Wednesday, April 24, 2024

बंगाल की भयावह तस्वीर तो चुनाव के बाद सामने आएगी

पश्चिम बंगाल में जहां इस समय विधानसभा चुनाव चल रहे हैं, कोरोना का संक्रमण बुरी तरह फैल चुका है। चूंकि राज्य का समूचा प्रशासन चुनाव आयोग के अधीन काम कर रहा है, लिहाजा संक्रमण और मौतों के सही आंकड़े सामने नहीं आने दिए जा रहे हैं। सिर्फ पश्चिम बंगाल ही नहीं बल्कि उससे सटे बिहार और झारखंड में भी हालात बेहद भयावह हैं, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों के लिए भीड़ इन दोनों राज्यों से भी जुटाई जा रही है। इन तीनों ही राज्यों की सही तस्वीर अभी मीडिया भी पेश नहीं कर रहा है, क्योंकि उसका पूरा ध्यान उन ‘हत्यारी’ चुनावी रैलियों और रोड शो का सीधा प्रसारण करने में लगा है, जिनका आयोजन ‘ऐतिहासिक बेशर्मी’ के साथ किया जा रहा है।

पश्चिम बंगाल में जैसे-जैसे मतदान खत्म होने की ओर बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे कोरोना से संक्रमितों की संख्या भी तेजी से बढ़ती जा रही है। राज्य में चुनाव की अधिसूचना जारी होने से पहले रोजाना मिलने वाले संक्रमितों की संख्या तीन सौ के करीब आ गई थी और ऐसा लग रहा था कि यह प्रदेश कोरोना से मुक्त होने की ओर बढ़ रहा है। हालांकि यह हैरान करने वाली बात थी कि बंगाल जैसे बड़ी आबादी वाले राज्य में, जहां स्वास्थ्य सेवाओं की हालत बेहद दयनीय है, वहां कोरोना खत्म हो रहा था, लेकिन हकीकत यही थी कि वहां कोरोना का संक्रमण बहुत हद तक नियंत्रण में था।

यही स्थिति तमिलनाडु, केरल और असम में भी थी। फिलहाल असम में तो स्थिति फिर भी काबू में है, मगर बाकी राज्यों में हालात बेकाबू होते जा रहे हैं। जिन राज्यों में चुनाव खत्म हो गए हैं और पश्चिम बंगाल में, जहां चुनाव अभी भी जारी है, वहां कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में 500 से लेकर 1200 फीसदी तक का इजाफा हुआ है। चुनाव से पहले तमिलनाडु में जहां 500-600 मामले रोजाना आ रहे थे, वहां अब रोजाना 8000 से ज्यादा मरीज मिल रहे हैं। केरल में संक्रमण के मामले 2000 से नीचे आ गए थे, लेकिन अब वहां संक्रमितों की संख्या 10000 हजार से ऊपर पहुंच गई है।

यही स्थिति पश्चिम बंगाल में है, जहां अब हर दिन 7000 के करीब नए मामले सामने आ रहे हैं। यह आंकड़ा वहां के प्रशासन द्वारा दी जा रही जानकारी के मुताबिक है, जबकि वास्तविक स्थिति इससे कहीं ज्यादा भयावह बताई जा रही है। हालात की गंभीरता को महसूस करते हुए वामपंथी दलों ने अपनी चुनावी रैलियां बहुत पहले ही रद्द करने का एलान कर मतदाताओं से घर-घर जाकर संपर्क करना शुरू कर दिया है। सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस भी ऐसा ही कर रही है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी राज्य में कोरोना संक्रमण के बेकाबू होते हालात के मद्देनजर अपनी सभी प्रस्तावित रैलियां रद्द करने का एलान कर दिया है।

तीनों प्रमुख दलों की ओर से चुनावी रैलियां रद्द करने के एलान के बाद उम्मीद की जा रही थी कि भाजपा की ओर से भी ऐसी ही पहल होगी, लेकिन हुआ इस उम्मीद के ठीक उलटा। उसकी ओर से अधिकृत तौर पर अपनी प्रस्तावित रैलियां रद्द करने का कोई एलान नहीं हुआ। इसके विपरीत उसने दूसरे दलों की रैलियां रद्द करने के फैसले की खिल्ली उड़ाई। ऐसा करने वाले उसके कोई दूसरे या तीसरे दर्जे के नेता नहीं, बल्कि केंद्रीय मंत्री हैं। अहंकारी तेवर के साथ अक्सर झूठ बोलने और विपक्षी नेताओं को लेकर बदजुबानी करने के लिए मशहूर कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि राहुल के रैली रद्द करने का मतलब है कि उनको अपनी हार का अंदाजा हो गया है।

ऐसे ही बयान कुछ अन्य केंद्रीय मंत्रियों और भाजपा नेताओं के आए हैं। कोई भी सभ्य और संवेदनशील व्यक्ति इस तरह के बयानों को जायज नहीं ठहरा सकता। कोरोना के बढ़ते संक्रमण के मद्देनजर रैलियां रद्द करने को चुनावी हार-जीत की संभावना से जोड़ना संवेदनहीनता की पराकाष्ठा तो है ही, साथ ही मूर्खतापूर्ण भी है, क्योंकि राहुल गांधी या उनकी पार्टी के साथ गठबंधन में शामिल वामपंथी दलों की ओर से यह दावा कभी नहीं किया गया कि वे बंगाल जीतने के लिए लड़ रहे हैं। सब जानते हैं कि बंगाल में मुकाबला तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच ही है।

कुल मिलाकर भाजपा नेताओं के बयानों से जाहिर है कि पश्चिम बंगाल में बढ़ रहे कोरोना का संक्रमण उनकी चिंता के दायरे से बाहर है। उनका एकमात्र लक्ष्य किसी भी कीमत पर चुनाव जीतना और सत्ता हासिल करना है। यानी बंगाल में मतदान के बाकी बचे चरणों के लिए लिए भी उनकी चुनावी रैलियां और रोड शो जारी रहेंगे, इसलिए अंदाजा लगाया जा सकता है कि 29 अप्रैल को जब आखिरी चरण का मतदान खत्म होगा, तब तक पश्चिम बंगाल में हालात क्या शक्ल अख्तियार करेंगे।

फिलहाल तो यही लग रहा है कि राज्य में बढ़ते संक्रमण से भयावह हो रहे हालात की गंभीरता से चुनाव आयोग बेखबर है। जहां तक केंद्र सरकार की बात है, उसके मुखिया नरेंद्र मोदी तो अपनी रैलियों में आई हुई और लाई गई भीड़ को देखकर ही गदगद हैं। हर कीमत पर बंगाल जीतने के लिए संकल्पित गृह मंत्री अमित शाह केंद्र सरकार की जिम्मेदारी से पहले ही पल्ला झाड़ चुके हैं। उन्होंने साफ कह दिया है कि राज्य में चुनाव कैसे कराना है और कितने चरणों में कराना है, यह देखना चुनाव आयोग का काम है, जिसमें केंद्र सरकार कोई दखल नहीं देगी।

जब दो मई को विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद बंगाल में तबाही की जो जमीनी हकीकत सामने आना शुरू होगी, वह बेहद डरावनी होगी और उसके लिए सिर्फ और सिर्फ वह ‘स्वतंत्र और निष्पक्ष’ कहे जाने वाला चुनाव आयोग जिम्मेदार होगा जो अब केंद्र सरकार के ‘चुनाव मंत्रालय’ में तब्दील हो चुका है और जिसके कर्ताधता सरकार के अर्दली की तरह बर्ताव कर रहे हैं। पिछले दिनों पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सूबे में कोरोना संक्रमण की भयावहता को महसूस करते हुए चुनाव आयोग से अपील की थी कि बचे हुए चार चरणों का मतदान एक साथ करा लिया जाए, लेकिन चुनाव आयोग ने उनकी यह अपील ठुकरा दी थी।

अब खबर आ रही है कि चुनाव आयोग आखिरी के दो चरणों का मतदान एक साथ कराने पर विचार कर रहा है। जाहिर है कि चुनाव आयोग को भी हालात की गंभीरता का अहसास हो गया है और वह खुद को गंभीर दिखाने के लिए आखिरी के दो चरणों का मतदान एक साथ कराने का नाटक रचने की भूमिका तैयार कर रहा है। अगर आखिरी दो चरणों का मतदान एक साथ करा भी लिया तो स्थिति में कोई फर्क नहीं आने वाला है, क्योंकि भाजपा की सत्ता की हवस और चुनाव आयोग के नाकारापन के चलते जो बिगाड़ होना है वह तो हो ही चुका है।

(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं और दिल्ली में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

मोदी के भाषण पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं, आयोग से कपिल सिब्बल ने पूछा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'कांग्रेस संपत्ति का पुनर्वितरण करेगी' वाली टिप्पणी पर उन पर निशाना साधते...

Related Articles

मोदी के भाषण पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं, आयोग से कपिल सिब्बल ने पूछा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'कांग्रेस संपत्ति का पुनर्वितरण करेगी' वाली टिप्पणी पर उन पर निशाना साधते...