना चाहिए था।

हिंसा को कभी सही नहीं ठहराया जा सकता है चाहे वह विरोध प्रदर्शन करने के क्रम में हो या फिर इसे नियंत्रित करने में प्रशासन की ओर से हो।

इन तमाम घटनाक्रम पर राजनीतिक बयान में भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी कहते हैं, रांची का डेली मार्केट क्षेत्र हमेशा से असामाजिक तत्वों और हुड़दंगियों के लिए से सेफ जोन रहा है। विगत कई मामलों में उपद्रव की शुरुआत यहीं से हुई। निगम की पार्किंग और थाने के ठीक सामने सैकड़ों अनधिकृत दुकानें सजती हैं। खबर तो ये भी है कि हर दुकान से तय राशि थाने में पहुंचाई जाती है। उन्होंने मुख्यमंत्री से मांग की है कि भविष्य में शुक्रवार जैसी घटना की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए इस क्षेत्र को अतिक्रमण से मुक्त कराइए। साथ ही उर्दू लाइब्रेरी, एकरा मस्जिद व संकट मोचन मंदिर के पास स्थायी पुलिस पिकेट बनाया जाए।

वहीं भाजपा के वरिष्ठ विधायक सीपी सिंह एक कदम आगे बढ़कर कहते हैं दंगाईयों का इलाज बुलडोजर मॉडल है। सीपी सिंह ने अपने ट्वीट में लिखा है कि इन दंगाईयों का इलाज बुलडोजर मॉडल से ही संभव है। उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को सलाह देते हुए कहा कि आप भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सीख लें और अपराधियों पर कार्रवाई करते हुए इनके घरों पर बुलडोजर चलाएं, इनकी संपत्ति की कुर्की जब्ती कर नुकसान की भरपाई करें।

साथ ही दंगाइयों के राशनकार्ड, आयुष्मान कार्ड निरस्त कर इन्हें सरकारी सुविधाओं से वंचित करें। फिर देखते हैं कि पत्थर उठाने की हिम्मत कौन करता है। सीपी सिंह ने अपने ट्वीट में मुख्यमंत्री पर तंज भी कसते हुए कहा कि लेकिन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जी, इन सबके लिए पुरुषार्थ की जरूरत पड़ेगी और समुदाय विशेष का तुष्टीकरण त्यागना पड़ेगा।

सवाल यह है कि भाजपा विधायक सीपी सिंह के बयान का निहितार्थ क्या है? जाहिर इसे बताने की जरूरत नहीं है, वह भी स्पष्ट है। मतलब साफ है सब मिलाकर समुदाय विशेष को कठघरे में खड़ा किया जा रहा है।

वहीं दूसरी तरफ घटनास्थल पर हुई हिंसा में पुलिस की गोली से मारे गए दो लोगों की मौत को लेकर पुलिस पर जो सवाल खड़े होते हैं, उससे इन राजनीतिबाजों द्वारा किनारा कर लिया गया है।

कांग्रेस ने जामताड़ा के विधायक डा. इरफान अंसारी के उस बयान से किनारा कर लिया है जिसमें उन्होंने पुलिस को निशाने पर लिया था। इरफान ने रांची के सिटी एसपी की आलोचना की थी। इसपर वे अकेले पड़ गए हैं। क्योंकि तुष्टीकरण के आरोप से बरी रहने के लिए उग्र भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस की कार्रवाई पर विरोध जतानेवाले विधायक इरफान अंसारी के बयान से कांग्रेस के नेता सहमत नहीं हैं। और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने पुलिस की कार्रवाई को न्यायसंगत बताया है। इसके अलावा कांग्रेस के अन्य वरीय नेता भी राज्य सरकार द्वारा गठित किए गए जांच दल से संतुष्ट हैं। जांच दल की रिपोर्ट के आधार पर ही कांग्रेस अब आगे की कोई रणनीति तैयार करेगी। फिलहाल पार्टी ने इस मुद्दे पर नेताओं को संयम बरतने की नसीहत भी दी है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि कानून अपना काम करेगा।

समझाने की जरूरत नहीं है कि उक्त घटनाक्रम का असली उद्देश्य क्या है, और क्यों है?

सारे घटनाक्रम पर नजर डाले तो यह बात आइने की तरह साफ हो जाती है कि 10 जून की घटना पूर्व नियोजित था। जिसका शिकार एक समुदाय विशेष के लोग हुए।

10 जून को रांची में हुए उपद्रव में गोली लगने से कैफी उर्फ तौशीर और साहिल अंसारी की मौत हो गई थी। जबकि पुलिस कर्मी सहित करीब डेढ़ दर्जन लोग घायल हो गए थे।

इस घटना के बाद व्यवसायिक संस्थानों के बंद रहने जहां अब तक 500 करोड़ रुपए का कारोबार प्रभावित हुआ है, वहीं इंटरनेट सेवा बंद होने इंटरनेट से संचालित वाहन सेवा, होटल, दैनिक जरूरतों की सामग्री का डिलीवरी बाधित हुई, जिससे घर में बंद लोगों सहित बाहर से आकर पढ़ाई करने वालों छात्र – छात्राएं जो होस्टल या अन्य जगहों पर किराए के मकान में रहते है, को काफी परेशानी उठानी पड़ी है।

(वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles