कल मुंबई में अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (IIPS) में एक दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने भाषण के दौरान जो कुछ कहा, वह बेहद चिंताजनक था। जगदीप धनखड़ ने अवैध प्रवासियों से भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता के लिए उत्पन्न होने वाले गंभीर खतरे के प्रति अपनी चिंता जताई।
उन्होंने जोर देकर कहा कि देश की सीमाओं पर तकरीबन 2 करोड़ अवैध प्रवासियों की बसाहट हो चुकी है। उनका तर्क था कि प्रवासियों की यह आमद कानून प्रवर्तन के मुद्दों से परे जा चुकी है, जो राष्ट्रीय अखंडता और देश के संसाधनों के समुचित आवंटन को प्रभावित कर रही है। उप-राष्ट्रपति महोदय ने देश को अस्थिर करने के लिए डिज़ाइन किए गए जनसांख्यिकीय परिवर्तनों के बारे में चेताते हुए हालात को ‘जनसांख्यिकीय आक्रमण’ के रूप में वर्णित किया।
ये बातें यदि आरएसएस या विश्व हिंदू परिषद के नेताओं और कार्यकर्ताओं के द्वारा प्रचारित की जाती हैं, तो उन्हें आमतौर पर यह मानकर टाल दिया जाता है कि ये तो इनके हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के इच्छित उद्देश्य का हिस्सा है। लेकिन यह बात देश के दूसरे व्यक्ति, स्वंय उप-राष्ट्रपति के द्वारा जनसंख्या से जुड़े मुद्दे पर एक दीक्षांत भाषण में दी जा रही हो, तो इसे राज्य की घोषित नीति के रूप में मान्यता मिल जाती है।
क्या वास्तव में भारत की सीमाओं को 2 करोड़ अवैध घुसपैठियों ने कब्जा कर लिया है? क्या यह हमारे गृह मंत्रालय, बॉर्डर सिक्युरिटी फ़ोर्स की अक्षमता या सीमा पर चल रहे गोरखधंधे के बारे में नहीं बताता है? या यह मान लिया गया है कि देश हिंदुत्ववादी एजेंडे के तहत चल रहा है, और देश का बहुसंख्यक तबका इन बातों को सुनकर मान लेगा कि उसकी बदहाली, बेरोजगारी की वजह मौजूदा सरकार नहीं बल्कि दक्षिण एशिया के मुल्कों से अवैध घुसपैठ है?
जरुरी नहीं कि अपनी नाकामी को छुपाने के लिए ऐसे नैरेटिव सिर्फ मौजूदा निज़ाम के द्वारा ही लाये जा रहे हैं। लेकिन यह भी सच है कि इतनी शिद्दत के साथ लगातार देश को भरमाने की कोशिश शायद ही किसी अन्य के कार्यकाल में हुई हो। लेकिन मोदी सरकार इस काम को अंजाम दे, वो भी एक बार समझ आता है। लेकिन उप-राष्ट्रपति महोदय को ये सब करने की क्यों जरूरत पड़ती है, यह समझ से परे है।
आज भी समाचारपत्रों में देश में इंडस्ट्रियल आउटपुट के आंकड़े के बारे में खबर है कि औद्योगिक उत्पादन में लगातार जारी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वंय गुजरात में ऑपरेशन सिंदूर की सफलताओं के बारे में बताते-बताते यह साफ़ कर चुके हैं कि देश में स्वदेशी के बजाय विदेशी उत्पादों ने गणेश की मूर्ति से लेकर महिलाओं के साज-श्रृंगार की वस्तुओं तक पर कब्जा जमा लिया है। ये अलग बात है कि यह उनके ही मुख्यमंत्री काल का दौर था, जब भारत से व्यापारियों का प्रतिनिधिमंडल चीनी उत्पादों की वृहद मात्रा में खरीद कर भारतीय उद्योगों को तबाह करने की शुरुआत कर रहे थे। स्वंय पीएम मोदी के रोड शो के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले वाहन या निजी जहाजी बेड़े क्या स्वदेशी तकनीक का परिणाम हैं?
दरअसल सरकार को भी अहसास है कि बिहार हो या गुजरात, बहुसंख्यक युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी और करोड़ों छोटे दुकानदारों और उद्यमियों का जीवन गहरे संकट में है। बिग कॉर्पोरेट और विदेशी पूंजी समर्थक नीतियों को अंधाधुंध लागू करने का यह नतीजा है, लेकिन इसका इल्जाम तो किसी के सिर फोड़ना होगा, वर्ना जनता ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता के दावों के बावजूद अपने हालात से उबरने की कोई सूरत नहीं देख पा रही।
गनीमत है कि पीएम मोदी हालिया घटनाक्रम में पाक-चीन के तेजी से बढ़ते प्रगाढ़ रिश्तों की शिनाख्त कर पा रहे हैं, जिसके चलते भारत की मूल समस्या के लिए उन्हें नई उभरती महाशक्ति चीन और उसके उत्पादों से परहेज करने की नसीहत देनी पड़ी। लेकिन, उप-राष्ट्रपति महोदय के व्याख्यान तो अभी भी उसी पुरानी संघी सिद्धांत को थोपने की कोशिश है, मानो पिछले 11 वर्ष से बीजेपी के बजाय यूपीए सरकार ही देश पर राज कर रही है।
जनसंख्या के लिहाज से भले ही चीन को पछाड़ आज भारत विश्व में सर्वाधिक आबादी वाला देश बन चुका है, लेकिन यदि युवाओं के लिए रोजगार का मुद्दा सरकार की प्राथमिकता में पिछले 10 वर्षों में बन ही न सका हो, तो यही जनसंख्या देश के लिए सबसे बड़ा अभिशाप साबित हो सकती है।
हाल के वर्षों के दौरान पंजाब, हरियाणा और गुजरात जैसे अपेक्षाकृत संपन्न समझे वाले राज्यों से युवाओं का अमेरिका, कनाडा और यूरोपीय देशों के लिए अवैध तरीकों से घुसपैठ की कोशिशें केंद्र और राज्य सरकारों ने अनदेखी की, जिसका नतीजा डोनाल्ड ट्रंप की नई पारी में देखने को मिल रहा है। कनाडा में ट्रुडो सरकार के साथ हमारी मर्दवादी विदेश नीति ने भी भारतीय छात्रों और वीजा प्रकिया को दुरूह बना दिया है, जिसे कनाडा में नए शासनाध्यक्ष के साथ अब नए सिरे से दुरुस्त करने की कोशिश शुरू हो चुकी है।
उधर डोनाल्ड ट्रंप और यूरोपीय देशों में बढ़ते नस्लीय, राष्ट्रवादी सोच के पीछे उनके तीसरी दुनिया के मुल्कों पर साम्राज्यवादी शोषण की कमजोर पड़ती पकड़ काम कर रही है। अपने मुल्क में बढ़ती असमानता और व्यापक आबादी के हिस्से में सामाजिक सुरक्षा के उपायों में लगातार कटौती के चलते बढ़ती अलोकप्रियता से बचने के लिए MAGA या अप्रवासियों के खिलाफ सख्ती और निर्वासन ही इन पश्चिमी हुक्मरानों के पास उपाय बचा है।
लेकिन भारत तो इस हमले का शिकार मुल्क है, या कहना चाहिए कि इसकी सबसे बड़ी मार अगर किसी देश को पड़ने वाली है तो वह मुल्क भारत होने वाला है। लेकिन मौजूदा हुक्मरान तो उसी डोनाल्ड ट्रंप की भाषा का इस्तेमाल देश के भीतर अपने बचाव के लिए आजमा रहे हैं। आरएसएस और उसके आनुषांगिक संगठनों के दशकों के प्रयास का ही यह फल है कि देश में अब बांग्लादेशी, रोहिंगियाई अवैध घुसपैठ की बात को सहज स्वीकार्य बना दिया गया है।
जो बात अभी तक गली, नुक्कड़ और कथित गोदी मीडिया के चैनलों पर बहस के नाम पर परोसी जाती थी, उसे अब देश के दूसरे सबसे प्रमुख नागरिक, महामहिम उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ सार्वजनिक मंचों से दोहरा रहे हैं। उपराष्ट्रपति का पद संवैधानिक होने के साथ-साथ बेहद जिम्मेदारी वाला पद है, लेकिन इसका उपयोग यदि देश की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी को दूर करने के उपाय तलाशने के बजाय मुंबई में अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान में ऐसे व्याख्यान में खपाया जा रहा है, तो समझ लेना चाहिए कि इनके पास मर्ज की दवा नहीं हो सकती।
पहलगाम आतंकी हमले के बाद से भारत में नए सिरे से मुस्लिम विरोधी माहौल बनाने की कोशिशें की गईं, लेकिन कश्मीरी अवाम की मेहमाननवाजी, पर्यटकों की जान-माल की सुरक्षा और आतंकियों की गोली के शिकार सेना के अधिकारी की पत्नी के बयान ने मामले को तूल देने का मौका ही नहीं दिया। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि बीजेपी शासित राज्यों में जमीनी स्तर पर ऐसा कुछ हुआ ही न हो।
सिर्फ दिल्ली से ही खबर है कि जनवरी से कम से कम 120 अवैध बांग्लादेशी नागरिकों को वापस भेजा जा चुका है। ये खबरें देश मीडिया को प्राप्त जानकारी के आधार पर पा रहा है। इन अवैध प्रवासियों की पहचान कैसे की गई, क्या इन्हें भी उसी तरह बांग्लादेश को सौंपा गया है, जैसे अमेरिका ने अवैध रूप से उसके देश में रह रहे भारतीय नागरिकों को भेजा था? इसकी कोई अधिकृत जानकारी हमें इन खबरों में नहीं मिलती। गुजरात में बड़े पैमाने पर मुस्लिम आबादी के मकानों, झुग्गियों को बुलडोज किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर उनके वीडियो क्लिप्स से पता चलता है कि वे गुजराती भाषी मुस्लिम हैं, जिनमें से अधिकांश राजस्थान से 60-70 वर्ष पहले गुजरात आकर अपनी गुजर-बसर कर रहे हैं। ऐसे भी परिवार हैं, जिनकी बस्तियों को इस बीच दो बार तोड़ा जा चुका है।
इसी प्रकार, उत्तर प्रदेश में नेपाल की सीमा से सटे इलाकों में अल्पसंख्यक आबादी वाले इलाकों पर कार्रवाई जारी है। इन सारी कार्रवाइयों से बहुसंख्यक आबादी को भले ही संदेश मिलता रहे कि भाजपा राज्य सरकारें अपने घोषित एजेंडे पर काम जारी रखे हुए हैं, लेकिन इन सबसे अब उनकी भूख और बेहाली हल नहीं हो रही। किसी भी सरकार के लिए बहुसंख्यक समाज को एक समय तक उसकी समस्या के लिए किसी अन्य को दोषारोपित कर लाभ तो हासिल किया जा सकता है, लेकिन बार-बार एक ही मंत्र को घिसने और चंद कॉर्पोरेट समूहों के हाथ में देश को गिरवी रखे जाने को बहुत समय तक छिपाया नहीं जा सकता।
उप-राष्ट्रपति का दो करोड़ अवैध प्रवासियों के होने का दावा तो बेहद आपत्तिजनक और चिंता का विषय है। विपक्ष को इसे गंभीरता से लेना चाहिए, और इसकी गहन जांच की मांग की जानी चाहिए, वर्ना देश की मूलभूत समस्याओं का हल खोजने की जगह हमारा देश आगे बढ़ने के बजाय अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए गृह-युद्ध की ओर धकेला जा सकता है।
(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)