Friday, March 29, 2024

यूएपीए :सुप्रीम कोर्ट ने एक को जमानत दी, दूसरे की जमानत बरकरार रखी

उच्चतम न्यायालय ने गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) से जुड़े एक मामले में 28 अक्टूबर को केरल के एक छात्र को जमानत दी, जबकि दूसरे छात्र की जमानत को बरकरार रखा। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने कथित माओवादी संबंधों को लेकर केरल के दो छात्रों पर यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया था । पुलिस और एनआईए का कहना था कि ये दोनों छात्र प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) से जुड़े हुए थे । सुप्रीम कोर्ट ने एनआईए से पूछा था कि ये 20 से 25 साल की उम्र के लड़के हैं । इनके पास से कुछ सामग्री मिली है। क्या किसी तरह के अनुमान के आधार पर उन्हें जेल में डाला जा सकता है?

केरल के छात्र थवाहा फैजल और एलन शुहैब पर यूएपीए के तहत आरोप लगाए गए थे । पुलिस और एनआईए का कहना था कि ये दोनों छात्र प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) से जुड़े हुए थे। नवंबर 2019 में इनकी गिरफ्तारी के समय शुहैब और फैजल 19 और 23 साल के थे।

केरल के छात्रों थवाहा फ़सल और एलन शुहैबी से संबंधित जमानत के मामले पर फैसला करते हुए जस्टिस अजय रस्तोगी और अभय श्रीनिवास ओका की पीठ ने माना है कि अगर आरोप पत्र में प्रथम दृष्टया मामले का खुलासा नहीं होता है तो गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम की धारा 43डी(5) के तहत जमानत देने पर प्रतिबंध लागू नहीं होगा।

पीठ ने कहा कि धारा 43 डी की उप-धारा (5) में जमानत देने के लिए कठोर शर्तें केवल 1967 के अधिनियम के अध्याय IV और VI के तहत दंडनीय अपराधों पर लागू होंगी।आरोप पत्र पर विचार करने के बाद ही प्रतिबंध लागू होगा। न्यायालय की यह राय है कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि ऐसे व्यक्ति के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सच हैं। इस प्रकार, यदि आरोप पत्र को देखने के बाद, यदि न्यायालय इस तरह के प्रथम दृष्टया निष्कर्ष निकालने में असमर्थ है, तो प्रावधान द्वारा बनाया गया प्रतिबंध लागू नहीं होगा।

इसके पहले विशेष एनआईए अदालत ने उन्हें यह देखते हुए जमानत दे दी थी कि चार्जशीट में उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला सामने नहीं आया है, उच्च न्यायालय ने अपील पर उन निष्कर्षों को उलट दिया। उच्च न्यायालय ने थवाहा को दी गई जमानत को रद्द कर दिया, लेकिन एलन की डिप्रेशन की चिकित्सा स्थिति और कम उम्र की को देखते हुए उसकी जमानत को बरकरार रखा।

उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ थवाहा की अपील की अनुमति दी और एलन को दी गई जमानत के खिलाफ एनआईए की अपील को खारिज कर दिया। जस्टिस ओका द्वारा लिखे गए फैसले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी बनाम जहूर अहमद शाह वटाली में सुप्रीम कोर्ट की मिसाल का हवाला दिया गया और कहा गया कि इसलिए, एक आरोपी द्वारा दायर की गई जमानत याचिका पर फैसला करते समय, जिसके खिलाफ 1967 अधिनियम के अध्याय IV और VI के तहत अपराध का आरोप लगाया गया है, अदालत को यह विचार करना होगा कि क्या यह मानने के लिए उचित आधार है कि आरोपी के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सच है। यदि न्यायालय रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री की जांच करने के बाद संतुष्ट हो जाता है कि यह मानने के लिए कोई उचित आधार नहीं है कि आरोपी के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही है, तो आरोपी जमानत का हकदार है।

इस प्रकार, जांच का दायरा यह तय करता है कि क्या प्रथम दृष्टया अध्याय IV और VI के तहत अपराधों के आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया सामग्री उपलब्ध है। यह मानने का आधार कि अभियुक्त के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही है, उचित आधार पर होना चाहिए। फैसले में कहा गया है कि अदालत से प्रथम दृष्टया मामले का पता लगाने के लिए मिनी ट्रायल करने की उम्मीद नहीं है। इस स्तर पर, न्यायालय को आरोप पत्र में सामग्री जैसी है वैसी ही लेनी होगी। हालांकि, धारा 43 डी की उप-धारा (5) द्वारा आवश्यक प्रथम दृष्टया मामले की जांच करते समय अदालत से एक मिनी ट्रायल आयोजित करने की उम्मीद नहीं है।

अदालत को सबूतों के गुण और दोषों की जांच नहीं करनी चाहिए। यदि आरोप पत्र पहले ही दायर किया जा चुका है, अदालत को इस मुद्दे का निर्णय करने के लिए आरोप पत्र का एक हिस्सा बनाने वाली सामग्री की जांच करनी होगी कि क्या यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि ऐसे व्यक्ति के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सच है। ऐसा करते समय, न्यायालय को आरोप पत्र में सामग्री को यथावत लेनी होगी।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles