एनआईए का बड़ा खुलासा: पहलगाम आतंकी हमले के लिए जिन तीन आतंकियों की स्केच जारी की गई, वह गलत थी!

यह विस्फोटक खबर आज इंडियन एक्सप्रेस ने उजागर की है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, एनआईए ने 22 अप्रैल को पहलगाम हमले को अंजाम देने वाले आतंकवादियों को कथित तौर पर पनाह देने के आरोप में जिन 2 लोगों को कश्मीर में हाल ही में गिरफ्तार किया था, उनसे पूछताछ के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि पहलगाम के सभी 3 हमलावर स्थानीय नहीं थे, बल्कि वे सभी पाकिस्तान से थे।

बता दें कि आतंकवादियों को पनाह देने के आरोप में एनआईए ने हाल ही में दो स्थानीय लोगों को गिरफ्तार किया था। उससे पहले एभि एनआईए ने टट्टू संचालकों, दुकानदारों और फोटोग्राफरों सहित 200 से ज्यादा लोगों से इस सिलसिले में पूछताछ की थी।

एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, आतंकवादी पहलगाम के बटकोट से परवेज अहमद जोथर और पहलगाम के हिल पार्क से बशीर अहमद जोथर के घर गए थे और उनके यहां भोजन किया था। एनआईए के एक प्रवक्ता ने एक्सप्रेस को बताया, “पूछताछ के दौरान, उन्होंने हमले में शामिल तीन सशस्त्र आतंकवादियों की पहचान का खुलासा किया है, और इस बात की भी पुष्टि की है कि वे प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े पाकिस्तानी नागरिक थे।”

यह खुलासा हमलावरों की पहचान के बारे में जो पहले माना जा रहा था, उससे अलग है। 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले के दो दिन बाद, जम्मू-कश्मीर पुलिस ने तीन स्केच जारी किए थे – जिन्हें पाकिस्तानी नागरिक हाशिम मूसा, अली भाई उर्फ ​​तल्हा, और कश्मीर के स्थानीय निवासी आदिल हुसैन थोकर के रूप में चिंहित किया गया था। लेकिन अब केंद्रीय एजेंसी के सूत्रों का कहना है कि स्केच में जिन तीन लोगों का उल्लेख किया गया था, वे लोग पहलगाम के हमलावर नहीं हैं। 

सूत्रों ने कहा है कि हमलावरों में से एक का नाम सुलेमान शाह है, जो पिछले साल 20 अक्टूबर को श्रीनगर-सोनमर्ग राजमार्ग पर जेड-मोड़ सुरंग का निर्माण करने वाली एक फर्म के सात कर्मचारियों की हत्या में शामिल था। इस हमले में उसका सह-आरोपी जुनैद रमजान भट 4 दिसंबर को जम्मू-कश्मीर पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारा गया था। उसी के फोन से पुलिस ने तीन अन्य आतंकवादियों के साथ जुनैद की एक तस्वीर बरामद की थी। इसी तस्वीर को 22 अप्रैल को पहलगाम हमले के बाद वायरल कर दिया गया था, और सूत्रों के मुताबिक, इसे जम्मू-कश्मीर पुलिस ने स्केच के आधार के रूप में इस्तेमाल किया था। 

जांच के दौरान, केंद्रीय एजेंसियों और एनआईए ने जुनैद के फोन से बरामद अलग-अलग तस्वीरें उन दोनों गिरफ्तार स्थानीय लोगों को दिखाईं, जिन्होंने उन लोगों की पहचान कर ली, जो पहलगाम हमले से दो दिन पहले उनसे मिलने आए थे। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, एक सूत्र ने कहा, “ताजा तस्वीरें कई गवाहों को भी दिखाई गईं और उन्होंने भी अपराध स्थल पर उनकी मौजूदगी की पुष्टि की है। ये तीनों पाकिस्तानी नागरिक हैं, जिनमें जेड-मोड़ आतंकी आरोपी सुलेमान शाह भी शामिल है।”

सोशल मीडिया में 6 बजे शाम से यह खबर वायरल है, और विपक्षी पार्टी कांग्रेस सहित आम लोगों के मन में तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं कि जांच एजेंसियां पिछले दो महीने से फिर क्या कर रही थीं? अब जब यह खुलासा सामने आ रहा है कि तीनों आतंकी पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से थे, तो कश्मीर में जबरन सैकड़ों घरों को बुलडोज करने का क्या अर्थ था? 

इतना ही नहीं, जब फर्जी स्केच के आधार पर फर्जी आतंकियों की तलाश की जा रही थी, तो इन तीनों आतंकियों के लिए वापस पाकिस्तान पलायन की राह आसान नहीं कर दी गई? इतनी बड़ी लापरवाही के लिए सरकार किसे जिम्मेदार ठहरायेगी? 

बता दें कि पहलगाम के बैसरण घाटी, जिसे मिनी स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है, में भारी बर्फबारी के अलावा हमेशा पर्यटकों का तांता लगा रहता है। इस तथ्य को सुरक्षा एजेंसियों के सिवाय देश में सभी टूरिस्ट ऑपरेटर्स जानते हैं, क्योंकि कश्मीर भ्रमण के लिए उनकी ओर से पर्यटकों को बैसरण घाटी की सैर का भी प्रोग्राम जुड़ा होता है। हालांकि, 22 अप्रैल की घटना के बाद कश्मीर प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था उपलब्ध न होने पर यह कहकर पल्ला झाड़ लिया था कि बैसरण घाटी के खुलने का समय अभी नहीं था, इसलिए सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं किये गये थे। 

एक के बाद एक गलतियों के बावजूद, लगता है सरकार अपने घोषित एजेंडे के हिसाब से ही देश को हांक रही है। पहलगाम आतंकी हमले की जांच के बगैर ही हमने पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर चला डाला, और फिर अचानक से सीजफायर भी कर लिया. दुनिया के कई देशों में भारतीय प्रतिनिधिमंडल भी घूम-घूमकर स्केच में दिखाए गये कथित आतंकियों की कहानी सुनाते रहे। यहां तक कि हमारे विदेश मंत्री तक नीदरलैंड में एक इंटरव्यू में कहते सुने गये कि हमने आतंकियों की स्केच जारी कर उनका सुराग लगा लिया है।

अब दो महीने बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी की जांच में पता चल रहा है कि पहलगाम के आतंकियों की जांच तो शुरू से ही गलत हो रही थी। यानि देश एक बार फिर से 22 अप्रैल की स्थिति में पहुंच चुका है, जबकि आज 23 जून हो चुका है।

प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने अपने सोशल मीडिया हैंडल से सवाल किया है, “ पहलगाम आतंकी हमले की जांच में बड़ी चूक?

पहलगाम आतंकी हमले के फौरन बाद मोदी सरकार ने जल्दबाजी में तीन कथित आतंकवादियों के स्केच जारी किए। लेकिन अब, द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, उन स्केच में शामिल कोई भी व्यक्ति इस हमले में शामिल नहीं था। वास्तविकता यह है कि कथित तौर पर स्केच जुनैद नामक एक आतंकवादी के फोन से बरामद एक तस्वीर पर आधारित थे, जिसे 4 दिसंबर 2024 को मारा गया था – हमले से महीनों पहले। 

इससे गंभीर सवाल उठते हैं:

❓ एक क्रूर आतंकवादी हमले की जांच में इतनी लापरवाही क्यों?

❓ क्या ये फर्जी स्केच मोदी सरकार की हेडलाइन मैनेजमेंट रणनीति का हिस्सा थे – वास्तविक कार्रवाई से ज़्यादा दिखावे के लिए?

❓ बगैर उचित सत्यापन के ये स्केच कैसे जारी किए गए? क्या पुलिस पर जल्दबाजी में कार्रवाई करने का कोई बाहरी दबाव था?

❓ सबसे महत्वपूर्ण बात – असली हमलावर कौन थे? वे अब कहाँ हैं? और दो महीने बाद भी उन्हें न्याय के कटघरे में क्यों नहीं लाया गया?

पहलगाम हमले को दो महीने हो गए हैं, और देश अभी भी जवाब मांग रहा है।”

निश्चित रूप से, यह सरकार की ओर से बड़ी भारी चूक है। यह बताता है कि देश के हुक्मरान जब इतनी बड़ी विपदा को भी टालने की गर्ज से तुक्के के आधार पर आतंकियों की स्केच जारी कर सकते हैं, सुरक्षा एजेंसियां हफ्तों बाद आम नागरिकों से जारी स्केच के आधार पर आतंकियों की शिनाख्त करने में सहयोग मांगने के लिए सार्वजनिक विज्ञापन प्रकाशित कराती हैं। फिर दो माह बाद पता चलता है कि ये सारी कवायद ही फर्जी है, आतंकी तो कोई और थे, तो देश किस पर भरोसा करे?  

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं) 

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