Tuesday, April 16, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट: रघुवर काल में विद्यालयों से वंचित हुए छात्र और हेमंत सरकार के मॉडल स्कूलों में बच्चों का अकाल

झारखंड के गिरीडीह जिले में स्थित सरिया प्रखंड का गठन 2006 में हुआ था। जिला मुख्यालय से 49 किमी दूर स्थित इस प्रखंड में शामिल 23 पंचायतों में घुठियापेसरा, अमनारी, परसिया, नगरकेशवारी, केशवारी, बरवाडीह, सरिया (पु.), सरिया (प.), सरिया खुर्द, मंदरामो पश्चिमी, मंदरामो पूर्वी, पावापुर, नावाडीह, सबलपुर, बागोडीह, मोकामो, पुरनीडीह, कोयरीडीह, कुसमाडीह, कैलाटांड़, चिचाकी, बंदखारो और चिरूवां की कुल जनसंख्या 149,128 है।

इस प्रखण्ड में मुख्य रूप से गेंहू, धान, मंडुवा, मकई इत्यादि की कृषि की जा जाती है। यहां के महत्वपूर्ण त्योहार सोहराई, सरहुल, ईद, दशहरा, करमा, होली, दीपावली, छठ इत्यादि हैं।

सरिया प्रखण्ड में कुल श्रमिकों के वर्ग में काश्तकारों की संख्या 38,058, खेतिहर मजदूरों की संख्या 15,440, घरेलू उद्योगों के श्रमिकों की संख्या 1,572 सहित अन्य श्रमिकों की संख्या 71,497 और ग़ैर श्रमिकों की संख्या 77,571 है।

सरिया प्रखण्ड के पंचायत पुरनीडीह की बात करें तो 2009 में पुरनीडीह गांव को पंचायत में स्थापित किया गया। गांव का कुल भौगोलिक क्षेत्र फल 881 हेक्टयर है। पुरनीडीह की कुल जनसंख्या 6,934 है। जिसमें पुरुष 2,310 और महिलाओं की तादाद 3,624 है। इस पंचायत का साक्षरता दर 43.24 फीसदी है। जिसमें 54.74% फीसदी पुरुष और 32.73% फीसदी महिलाएं साक्षर हैं। पुरनीडीह पंचायत में कुल 1,024 घर है। पंचायत का प्रमुख आर्थिक श्रोत का जरिया सरिया शहर है। इस पंचायत में कुल 05 राजस्व गांव भुसर, कंचनपुर, किरतोडीह, पुरनीडीह, रत्नाडीह है। पंचायत के ग्रामीणों का जीविकोपार्जन का साधन कृषि से एवं मजदूरी है। रोजगार के लिए 40% युवा दूसरे राज्यों को पलायन करते हैं।

इस पंचायत के कुल 10 विद्यालय विलय के बाद बंद कर दिए गए हैं। जिसकी वजह से पंचायत के लगभग बच्‍चों को शिक्षा से वंचित होना पड़ा है। जिनके अभिभावक शिक्षित हैं, वे किसी तरह अपने बच्चों को निजी विद्यालयों में भेज रहे हैं।

कहने को तो झारखंड राज्य अलग होने के बाद यहां शिक्षा पर काफी काम होना शुरू हुआ। प्रथम चरण में गांव- गांव में स्कूल खुले, लेकिन कुछ दिनों के बाद झारखंड सरकार स्कूलों को बंद करना शुरू कर दिया।

गैर-सरकारी सूत्रों के आंकड़ों के अनुसार झारखंड में अब तक 6,500 स्कूल बंद हो चुके हैं। जबकि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 5,700 स्कूलों को विलय के बाद बंद हुआ है।

जरा हम नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर बात कर लें। यह शिक्षा नीति जिसे भारत सरकार द्वारा 29 जुलाई 2020 को घोषित किया गया। सन 1986 में जारी हुई नई शिक्षा नीति के बाद भारत की शिक्षा नीति में यह पहला नया परिवर्तन है। यह नीति अंतरिक्ष वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट पर तैयार की गई है।

बता दें कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत वर्ष 2030 तक सकल नामांकन अनुपात को 100% लाने का लक्ष्य रखा गया है।

इसके अन्तर्गत शिक्षा क्षेत्र पर सकल घरेलू उत्पाद के 6% हिस्से के सार्वजनिक व्यय का लक्ष्य रखा गया है।

इसमें पाँचवीं कक्षा तक की शिक्षा में मातृभाषा/स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा को शिक्षा के माध्यम के रूप में अपनाने पर बल दिया गया है। साथ ही मातृभाषा को कक्षा-8 और आगे की शिक्षा के लिये प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया है।

इस नीति के तहत देश के प्रत्येक पंचायत में एक मॉडल स्कूल होगा और आस-पास के छोटे स्कूलों को इसमें विलय किया जाएगा।

जाहिर है ऐसे में इस नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत झारखंड के पहाड़ों, जंगलों में बसे गांवों के और अधिक स्कूल विलय होकर बंद होंगे। नतीजा यह होगा कि आदिवासी, दलित व शोषित वंचित समाज से स्कूल और दूर होता जाएगा।

बताना जरूरी हो जाता है कि हमने पिछले अंक में दुमका जिला के रानीश्वर प्रखंड के रंगरलिया पंचायत के पाथरचाल गांव के प्राथमिक विद्यालय का विलय के बाद बंद होने पर गांव के बच्चों की बाधित हुई पढ़ाई पर रिपोर्ट प्रकाशित की। जिसकी स्थापना 1953 में हुई थी। आदिवासी बहुल क्षेत्र के ऐसे विद्यालय को बंद करके आदिवासी समाज को शिक्षा से वंचित किया गया जो एक तरह से अपराध की श्रेणी में आना चाहिए।

अब हम आते हैं गिरिडीह जिला के सरिया प्रखंड के  पुरनीडीह पंचायत में जहां एक साथ 10 स्कूलों को विलय करके बंद किया गया है।

ज्ञान विज्ञान समिति झारखंड के गिरीडीह जिला समन्वयक जोगिंदर गुप्ता, सरिया प्रखण्ड समन्वयक अजय विश्वकर्मा और पुरनीडीह पंचायत के कपिल देव कुमार शर्मा के द्वारा बताया गया कि ये 10 स्कूल ऐसे हैं जिनके बन्द होने से बच्‍चों को स्कूल जाने में कठिनाई हो रही है। कुछ छात्र पढ़ना छोड़ चुके हैं और अन्‍य कामों में लग गए हैं।

वहीं जिन विद्यालयों में मर्जर किया गया है उनमें चार स्कूल ऐसे हैं जिनकी पहले से ही कोई जरूरत नहीं थी। जो या तो जंगलों में बना दिये गये हैं, या जहां जाने का कोई रास्ता तक नहीं है। ये 4 स्कूलों में सरकार के खजाने से लगभग एक करोड़ रुपए खर्च हुए हैं, जो केवल ठेकेदार को इसलिए बनाने को दिये गये ताकि कमीशन से सरकारी महकमे को एक अच्छी रकम आ जाए। जाहिर है यह शिक्षा विभाग, पंचायती राज और ठेकेदारों के भ्रष्‍ट गठजोड़ के कारण हुआ है।

अब आते हैं मर्जर हुए विद्यालयों पर

बता दें कि मर्जर किए गए विद्यालयों में पुरनीडीह पंचायत में 3 ऐसे विद्यालय बनाए गए थे जहां जाने का रास्ता ही नहीं है। इन विद्यालयों का निर्माण शिक्षा विभाग द्वारा ठेकेदार की मिलीभगत से कमीशनखोरी के लिए किया गया था।

जिसमें एक था ग्राम पुरनीडीह में स्कूल उत्क्रमित विद्यालय पासवान टोला, इसका मर्ज 2018 में हुआ। इसमें 70 बच्चे थे जिसमें से 40 अनुसूचित जाति और 30 ओबीसी के बच्चे थे। इस गांव जातिवार तौर पर दुसाद, तेली, यादव के लोग रहते हैं। इस विद्यालय का मर्जर उत्‍क्रमिक मध्‍य विद्यालय पुरनीडीह में हो गया है। मध्य विद्यालय की दूरी 1 किलोमीटर है। मध्य विद्यालय में शिक्षकों की संख्या 2 है। मर्ज किया गया विद्यालय का भवन बहुत जर्जर हो चुका था। इसकी भूमि छः डिसमिल है। इसमें कमरों की संख्या दो और एक शौचालय था। मर्ज किए गए विद्यालय में पेयजल के लिए चापाकल था, मर्ज किए विद्यालय में खेल का मैदान नहीं था। मध्यान्ह भोजन चालू था। मध्य विद्यालय के पोषक क्षेत्र (पोषक क्षेत्र का मतलब है जिस क्षेत्र के बच्चे उस स्कूल में पढ़ते हैं) में 300 आबादी है। यहां आने-जाने का रास्ता ही नहीं था तथा 01 किलोमीटर के आस पास दो सरकारी विद्यालय था। अतः यहां विद्यालय बनाने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

दूसरा है ग्राम रत्नाडीह उत्क्रमित विद्यालय हरिजन टोला रत्नाडीह। इसका मर्जर 2017 में हुआ इसमें 15 बच्चे थे, जो अनुसूचित जाति के थे। इस विद्यालय को उत्क्रमित मध्‍य विद्यालय रत्नाडीह के साथ जोड़ दिया गया। यह 1 किलोमीटर की दूरी पर है यहां शिक्षकों की संख्या 2 है। इसकी जमीन 6 डिसमिल है, कमरों की संख्या 2 है, एक शौचालय था लेकिन पानी नहीं था। खेल का मैदान नहीं था। विद्यालय जाने के लिए अगल-बगल से कोई रास्ता नहीं था। क्योंकि विद्यालय के चारों तरफ रेतीली जमीन है। इस टोला में दलित लोग ही रहते हैं। पोषक क्षेत्र की आबादी 230 है, इस विद्यालय को सर्वे करके नहीं बनाया गया।

तीसरा ग्राम परगड़वा उत्क्रमित विद्यालय कटरा टोला है।

यह विद्यालय 2017 में मर्ज किया गया। इसमें छात्रों की संख्या 15 थी, जो अनुसूचित जनजाति के छात्र थे। इसे उत्क्रमित मध्‍य विद्यालय पुरनीडीह में मर्ज कर दिया गया। जो 2 किलोमीटर की दूरी पर है। मर्ज किया गया विद्यालय काफी अच्छा है। मर्ज किया गया विद्यालय का भवन भी अच्छा था। 2 शिक्षक थे, इसकी 40 डिसमिल जमीन है। दो कमरा है, शौचालय जर्जर हो चुका है, लेकिन चापाकल चल रहा है। इस विद्यालय में खेल का मैदान नहीं था। यहां परिवारों की संख्या 8 थी वर्तमान में यहां के बच्चे 2 किलोमीटर पैदल चलकर दूसरी जगह जाते हैं। जबकि आदिवासी बहुल क्षेत्र होने के कारण इस विद्यालय को चालू रखना था। लेकिन विद्यालय के एक किलोमीटर अंदर मात्र एक ही घर था। आसपास के परिवारों के बच्चों को विद्यालय जाने के लिए आवागवन नहीं था। इसलिए यह विद्यालय को यहां बनाने की आवश्यकता नहीं थी। बावजूद इसके आने जाने की सुविधा बनाने की बजाय इसे मर्ज कर दिया गया।

चौथा मर्जर उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय नीचे टोला रत्नाडीह का हुआ है। इस स्कूल का मर्जर 2018 में हुआ। मर्जर विद्यालय में बच्चों की संख्या 50 थी। इसे उत्क्रमित मध्य विद्यालय रत्नाडीह में मर्जर कर दिया गया। मर्जर विद्यालय में शिक्षकों की संख्या 2 थी। भवन अच्छा था इसमें 5 कमरे हैं शौचालय जर्जर है लेकिन चापाकल है खेल का मैदान नहीं है। आबादी 350 है इस पोषक क्षेत्र के ग्रामीणों का कहना है कि विद्यालय पुनः चालू किया जाए क्योंकि यहां से दूसरे विद्यालय में जाने के लिए बच्चों को 4 किलोमीटर दूरी तय करना पड़ता है इसलिए बच्चे पढ़ाई छोड़ चुके हैं।

पांचवां मर्जर उत्क्रमित मध्य विद्यालय कंचनपुर का है। इसका मर्जर 2017 में हुआ, उस समय छात्रों की संख्या 35 थी। यहां ओबीसी छात्र थे। इसका मर्जर उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय कंचनपुर में हो गया। मध्य विद्यालय से इसकी वर्तमान दूरी 1 किलोमीटर है। मध्य विद्यालय में दो पारा शिक्षक थे। मर्ज किए गए विद्यालय के भवन की स्थिति ठीक है। जमीन 1.5 एकड़ है, कमरों की संख्या 4 है, शौचालय की और चापाकल की स्थिति अच्छी है। यहां खेल का मैदान भी है, यहां की आबादी 450 है। ग्रामीणों का कहना है कि इस विद्यालय को तुरंत चालू करना चाहिए।

छठा मर्जर उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय उर्दू पुरनीडीह है।

पुरनीडीह गांव का बनपुरवा टोला का यह स्कूल 2018 में मर्ज हुआ। इसमें 60 छात्र थे, जो अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं। इस विद्यालय को उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय कैलाटांड़ बनपुरा में मर्ज कर दिया गया। इसकी दूरी 1 किलोमीटर है, मर्जर विद्यालय में शिक्षकों की संख्या दो थी। मर्ज किया गया विद्यालय में भवन की स्थिति अच्छी थी। 25 डिसमिल जमीन, दो कमरे सहित शौचालय की स्थिति अच्छी थी। एक चापाकल भी है, खेल का मैदान नहीं है। यहां की आबादी 500 है। यहां के समुदाय पुन: इस विद्यालय को चालू करना चाहते हैं।

सातवां मर्जर उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय बुढ़ियासारो रत्नाडीह है। यह मर्जर 2019 में हुआ। यहां 70 विध्‍यार्थी थे, सारे बच्चे ओबीसी जाति के हैं। इस विद्यालय का विलय उत्क्रमित मध्य विद्यालय रत्नाडीह में हुआ। इस विद्यालय की दूरी 2 किलोमीटर है। मर्ज किए गए विद्यालय का भवन ठीक है। जमीन 6 डिसमिल है। कमरों की संख्या 2 है, शौचालय की स्थिति अच्छी है। चापाकल की स्थिति अच्छी है। खेल का मैदान नहीं है। यहां की जनसंख्या 311 है। यहां के ग्रामीण विद्यालय को पुनः चालू करने का मांग कर रहे हैं। यहां के बच्चों को 2 किलोमीटर रोड तय कर जाना पड़ता है, जिसमें उनको कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

आठवां मर्जर उत्क्रमित प्राथमिक स्कूल गोंदलीटांड है। इस विद्यालय का मर्जर 2018 में हुआ है। उस समय बच्चों की संख्या 30 थी। जिसमें से अनुसूचित जनजाति के 15 और ओबीसी 15 बच्चे थे। इसे उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय डकिया में कर दिया गया। यह मध्य विद्यालय से 1 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। मर्ज किए गए विद्यालय का भवन ठीक है, शौचालय की स्थिति अच्छी है। कमरों की संख्या 2 है और जमीन 15 डिसमिल है। पेयजल के लिए चापाकल की व्यवस्था है। खेल का मैदान नहीं है, पोषक क्षेत्र की आबादी 125 है। यहां के ग्रामीण इस विद्यालय को पुनः चालू करने की मांग कर रहे हैं।

नौवां मर्जर उत्क्रमित मध्य विद्यालय मुस्लिम टोला कंचनपुर है। इस विद्यालय को 2017 में मर्ज किया गया। इसमें 25 बच्चे थे, जो मुस्लिम परिवार के थे। इस विद्यालय का मर्जर उत्कर्मित प्राथमिक विद्यालय कंचनपुर में कर दिया गया जो 1 किलोमीटर की दूरी पर है। मर्जर विद्यालय में शिक्षकों की संख्या 2 थी। इसका भवन अच्छा था, जमीन 8 डिसमिल और कमरा तीन था। शौचालय की स्थिति भी अच्छी है। यहां की आबादी 200 है। ग्रामीणों के द्वारा यह बताया गया कि यह एक समृद्ध विद्यालय था। इसे पुनः चालू किया जाए, क्योंकि इस विद्यालय से बच्चों को दूसरे विद्यालय में जाने में कठिनाई होती है।

मर्ज हुए विद्यालयों से यह साफ हो गया है कि सरकार द्वारा शिक्षा का अधिकार कानून 2009 का घोर उल्लंघन है। सरकार नि:शुल्‍क एवं अनिवार्य शिक्षा की बात तो करती है। लेकिन जमीनी स्तर पर हालात शिक्षा विरोधी ही नहीं जन विरोधी भी है।

कहना ना होगा कि बहुत बड़े संघर्ष के बाद यह कानून संसद में पारित हुआ है। आजादी के 75 वर्षों में शोषित वंचित के पास जो शिक्षा पहुची थी, अतः स्कूलों का विलय करना उन्हें फिर से वंचित करने की साजिश है।

एक तरफ हेमंत सरकार ने झारखंड में 4 हजार मॉडल स्कूल खोलने का लक्ष्य रखा है, ताकि दूर-दराज के भी बच्चे अच्छी शिक्षा पा सकें। इस बाबत 80 मॉडल स्कूलों का निर्माण कार्य भी शुरू हो चुका है। वहीं दूसरी तरफ राज्य के अलग-अलग जिले में पहले से चल रहे 87 मॉडल स्कूलों को छात्र ही नहीं मिल रहे हैं।

बता दें कि छठी से 12वीं क्लास तक चलने वाले मॉडल स्कूल में छठी और 11वीं में छात्रों का एडमिशन लिया जाता है। वहीं एक पड़ताल में 87 मॉडल स्कूलों के एडमिशन की चौंकाने वाली जानकारी मिली है।

पता चला कि सत्र 2022-23 में 87 में से 81 मॉडल स्कूलों में छठी क्लास में एक भी छात्र ने नामांकन नहीं कराया है। सिर्फ 6 स्कूलों में ही 90 छात्रों ने छठी क्लास में नामांकन कराया है। वहीं 11वीं क्लास में 63 स्कूलों में एक भी छात्र ने दाखिला नहीं लिया है। 24 स्कूलों में 1316 छात्रों ने नामांकन कराया है। जबकि, एक मॉडल स्कूल के 11वीं में तीनों संकाय (साइंस, ऑटर्स और कॉमर्स) मिलाकर 4,500 सीटों पर दाखिला लेने की क्षमता है। गोड्डा के 2 मॉडल स्कूल बंद हैं।

जगन्नाथपुर सारबिल गांव (प. सिंहभूम) के मॉडल स्कूल में 40 बच्चे पढ़ रहे हैं। 4 शिक्षक हैं, इनमें तीन प्रतिनियुक्ति पर हैं। जानकारी के अनुसार केवल दो कमरों का ही इस्तेमाल बच्चों की पढ़ाई में किया जा रहा है। बेंच डेस्क नहीं होने से बच्चे जमीन पर पढ़ते हैं। नए सत्र में एक भी छात्र ने दाखिला नहीं लिया है। वहीं टोटो मॉडल स्कूल में सिर्फ 2 छात्र ही पढ़ते हैं। दो छात्रों को पढ़ाने के लिए तीन शिक्षकों की तैनाती है। झिंकपानी मॉडल स्कूल में नए बच्चों ने दाखिला नहीं लिया है।

गुमला से मिली जानकारी के अनुसार गुमला जिले के पालकोट मॉडल स्कूल में सिर्फ पांच छात्र ही पढ़ते हैं। पांच छात्रों को पढ़ाने के लिए तीन शिक्षक हैं। वहीं गुमला के ही बसिया मॉडल स्कूल में 12 बच्चे पढ़ते हैं। यहां एक शिक्षक ही बच्चों को पढ़ा रहे हैं।

राजधानी रांची के आठ मॉडल स्कूलों की छठी क्लास में एक भी छात्र ने एडमिशन नहीं लिया है। वहीं 10 साल बाद कांके मॉडल स्कूल में पहली बार 11वीं क्लास में 33 छात्रों ने दाखिला लिया है। सात स्कूलों में 11वीं में एक भी छात्र ने एडमिशन नहीं लिया है।

प्लस टू में आर्ट्स, कॉमर्स व साइंस की पढ़ाई के लिए पीजीटी शिक्षक नहीं के बराबर हैं। इस कारण सत्र 2021-22 में 63 स्कूलों के 11वीं क्लास में एक भी छात्र ने नामांकन नहीं कराया है।

मॉडल स्कूलों में अभी भी इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है। तीन करोड़ की लागत से बने मॉडल स्कूलों में बच्चे फर्श पर पढ़ रहे हैं। करीब एक दर्जन मॉडल स्कूलों में बिजली कनेक्शन तक नहीं है। 35 से अधिक मॉडल स्कूलों के पास भवन नहीं है। शिक्षकों की कमी भी है।

इस बाबत भारत ज्ञान विज्ञान समिति के राष्‍ट्रीय महासचिव डॉ. काशीनाथ चटर्जी कहते हैं कि लगता है इस बार सभी की शिक्षा के अधिकार के लिए पुनः जोरदार आंदोलन करना होगा।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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