Wednesday, April 24, 2024

हिमाचल हाईकोर्ट के एक फैसले को पढ़कर सुप्रीम कोर्ट के दो जजों ने जब अपना माथा पकड़ लिया

कॉलेजियम सिस्टम से कैसे-कैसे न्यायाधीश नियुक्त होते हैं, इसकी बानगी उच्चतम न्यायालय में उस समय सामने आई जब हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट का एक फैसला पढ़कर उच्चतम न्यायालय के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह का सिर चकरा गया और जस्टिस शाह ने तो यहाँ तक टिप्पणी की कि फैसला ऐसा कि कुछ समझ नहीं आया, पढ़ते-पढ़ते सिर दर्द करने लगा, बाम लगाना पड़ा। उच्चतम न्यायालय ने हिमाचल हाईकोर्ट के फैसला लिखने के तरीके पर कड़ी नाराजगी जाहिर की है।

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर एक याचिका में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा पारित एक आदेश के खिलाफ दायर एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) पर सुनवाई कर रही थी, जो केंद्र सरकार के औद्योगिक न्यायाधिकरण के अवार्ड के मामले से संबंधित है। उच्च न्यायालय ने एक कर्मचारी के खिलाफ कदाचार के आरोप के संबंध में सीजीआईटी के आदेश की पुष्टि की थी।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने हिंदी में कहा कि निर्णय (जजमेंट) में क्या लिखा गया है? जस्टिस शाह ने हिंदी में जवाब देते हुए कहा कि मुझे कुछ भी समझ नहीं आया। लंबे, लंबे वाक्य हैं। कहीं भी अल्पविराम दिखाई दे रहा है। पढ़ने के बाद, मुझे कुछ भी समझ नहीं आया। मुझे अपनी समझ पर संदेह होने लगा है। जस्टिस शाह ने चुटकी लेत हुए कहा कि मुझे टाइगर बाम का इस्तेमाल करना पड़ा।

पीठ ने कहा कि, “निर्णय (जजमेंट) ऐसा होना चाहिए जिसे हर कोई समझ सके और न्यायाधीश ने कहा है कि कदाचार का आरोप साबित हो गया है! जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि मैं सुबह 10:10 बजे इसे पढ़ने के लिए बैठ गया और मैंने इसे 10:55 तक पढ़ लिया। मैं पूरी तरह से आश्चर्यचकित हो गया, आप सोच भी नहीं सकते। अंत में, मुझे स्वयं सीजीआईटी के अवार्ड को तलाशना पड़ा। ओह, माय गॉड! मैं आपको बता रहा हूं, यह अविश्वसनीय है!जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि यह न्याय की अव्यवस्था है। हर मामले में आप इस तरह के ही निणर्य पाते हैं।

जस्टिस शाह ने कहा कि यह कहा जाता है कि निर्णय जितना हो सके उतना सरल होना चाहिए ताकि इसे हर कोई आसानी से समझ सके। यह थीसिस की तरह नहीं होना चाहिए। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि, “इस संबंध में हम जस्टिस कृष्णा अय्यर की बात करते हैं। उनके निर्णयों में गहन विचार होता है, शब्दों के पीछे सीखने की गहरी समझ होती है।

पीठ ने कहा कि 27 नवंबर, 2020 की डिवीजन बेंच के आदेश को पढ़ते हुए, हम ध्यान दें कि 18 पृष्ठों के लंबे फैसले में उच्च न्यायालय द्वारा दर्ज बताए गए कारण समझ से बाहर हैं। नियोजित तर्क और भाषा जिस तरह की है वह अक्षम्य है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि, “यह हमारे समझ से परे है। यह बार-बार हो रहा है।जस्टिस शाह ने कहा कि भाई, जजमेंट कैसे लिखा जाना चहिए क्या हमें इसके बारे में कुछ कहना चाहिए? सरल भाषा का इस्तेमाल करके सिर्फ यह बताया जाना चाहिए कि आप क्या कहना चाह रहे हो?

जस्टिस चंद्रचूड़ ने आदेश में कहा कि निर्णय के तर्क और विचार को रेखांकित करने की आवश्यकता होती है, जो कि निष्कर्ष से गुजरता है, जो कि निर्णय लेने वाले फोरम से आता है। निर्णय न केवल बार के सदस्यों को ही समझ में आना चाहिए जो इस मामले में उपस्थित हुए हैं या जिनके लिए वे मूल्य रखते हैं, बल्कि उन सामान्य वादियों के भी समझ में आना चाहिए, जिन्हें अपने अधिकारों के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटाना पड़ता है, नहीं तो सभी के लिए सुलभ और समझने योग्य न्याय सुनिश्चित करना असंभव होगा।फैसला सरल भाषा में लिखा होना चाहिए, उसमें थेसिस नहीं होनी चाहिए।

दरअसल हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अर्जी दाखिल की गई थी। एक सरकारी कर्मी पर मिसकंडक्ट का आरोप था, यह मामला पहले ट्रिब्यूनल में गया था और फिर हिमाचल हाईकोर्ट पहुंचा था।एक कर्मचारी पर भ्रष्टाचार के आरोप के मामले में सीजीआईटी के आदेश को हिमाचल हाईकोर्ट ने पिछले साल 27 नवंबर को सही ठहराया था। हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई थी।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles