Thursday, April 25, 2024

सीबीआई की एफआईआर के खिलाफ पश्चिम बंगाल सरकार के मुकदमे की सुनवाई 16नवंबर को

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 131 के तहत पश्चिम बंगाल राज्य द्वारा दायर मुकदमे में सुनवाई को 16 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दिया। अपने मुकदमे में पश्चिम बंगाल सराकर ने आरोप लगाया गया है कि सीबीआई चुनाव के बाद हिंसा के मामलों में कानून के तहत राज्य से प्रति-अपेक्षित मंजूरी लिए बिना जांच में आगे बढ़ रही है। जस्टिस एलएन राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार ने मुकदमे का जवाबी हलफनामा दायर किया है।

पीठ ने कहा कि वह इस मामले की सुनवाई गैर-विविध दिन करेगी। पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने एक निश्चित तिथि पर पदस्थापन करने का अनुरोध किया। सिब्बल ने कहा कि कृपया हमें सुनवाई की एक निश्चित तारीख दें, क्योंकि सीबीआई एफआईआर पर आगे बढ़ रही है।पीठ ने कहा कि हमारे पास यह 16 नवंबर को होगी। पक्षकार प्रत्युत्तर और अतिरिक्त दस्तावेज दाखिल कर सकते हैं।

राज्य ने कहा था कि केंद्रीय एजेंसी कानून के तहत राज्य सरकार से अनुमति प्राप्त किए बिना चुनाव के बाद की हिंसा के मामलों में जांच और एफआईआर दर्ज कर रही है। इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने रजिस्ट्री को मुकदमे में केंद्र को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया था। हाल के एक घटनाक्रम में यह कहते हुए कि पश्चिम बंगाल राज्य ने हत्या और बलात्कार से संबंधित चुनाव के बाद हिंसा के मामलों में सीबीआई जांच के लिए कलकत्ता हाईकोर्ट के निर्देश के खिलाफ अपनी चुनौती में एक प्रथम दृष्टया मामला बनाया। उच्चतम न्यायालय  ने 28 सितंबर को, 2021 ने अपनी याचिका में नोटिस जारी किया था।

केन्द्र ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि सीबीआई को जांच की सहमति वापस लेने संबंधी पश्चिम बंगाल का अधिकार पूर्ण नहीं है और जांच एजेंसी उन मामलों की जांच कर सकती है जो केन्द्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ है या फिर जिनका देशव्यापी असर है। केंद्र ने पश्चिम बंगाल सरकार के एक वाद के जवाब में यह दावा करते हुए हलफनामा न्यायालय में दाखिल किया है। केन्द्र ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि भारत संघ ने पश्चिम बंगाल में कोई मामला दर्ज नहीं किया है और न ही वह किसी मामले की जांच कर रहा है।

कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग द्वारा दाखिल 60 पृष्ठों के हलफनामे में कहा गया है कि वर्तमान मुकदमे में प्रत्येक अनुरोध या तो भारत संघ को किसी भी मामले की जांच करने से रोकने या उन मामलों को रद्द करने की दिशा में निर्देशित है जहां भारत संघ ने कथित रूप से प्राथमिकी दर्ज की है। दूसरी ओर, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने प्राथमिकी दर्ज की है और मामले की जांच की है, लेकिन हैरानी की बात है कि प्राथमिकी दर्ज करने और मामले की जांच कर रही सीबीआई को इसमे पक्षकार नहीं बनाया गया है।

हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा है कि अपराधों के कुछ मामलों के लिए पश्चिम बंगाल की सहमति मांगी गई थी, लेकिन यह समझ में नहीं आया कि राज्य सरकार ऐसी जांच के रास्ते में क्यों आई। इसमें कहा गया है कि सीबीआई को जांच की अनुमति वापस लेने संबंधी पश्चिम बंगाल का अधिकार पूर्ण नहीं है और जांच एजेंसी को उन मामलों की जांच का अधिकार है जो केन्द्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ है या फिर जिनका देशव्यापी असर है।

हलफनामे में कहा गया है कि सीबीआई को उसे सौंपी गई जिम्मेदारियों का पालन करने के लिए निर्देश दे सकता है और जांच एजेंसी की स्वायत्तता को वैधानिक रूप से बनाए रखा जाता है और इसमें केंद्र द्वारा भी हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। केंद्र ने कहा कि सीबीआई को उसके कर्मचारी की जांच के लिए आगे बढ़ने से पहले संबंधित राज्य सरकार से पूर्व सहमति की आवश्यकता नहीं है, इस तथ्य के बावजूद कि संबंधित कर्मचारी जांच करने के लिए एजेंसी के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में है या नहीं।

पश्चिम बंगाल सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत दायर अपने मूल दीवानी मुकदमे में दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 के प्रावधानों का हवाला दिया है। राज्य सरकार का तर्क है कि सीबीआई राज्य सरकार से अनुमति लिए बिना जांच कर रही है और प्राथमिकी दर्ज कर रही है, जबकि कानून के तहत ऐसा करने के लिए राज्य की पूर्व में अनुमति लेना अनिवार्य है। अनुच्छेद 131 के तहत केंद्र और राज्यों के बीच विवादों का निपटारा करने का अधिकार उच्चतम न्यायालय के पास है।

सीबीआई ने पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा के मामलों में हाल में कई प्राथमिकी दर्ज की हैं। राज्य सरकार ने चुनाव के बाद हुई हिंसा के मामलों में कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश पर सीबीआई द्वारा दर्ज प्राथमिकियों की जांच पर रोक लगाने का अनुरोध किया है। केन्द्र ने यह भी कहा है कि सीबीआई को अपने कर्मचारियों के खिलाफ जांच शुरू करने से पहले संबंधित राज्य सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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