एकबारगी फिर साबित हो गया है कि पंजाब की भगवंत मान की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी (आप) सरकार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। पार्टी के अमृतसर (नॉर्थ) से बहुचर्चित विधायक कुंवर विजय प्रताप सिंह ने पंजाब विधानसभा की आश्वासन कमेटी के चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया है। पूर्व आईपीएस अधिकारी रहे कुंवर विजय प्रताप सिंह ‘बहुचर्चित’ इसलिए हैं कि उन्होंने बेअदबी कांड के लिए बनाई गई विशेष टीम की बतौर पुलिस अधिकारी अगुवाई की थी।
जब बतौर आईजी पुलिस उन्हें विशेष टीम का मुखिया बनाया गया था, तब राज्य में कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार थी और उन्होंने बेहद मेहनत और सूक्ष्मता से तैयार की गई बेअदबी कांड रिपोर्ट को हाशिए पर डाल दिया था और पर्दे के पीछे से ऐसा ‘खेल’ खेला गया कि अदालत में भी इस रिपोर्ट को ठहरने नहीं दिया गया। तब आईजी रहते हुए कुंवर ने एक-एक पहलू की खुद पड़ताल की थी और पाया था कि सूबे का एक बड़ा सियासी घराना और उसके चहेते कुछ आला पुलिस अधिकारी समूचे प्रकरण के लिए गुनाहगार हैं।
तब सत्ता के गलियारों में आम चर्चा थी कि रिपोर्ट पर कार्रवाई हुई तो बड़े-बड़े नाम न केवल बेनकाब होंगे बल्कि जेल की सलाखों के पीछे भी होंगे। बेअदबी कांड पंजाब में बहुत बड़ा भावनात्मक मुद्दा था और सिख अवाम को पूरा भरोसा था कि कुंवर विजय प्रताप सिंह निष्पक्ष और निर्भीक जांच करेंगे। सूत्रों के अनुसार तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को कुंवर विजय प्रताप सिंह की इतनी ज्यादा तथ्यात्मक पारदर्शिता मंजूर नहीं हुई और उन्होंने इस रिपोर्ट को दबा ही नहीं लिया बल्कि धूल-धूसर भी कर दिया।
अपनी रिपोर्ट के मामले पर विस्तृत बातचीत के लिए वह मुख्यमंत्री से मिले और कई घंटों की बातचीत किसी सिरे नहीं लगी। कुंवर विजय प्रताप की गिनती राज्य के बेहद ईमानदार पुलिस अधिकारियों में की जाती थी। उनकी बाबत पुलिस का इतिहास बोलता है कि वह कभी किसी के दबाव में नहीं आए। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी खासी कवायद की लेकिन नाकामयाब रहे।
अंततः अपनी उस रिपोर्ट का हश्र देखकर नाराज और निराश कुंवर विजय प्रताप सिंह ने आईजी पद से इस्तीफा दे दिया और राजनीति में आने का फैसला कर लिया। सियासी विकल्प के तौर पर उन्होंने आम आदमी पार्टी को चुना क्योंकि तब हर कोई मानता था कि आप राज्य की परंपरागत राजनीतिक पार्टियों से अलहदा है।
बताते हैं कि कुंवर विजय प्रताप सिंह से खुद आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल और मौजूदा मुख्यमंत्री भगवंत मान ने बाकायदा वादा किया था कि न केवल उन्हें विधानसभा टिकट दी जाएगी, जीतने की सूरत में गृहमंत्री बनाया जाएगा और उनकी रिपोर्ट को तत्काल प्रभाव से कार्रवाई का अमलीजामा पहनाया जाएगा। इसमें किसी किस्म की कोई दखल नहीं होगी।
कुंवर विजय प्रताप सिंह अपने आप में आम आदमी पार्टी का एक अहम चुनावी मुद्दा बन गए थे। पूरे पंजाब में उनके नाम के होर्डिंग लगाए गए और कहा गया कि बेअदबी कांड की निष्पक्ष और तार्किक जांच करने वाले आला अधिकारी से कांग्रेस सरकार ने बहुत बुरा सुलूक किया। तब अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान सहित पार्टी के तमाम नेता कहा करते थे कि आप की सरकार बनने पर कुंवर को गृहमंत्री बनाया जाएगा। सार्वजनिक मंचों से लोगों से वादा किया जाता था कि उनकी रिपोर्ट पर 24 घंटे के अंदर कार्रवाई होगी और दोषी, कितने भी बड़े क्यों न हों, कानूनी शिकंजे के जरिए सलाखों के पीछे होंगे।
कुंवर विजय प्रताप सिंह को अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान पर पूरा भरोसा था। उन्हें अमृतसर (नॉर्थ) से चुनाव लड़वाया गया। जीत हासिल करके वह विधायक बने तो पूरे पंजाब में चर्चा थी कि वह नए गृहमंत्री होंगे। लेकिन पहले गठन के वक्त नाम सूची में होने के बावजूद उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया। अमन अरोड़ा जैसे दिग्गज विधायक-नेताओं को भी मंत्री नहीं बनाया गया था। अंदाजे लगाए गए कि दूसरी बार कुंवर विजय प्रताप सिंह को मंत्री पद दिया जाएगा।
दूसरे फेरबदल और विस्तार में फिर अंतिम समय सूची में से उनका नाम काट दिया गया। अलबत्ता सुनाम से विधायक अमन अरोड़ा को जरूर मंत्री बना दिया गया। इस अवधि में लोगों और आम आदमी पार्टी कार्यकर्ताओं में तगड़ी उम्मीद थी कि कुंवर विजय प्रताप सिंह को फौरी तौर पर बेशक मंत्रिमंडल में नहीं लिया गया लेकिन उनकी रिपोर्ट सार्वजनिक होगी और उस पर कार्रवाई भगवंत मान सरकार जरूर करेगी। ऐसा नहीं हुआ।
तीसरा फेरबदल भी लगभग एक पखवाड़ा पहले हुआ। तब भी कयास लगे थे और बहुतेरे लोग मानकर चल रहे थे कि कुंवर विजय प्रताप सिंह और बुढलाडा से आम आदमी पार्टी विधायक प्रिंसिपल बुधराम को इस बार जरूर मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी। लेकिन सिर्फ डॉ बलबीर सिंह को शपथ दिलाई गई और स्वास्थ्य मंत्री का पोर्टफोलियो दे दिया गया।
तीसरी बार भी कुंवर विजय प्रताप सिंह का नाम ऐन आखिरी वक्त काटा गया और प्रिंसिपल बुधराम का भी। इस पर इन दोनों बेहद ईमानदारी छवि रखने वाले विधायकों ने सार्वजनिक तौर पर कोई टिप्पणी नहीं की और खामोश हो गए।
पुलिस अधिकारी से विधायक बने कुंवर विजय प्रताप सिंह को राज्य विधानसभा की आश्वासन कमेटी का चेयरमैन बनाया गया था। उक्त कमेटी का मुख्य काम सरकार की ओर से विधानसभा में दिए जाने वाले विभिन्न मुद्दों की बाबत ‘आश्वासनों’ की निगरानी करना और उनके पूरा होने या नहीं होने अथवा लंबित रहने की वजहों की रिपोर्ट तैयार करना है। कमेटी संबंधित विभागों को सदन में दिए गए आश्वासनों की बाबत सूचित करती है और उनसे ज्यादा से ज्यादा तीन महीने के भीतर लिखित जवाब मांगती है। यानी संबंधित विभाग तीन महीने के भीतर जवाबदेही के लिए बाधित है। अगर आश्वासन पूरा नहीं हुआ हो तो उसके कारण सामने रखने जरूरी हैं। गौरतलब है कि आश्वासन कमेटी की कामकाजी प्रक्रिया के चलते उसे तमाम कमेटियों से ज्यादा अहमियत हासिल है।
भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार कमेटी के चेयरमैन कुंवर विजय प्रताप सिंह ने बेअदबी से जुड़े मामलों की एसआईटी जांच की बाबत पंजाब के कार्यकारी पुलिस महानिदेशक गौरव यादव और मुख्य सचिव विजय कुमार जंजुआ को मौखिक जवाब व स्पष्टीकरण देने के लिए तलब किया था। इसके लिए कमेटी की बैठक का दिन तय होना था। जाहिर है कि सरकार के लिए यह बड़ी दिक्कत का सबब था।
बताते हैं कि पंजाब विधानसभा की सरकारी आश्वासन कमेटी की उक्त बैठक से पहले ही विधानसभा अध्यक्ष कुलतर सिंह संधवां ने सदन की तमाम कमेटियों के अध्यक्षों की एक बैठक बुला ली। इस वजह से तमाम कमेटियों की तय की गई बैठकों को अनिश्चित काल के लिए रद्द करना पड़ा। आमफहम राय है कि कुंवर विजय प्रताप सिंह की अगुवाई में होने वाली बैठक और उसमें डीजीपी तथा मुख्य सचिव की शिरकत को टालने के लिए यह ‘दांव’ इस्तेमाल किया गया।
मतलब साफ है कि भगवंत मान सरकार भी नहीं चाहती कि बेअदबी कांड पर ‘असहज’ खुलासे हों। कार्यकारी डीजीपी गौरव यादव और मुख्य सचिव विजय कुमार जंजुआ भी कुंवर विजय प्रताप सिंह के सामने नहीं आना चाहते थे। इसकी एक वजह यह बताई जा रही है कि नौकरी में रहते वक्त कुंवर इन दोनों अधिकारियों के मताहत थे। प्रोटोकॉल के तहत उन्हें कुंवर विजय प्रताप सिंह को ‘सुनना’ पड़ता तथा ‘स्पष्टीकरण’ देना पड़ता। इसलिए आनन-फानन में बैठक को ‘तारपीडो’ करने के लिए अन्य कमेटियों की बैठक ‘उच्च स्तरीय’ इशारे पर बुला ली गई और इससे नाराज कुंवर विजय प्रताप सिंह ने इस्तीफा दे दिया।
जानकारी के मुताबिक विधानसभा कार्यालय ने उनका इस्तीफा रिसीव कर लिया है और अब उस पर अंतिम फैसला नियमानुसार विधानसभा अध्यक्ष कुलतर सिंह संधवां को लेना है। इस संवाददाता ने प्रतिक्रिया के लिए कुंवर विजय प्रताप सिंह को कई बार फोन किया लेकिन इन पंक्तियों को लिखने तक उनका फोन स्विच ऑफ है। विधानसभा अध्यक्ष संधवां से बातचीत की कोशिश भी की गई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।
कुंवर विजय प्रताप सिंह का इस्तीफा असाधारण घटना है। इससे आम आदमी पार्टी के भीतर तगड़ी सुगबुगाहट का माहौल है। एक विधायक ने कहा कि आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल और मुख्यमंत्री भगवंत मान बखूबी जानते हैं कि कुंवर विजय प्रताप सिंह किए गए वादे पूरे न होने के चलते पार्टी से नाराज चल रहे थे लेकिन मीडिया में वह पूछे गए सवालों को यह कह कर टाल देते थे कि उन्हें आलाकमान का फैसला मंजूर है। जो लोग कुंवर को जानते हैं, उनका मानना है कि इस बार पानी सिर से गुजरते देख उन्होंने इतना बड़ा फैसला लिया।
कुंवर विजय प्रताप सिंह की आस्था दशम गुरु गोविंद सिंह के प्रति है। वह गुरु गोविंद सिंह जी की जन्मभूमि पटना के मूल बाशिंदे हैं। बेअदबी कांड उनके लिए भी भावनात्मक मुद्दा रहा है और इसीलिए उन्होंने आईपीएस की नौकरी से इस्तीफा दिया था। शायद नहीं सोचा था कि आम आदमी पार्टी सरकार भी वहीं राह अख्तियार करेगी जो पूर्ववर्ती राज्य सरकारों ने किया। वह इस बात से भी आहत बताए जाते हैं कि आश्वासनों और चुनाव से पहले किए गए वादों के मुताबिक उन्हें मंत्री पद न देकर काम करने का मौका नहीं दिया गया। यही नहीं बल्कि उन्होंने विधानसभा में बेअदबी कांड पर बोलने के लिए समय मांगा था और उन्हें सिर्फ पांच मिनट दिए गए जो एकदम नाकाफी हैं। विधानसभा में उनको ढंग से सुना भी नहीं गया।
सूत्रों के अनुसार वह मुख्यमंत्री भगवंत मान से मिलकर भी कह चुके हैं कि बेअदबी कांड पर सख्त से सख्त एक्शन लिया जाए और उनकी रिपोर्ट को भी सार्वजनिक किया जाए। फिलहाल तक ऐसा कुछ नहीं किया गया।
गौरतलब है कि बेअदबी कांड के अलावा ऐसा कोई मसला नहीं था कि कुंवर विजय प्रताप सिंह आईजी की अपनी नौकरी छोड़ते और राजनीति में आते। कुछ साल के भीतर ही उन्हें डीजीपी रैंक मिल जाना था लेकिन उन्होंने मन और जनता की आवाज सुनकर तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का अपरोक्ष विरोध करते हुए नौकरी ही छोड़ दी। वह चाहते तो डेपुटेशन पर भी जा सकते थे। लेकिन उन्होंने आम आदमी पार्टी की अवधारणा के झांसे में आकर जिस ‘वैकल्पिक राजनीति’ की राह चुनी-उसका असली चेहरा अब सबके सामने है।
आप से जुड़े कुछ वरिष्ठ नेता और विधायक तक मानते हैं कि बेहद अनुशासन में रहने वाले कुंवर विजय प्रताप सिंह की जुबान अगर खुली तो इस सरकार के भी कई बड़े ओहदेदार मुसीबत में पड़ जाएंगे। सरगोशियां हैं कि 26 जनवरी के बाद इस पूरे प्रकरण की हलचल रफ्तार पकड़ेगी। यकीनन पूर्व आईपीएस अधिकारी के साथ किया जा रहा सुलूक सरकार को महंगा पड़ेगा।
आखिर इस बात से कौन इनकार कर सकता है कि कुंवर विजय प्रताप सिंह ने राजनीति में आने का फैसला सिर्फ विधायक बनने के लिए नहीं लिया था। खैर, अनेक मामले हैं जो बताते हैं कि कुंवर विजय प्रताप सिंह की सिलसिलेवार अनदेखी की गई। मसलन, वह नहीं चाहते थे कि आईपीएस अधिकारी अरुणपाल सिंह को अमृतसर का पुलिस कमिश्नर बनाया जाए लेकिन बनाया गया। अलग बात है कि किन्हीं और कारणों से उन्हें चलता किया गया। दरअसल, पुलिस और सिविल अफसरशाही की एक ताकतवर लॉबी नहीं चाहती कि कुंवर का इकबाल कायम रहे और वह मंत्री बनें।
(वरिष्ठ पत्रकार अमरीक की रिपोर्ट।)