ईरान मिलिट्री अपने सोशल मीडिया हैंडल से एक सवाल किया है, “जब इजरायल नरसंहार करता रहा, तो दुनिया खामोश रही, लेकिन अब वे हमें नैतिकता के बारे में उपदेश दे रहे हैं?” आज सूरज ढलने के साथ ईरानी सेना ने इजरायल पर तीन दिन से जारी बमबारी से भी कहीं ज्यादा भयानक हमले की घोषणा की है।
इजरायली प्रधानमंत्री, बेंजामिन नेतन्याहू ने स्वंय के सत्ता से बेदखल होने और जेल जाने से बचने के लिए जो दांव खेला था, वह इतना उल्टा पड़ेगा, इसकी कल्पना उन्होंने तो क्या, विश्व में शायद ही किसी ने की हो। अपने वायुसेना के जखीरे से दो-तिहाई विमानों को एक साथ उतारकर इजरायल ने ईरान पर धोखे से प्राणघातक हमला किया। 200 हवाई जहाज एक साथ? ईरान के चोटी के आर्मी ऑफिसर्स और 20 के लगभग परमाणु कार्यक्रम में शामिल चोटी के वैज्ञानिकों को एक झटके में इजरायल ने हलाक कर दिया।
इसके लिए उसने सिर्फ हवाई हमलों का सहारा ही नहीं लिया, बल्कि अपने ख़ुफ़िया संगठन मोसाद के जरिए उसने ईरान के भीतर कई भेदियों को तैयार कर लिया था, जिनकी मदद से वह एक झटके में सटीक निशाने पर रखे लोगों को खत्म करने में कामयाब रहा। इस प्रकार, दुश्मन को एक झटके में जमीन पर लाने के साथ-साथ इजरायल एक बार फिर दुनिया को यकीन दिलाने में कामयाब रहा कि वह कहीं भी किसी भी देश में जब चाहे घुसकर किसी को भी खत्म कर सकता है।
लेकिन ईरान की क्षमता का अंदाजा किसी को नहीं था। ईरान में हजारों वैज्ञानिक रक्षा अनुसंधान पर कार्यरत थे। ईरान के परमाणु कार्यक्रम को भी कोई खतरा नहीं है, क्योंकि सुनने में आ रहा है कि उसका असली परमाणु कार्यक्रम तो 800 फीट जमीन के नीचे चल रहा है, जिसे भेदने की ताकत शायद ही किसी बम में है। इजरायल की गफलत उसे भारी पड़ रही है, क्योंकि वह अपनी आक्रामक रणनीति को अब नहीं छुपा सकता।
ईरान पर हमले की इस व्यग्रता के पीछे कुछ ठोस वजहें बताई जा रही हैं। पहला, गाजा में लगातार बेकसूरों, बच्चों को मारकर इजराइल अब दुनिया में अकेला पड़ चुका था। 60,000 निरपराध लोगों की हत्या और महीने भर से अधिक समय से गाजा के भीतर राहत सामग्री पर रोक के चलते इजरायल की तुलना उसी नाज़ी जर्मनी से की जाने लगी थी, जिसका शिकार यहूदी रहे हैं।
इसके अलावा, बेंजामिन नेतन्याहू के ऊपर इजरायल में रिश्वतखोरी, धोखाधड़ी और विश्वासघात सहित भ्रष्टाचार के कई आरोपों पर मुकदमा चल रहा है, जो इज़रायल के प्रधानमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल से जुड़े हैं। उनका मुकदमा मई 2020 में शुरू हुआ, और अगर वे दोषी पाए जाते हैं तो उन्हें जेल में काफी अर्से तक रहना पड़ सकता है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उनके साथ के दो लोगों को सजा मुकर्रर भी हो चुकी है।
ऐसे में, खुद से ध्यान हटाने के लिए बेंजामिन नेतन्याहू ने ईरान पर प्राणघातक हमले को चुना, जिसे मध्य-पूर्व एशिया में इजराइल के साथ सैन्य मामलों में दूसरा सबसे ताकतवर देश समझा जाता है। ईरान-अमेरिका के साथ परमाणु संधि समझौते के छठे दौर की वार्ता में यदि दोनों देश सहमत हो जाते तो ईरान के लिए अगले कुछ वर्ष अमेरिकी प्रतिबंधों से राहत भरे हो सकते थे, जो इजरायल के लक्ष्य से मेल नहीं खाता।
इसलिए नेतन्याहू ने खबर चला दी कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम के तहत परमाणु बम बनाने से बस कुछ ही दूरी पर है, या उसने युरेनियम संवर्धन के काम को 60% पूरा कर लिया है, और कभी भी 6-12 परमाणु बम बना सकता है। इजरायल को भरोसा था कि एक बार ईरान के खिलाफ उसके निर्णायक हमले के बाद डोनाल्ड ट्रंप को भी अपनी राय बदलने के लिए वह मजबूर कर देगा, क्योंकि आधा काम तो वह पहले ही कर चुका होगा।
इजरायली हमले के बाद लगा कि नेतान्याहू की गोटी सही बैठी है, क्योंकि ईरान वास्तव में सदमे की स्थिति में था। अमेरिका ने पहले बयान जारी किया कि वह इस सबमें शामिल नहीं है, लेकिन फिर एबीसी न्यूज़ के साथ अपनी बातचीत में ट्रंप ने इस हमले को शानदार करार दिया, और कहा कि आगे भी यह जारी रहेगा।
लेकिन नेतान्याहू की सारी स्कीम तब फेल हो गई, जब ईरान ने शुक्रवार की रात अपना जवाबी हमला शुरू किया। एक के बाद एक चरणबद्ध तरीके से ईरान के मिसाइल राजधानी को दहलाते रहे, जो हर बार पहले से ज्यादा शक्तिशाली और घातक साबित हुए। दूसरे और तीसरे दिन तक तो यह साफ़ हो गया कि ईरान के पास बैलिस्टिक मिसाइलों का अंतहीन जखीरा जमा है, जो महीनों क्या पूरे सालभर जारी रहा तो इजरायल का नामोनिशान नहीं बचेगा।
अब इजरायल भारी दुविधा में है। ईरान के मिसाइल हमले इतने तगड़े हैं कि उसकी तुलना रूस-यूक्रेन या भारत-पाक संघर्ष से भी नहीं की जा सकती। 1,500 से लेकर 3,500 किमी दूरी तक मार कर सकने की क्षमता वाले ये मिसाइल देख, यूरोपीय देश भी सकते की स्थिति में हैं। हां, बेंजामिन नेतन्याहू ने एक काम बेहद चालाकी का यह किया है कि उसने अपने सभी पैसेंजर एयरक्राफ्ट को साइप्रस और तुर्किये में भेजकर करीब 40,000 विदेशी पर्यटकों को भी बंधक वाली स्थिति में डाल दिया है। इनमें से अधिकांश पर्यटक अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशों से हैं, जिनकी सुरक्षा की चिंता इन देशों को हस्तक्षेप के लिए बाध्य कर सकती है।
हां, कई रिपोर्ट्स से इस बात की पुष्टि होती है कि इजरायल ने 14-15 जून, 2025 के आसपास फोर्डो जैसे परमाणु स्थलों को निशाना बनाते हुए ईरान के विरुद्ध अपने अभियान में अमेरिका की भागीदारी का अनुरोध किया था। एक्सियोस और द टाइम्स ऑफ इजरायल के अनुसार, अमेरिका ने कूटनीतिक हस्तक्षेप की बात कह इजराइल के अनुरोध को ठुकरा दिया था।
दोनों देशों के हमले उत्तरोत्तर तेज हो रहे हैं, और हालात लगातार अधिक गंभीर होते जा रहे हैं। लेकिन ट्रंप चूंकि खुद विश्व में शांति कायम करने के नाम पर अपना चुनाव जीते हैं, और इस समय खुद गृहयुद्ध जैसी स्थिति से दो-चार हो रहे हैं, ऐसे में अमेरिकी रुख सावधानी बरतने का संकेत देता है।
इधर ईरान के स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की है कि इजरायल के आक्रमण की शुरुआत के बाद से उसके हमलों में अभी तक 224 लोग मारे गए हैं, जिनमें 73 महिलाएं और बच्चे शामिल हैं, जिनमें 90 प्रतिशत से अधिक नागरिक हैं। इजरायल ईरान के नागरिक बुनियादी ढांचे पर हमले जारी रखे हुए है, जबकि दावा किया जा रहा है कि उसके अभियानों में केवल सैन्य कर्मियों और ईरान के परमाणु कार्यक्रम से संबंधित लोगों को ही निशाना बनाया गया है।
उधर इजरायल में आम लोगों को पहली बार एहसास हो रहा है कि दुश्मन देश के मिसाइल और बमवर्षक विमान किस कदर तबाही मचा सकते हैं, जबकि गाज़ा में पिछले 20 महीनों से इजरायली सेना निःशस्त्र फिलिस्तीनियों को अपने मनोरंजन के लिए मार रही थी। अमेरिकी न्यूज़ आउटलेट AF पोस्ट, जो इजरायल समर्थक है, ने भी पुष्टि की है कि इजरायल के दूसरे सबसे बड़े शहर हैफा के पॉवर प्लांट में ईरानी मिसाइल हमले से आग लग गई है। तेल-अबीब और हैफा के अलावा ईरान अब फिलिस्तीनी इलाकों में बसाई गई सेटलर कॉलोनियों पर हमले कर बड़ी संख्या में पलायन करने के लिए बाध्य कर रहा है।
अमेरिकी मीडिया स्रोतों के मुताबिक, यूएसएस निमित्ज़ और उसका कैरियर स्ट्राइक ग्रुप दक्षिण चीन सागर से अब मध्य पूर्व एशिया की ओर बढ़ रहा है। इसलिए यकीनी तौर पर अभी कहना मुश्किल है कि इस युद्ध में किसकी जीत होगी और कौन पराजित होगा। लेकिन जिस तरह, पहली बार चीन ने आगे बढ़कर साफ़ शब्दों में इजरायल को कहा है कि उसने ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर हमला कर रेड लाइन पार की है, उससे पश्चिमी जगत भी हतप्रभ है।
यदि यूरोपीय देश और अमेरिका ने अपनी परंपरागत शैली में ईरान के खिलाफ मोर्चा खोला, तो इस बात की काफी संभावना है कि रूस-चीन और उत्तर कोरिया भी ईरान के पक्ष में खड़े हो सकते हैं। इसके साथ ही वे तमाम मुस्लिम मुल्क भी, जो या तो अभी तक अमेरिका के पिट्ठू बने हुए हैं, या इजरायल की ताकत और धौंस के आगे उसकी हां में हां मिलाकर अपने ही देश की जनता की निगाह में खुद को गिरा महसूस करते रहे हैं।
(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)