देश भर से सीवर में मैनुअली सफाई के दौरान सफाई कर्मियों की मौतों की खबरें अखबार, टीवी न्यूज और सोशल मीडिया न्यूज पोर्टलों के माध्यम से आती रहती हैं। पर इन पर रोक लगाने की केंद्र और राज्य सरकारें कोशिश नहीं करतीं। हालांकि खानापूर्ति के लिए सरकार मैनुअल स्केंवेंजिंग पर दो-दो कानून बनाकर इस पर प्रतिबंध लगा चुकी हैं। इसे दंडनीय अपराध घोषित कर चुकी हैं, पर कानून का कार्यान्वयन नहीं करतीं। यही कारण है कि सीवर में मौतों का सिलसिला जारी रहता है।
शुभांशु शुक्ला एक दिन देर से ही सही पर अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन में जा रहे हैं, हम भारतीयों के लिए गर्व की बात है और दूसरी ओर आधुनिक तकनीक से लैस भारत में हम सफाई कर्मचारियों की देश भर में गटर में घुसाकर मैनुअली सफाई कराने से जहरीली गैसों से दम घुटने से जानें जा रही हैं, यह शर्म की बात है, मगर हम भारतीयों को शर्म क्यों नहीं आती।
देश भर से सीवर और सेप्टिक टैंकों में मैनुअली घुसकर सफाई करने से सफाई कर्मचारियों की जहरीली गैसों से दम घुट कर मौतें हो रही हैं। दुखद यह है कि इस पर हम भारतीय शर्म महसूस नहीं कर रहे है। हमारी मौतों बल्कि कहिए हत्याओं पर कोई दुख अफसोस शर्म क्यों नहीं महसूस करता। क्या हम भारत के नागरिक नहीं ? क्या हम दलित हैं इसलिए? क्या जातिवादी मानसिकता के कारण हमारे साथ छूआछूत, भेदभाव और हमारी उपेक्षा की जाती है?
सरहद पर कोई शहीद होता है तो पूरा देश शोक मनाता है और सीवर के शहीद की यानी हमारी उपेक्षा की जाती है। यह किस मानसिकता का परिचायक है। हम यह क्यों भूल जाते हैं कि हमारे सैनिक सरहद पर देश की रक्षा करते हैं, तो सीवर सफाई करने वाला अपनी जान जोखिम में डाल कर गंदगी और बीमारियों से हमारी रक्षा करता है। सैनिक को हम अत्याधिुनिक हथिययारों से लैस करते हैं पर सीवर सफाईकर्मी को बिना सुरक्षा उपकरणों के सीवर या गटर में उतार देते हैं। जबकि यह न केवल एम.एस.एक्ट 2013 का उल्लंघन है बल्कि सुप्रीम कोर्ट के 27 मार्च 2014 के आदेश का भी उल्लंघन है। दुखद यह है कि प्रशासन की उपेक्षा के कारण इन कानूनों के उल्लंघन करने वालों को कोई सजा नहीं मिलती।
कानून में साफ लिखा है कि हाथ से मानव मल साफ करवाना यानी मैनुअल स्केवेंजिंग एक दंडनीय अपराध है। इसके लिए जुर्माने और जेल दोनों का प्रावधान है। पर दोषियों पर कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की जाती?
सीवर-सेप्टिक टैंकों की मैनुअली सफाई कराने से सीवर सफाई कर्मचारियों की मौतों की खबरें देश भर से आती रहती हैं। इसलिए सरकार झूठ बोलकर बच नहीं सकती। यहां केंद्र सरकार और राज्य सरकारें दोनों जिम्मेदार हैं।
सीवर की सफाई के लिए मशीनें बन चुकी हैं तो फिर इंसानों को क्यों सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के लिए उतारा जाता है? राज्य सरकारें यह कहती हैं कि हर जगह मशीनों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। हर जगह मशीनें नहीं पहुंच सकतीं। मशीने हर जगह पहुंचे इसकी जिम्मेदारी भी प्रशासन की है। दूसरी बात है कि आपातकालीन स्थिति में यदि किसी सफाईकर्मी को उतारते हैं तो उसे सुरक्षा उपकरण क्यों नहीं उपलब्ध कराए जाते? सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार आपातकालीन स्थिति में भी किसी सफाईकर्मी को बिना सुरक्षा उपकरणों के सीवर या सेप्टिक टैंकों में नहीं उतारा जा सकता। यह दंडनीय अपराध है। प्रशासन सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना क्यों करता है?
अभी दिल्ली सरकार नालों की सफाई मैनुअली करा रही है जिनमें मानव मल भी बहता है। यह सरासर कानून का उल्लंघन है। सफाई कर्मचारी आंदोलन के नेता और नेशनल कन्वेनर बेजवाड़ा विल्सन कहते हैं दिल्ली में सीवर व नालों की सफाई के लिए सफाई कर्मचारियों को उतारा जाना शर्मनाक है। इस गैरकानूनी काम कराने के लिए सरकार जवाबदेह है। सरकार खुद कानून की धज्जियां उड़ा रहीं हैं।
सफाई कर्मचारी आंदोलन (SKA) देश की राजधानी दिल्ली में खुलेआम कानून का उल्लंघन करके भारत के सफाई कर्मचारी नागरिकों, जिसमें सब दलित हैं, को सीवर व नालों की सफाई में उतारे जाने का कड़ा विरोध करता है। ऐसा करके दिल्ली सरकार ने न सिर्फ MS Act 2013 का उल्लंघन किया, बल्कि सफाई कर्मचारियों के जीवन को भी जोखिम में डाला। अपनी आपराधिक गलती मानने और इसे ठीक करने के बजाय दिल्ली सरकार इन तस्वीरों को अपने विभागों की वेबसाइट से डिलीट करने का काम कर रही है। सरकार के झूठ को उजागर करने और सफाई कर्मचारियों की दयनीय स्थिति को दुनिया के सामने साक्ष्यों के साथ पेश करने के लिए सफाई कर्मचारी आंदोलन की टीम ने दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में जाकर सीवर व नालों का सफाई में उतरे लोगों का सर्वे किया।
4-5 जून को सफाई कर्मचारी आंदोलन की टीम ने अलग-अलग जगहों पर सीवर व नाले की सफाई कर रहे लोगों से बात की। इनमें से 77 लोगों की तस्वीरें व अन्य जानकारी ली। कितने शर्म की बात है कि देश की संसद और दिल्ली विधानसभा से कुछ ही किलोमीटर दूर दिहाड़ी मजदूरी, नंगे बदन, बिना कोई सुरक्षा कवच के मानव मल व कचरा निकालने में लगाए गये हैं।
SKA की टीम ने रोहिणी, ओल्ड राजेंद्र नगर, अंबेडकर चौक, अशोक विहार, प्रतापबाग, आजादपुर, मॉडल टाउन, राजा गार्डन व राजौरी में सड़क किनारे सीवर और खुले नाले में उतारे गये दिहाड़ी सफाई कर्मचारियों से बात की। चौंकाने वाले और परेशान करने वाले तथ्य सामने आए हैं
सीवर व नाले की सफाई में उतारे गये लोगों की उम्र 16 से 35 साल के बीच थी।
77 लोगों में सिर्फ सात अल्पसंख्यक समाज के लोग थे, बाकी सभी वाल्मीकि जाति के थे।
दिल्ली के अलावा दिहाड़ी सफाई कर्मचारी उत्तर प्रदेश के मेरठ, बुलंदशहर, रामपुर, सीतापुर, हरदोई आजमगढ़, इलाहाबाद, गोरखपुर और बिहार के बोधगया, भागलपुर व बेगुसराय से थे। इसके अलावा मध्य प्रदेश के रीवा, छत्तीसगढ़ के रायपुर व उत्तराखंड के रुद्धप्रयाग से भी ये मजदूर आए थे। ये सारे माइग्रेटेड मजदूर हैं, जो दो जून की रोटी के लिए इस काम में उतारे गये।
इन्हें रोजाना ठेकेदार 350 रुपये से 550 रुपये मजदूरी देते हैं।
इन गरीब सफाई कर्मचारियों का ठेकेदार द्वारा आर्थिक शोषण किया जाता है। ठेकेदारी प्रथा खत्म करने का सफाई कर्मचारी वर्ग हमेशा सरकार से गुहार लगाता रहा है। पर सरकार के कान पर जूं नहीं रेंगती।
सफाई कर्मचारियों से नालों की सफाई कराने यानी मानव मल-मूत्र हाथों से उठाने का गैर-कानूनी काम दिल्ली सरकार करा रही है। जो एक अपराध है, कानूनी रूप से भी और मानवता के लिहाज से भी। दलितों के आत्मसम्मान व गरिमा पर आघात है। संविधान के अनुच्छेद 21 का गरिमा के साथ जीने का उल्लंघन है।
देश भर में सफाई कर्मचारियों की सीवर-सेप्टिक टैंक सफाई के दौरान मौत की खबरें आ रही है। अभी इसी महीने में 4 जून तक छह लोगों की मौत की खबर आ चुकी है। अप्रैल व मई में 34 लोग जान गंवा चुके हैं। ऐसे में दिल्ली सरकार द्वारा खुलेआम गैर-कानूनी काम करवाना, जिसमें दलितों की जान का हर समय जोखिम है, बेहद शर्मनाक है।
सफाई कर्मचारी आंदोलन मांग करता है कि
इस तरह से सीवर व नालों की सफाई को तुरंत प्रभाव से रोका जाए। किसी भी इंसान को इस अमानवीय-गैरकानूनी काम में न ढकेला जाए।
सरकार का दावा है कि सफाई मशीनों से कराई जा रही है, तब वे मशीनें कहां हैं, प्रशासन इसका जवाब दे।
सेनिटेशन का काम एक स्किलड वर्क है, इसे लेकर अलग से विभाग होना चाहिए, जहां सफाई कर्मचारियों को इमर्जेंसी वर्कर के तौर पर ट्रेनिंग व दर्जा मिलना चाहिए। यह स्थायी काम है जिसके बिना कोई भी शहर साफ नहीं रह सकता, उसी तरह का स्थायी गरिमामय रोजगार की व्यवस्था सरकार सफाई कर्मियों के लिए तुरंत करे।
सीवर में मौत से एक सफाईकर्मी तो अपनी जान से जाता ही है साथ ही उसके परिवार की आय का स्रोत खत्म हो जाता है। बच्चे अनाथ हो जाते हैं। पत्नी विधवा हो जाती है। उसकी मांग का सिंदूर उजड़ जाता है। पीएम नरेंद्र मोदी जी की रगों मे गर्म सिंदूर बह रहा है। काश ये सीवर में शहीद की विधवाओं के सिंदूर की लाज रखें और इनके सिंदूर को बनाए रखने के लिए मोदी जी मैनुअल स्कैवेंजिंग के खिलाफ कोई ऑपरेशन चला कर इस कुप्रथा को हमेशा के लिए खत्म कर दें। सख्त कदम उठाकर वे इसे समाप्त करा सकते हैं। उनके लिए यह बहुत मुश्किल या नामुमकिन नहीं है।अगर वे ऐसा करते हैं तो हम भी मान लें कि ‘मोदी है तो मुमकिन है’। एक ऐतिहासिक कुप्रथा के अंत करने का श्रेय भी मोदी जी ले सकते हैं। पर क्या वे इस मुद्दे के प्रति गंभीर हैं?
(राज वाल्मीकि सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हैं।)