Saturday, April 20, 2024

आधुनिकतम जेनोबोट्स और विश्व मानवता के सामने आसन्न खतरे

दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में शुमार अमेरिका के तीन विश्वविद्यालयों क्रमशः वर्मोंट विश्वविद्यालय, टफ्ट्स विश्वविद्यालय और हार्वर्ड विश्वविद्यालय के वायस इंस्टीट्यूट फॉर बायोलॉजिकल इंस्पायर्ड इंजीनियरिंग के शोध वैज्ञानिकों ने मिल-जुलकर एक ऐसे ऐडवांस्ड रोबोट्स का निर्माण किया है, जो चल-फिर सकते हैं, स्वयं की बीमारियों का खुद ही इलाज भी कर सकते हैं, बगैर भोजन के हफ्तों जीवित रह सकते हैं, इनकी सबसे आश्चर्यजनक खूबी यह है कि ये ठीक-ठीक अपने जैसे और आकार-प्रकार के बच्चे पैदा करने के लिए आपस में प्रजनन भी कर सकते हैं। इन अत्याधुनिक जीवित रोबोट्स को जेनोबोट्स या Xenobots कहते हैं।

इन अमेरिकी वैज्ञानिकों ने अफ्रीकी मेंढकों की स्टेम कोशिकाओं का उपयोग करके दुनिया के सबसे पहले इन अत्याधुनिक जीवित रोबोट्स या जेनोबोट्स या Xenobots को बनाए हैं। वैज्ञानिकों द्वारा जेनोबोट्स को पहली बार सन् 2020 में दुनिया के सामने लाया गया था। ये जेनोबोट्स आकार में 1मिलीमीटर से भी छोटे हैं। वैज्ञानिकों ने इन्हें बनाने के लिए सर्वप्रथम अफ्रीकी मेढकों के भ्रूण से जीवित स्टेम कोशिकाओं को स्क्रैप किया और उसके बाद उन्हें इनक्यूबेट करने के लिए स्वतंत्र रूप से छोड़ दिया। इन्हीं विश्वविद्यालयों के कंप्यूटर सांइस के एक प्रोफेसर ने कहा कि दुनिया के बहुत से लोग रोबोट्स को धातु और सिरेमिक्स से बनी एक वैज्ञानिक मशीन ही मानने की भयंकर गलती करते हैं, जो स्वतंत्र रूप से इधर-उधर चल-फिर सकते हैं, कुछ काम कर सकते हैं, लेकिन वस्तुतः ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। यह उनकी कल्पना से भी बहुत अलग हो सकता है, मसलन ये जीवित रोबोट्स या जेनोबोट्स किसी भी जीव उदाहरणार्थ आनुवांशिक रूप से अपवर्तित मेढक की स्टेम कोशिका से विकसित जीव भी हो सकते हैं। दरअसल जेनोवोट्स बॉयोलोजिकल रोबोट्स के वर्जन हैं, ये कई अलग-अलग कोशिकाओं को जोड़कर अपना शरीर बना सकते हैं। मनुष्य की तरह मेढक की कोशिकाएं भी एक शरीर का निर्माण कर सकती हैं। 

जेनेटिक वैज्ञानिकों द्वारा अभी-अभी आविष्कृत इन 1मिलीमीटर बड़े जेनोबोट्स मेडिकल और विशेषकर शरीर विज्ञान के क्षेत्र में अपना उल्लेखनीय योगदान कर सकते हैं। भविष्य में जैसे-जैसे वैज्ञानिक उन्नति के साथ एक मिलीमीटर से बड़े और बड़े तथा बलशाली जेनोबोट्स बनते जाएंगे, जो हम आधुनिक मानवों के हर क्षेत्र में हमारे कठिन से कठिन या असंभव प्रतीत होने वाले कार्यों को चुटकियों में कर देने में बहुत सहायक सिद्ध होने लगेंगे। भविष्य में संभव है एक समय ऐसा भी आ सकता है, जब वैज्ञानिक ऐसे-ऐसे जेनोबोट्स का अविष्कार करने लगें जो आजकल की बड़ी क्रेनों, बुल्डोज़रों, रेलपटरी बिछाने वाली बड़ी-बड़ी मशीनों आदि को स्थानापन्न करके उनके द्वारा किए जाने वाले काम को खुद संभाल लें। दूसरे शब्दों में कहें कि हम मानव सभ्यता के समानांतर एक जेनोबोट्स की एकदम नई, अद्भुत और आधुनिकतम सभ्यता का उदय हमारी इसी धरती पर शुरू हो जाए।

इसमें विश्व मानवता के प्रति एक बहुत बड़े खतरे के प्रति भी वैज्ञानिकों को सावधान रहना चाहिए कि अति विकसित जेनोबोट्स की नई और आधुनिकतम सभ्यता अगर मानव सभ्यता से बगावत या विद्रोह कर दे, तो उस स्थिति में क्या होगा ? इसकी कल्पना आज से 37 वर्ष पूर्व सन् 1984 में बनी मशहूर फिल्म द टर्मिनेटर ( The Terminator )जिसके अभिनेता आर्नोल्ड अलोइस स्वार्जजेनेगर ( Arnold Alois Schwarzenegger) थे और इस फिल्म के निर्देशक मशहूर फिल्म निर्देशक जेम्स कैमरॉन ( James Cameron ) थे, में यह समस्या बखूबी दर्शाई गई है, जिसमें कुछ बहुत ही ऐडवांस्ड रोबोटिक मशीनें मानवता के खिलाफ बगावत कर देती हैं। इस फिल्म में एक बच्चे से क्रुद्ध होकर वे रोबोटिक मशीनें उसके जान के पीछे पड़ जाती हैं, जिसे कुछ पुराने टेक्नोलॉजी आधारित रोबोटिक मशीन बने अभिनेता आर्नोल्ड अलोइस स्वार्जजेनेगर को उस बच्चे को उन ऐडवांस्ड रोबोटिक मशीनों से बचाने में पसीने छूट जाते हैं। 

इसलिए इस दुनिया के आधुनिकतम रोबोट्स बनाने वैज्ञानिकों और जेनेटिक्स वैज्ञानिकों को यह बात पूरी तरह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि इस धरती पर एक मिलीमीटर से लेकर बड़े से बड़े तथा अति बलशाली जेनोबोट्स बनाते समय यह बात अपने दिलो-दिमाग और अपनी जहन में हमेशा रखनी चाहिए कि कभी भविष्य में ये अति विलक्षण बुद्धि वाले सुपरकंप्यूटराइज्ड अतिबलशाली जेनोबोट्स,जो अपना निर्णय लेने में एक वैज्ञानिक से भी लाखों गुना कम समय  लेते हैं, अगर अपने बनाने वाले से ही किसी चूक वश विद्रोह कर बैठें तो उस विकट परिस्थिति में क्या होगा।

क्योंकि इस धरती पर समस्त मानव प्रजाति के महा विध्वंस के सबब बने हजारों की संख्या में परमाणु बम, हाइड्रोजन बम और नाइट्रोजन बम तथा केमिकल बम आदि ही अब तक न जाने कितने करोड़ों लोगों का संहार कर चुके हैं इसलिए कालजयी महापुरुष और मानवता के सबसे बड़े पुजारी भगवान गौतम बुद्ध के इस शिक्षा का हमेशा ध्यान रखा जाना चाहिए कि हमेशा किसी भी चीज की अति न हो, सदा मध्यम मार्ग अपनाया जाना चाहिए, इसके अलावे सुप्रसिद्ध खगोलविद और भौतिक तथा रसायन वैज्ञानिक कार्ल सागैन ने कहा है कि इस समस्त ब्रह्मांड में सांसों के स्पंदन से युक्त फिलहाल हमारी एकमात्र धरती ही है, अभी तक हमारी धरती जैसा सजीव ग्रह कहीं भी नहीं है। अगर असीम ब्रह्मांड की असीम गहराइयों में कहीं उसकी जैसी ग्रह होने की अत्यंत क्षीण संभावना भी है, तो उसकी दूरी खरबों प्रकाश वर्ष की दूरी पर है ! जहाँ मनुष्य के लिए पहुँचना कभी भी संभव नहीं है। इसलिए इस धरती, इसके समस्त जैवमण्डल व समूची विश्व मानवता को बचाना व संरक्षित करना हमारा नैतिक, सामाजिक और मानवीय अभीष्ट कर्तव्य है।

(लेखक निर्मल कुमार शर्मा पर्यावरणविद हैं और खगोल से लेकर अंतरिक्ष आदि विषयों में विशेष रुचि लेते हैं।)

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