फादर स्टेन स्वामी स्मृति दिवस पर की गई मांग, बस्तर समेत आदिवासी क्षेत्रों में दमन और हिंसा तुरंत बंद हो

रांची। फादर स्टेन स्वामी, जो आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन के अधिकार और उनकी आजीविका की रक्षा के लिए सजगता के साथ आदिवासी समाज को जागरूक करते रहे और सरकार का ध्यान आकर्षित करते रहे, उनकी मृत्यु 5 जुलाई 2021 को मुंबई के एक अस्पताल में हुई थी। उल्लेखनीय है कि उन्हें 8 अक्टूबर 2020 को भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार कर मुंबई की तलोजा जेल भेजा गया था।

84 वर्षीय एक्टिविस्ट फादर स्टेन स्वामी के वकील ने बॉम्बे हाईकोर्ट में उनकी लगातार बिगड़ती सेहत का हवाला देकर जमानत की अपील की थी, लेकिन कोर्ट ने कोई संज्ञान नहीं लिया। 4 जुलाई 2021 को उनकी तबीयत अचानक बिगड़ने के बाद उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था, जहां उनकी हालत और खराब हुई और अंततः 5 जुलाई को उन्होंने दम तोड़ दिया, जिसे एक तरह से संस्थागत हत्या माना गया।

5 जुलाई 2025 को फादर स्टेन स्वामी की स्मृति में बग़ैचा, नामकुम में स्मृति दिवस का आयोजन किया गया। इस अवसर पर चर्चा का विषय “संवैधानिक अधिकार और जमीनी हकीकत” रखा गया। 150 से अधिक लोग इस बैठक में शामिल हुए और मानवाधिकार हनन पर चर्चा की। कार्यक्रम की शुरुआत स्टेन स्वामी की मूर्ति पर पुष्पांजलि अर्पित करके हुई। इसके बाद थियेटर आर्टिस्ट प्रणव मुखर्जी ने एक मोनो एक्ट के माध्यम से अपनी आवाज उठाने का संदेश दिया। अवसर पर छत्तीसगढ़ की स्थिति को सोनी सोरी के एक वीडियो के जरिए साझा किया गया, जिसमें उन्होंने ऑपरेशन कगार पर अपनी चिंता व्यक्त की।

इस अवसर पर झारखंड के जन संगठनों, राजनीतिक दलों और समाज के सचेत नागरिकों ने कहा कि बस्तर (छत्तीसगढ़), झारखंड और देश के संसाधन-संपन्न आदिवासी क्षेत्रों में “माओवाद खात्मा” के नाम पर सरकार द्वारा बढ़ती हिंसा, दमन, मानवाधिकार उल्लंघन और जल-जंगल-जमीन के व्यापक दोहन की तैयारी का घोर विरोध करते हैं। उन्होंने मांग की कि केंद्र और संबंधित राज्य सरकारें तुरंत अपने नागरिकों पर सैन्य आक्रमण रोकें और अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभाएं।

वक्ताओं ने बताया कि दशकों से देश के आदिवासियों और उनके सहजीवी समुदायों पर “माओवाद खात्मा” के नाम पर हिंसा और दमन हो रहा है। पिछले कुछ वर्षों में यह और तीव्र हो गया है। जनवरी 2024 में बस्तर में केंद्र सरकार ने राज्य के साथ मिलकर “ऑपरेशन कगार” शुरू किया, जिसमें अब तक लगभग 500 लोग, जिनमें अधिकांश आदिवासी हैं, मारे गए हैं। इनमें माओवादी और सामान्य नागरिक दोनों शामिल हैं।

इन हत्याओं के लिए सुरक्षा बलों को करोड़ों का इनाम मिला है। केवल सशस्त्र आंदोलन के खिलाफ ही नहीं, बल्कि विस्थापन, जबरन खनन, जबरन कैंप निर्माण और बढ़ते सैन्यकरण के खिलाफ आदिवासियों के शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक विरोध को भी कुचला जा रहा है। बस्तर के आदिवासी युवाओं का संगठन “मूलवासी बचाओ मंच” लगातार जबरन कैंप और विस्थापन के खिलाफ संघर्ष कर रहा था। मंच को प्रतिबंधित करते हुए इसके युवा नेताओं को UAPA समेत विभिन्न फर्जी आरोपों में गिरफ्तार कर लिया गया है।

पिछले कुछ वर्षों में बस्तर, झारखंड के आदिवासी सघन क्षेत्रों और अन्य पांचवीं अनुसूची राज्यों में PESA और अन्य संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन कर, बिना ग्राम सभा की सहमति के, एक के बाद एक सुरक्षा बलों के कैंप स्थापित किए गए। कई कैंप रात के अंधेरे में बिना ग्रामीणों को सूचित किए बनाए गए।

बस्तर में 160 से अधिक और झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम में 25 कैंप स्थापित किए गए हैं। ये कैंप आदिवासियों की सार्वजनिक और रैयती जमीन पर बने हैं, जिससे गांव का सामाजिक माहौल खराब हो रहा है, महिलाओं की असुरक्षा बढ़ रही है, और लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी पर डर और दमन का साया मंडराता रहता है।

आदिवासियों के मूल मुद्दों और समस्याओं के समाधान की दिशा में कुछ भी करने के बजाय, बंदूक के बल पर उनके क्षेत्र को एक खुले जेल में बदल दिया गया है। आदिवासी दशकों से जबरन भूमि अधिग्रहण, जंगल से बेदखली और निरंकुश खनन के खिलाफ लड़ रहे हैं। सम्मानजनक जीवन और संवैधानिक अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इसके बावजूद PESA, पांचवीं अनुसूची, वन अधिकार कानून और अन्य आदिवासी अधिकारों का व्यापक उल्लंघन बढ़ता जा रहा है।

छत्तीसगढ़ और झारखंड में माओवाद विरोधी अभियानों का असली उद्देश्य आदिवासी इलाकों को कॉरपोरेट लूट के लिए सुरक्षित बनाना है। ये इलाके खनिज और अन्य प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध हैं, जिन पर बड़े कारोबारियों की नजर है। ग्राम सभाओं की असहमति, आदिवासियों के असहयोग और प्रतिरोध के आंदोलनों, गरीबों के लिए लड़ने वाले प्रगतिशील संगठनों और माओवादियों के विरोध के बावजूद, सरकार कॉरपोरेट हितों की रक्षा के लिए प्रशासनिक दमन करती है। आदिवासियों और अन्य समूहों को उनके कानूनी अधिकारों से वंचित कर विस्थापित करने की हर कठोर कार्रवाई की जा रही है।

पिछले कुछ महीनों में भाकपा (माओवादी) ने कई बार युद्धविराम (आत्मरक्षा को छोड़कर) की घोषणा के साथ शांति वार्ता में शामिल होने की इच्छा व्यक्त की है। फिर भी, केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से व्यापक हिंसा और मानवाधिकार उल्लंघन जारी है। हाल ही में, बस्तर के कर्रेगुट्टा पर्वत श्रृंखला में हजारों की संख्या में सुरक्षा बलों ने तीन सप्ताह तक “माओवादी खात्मा” का अभियान चलाया।

इस अभियान में 31 लोग, मुख्यतः आदिवासी, मारे गए, जिनमें कुछ सशस्त्र माओवादी और कई निहत्थे आदिवासी शामिल थे। सुरक्षा बलों ने शवों के सामने हवा में बंदूकें लहराकर जश्न मनाया। कई शवों को परिजनों से छिपाकर अस्पताल में रखा गया, जिससे वे सड़ गए। बाद में परिजनों को शवों की पहचान करने और ले जाने को कहा गया।

मई 2025 में भाकपा (माओवादी) के महासचिव बसवराजु को कथित रूप से घेरकर पकड़ा और मार दिया गया। कई आदिवासी और अन्य माओवादी सदस्य भी मारे गए। अधिकारियों ने उनके परिवारों को शव देखने, लेने या सौंपने से इनकार कर दिया। पुलिस ने चुपके से, बिना परिवारों की सहमति के, इन शवों को जला दिया, जो संविधान, अंतरराष्ट्रीय कानूनों, मानवता और सामाजिक-सांस्कृतिक रीति-रिवाजों का उल्लंघन दर्शाता है।

मीडिया खबरों के अनुसार, 5-6 जून 2025 को बस्तर में भाकपा (माओवादी) के 18 या अधिक नेताओं को सुरक्षा बलों ने हिरासत में लिया। लेकिन इसकी औपचारिक पुष्टि नहीं की गई, न ही उनकी गिरफ्तारी को सार्वजनिक किया गया, और न ही उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया। लंबे समय तक सक्षम न्यायालय में पेश न करना गैरकानूनी और आपराधिक है, जिससे गिरफ्तार नेताओं की संदिग्ध हत्या की आशंका बढ़ती है। प्रभावित जंगलों में लगे विस्फोटकों और हथियारों से सुरक्षा बलों और आदिवासियों की मौतों के प्रति सरकार उदासीन है।

यह गंभीर स्थिति हमारे लोकतंत्र और संवैधानिक व्यवस्था पर एक धब्बा है और गरिमापूर्ण मानवीय जीवन के लिए खतरा है।

झारखंड के जन संगठन, राजनीतिक दल और सचेत नागरिक केंद्र सरकार, झारखंड सरकार और अन्य संबंधित राज्य सरकारों से निम्नलिखित मांग करते हैं:

  1. तुरंत सशस्त्र आक्रमण और हिंसा रोकें। निष्पक्ष और विश्वसनीय सैन्य अभियान विराम लागू करें।
  2. स्थानीय आदिवासियों के साथ उनके मुद्दों पर तुरंत संवाद करें।
  3. भाकपा (माओवादी) के साथ शांति वार्ता शुरू करें।
  4. “मूलवासी बचाओ मंच” पर लगे प्रतिबंध को हटाएं, इसके नेताओं पर लगे आरोप वापस लें और उन्हें रिहा करें।
  5. ग्राम सभा की सहमति के बिना बनाए गए सशस्त्र बल कैंपों और विद्यालयों में लगे कैंपों को हटाएं।
  6. आदिवासी क्षेत्रों में PESA, पांचवीं अनुसूची, वन अधिकार कानून और सभी आदिवासी अधिकार-संबंधी कानूनों को पूर्ण रूप से लागू करें।

झारखंड के जन संगठन, राजनीतिक दल और सचेत नागरिक भाकपा (माओवादी) से भी अपील करते हैं कि वे पिछले पचास वर्षों के अनुभव और वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखकर, अपने समुदाय के सर्वोत्तम हित में अपनी रणनीतियों और कार्यनीति की समीक्षा करें। साथ ही, वे न्याय, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों और नागरिक स्वतंत्रताओं के मानकों के आधार पर अपनी रणनीति की समीक्षा करें।

कार्यक्रम में उपस्थित झारखंड की एलिना होरो ने नक्सल के नाम पर फर्जी गिरफ्तारियों पर चर्चा की और सभी संगठनों को एकजुट होकर काम करने का आग्रह किया। अलोका कुजूर ने झारखंड में सैन्यकरण, फर्जी एनकाउंटर और फर्जी गिरफ्तारियों के खिलाफ संगठित रूप से आवाज उठाने की बात कही। उड़ीसा से आए लेनिन ने नियमगिरि की समस्याओं पर प्रकाश डाला। शहीद भगवान सोय की मां सोनी सोय ने कलिंगनगर की समस्याओं को बताया।

खुले सत्र में प्रवीर पीटर ने उमर खालिद और गुलफिशा फातिमा के जेल में होने पर चिंता जाहिर की। बिरसा ब्रिगेड के अर्जुन कुमार पूर्ति ने जमीन के संघर्ष में युवाओं को भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। जेएनयू के छात्र दीपांकर ने अस्तित्व की बात रखी और ज्योतिबा फुले को याद किया। किरण ने आंदोलन में जेंडर के मुद्दे को न भूलने का आग्रह किया। अन्य लोगों ने भी अपनी बात रखी। मांडर के समूह ‘विंग्स ऑफ छोटानागपुर’ ने नगाड़ा और मांदर पर गीतों की प्रस्तुति दी।

कार्यक्रम की अध्यक्षता भारत भूषण चौधरी ने की और संचालन याकूब कुजूर, सिस्टर लीना, दीप्ति मेरी मिंज और पल्लवी प्रतिभा ने किया। धन्यवाद ज्ञापन पीटर मार्टिन ने किया। कार्यक्रम का आयोजन झारखंड जनाधिकार महासभा और बग़ैचा द्वारा किया गया था।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट)

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