2024 के चुनाव नतीजे आने के बाद यह उम्मीद थी कि बैसाखियों पर टिकी अल्पमत में आ चुकी भाजपा का यह कार्यकाल पहले से भिन्न होगा।लेकिन पिछले एक साल की घटनाएं साक्षी है कि शायद कुछ भी नहीं बदला The more Things change, the more they stay the same !
सब कुछ बिल्कुल पहले जैसा ही चल रहा है। सरकारी संस्थाओं पर संपूर्ण कब्जा और बिल्कुल पहले जैसा ही दुरुपयोग। सोनिया गांधी और नेता विपक्ष राहुल गांधी के खिलाफ फिर ED द्वारा नेशनल हेराल्ड केस में तेजी आ गई है और उनके ऊपर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है।
कश्मीर न सिर्फ फिर पुरानी स्थिति में लौट गया है, बल्कि वहां हालात और गंभीर होने के ही आसार हैं। त्यौहारों का मौसम अभी जिस तरह बीता है, वह एक दुःस्वपन जैसा है। जो त्यौहार कभी हमारी गंगा-जमनी तहजीब और भाईचारे का प्रतीक हुआ करता था, वे अब नफरत, तनाव और दंगों की आशंकाओं के बीच गुजरते हैं।
सरकार से सवाल पूछने के आरोप में अनगिनत लोगों के खिलाफ FIR दर्ज होती जा रही है, जिसमें सबसे चर्चित मामला अशोका यूनिवर्सिटी के प्रो अली खान महमूदाबाद, लखनऊ विश्वविद्यालय की डॉ मेदुसा और लोकप्रिय भोजपुरी गायिका नेहा सिंह राठौर का है जिनके खिलाफ 400 से ऊपर FIR दर्ज हो चुके हैं। न्यायेत्तर extra judicial killings की आए दिन घटनाएं सामने आ रही हैं।
कश्मीर के स्विट्जरलैंड पहलगाम की घाटी में आतंकवादियों ने जिस तरह 27 मासूम सैलानियों की हत्या की, उसके बाद भारत पाक के बीच छोटा-मोटा युद्ध ही छिड़ गया। अभी इस पूरे घटनाक्रम की पूरी कहानी unfold होना बाकी है। कई सारे सवाल रहस्य के आवरण में हैं।
22अप्रैल के उस भयानक हादसे के एक महीने बाद भी उन चार आतंकवादियों का पता लगा पाने में सरकार और एजेंसियां नाकाम हैं। उस घटना के तुरंत बाद सऊदी अरब की यात्रा बीच में छोड़कर लौटे मोदी कश्मीर न जाकर मधुबनी बिहार में चुनावी सभा को संबोधित करने पहुंच गए। दिल्ली में रोज उच्चस्तरीय बैठकों का सिलसिला चलता रहा। मोदी जी आतंकवादियों और उनके आकाओं को मिट्टी में मिलाने की धमकी देते रहे।
बहरहाल भारत ने अंततः पाकिस्तान में पंजाब तक के आतंकी ठिकानों पर और कुछ air bases पर हमला किया। फिर दो दिन बाद युद्ध विराम हो गया। लोग यह देखकर भौंचक रह गए कि युद्ध विराम की घोषणा सबसे पहले ट्रंप ने अमेरिका से किया और उसके चंद घंटों के अंदर पाकिस्तान के साथ-साथ भारत ने भी इसका ऐलान कर दिया। ट्रंप तो उसके बाद बारम्बार भारत पाकिस्तान के बीच कश्मीर सवाल पर मध्यस्थता की बात कह चुके हैं।
जाहिर है यह सब भारत की अब तक की स्थापित विदेश नीति के विरुद्ध है। भारत कश्मीर के मामले के अंतरराष्ट्रीयकरण के विरुद्ध रहा है। जाहिर है ट्रंप के बयान उसके सीधे खिलाफ हैं। ट्रंप ने तो यहां तक कह दिया कि मैंने दोनों को व्यापार की धमकी दी और उन्हें राजी कर लिया। इस पर आश्चर्य की बात यह है कि न मोदी ने, न उनके विदेशमंत्री जयशंकर ने इसका प्रतिवाद किया कि ट्रंप झूठ बोल रहे हैं। वैसे ट्रंप अपने बड़बोलेपन और झूठ बोलने के लिए कुख्यात हैं, लेकिन भारत की ओर से इसका खुलकर प्रतिवाद न करना रहस्यमय है। वैसे अदानी पर अमेरिका में मुकदमा चलाने की बात चल रही थी। इसी बीच ट्रंप से अदाणी की मुलाकात की बात भी आई। क्या इसकी भी पूरे मामले में कोई भूमिका है ?
विदेशमंत्री जयशंकर ने अपने एक बयान में जब यह कह दिया कि ऑपरेशन की शुरुआत में हमने पाकिस्तान को बता दिया था कि हम केवल आतंकी ठिकानों पर हमला करने जा रहे हैं। क्या यह पाकिस्तान को ऐन मौके पर अलर्ट कर देना नहीं है।
स्वाभाविक रूप से विपक्ष ने इन तमाम सवालों को उठाकर सरकार को घेरा है और सरकार के पास इनका कोई convincing जवाब नहीं है। संपूर्ण विपक्ष की ओर से बारम्बार मांग के बावजूद सरकार ने संसद की बैठक नहीं बुलाई। और अब सरकार के चुनिंदा सांसद विदेशों में वहां लोगों को समझाने जा रहे हैं। यह हास्यास्पद पाखंड नहीं तो और क्या है।
हमारे सांसदों के पास इसका क्या जवाब है कि एक महीना बीत जाने के बाद भी आतंकी अब तक पकड़े क्यों नहीं जा सके हैं ? वे ट्रंप की मध्यस्थता वाले सवाल पर क्या जवाब देंगे ? वे युद्ध में जन धन की हानि के बारे में क्या जवाब देंगे। विदेशी मीडिया में यह चर्चा है कि बेहद महंगे दामों पर खरीदे गए रफाल विमान की भारत को हानि हुई है, लेकिन भारत सरकार ने इसे खुलकर स्वीकार नहीं किया है। बताया जा रहा है कि हथियार विक्रेता तमाम देश भी इस खेल में सक्रिय हो गए हैं।
सबसे आश्चर्यजनक यह रहा कि विदेशों में डंका बजने की वाहवाही लूटने को बेताब देश को संयुक्त राष्ट्रसंघ के अंदर से लेकर बाहर तक किसी उल्लेखनीय देश का साथ नहीं मिला, बाहर इजरायल, तालिबान और ताइवान ही हमारे साथ आए।
इसने मोदी राज की ग्यारह साल की विदेश नीति की विफलता को बेनकाब कर दिया। यहां तक कि सारी मर्यादा भूलकर जिस तालिबान को भारत ने साथ लिया था, ताजा खबरों के अनुसार वह भी चीन पाक धुरी के साथ चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना में शामिल हो गया है। युद्ध के दौरान पाकिस्तान को IMF द्वारा कर्ज सीधे उसकी युद्ध में मदद थी। लेकिन वहां भी विरोध में भारत एकदम अकेले रह गया। हमारे सभी पड़ोसी देशों से रिश्ते इस स्तर पर पहुंच गए हैं कि उनमें से कोई हमारे पक्ष में खड़ा नहीं हुआ। यहां तक कि हर संकट की घड़ी में साथ खड़ा होने वाले रूस का रुख भी बदला बदला सा रहा।
दरअसल पूरी दुनियां की भू-राजनीति एक संक्रमण के दौर से गुजर रही है। रूस यूक्रेन युद्ध ने अमेरिकी नेतृत्व वाले पश्चिमी ब्लॉक के खिलाफ रूस और चीन को नजदीक ला दिया है। अमेरिका चीन को सबसे बड़ी चुनौती मानकर उसकी घेरेबंदी करने में लगा है। उधर चीन के नेतृत्व में तीसरी दुनियां के तमाम देशों द्वारा BRICS के माध्यम से उसे चुनौती दी जा रही है और डॉलर के वर्चस्व को खत्म करने की कोशिश हो रही है। इस बेहद नाजुक शक्ति संतुलन में भारत अपनी कथित All Aligned नीति के कारण अलग थलग पड़ता गया है। अमेरिका और रूस दोनों ने भारत पाक को बराबरी के स्तर पर रखा और चीन की अहम सामरिक मदद से पाकिस्तान युद्ध में टिका रहा।
यहां विडंबना यह है कि इन सच्चाइयों को नकारते हुए देश में मीडिया की मदद से एक ऐसा युद्धो्न्मादी माहौल बना दिया गया, जैसे POK को तो हम हर हाल में ले ही लेंगे, यहां तक कि कराची और लाहौर पर भी कब्जा कर लेंगे। बहरहाल जमीनी भू- राजनीतिक सच्चाई बिल्कुल अलग थी। उसके अनुरूप जैसे ही युद्ध विराम की घोषणा हुई, लोग सकते में आ गए। लोगों को यकीन था कि हम बड़ी फतह की ओर बढ़ रहे हैं।
सच्चाई यह है कि भारत की जनता गहरी निराशा में डूब गई। ऊपर से ट्रंप ने यह कहकर कि मैंने व्यापार की धमकी देकर सीज फायर करवा दिया, जले पर नमक छिड़कने का काम किया। यहां तक कि भाजपा के समर्थकों के अंदर गहरी निराशा व्याप्त है। मोदी की व्यक्तिगत बाहुबली और विश्वगुरु वाली छवि को गहरा धक्का लगा है।
मोदी और भाजपा लाख कोशिश कर लें, पिछले ऐसे मामलों के बरक्स इस बार उन्हें इस माहौल का कोई राजनीतिक फायदा मिलने वाला नहीं है।
(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं।)