Friday, March 29, 2024

लखनऊ: ईलाज ने बना दिया कर्जदार, आयुष्मान कार्ड तक नहीं हुआ नसीब

लखनऊ। ठीक एक दिन पहले मेरे पास सामाजिक कार्यकर्ता कमला जी का फोन आता है,  आठ मार्च को मेरी व्यस्तता के बारे में पूछने के लिए…. अब महिला दिवस है तो शहर में कई जगह कार्यक्रम होंगे ही, मैंने बताया एक जगह संगोष्ठी है वहाँ जाना है मेरी बात बीच में ही काटते हुए वह बोलीं एक प्रस्ताव आपके सामने रखना चाहूँगी फिर जैसा आप उचित समझें, क्यों नहीं आप यह महिला दिवस गरीब गाँव की महिलाओं के बीच बिताती कुछ उनकी सुनिए कुछ अपनी सुनाइये…. हाँ-हाँ क्यों नहीं, पर कहाँ और किस गाँव में, मैंने उत्साहपूर्वक पूछा, कमला जी ने बताया कि बाना गाँव में आपको ले चलेंगे वहां महिलाएं महिला दिवस मनाने के लिए एकत्रित होंगी। वे बोलीं गरीब तबके की मेहनतकश महिलाएं हैं आप आएंगी तो उनको अच्छा लगेगा और वे महिलाएँ आपसे मिलना भी चाह रही हैं। मैंने बिना कुछ देरी लगाये उनके इस शानदार प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। अगले दिन तय समय पर मिलने का वादा कर हम दोनों ने अपनी बात समाप्त की। मेरे लिए भी यह एक अच्छा मौका था इन महिलाओं से उनकी रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े जद्दोजेहद के बारे में बात करने का।

गाँव के बाहर की मुख्य सड़क पर मुझे कमला जी मिल गईं जो मेरा ही इंतज़ार कर रही थीं। गाँव पहुँचने पर देखा कि महिलाएँ हाथों में पोस्टर और बैनर लिए बैठी थीं और हम दोनों का ही इंतज़ार कर रही थीं। “महिला दिवस जिंदाबाद, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस अमर रहे, रोजी-रोटी रोज़गार के लिए, महिलाओं के लिए सामाजिक सुरक्षा की गारांटी करो, हर हाथ को काम दो काम का उचित दाम दो, शोषण नफरत दमन के खिलाफ़, आधी आबादी का पूरा हक़ चाहिए” आदि नारे लिखे पोस्टर इन महिलाओं और इनके बच्चों के हाथ में दिखे। इन पर लिखे नारों के बारे में मैं इनसे सचमुच विस्तृत बातचीत करना चाह रही थी।

प्लेकार्ड और नारों के साथ एकजुटता जतातीं महिलाएं

सबसे पहले मेरा ध्यान गया उस पोस्टर पर जिसमें महिला सुरक्षा की गारंटी करने की माँग लिखी गई थी।” ये माँग क्यों “मेरे इस सवाल पर वहाँ मौजूद लीलावती झट से कहती हैं, माहौल तो आज भी ज्यादा नहीं सुधरा है मैडम जी, दावा भले ही किया जाये कि बाहर निकलने वाली लड़कियों और महिलाओं के लिए बहुत कुछ माहौल बदल चुका है , अब महिलाओं को नहीं बल्कि अपराधियों को डरने की जरूरत है लेकिन यह इतना भी सच नहीं जितना कहा गया। वे मुझसे से ही सवाल करते हुए पूछती हैं आप ही बताईये आप तो पत्रकार हैं जगह-जगह जाना पड़ता है, गाँव देहातों में जाना पड़ता है तो आप भी जब काम पर निकलती हैं तो मन में यह चिंता तो रहती होगी कि जल्दी जल्दी अपना काम खत्म करके घर को निकल जायें या यह सोचती हैं देर हो भी जाये, अंधेरा हो भी जाये तो कोई बात नहीं…..अरे ऐसा बिल्कुल नहीं है कि मैं निश्चिन्त रहती हूँ, मुझे भी जब देर होने लगती है तो चिन्तायें घेरने लगती हैँ,  मैंने जवाब दिया। इस पर लीलावती कहती हैं तो बताइये सुरक्षा कहां है जब तक अपनी सुरक्षा को लेकर हर महिला के मन में डर रहेगा तब तक यह कैसे मान लें कि माहौल हमारे लिए सुधर चुका है। सचमुच लीलावती के इस तर्कपूर्ण जवाब ने मुझे लाजवाब कर दिया।

लीलावती ने थोड़ा सकुचाते हुए कहा कि हम कुछ ज्यादा तो नहीं बोल गए न,  उसके संकोच को तोड़ते हुए मैंने कहा अरे बिलकुल नहीं आपने वही कहा जो सच है। ” ‘हर हाथ को काम दो, काम का उचित दाम दो’ इस नारे पर भी मैंने इनकी राय जाननी चाही। गंगा कहती हैं कि इसका सीधा सा मतलब है कि हर गरीब, भूमिहीन को सरकार रोजगार दे और उसको उसके काम का सही मेहनताना मिले । वे कहती हैं हम सब मेहनत मजदूरी करने वाले लोग हैं पिछले दो सालों से यानी जब से कोरोना की मार पड़ी है तो हमारे घर के कमाने वालों की कमाई और रोज़गार में भी मार पड़ी है। गंगा कहती है अब जिसके पास रत्ती भर भी खेती की जमीन नहीं उसके लिए तो गुजर बसर करना बहुत ही मुश्किल है,  अभी इन महिलाओं से मेरी बातचीत चल ही रही थी कि तभी वहाँ आई एक बच्ची ने गंगा के कान में कुछ कहा, गंगा ने भी उसके जवाब में उसको कुछ कहकर जाने को कहा।

विचार-विमर्श करतीं ग्रामीण महिलाएं

बच्ची आख़िर क्या कहने आई थी, मेरी जिज्ञासा यह जानने को थी। मैं कुछ पूछती उससे पहले ही गंगा ने बच्ची की बात मेरे सामने रख दी। उसने बताया कि हमारे गाँव की नन्ही देवी चाची ने आपको अपने यहाँ बुलाया है, क्योंकि वे थोड़ी अस्वस्थ हैं और हाथ में चोट भी लगी है इसलिए यहाँ नहीं आ सकतीं। कौन नन्हीं देवी और वे क्यों मिलना चाहती हैं, मेरे इस सवाल पर ब्रजरानी बोलीं, वो आप पत्रकार हैं न बिटिया और हमसे मिलने आई हैं तो हर कोई अपनी समस्या बताना चाहता है। उन्होंने बताया कि नन्हीं देवी का कोई नहीं बेहद गरीब हैं अकेली रहती हैं, मिल लो तो उसे अच्छा लगेगा और इतना कहकर ब्रजरानी ने मुझे नन्हीं देवी के यहाँ चलने को कहा।

” ठीक है आप मिल आईये, हम सब आपका यहीं इंतज़ार कर रहे हैं… ” अनीता ने कहा। सबसे इजाज़त लेकर मैं ब्रजरानी के साथ नन्हीं देवी से मिलने गई। बेहद छोटा कच्चा झोपड़ीनुमा घर था। घर के एक कोने में पड़ी चारपाई पर नन्हीं देवी लेटी हुई थीं। अंदर घुसते ही मेरी नज़र सबसे पहले उस मिट्टी के चूल्हे पर पड़ी जिसकी गर्माहाट बता रही थी कि अभी कुछ देर पहले ही यह जला है। मैंने आश्चर्य से पूछा क्या आपको उज्जवला के तहत गैस चूल्हा नहीं मिला। नन्हीं देवी ने ठंडी साँस भरते हुए बताया कि गैस चूल्हा क्या उसे तो कोई भी सरकारी लाभ नहीं मिल पाया। वे कहती हैं गैस चूल्हा मिल भी जाता तो गैस भरवाने के लिए हजार रुपये कहाँ से आते। अस्वस्थ होने के कारण मिलने न आ पाने की असमर्थता के लिए खेद जताते हुए वे कहती हैं मेरे घर की हालत देखकर बताओ क्या मुझे भी एक पक्का घर नहीं मिलना चाहिए था, जब बारिश होती है तो छत टपकने लगती है।

ब्रजरानी

नन्हीं देवी ने बताया कि ईलाज के लिए बनने वाला आयुष्मान कार्ड आज तक उनका नहीं बन सका। अपने पेट के हुए ऑपरेशन के निशान को दिखाती हुई वे कहती हैं जो थोड़ी बहुत जमा पूँजी थी ऑपरेशन में लगा दिया बल्कि बीस हजार कर्जा भी लेना पड़ा। वे बताती हैं बच्चे न होने के चलते करीब 25 साल पहले उनके पति ने उन्हें छोड़ दिया था तब से वे अकेले मेहनत मजदूरी करके अपना जीवन चला रही हैं। भरे गले से नन्हीं देवी कहती हैं आयुष्मान कार्ड बन जाता तो वे ईलाज के लिए कर्जदार होने से बच जातीं। हाथ जोड़ते हुए वे बड़े विनम्र भाव से कहती हैं, अब बस बिटिया हम गरीबों की परेशानी को सरकार तक पहुँचा दो तो शायद कुछ लाभ मिल ही जाये। उनके इस निवेदन से दिल भर गया। ” हाँ हाँ क्यूँ नहीं, आपकी बात ज़रुर लिखी जायेगी और व्यक्तिगत तौर पर मुझसे जितना बन पाऐगा करूँगी ” दिये गए इस भरोसे के साथ मैंने वहाँ से विदा ली।

मेरे साथ आईं ब्रजरानी ने बताया कि सरकारी योजना का लाभ मिलने के नाम पर उनका भी यही हाल है और न केवल उनका बल्कि अधिकांश परिवारों का यही हाल है। वे कहती हैं आयुष्मान कार्ड ही बन जाता तो कम से कम हम गरीबों को ईलाज के लिए राहत मिल जाती। नन्हीं देवी की तरफ देखकर ब्रजरानी कहती हैं अगर आयुष्मान कार्ड बन जाता तो नन्हीं देवी को कर्जदार नहीं होना पड़ता अब बताईये यह अकेली, गरीब कहाँ से कर्ज चुकाएंगी। सचमुच यह बेहद तकलीफ़देह बात थी कि जो तबका जिसका हक़दार है उसको उस हक़ से वंचित कर दिया जा रहा है। अब आख़िर नन्हीं देवी अपना कर्ज कैसे चुकाएंगी, तो क्या एक कर्ज चुकाने के लिए उसे दूसरा कर्ज लेना पड़ेगा, रह रह कर यह सवाल मेरे दिमाग में कौंधने लगा। इसी सवाल के साथ मैं एक बार फिर उन महिलाओं के बीच पहुँची जो मेरा इंतज़ार कर रही थीं। नन्हीं देवी ने क्यों बुलाया था, अब तक सब जान चुके थे। वहाँ मौजूद महिलाओं ने बताया कि हम में से यहाँ किसी का भी आयुष्मान कार्ड नहीं बना और जब से ई श्रम कार्ड बनवाया है तब से एक भी किस्त नहीं आई।

गंगा ने बताया कि बारिश में उनके घर की छत बहुत टपकती थी। लंबे समय तक आवास मिलने का इंतज़ार किया जब उसका पैसा नहीं मिला तो थक हार कर अपना खेत बेचकर घर की मरम्मत करवानी पड़ी। वे आंसू पोंछकर कहती हैं खेत बेचने का भारी कष्ट हुआ था लेकिन करते भी तो क्या करते घर की हालत बहुत खराब हो गई थी और फॉर्म भरने के बावजूद पक्का घर नहीं मिल रहा था अंत में खेत बेचने का निर्णय लेना पड़ा। तो वहीं रूपरानी कहती हैं किसानी का भी पैसा आना बंद हो गया। देशरानी ने बताया वह बीमार हैं और अभी थोड़ी देर पहले ही लखनऊ से डॉक्टर को दिखा कर आ रही हूँ , दस हजार लग गया और अभी न जाने कितना और लग जाये आयुष्मान कार्ड न होने के चलते कर्ज लेने की नौबत आ गई है। सामाजिक कार्यकर्ता कमला जी ने बताया कि इस इलाके की यह बेहद गंभीर समस्या है गरीबों की एक बहुत बड़ी संख्या सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित है या वंचित कर दी गई है। वे कहती हैं अब नई सरकार के गठन के बाद इन तमाम माँगों को लेकर एक बड़ी संख्या के साथ तहसील में प्रदर्शन करेंगे।

आप सब के जज्बे को सलाम है, मैंने उन महिलाओं से कहा। रोजमर्रा के जीवन का संघर्ष झेलते हुए महिला दिवस मनाने के लिए अपने व्यस्त दिनचर्या से कुछ समय निकाल लेना काबिल- ए- तारीफ है। ” आप लोग एकजुट होकर अपने अधिकारों की लड़ाई लड़िये, निश्चित जीत आपकी होगी ” इतना कहकर मैंने उन लोगों से इस वादे के साथ जाने की इजाजत माँगी ।

(सरोजिनी बिष्ट स्वतंत्र पत्रकार हैं और आजकल लखनऊ में रहती हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles