तालीम के बावजूद जब तहज़ीब धुएं में उड़ गई

तंबाकू-एक ऐसा शब्द जो न तो अब अनपढ़ तबक़े की जुबान तक सीमित है, न ही झोपड़पट्टियों की धूल में…

सियासत की शतरंज और सट्टे की चाल में फंसी युवा पीढ़ी 

कभी-कभी मुल्क का आइना यूं चकनाचूर हो जाता है कि हर शीशे में बस अफ़सोस और आंसुओं की परछाइयां दिखाई…

राजीव गांधी: वक़्त की तहज़ीब को मानी देने वाला नाम

कुछ लोग तारीख़ बनाते हैं, और कुछ लोग तारीख़ बन जाते हैं। राजीव गांधी उन चंद शख़्सियतों में से थे…

तिरंगे के साये में तंज- जब देशभक्ति के मायने मज़हब से तय होने लगे

भारतीय सेना की वर्दी, केवल कपड़े नहीं होती- वह एक प्रतीक है: निष्ठा, बलिदान और मातृभूमि के प्रति अदम्य प्रेम…

सरहद की माटी में दफ़्न वो सवाल जो अब उभरने लगे हैं

हिंदुस्तान एक पुर-सुकून मुल्क है-मगर ख़ामोश नहीं। इसकी रगों में ठहराव है, मगर बेहोशी नहीं। इसकी सरज़मीं पर अमन की…

जंग जश्न नहीं, जनाब- टीआरपी के बाजार में बिकता हुआ मातम है!

जंग कोई तमाशा नहीं होती, जिसे एंकरों की जुबान से शाम के शो की तरह पेश किया जाए। ये कोई…

हिफ़ाज़त का रंग न मज़हब देखता है, न जात – ऑपरेशन सिंदूर की गवाही

कुछ लम्हे अल्फ़ाज़ नहीं मांगते, वो ख़ुद तहरीर बन जाते हैं। ऑपरेशन सिंदूर भी ऐसा ही एक लम्हा था- जब…

सरहदें चुप हैं, मगर मोहब्बत पुकार रही है।

जब सुबहें मातम में लिपटी हों और शामें ख़ून की आहट लिए लौटें, जब फ़िज़ाओं में शहनाइयां नहीं, सायरनों की…

जाति की दीवारें गिराने के लिए पहले उन्हें गिनना ज़रूरी है- आंकड़ों में दबी आज़ादी की दस्तक

अगर किसी मुल्क की रूह पर सबसे गहरा ज़ख्म है, तो वो है- इंसानों की जबरन बनाई गई हैसियतें। वो…

जातीय जनगणना: लोकतंत्र के आईने में बराबरी की मुकम्मल तस्वीर की तलाश

यह वक़्त इतिहास के उस मोड़ पर खड़ा है जहां आंकड़े सिर्फ़ संख्या नहीं, सदियों से दबे हुए दर्द की…