Saturday, April 20, 2024

रायपुर:राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने हसदेव अरण्य क्षेत्र से आए पदयात्रियों से की मुलाक़ात

कांकेर। राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके तथा मुख्य मंत्री भूपेश बघेल से हसदेव बचाओ पदयात्रा में आए ग्रामवासियों के समूह ने मुलाकात की । यह समूह 04 अक्टूबर से ग्राम फतेहपुर, जिला-सरगुजा से पदयात्रा करते हुए राजधानी पहुंचा था। इसमें सरगुजा, कोरबा और सूरजपुर के आदिवासी शामिल थे। पिछले एक दशक से लगातार हसदेव अरण्य को बचाने के लिए यहां पर निवासरत गोंड, उरांव, पंडों एवं कंवर आदिवासी समुदाय संघर्षरत है। कोयला खनन परियोजनाओं का हसदेव अरण्य क्षेत्र की 20 ग्राम सभाओं ने, पांचवीं अनुसूची, पेसा कानून 1996 तथा वनाधिकार मान्यता कानून 2006 से प्रदत्त शक्तियों का उपयोग कर, सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर लगातार विरोध किया है। वर्तमान पदयात्रा संवैधानिक अधिकारों (पांचवीं अनुसूची, पेसा कानून, वनाधिकार मान्यता कानून) की रक्षा करने, हसदेव-अरण्य क्षेत्र को बचाने, खनन परियोजनाओं का जन-विरोध और ग्राम-सभाओं के संकल्प को बतलाने, तथा न्याय की गुहार लगाने रायपुर आए थे।

राज्यपाल ने सभी समस्याओं के समाधान के प्रयास का आश्वासन दिया

राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने पूरे समूह से राज भवन में विस्तृत चर्चा की | पूर्व में राजभवन द्वारा 10 से 12 लोगों को मिलने की अनुमति दी गई थी, जब राज्यपाल को ज्ञात हुआ कि वे करीब 300 किलोमीटर से पैदल चल के आ रहे हैं, तो उन्होंने उनकी भावनाओं को समझते हुए उन सभी को राजभवन के भीतर बुलाने का निर्देश दिया और 300 से अधिक प्रतिनिधियों को राजभवन के भीतर बुलाया गया । राज्यपाल ने बड़ी संवेदनशीलता से उनकी बातें सुनीं और कहा कि पांचवीं अनुसूची के क्षेत्र में ग्राम सभा को विशेष अधिकार होते हैं और उनकी अनुमति के बिना कोई भी परियोजना या अन्य कार्य क्रियान्वित नहीं की जा सकती । क्योंकि पांचवीं अनुसूची क्षेत्र की संवैधानिक अभिरक्षक राज्यपाल हैं, इसलिए इस मामले में उन्होंने विशेष रूप से हस्तक्षेप का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि वह सभी आदिवासियों की भावनाओं को समझती हैं और उनकी जो भी समस्या है, उनका यथोचित समाधान करने का प्रयास करेंगी। उन्होंने कहा कि वह हसदेव अरण्य क्षेत्र से जुड़े सभी मामले पर मंत्री एवं प्रशासन से बात कर नियमानुसार कार्यवाही सुनिश्चित करेंगी |

मुख्यमंत्री ने भी दिया जांच का आश्वासन

माननीय राज्यपाल से मुलाकात के बाद मुख्य मंत्री भूपेश बघेल ने भी पदयात्रा में आए समूह से संवाद किया। प्रतिनिधि-मण्डल ने अपनी समस्याओं का ज़िक्र करते हुए खनन परियोजनाओं के लिए अवैध भूमि-अधिग्रहण प्रक्रियाओं पर रोक लगाने का आग्रह किया। पदयात्रियों ने मुख्यमंत्री को राहुल गांधी के मदनपुर गांव की चौपाल का ज़िक्र कर क्षेत्र को संरक्षित करने के उनके आश्वासन की बात कही। सभी ग्रामवासियों को सुनने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बताया की वह उस मदनपुर गांव और उससे जुड़े वन-क्षेत्र को संरक्षित करने के लिए संकल्पित हैं जहां राहुल गांधी ने 2015 में मुलाक़ात कर संघर्ष के साथ रहने का वचन दिया था। उल्लेखनीय है कि मदनपुर गांव और उससे जुड़ा वन-क्षेत्र 2 खनन परियोजनाओं से प्रभावित है- गिद्धमुड़ी पतुरिया तथा मदनपुर साउथ –जहां हाल ही में भूमि-अधिग्रहण की अधिसूचना जारी हुई थी | परसा कोयला खदान से जुड़े मामले में मुख्यमंत्री ने फर्जी ग्राम सभा प्रस्ताव की शिकायत को सुना और उस पर जाँच कर उचित कार्यवाही करने की बात भी कही। पदयात्रियों ने अपनी समस्याओं का उल्लेख करता हुआ विस्तृत ज्ञापन भी सौंपा |

हसदेव अरण्य क्षेत्र से जुड़े महत्वपूर्ण बिन्दु

छत्तीसगढ़ में सरगुजा एवं कोरबा जिलों में स्थित हसदेव अरण्य वन क्षेत्र मध्य भारत के सबसे समृद्ध, जैव विविधता से परिपूर्ण वन-क्षेत्रों में गिना जाता है जिसको अकसर “छत्तीसगढ़ के फेफड़ों”की संगति भी दी जाती है | वैसे तो इस क्षेत्र को 2010 में नो-गो क्षेत्र घोषित किया गया था परंतु बड़े-पैमाने पर कोयला खदानों का आवंटन किया गया है जिससे इस सम्पूर्ण क्षेत्र के विनाश के बादल लगातार मंडरा रहे हैं। यह क्षेत्र हसदेव नदी एवं बांगों बांध का कैचमेंट भी है जिससे जांजगीर-चांपा जिले की लगभग 3 लाख हेक्टेयर द्वि-फ़सलीय भूमि सिंचित होती है। यह सम्पूर्ण क्षेत्र पाँचवीं अनुसूची में आता है जहां पेसा कानून 1996 तथा वनाधिकार मान्यता कानून 2006 के सभी प्रावधान लागू होते हैं। हाल ही में आई भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (ICFRE)की रिपोर्ट के अनुसार हसदेव अरण्य क्षेत्र को कोयला खनन से अपरिवर्तनीय क्षति होगी जिसकी भरपाई कर पाना कठिन है। इस अध्ययन में हसदेव के पारिस्थितिक महत्व और खनन से हाथी मानव द्वंद के बढ़ने का भी उल्लेख है।

हसदेव बचाओ पदयात्रा की प्रमुख मांगें:
• हसदेव अरण्य क्षेत्र की समस्त कोयला खनन परियोजनाओं को निरस्त किया जाए।
• बिना ग्राम सभा सहमति के कोल बियरिंग एक्ट 1957 के तहत किए गए सभी भूमि-अधिग्रहण को तत्काल निरस्त किया जाए।
• पांचवीं अनुसूचित क्षेत्रों में किसी भी कानून से भूमि-अधिग्रहण प्रक्रिया के पूर्व ग्राम सभा से अनिवार्य सहमति लेने के प्रावधान को लागू किया जाए।
• परसा कोल ब्लॉक के लिए फ़र्जी प्रस्ताव बनाकर हासिल की गई वन स्वीकृति को तत्काल निरस्त किया जाए एवं ग्राम सभा का फ़र्जी प्रस्ताव बनाने वाले अधिकारी और कंपनी पर FIR दर्ज किया जाए।
• घाटबर्रा के निरस्त सामुदायिक वनाधिकार को बहाल करते हुए सभी गांवों में सामुदायिक वन संसाधन और व्यक्तिगत वन अधिकारों को मान्यता दी जाए।
• पेसा कानून 1996 का पालन हो।

(छत्तीसगढ़ से जनचौक संवाददाता तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट।)

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