फिलीस्तीन एकजुटता दिवस मनाने के निहितार्थ

17 जून, 2025 को देश के सारे वामपंथी दलों ने फिलिस्तीन के साथ एकजुटता कर राष्ट्रीय दिवस मनाया। मानवता के हक़ और विश्व शांति के लिए अपनी प्रतिबद्धता की अभिव्यक्ति के लिए भूख और बदहाली से त्रस्त फिलिस्तीन के साथ एकजुटता की आम जनता से अपील की गई। यह आज के परिवेश में बहुत ज़रूरी है।

हमें यह याद रखना चाहिए कि यूक्रेन और रूस को युद्ध खत्म करने और बातचीत से समाधान निकालने और युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं की नसीहत देने वाले विश्व गुरु का अब नया नाम विष गुरु हो चुका है उन्होंने  संयुक्त राष्ट्र में इजराइल और हमास के बीच युद्ध विराम के प्रस्ताव में 8 पिद्दी देशों के साथ मतदान में भाग नहीं लिया (मतलब अप्रत्यक्ष रूप से ट्रंप के खौफ से इजराइल को समर्थन ही किया) जबकि 149 देशों ने पक्ष में मतदान किया और 14 देशों ने खिलाफ मतदान किया। विजय दलाल जी मानते हैं कि यह तीन ‘अ’अडानी, अंबानी और मोदी सरकार इस देश को लगभग बेच चुकी है। 

 आपरेशन सिंदूर के दौरान भी यह सच सामने आया जब डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा कि भारत और पाकिस्तान ने सीज़ फायर उनके कहने से किया है जिसके कारण भारतीय सेना में जमकर आक्रोश देखा गया तथा दुनिया भर के साथ देश में मोदी जी की भारी फजीहत हुई। अब तक ट्रम्प तेरह बार इस बात को कह चुका है किंतु सरकार की ओर से खंडन की अब तक खबर नहीं। इससे स्वत:सिद्ध होता है कि ट्रम्प भारत को दबाव में रखकर दक्षिण पूर्व एशिया पर अपना दबदबा रखने की कोशिश में संलग्न है और भारत की ओर से उसे हरी झंडी दिखा दी गई है।

वर्तमान में जब अमेरिका की सरपरस्ती में पनपा इज़राइल ईरान को परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र बनने से रोकने के लिए उस राष्ट्र पर विगत पांच दिनों से दनादन हमलावर है। जब उसके प्रतिरोध में ईरान ने अपने अस्त्रों का उपयोग शुरू किया और इज़राइल को जिस तरह क्षति पहुंचाई है उससे अमेरिका घबराया हुआ है। इज़राइल के नेतान्याहू ने तो ईरान द्वारा ट्रम्प को जान से मारने की बड़ी बात कह दी है। और खुद ग्रीस में शरण ले ली है।

दूसरी ओर अमेरिका से पीड़ित मुल्क भी एकजुट हो रहे हैं। तमाम मुस्लिम राष्ट्रों की भी एक होने की चर्चाएं जोरों पर हैं। यह भी चर्चाओं में है कि चीन ईरान को हथियार भेज रहा है। कोरिया और अफ्रीका भी इज़राइल के विरुद्ध ईरान के साथ सहयोग करने के लिए तैयार हैं। यह सब ईरान की संजोई कुशल युद्ध नीति के कारण संभव हुआ है।

लेकिन हमारे विषगुरु अभी भी अमेरिकी राष्ट्रपति का राग अलाप रहे हैं। ऐसे विश्व युद्ध की आशंका से भरे इस युद्ध में उनकी जो भूमिका अब तक रही है वह घोर निंदनीय है और देश के भविष्य के लिए बहुत नुकसानदायक होने वाली है।

इस मुश्किल वक्त में वामदलों ने फिलीस्तीन एकजुटता राष्ट्रीय दिवस मनाकर यह संदेश दिया है कि जिस तरह आज गाज़ा के हालात हैं या इससे पूर्व अफ़ग़ानिस्तान और इराक के साथ हुआ। लगभग वही स्थितियां ईरान में इज़राइल अमेरिका की शह पर कर रहा है। इज़राइल की बर्बादी देख जी 7 की कनाडा में बैठक छोड़कर भागना और सीज़फायर हेतु फिर चौधरी बनने की कोशिश करना यह बता रहा है कि अमेरिका की हालत पस्त है।

इसलिए इस युद्ध की परिणति वीभत्स रूप ना ले ले। इसलिए फिलीस्तीन के बहाने एकजुटता की की गई अपील महत्वपूर्ण है।काश! देशवासी इसे समझ पाते और सहयोग करते। क्योंकि फिलीस्तीन और ईरान दोनों देश हमारे शुभचिंतक रहे हैं। इस बार सरकार का रवैया बदला है।

(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)

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