ईरान-इजरायल युद्ध के चलते इजरायल में भगदड़ मची हुई है। हजारों लोग समुद्री और हवाई रास्ते से देश छोड़ कर दूसरे देशों में चले गए हैं और हजारों की संख्या में ही लोग अपना घर छोड़ कर सुरक्षित इलाकों में जा रहे हैं। लगभग एक करोड़ की आबादी वाले इस देश का एक बड़ा हिस्सा बंकरों में छुपा हुआ है।
इजरायली जनता के सामने यह स्थिति ईरान के जवाबी हमले की वजह से बनी है, लेकिन इसके लिए जिम्मेदार ईरान नहीं बल्कि इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू हैं, जिन्होंने पश्चिम एशिया का चौधरी बनने के लिए अमेरिका के लठैत की भूमिका निभाते हुए ईरान पर हमला कर संकट को दावत दी है। इजरायली जनता के सामने अपना घर या देश छोड़ने के बजाय उन्हें संकट में डालने वाली नेतन्याहू सरकार का तख्तापलट का ज्यादा आसान विकल्प है, जिसे उसे आजमाना चाहिए।
बहरहाल इजरायल में मची इस भगदड़ के बीच इराकी यहूदी मूल के इतिहासकार और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर अवि श्लेम ने भी ‘द वायर’ के लिए करण थापर से एक इंटरव्यू में कहा है कि नेतन्याहू ने ईरान पर एकतरफा युद्ध थोपा है। उन्होंने नेतन्याहू और अमेरिका की इस सफाई को खारिज किया है कि यह आत्मरक्षा के लिए किया गया हमला है। प्रोफेसर श्लेम का कहना है कि यह एक संप्रभु राष्ट्र पर इजरायल का अकारण किया गया हमला है, जिसे करने का उसे कोई अधिकार नहीं था।
प्रोफेसर श्लेम ने कहा कि नेतन्याहू बीते 30 वर्षों से यह झूठ फैला रहे हैं कि ईरान परमाणु बम बनाने के क़रीब है, जबकि ईरान ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर किए हैं, जबकि इजरायल ने इस संधि का हिस्सा बनने से हमेशा इनकार किया है। प्रोफेसर अवि श्लेम ने कहा कि वह अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अभिकरण (आईएईए) के द्वारा अपने परमाणु ठिकानों की निगरानी के लिए भी कभी तैयार नहीं हुआ। आईएईए ने हाल ही में ईरान के परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की निगरानी में भी यह नहीं पाया कि वहां परमाणु बम बनाने की कोई तैयारी चल रही है, फिर भी नेतन्याहू ने सरासर झूठ बोलकर उस पर हमला किया।
उन्होंने कहा, ”इजरायल और अमेरिका ने ईरान के परमाणु ऊर्जा केंद्रों पर जो बमबारी की है, वह अंतरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन है। यह एक ख़तरनाक युद्ध है, जिसके मध्य-पूर्व में अनपेक्षित नतीजे होंगे। युद्ध को आप शुरू करना तो जानते हैं, लेकिन यह नहीं जानते हैं कि उसे खत्म कैसे करेंगे?’’
प्रोफ़ेसर श्लेम का मानना है कि ईरान नहीं, बल्कि इजरायल ईरान के वजूद के लिए ख़तरा है, क्योंकि उसके पास 90 से 100 के आसपास परमाणु हथियार हैं और वह इनके इस्तेमाल से ईरान को भाप बनाकर उड़ा सकता है। विडंबना है कि जो देश खुद क्षेत्रीय शांति और दूसरे देशों के लिए खतरा बना हुआ है, वह दूसरे को ख़तरनाक बता रहा है। ईरान ने बीती आधी सदी में अपने किसी भी पड़ोसी देश पर हमला नहीं किया है, जबकि इजरायल का अपने पड़ोसी देशों पर बार-बार हमले करने का रिकॉर्ड है और यह सब करके वह अंतरराष्ट्रीय क़ानून का आदतन उल्लंघन करता आ रहा है।
प्रोफेसर श्लेम का कहना है, ”नेतन्याहू इजरायल के इतिहास में सबसे ख़राब प्रधानमंत्री के तौर पर याद किए जाएंगे, जो जंगखोर हैं और अफ़वाहें फैलाकर ईरान को ‘दानव’ बताते हुए उसके बारे में पश्चिमी देशों में ‘हिस्टीरिया’ पैदा करते हैं। वह एक ऐसे व्यक्ति है, जो पूरी तरह से नकारात्मक हैं, जिसके पास कोई सकारात्मक विचार और सकारात्मक उपलब्धि नहीं है, जो इजरायल में और उसके बाहर भी ‘बांटो और राज करो’ का खेल खेलता है, लगातार झूठ बोलता है और जिसकी संदिग्ध पहचान ‘न्याय का भगोड़ा’ होने की है।’’
प्रोफेसर श्लेम ने कहा, ”मैं यह देख कर हतप्रभ हूं कि कोई अमेरिकी राष्ट्रपति (डॉनल्ड ट्रंप) किसी देश (ईरान) के मुखिया की हत्या की बात कर सकता है! इस तरह तो माफ़िया अपने दुश्मनों की हत्या की बात करते हैं। ट्रंप की यह भाषा उस तरह की नहीं है, जिसकी अपेक्षा हम एक सभ्य देश के विश्व नेता से रखते हैं।’’
(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं।)