झारखंड के लातेहार जिला मुख्यालय से मात्र 27 किमी दूर मनिका प्रखंड में शिक्षा की स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। प्रखंड में कुल 153 विद्यालय हैं, जिनमें 90 उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय, 20 प्राथमिक विद्यालय और 43 मध्य विद्यालय शामिल हैं। हैरानी की बात यह है कि 40 प्राथमिक विद्यालयों में केवल 40 शिक्षक कार्यरत हैं। इन विद्यालयों में 84% छात्र अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदाय से हैं। क्या यह दलित-आदिवासी बच्चों को शिक्षा से वंचित रखने की कोई साजिश है?
शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 के अनुसार, 60 छात्रों तक के लिए दो शिक्षक, 61 से 90 छात्रों के लिए तीन शिक्षक, 91 से 120 छात्रों के लिए चार शिक्षक और 121 से 200 छात्रों के लिए पांच शिक्षक सहित एक प्रधानाध्यापक होना चाहिए। लेकिन वास्तविकता इससे कोसों दूर है। उदाहरण के लिए, बिचलीदाग प्राथमिक विद्यालय में 144 छात्रों पर केवल एक शिक्षक है। सर्वेक्षण में पाया गया कि इन 40 प्राथमिक विद्यालयों में RTE मानकों के अनुसार कम-से-कम 99 शिक्षकों की आवश्यकता है, जबकि वर्तमान में केवल 40 शिक्षक ही उपलब्ध हैं।
सर्वेक्षण में यह भी सामने आया कि 87.5% शिक्षक अस्थायी (कॉन्ट्रैक्ट) आधार पर नियुक्त हैं, जिन्हें न तो स्थायी वेतन मिलता है और न ही सामाजिक सुरक्षा। महिला शिक्षकों की संख्या मात्र 15% है, जिसके कारण छात्राओं के लिए सुरक्षित और संवेदनशील वातावरण का अभाव है। शिक्षा की गुणवत्ता भी अत्यंत चिंताजनक स्थिति में है।
नरेगा सहायता केंद्र, मनिका द्वारा जनवरी 2025 से मार्च 2025 के बीच किए गए सर्वेक्षण ने इन 40 एकल-शिक्षक प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा व्यवस्था की भयावह स्थिति को उजागर किया है। सर्वेक्षण के निष्कर्ष बताते हैं कि RTE अधिनियम, 2009 के प्रावधानों का खुला उल्लंघन हो रहा है, जिससे वंचित समुदायों के बच्चों का भविष्य संकट में है।
शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009
RTE अधिनियम 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार देता है। इसका मुख्य उद्देश्य सभी बच्चों को उनकी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के बावजूद गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना है। लेकिन मनिका में यह उद्देश्य पूरा होता नहीं दिख रहा।
सर्वेक्षण के प्रमुख निष्कर्ष:
- शिक्षकों की भारी कमी: 40 विद्यालयों में केवल 40 शिक्षक हैं, जबकि RTE मानकों के अनुसार 99 शिक्षकों की आवश्यकता है। इससे शिक्षक-छात्र अनुपात बुरी तरह प्रभावित है।
- कम उपस्थिति: शिक्षकों की कमी के कारण केवल एक-तिहाई छात्र ही नियमित रूप से विद्यालय में उपस्थित रहते हैं, जो शिक्षा के प्रति घटते विश्वास को दर्शाता है।
- शिक्षा की गुणवत्ता: कक्षा 5 तक के अधिकांश छात्र बुनियादी साक्षरता और गणना कौशल में कमजोर हैं। शिक्षकों का ध्यान शैक्षणिक कार्यों के बजाय प्रशासनिक कार्यों (जैसे रिपोर्टिंग, चुनाव ड्यूटी आदि) में अधिक रहता है।
- मूलभूत सुविधाओं का अभाव: 82.5% विद्यालयों में शौचालय अनुपयोगी हैं। बिजली, पेयजल, फर्नीचर और सुरक्षित भवनों की कमी है। कई विद्यालयों की छतें और दीवारें जर्जर हैं, जो बच्चों की सुरक्षा के लिए खतरा हैं।
- मध्याह्न भोजन योजना की खामियां: भोजन में पोषण की कमी है और रसोइयों को छह महीने से वेतन नहीं मिला है, जिससे योजना की नियमितता प्रभावित हो रही है।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य:
- 77.5% शिक्षक 40 वर्ष से अधिक आयु के हैं और डिजिटल या आधुनिक शिक्षण पद्धतियों से अपरिचित हैं।
- 84% छात्र SC/ST समुदाय से हैं, जो पहले से ही सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित हैं।
- केवल 12.5% शिक्षक नियमित रूप से पढ़ाने के लिए उपलब्ध रहते हैं, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता और प्रभावित होती है।
- शिक्षकों का 10+ घंटे साप्ताहिक समय गैर-शैक्षणिक कार्यों में व्यतीत होता है।
सर्वेक्षण टीम में प्रख्यात अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज, नरेगा वाच के जेम्स हेरेंज, पचाठी सिंह, पल्लवी कुमारी, सोमवती और सारंग गायकवाड़ शामिल थे।
पृष्ठभूमि और व्यापक संदर्भ
5 अक्टूबर 2021 को विश्व शिक्षक दिवस पर यूनेस्को की ‘स्टेट ऑफ द एजुकेशन रिपोर्ट फॉर इंडिया: नो टीचर, नो क्लास’ में बताया गया था कि झारखंड के 6,200 स्कूल केवल एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। चार साल बाद, 2025 में स्थिति और बिगड़ गई है। अब राज्य में 8,788 एकल-शिक्षक विद्यालय हैं।
17 अप्रैल 2025 को स्कूली शिक्षा व साक्षरता विभाग ने घोषणा की थी कि एकल-शिक्षक विद्यालयों में अतिरिक्त शिक्षकों की नियुक्ति की जाएगी। विभाग ने जिला उपायुक्तों को 25 अप्रैल 2025 तक जिला स्थापना समिति की बैठक कर शिक्षकों की पदस्थापना सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था। स्कूली शिक्षा व साक्षरता विभाग के सचिव उमा शंकर सिंह ने कहा था कि यू-डाइस प्लस 2024-25 के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 8,788 सरकारी विद्यालयों में केवल एक शिक्षक कार्यरत है। शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों के कुछ विद्यालयों में आवश्यकता से अधिक शिक्षक हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में कमी है। केंद्र सरकार ने भी इस असंतुलन को दूर करने के लिए निर्देश दिए हैं।
यू-डाइस प्लस
यू-डाइस प्लस (Unified District Information System for Education Plus) एक प्रणाली है जो स्कूली शिक्षा के बारे में जानकारी एकत्र करती है। यह छात्रों के नामांकन, ड्रॉपआउट दर, शिक्षकों की संख्या और स्कूलों में उपलब्ध सुविधाओं जैसे विभिन्न पहलुओं पर डेटा संकलित करती है।
विशेषज्ञों की राय
प्रोफेसर ज्यां द्रेज ने कहा कि झारखंड में शिक्षकों की उपलब्धता के मामले में स्थिति अत्यंत खराब है। राज्य में 8,000 से अधिक विद्यालय एकल शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। मनिका प्रखंड में 57 ऐसे स्कूल हैं। उन्होंने 27 जून 2025 को प्रखंड मुख्यालय में एकल-शिक्षक स्कूलों के खिलाफ जनसुनवाई कार्यक्रम की घोषणा की है। उनके अनुसार, RTE अधिनियम लागू होने के 16 वर्ष बाद भी इसे पूरी तरह लागू नहीं किया जा सका है।
नरेगा वाच के राज्य समन्वयक जेम्स हेरेंज ने कहा कि दलित और आदिवासी बहुल क्षेत्रों में शिक्षकों की कमी सबसे अधिक है। 84% एकल-शिक्षक विद्यालय ऐसे क्षेत्रों में हैं, जहां दलित-आदिवासी बच्चे पढ़ते हैं। यह एक प्रकार का षड्यंत्र प्रतीत होता है, जो देश की नींव को कमजोर कर रहा है। शिक्षा के अभाव में मानव संसाधन तैयार नहीं हो पा रहा है, जिसका सबसे अधिक प्रभाव दलित-आदिवासी बच्चों पर पड़ रहा है।
सर्वेक्षण टीम की मांगें:
- RTE मानकों के अनुरूप तत्काल शिक्षक नियुक्तियां।
- विद्यालयों में शौचालय, पेयजल, सुरक्षित भवन और फर्नीचर की व्यवस्था।
- महिला शिक्षकों की नियुक्ति में वृद्धि ताकि छात्राओं को सुरक्षित वातावरण मिले।
- मध्याह्न भोजन योजना में पोषण की गुणवत्ता सुनिश्चित करना और रसोइयों को नियमित मानदेय का भुगतान।
सर्वेक्षण स्पष्ट करता है कि मनिका प्रखंड के एकल-शिक्षक विद्यालय न केवल बच्चों को शिक्षा के अधिकार से वंचित कर रहे हैं, बल्कि सामाजिक असमानता को भी गहरा रहे हैं। यदि सरकार द्वारा शीघ्र प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो इन विद्यालयों में पढ़ने वाले हजारों बच्चों, विशेषकर दलित-आदिवासी समुदाय के बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो सकता है।
(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट)