Friday, April 19, 2024

ट्वीट मामले में थरूर, राजदीप समेत सात लोगों की गिरफ़्तारी पर सुप्रीम रोक

उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को सांसद शशि थरूर, पत्रकार राजदीप सरदेसाई, विनोद जोस, मृणाल पांडे, जफर आगा, अनंत नाथ और परेश नाथ की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी और कहा कि अगले आदेश तक इन लोगों को गिरफ़्तार नहीं किया जा सकता है। उनके खिलाफ ट्रैक्टर रैली के दौरान किसान की मौत होने पर ट्वीट/ पोस्ट करने पर कई एफआईआर दर्ज की गईं हैं।

चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमणियन की पीठ ने 26 जनवरी को किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान एक प्रदर्शनकारी की मौत के बारे में कथित तौर पर असत्यापित खबर साझा करने के लिए उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की याचिकाओं पर नोटिस जारी किया है।

इन छह पत्रकारों में ‘इंडिया टुडे’ के राजदीप सरदेसाई, वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पांडेय, ‘कौमी आवाज़’ के मुख्य संपादक ज़फ़र आगा, ‘द कैरेवन’ के मुख्य संपादक परेशनाथ, संपादक अनंतनाथ और कार्यकारी संपादक विनोद के जोस हैं। 26 दिसंबर को हुई ट्रैक्टर परेड से जुड़ी ख़बर करने और उससे जुड़े ट्वीट करने के मामले में इन सभी लोगों पर राजद्रोह का मामला दायर किया गया है।

पीठ ने आज जिन लोगों को राहत दी, उन्होंने 26 जनवरी को ट्रैक्टर पलटने से मरे एक प्रदर्शनकारी को पुलिस की गोली लगने से मरा बताते हुए ट्वीट किया था। उपद्रव और तनाव के माहौल में बिना पुष्टि किए गलत जानकारी लोगों तक पहुंचाने को हिंसा भड़काने की कोशिश की तरह देखते हुए इन लोगों के खिलाफ यूपी, दिल्ली, मध्य प्रदेश और कुछ दूसरे राज्यों में एफआईआर दर्ज हुई हैं।

इस मामले में शशि थरूर, राजदीप सरदेसाई, मृणाल पांडे, अनंत नाथ, परेश नाथ, विनोद के जोस और जफर आगा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हनन बताया था। इन लोगों का कहना था कि उन्हें जैसे ही पता चला कि प्रदर्शनकारी की मौत को लेकर उन्हें पहले मिली जानकारी गलत थी, उन्होंने तुरंत अपने ट्वीट को डिलीट किया। लोगों तक सही जानकारी पहुंचा दी।

इसके बावजूद उन्हें हिंसा भड़काने की साजिश रचने वाला बताया जा रहा है। याचिकाकर्ताओं की मांग थी कि मामले में दर्ज सभी एफआईआर रद्द की जानी चाहिए। याचिकाकर्ताओं ने पत्रकार अर्णब गोस्वामी को जमानत देते वक्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कही गई बातों का हवाला भी अपनी याचिका में दिया था।

शुरू में पीठ गिरफ्तारी पर रोक का आदेश देने को लेकर सहमत नहीं थी, लेकिन कपिल सिब्बल ने इसके लिए जजों को आश्वस्त कर लिया। सिब्बल ने दलील दी कि कई राज्यों की पुलिस इन लोगों को गिरफ्तार करने के लिए तैयार बैठी है। कुछ मामलों में राजद्रोह की धारा भी जोड़ दी गई है। पुलिस कभी भी उन्हें गिरफ्तार करने के लिए आ सकती है, इसलिए यह रोक जरूरी है।

इस पर पीठ ने दिल्ली पुलिस की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि क्या मामला सुप्रीम कोर्ट में आने के बावजूद पुलिस इन लोगों को गिरफ्तार कर सकती है। इस पर मेहता ने सुनवाई कल तक के लिए टालने की मांग की। उन्होंने कहा कि वह कल कोर्ट को पूरी स्थिति से अवगत कराएंगे, लेकिन चीफ जस्टिस ने सुनवाई दो हफ्ते के लिए टालते हुए कहा कि तब तक के लिए गिरफ्तारी पर रोक लगाई जा रही है।

मामले की सुनवाई दो सप्ताह के बाद होगी  और इस बीच, अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई भी कठोर कार्रवाई न करें। याचियों की  पैरवी वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने की। दूसरी ओर, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दिल्ली पुलिस का पक्ष रखा।

पीठ ने यह स्पष्ट किया कि मामले की मेरिट पर सुनवाई की अगली तारीख पर विचार किया जाएगा। चीफ जस्टिस ने कहा कि आप जो भी वापसी की तारीख पर बहस करेंगे, हम तब तक गिरफ्तारी को रोकेंगे। याचिकाकर्ताओं के खिलाफ यूपी और एमपी राज्यों में राजद्रोह, सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने आदि का आरोप लगाते हुए कई एफआईआर दर्ज की गई हैं।

गौरतलब है कि एक प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) नोएडा में और चार एफआईआर मध्य प्रदेश के भोपाल, होशंगाबाद, मुलताई और बैतूल में दर्ज की गईं। नोएडा में प्राथमिकी दिल्ली के पास के एक निवासी द्वारा शिकायत पर दर्ज की गई थी, जिसने थरूर और पत्रकारों द्वारा डिजिटल प्रसारण और सोशल मीडिया पोस्ट का आरोप लगाया था, जिन्होंने दावा किया था कि एक किसान को दिल्ली पुलिस ने गोली मार दी है।

एनडीटीवी की रिपोर्ट में कहा गया है कि इसने ट्रैक्टर रैली के दौरान लाल किले की घेराबंदी और हिंसा में योगदान दिया। शहर निवासी चिरंजीव कुमार की शिकायत पर दिल्ली में दर्ज की गई पहली सूचना रिपोर्ट में, पुलिस ने कहा कि थरूर और अन्य लोगों ने मध्य दिल्ली के आईटीओ में एक प्रदर्शनकारी की मौत पर लोगों को गुमराह किया, जब हजारों किसानों ने लाल किला समेत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रवेश किया, जो ट्रैक्टर रैली के सहमति वाले मार्ग में नहीं था।

प्राथमिकी में कहा गया है कि आरोपियों ने अपने नकली, भ्रामक और गलत ट्वीट के माध्यम से यह बताने की कोशिश की कि किसान की मौत केंद्र सरकार के निर्देशों के तहत दिल्ली पुलिस द्वारा की गई, हिंसा के कारण हुई।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

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