मानसून के आगमन के साथ दिल्ली में प्रदूषण पर सक्रियता

कुछ ही दिनों पहले दिल्ली की सड़कों पर हाहाकार मच गया था, जिससे कई जगह छोटे-छोटे जाम की स्थिति बन गई थी। पेट्रोल पंपों के साथ-साथ अन्य स्थानों पर लगे कैमरे वाहनों की निगरानी कर रहे थे, और उनके आधार पर ट्रैफिक पुलिस वाहनों की धरपकड़ में जुटी थी। एक अजीब-सी गहमागहमी का माहौल बन गया था। दिल्ली में स्वच्छ हवा के लिए डीजल की 10 साल और पेट्रोल की 15 साल पुरानी गाड़ियों को परिवहन से बाहर करने का निर्णय लिया गया था।

आँकड़ों के अनुसार, दिल्ली में ऐसी गाड़ियों की संख्या 62 लाख है, जबकि एनसीआर के हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में यह संख्या क्रमशः 2.75 लाख, 12.4 लाख और 6.1 लाख है। लेकिन, दो दिन बाद ही जब दिल्ली के मध्यवर्ग का मिजाज गर्म होने लगा, इस निर्णय को ‘व्यवहारगत समस्या’ बताकर वापस ले लिया गया। अब मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा है कि वे इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय से मार्गदर्शन माँगेंगी।

दिल्ली में इस समय भाजपा की सरकार है, जिसे सत्ता में आए तीन महीने से अधिक हो चुके हैं। चुनाव के दौरान भाजपा ने कुछ ऐसे एजेंडे पेश किए, जिनके सामने आप पार्टी टिक नहीं पाई। इनमें ‘जहाँ झुग्गी, वहाँ मकान’ और स्वच्छ हवा-पानी का वादा प्रमुख नारे बनकर उभरे। एक तरफ गरीबों के लिए स्थायी और बेहतर आवास का सपना था, तो दूसरी ओर मध्यवर्ग की घुटन भरी साँसों के लिए राहत की उम्मीद।

मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के नेतृत्व में दिल्ली की भाजपा सरकार ने सबसे पहले यमुना की सफाई को लेकर बड़े-बड़े दावे किए। नदी के तटों और बहाव वाले हिस्सों की सफाई के चित्र खूब छपे। खुद मुख्यमंत्री बाल्टी उठाए हुए दिखीं। यमुना सफाई अभियान के फोटो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुए।

लेकिन, पखवाड़ा बीतते-बीतते यमुना में फिर से सफेद झाग तैरने लगा। इस दौरान यह सपना भी दिखाया गया कि यमुना के किनारों पर पर्यावरण के अनुकूल सैर-सपाटे की जगहें विकसित की जाएँगी। इसके लिए आवश्यक धनराशि की भी घोषणा हुई। हालाँकि, यमुना के तटों पर कई गतिविधियाँ लंबे समय से चल रही हैं, और उनके कुछ परिणाम भी दिख रहे हैं।

दूसरा नारा दो महीने के भीतर ही परिणाम दिखाने लगा। पूरी दिल्ली में बुलडोजर की कार्रवाइयाँ युद्ध स्तर पर शुरू हो गईं। एक के बाद एक झुग्गी बस्तियों को उजाड़ने का सिलसिला शुरू हुआ, जो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। शरद शर्मा जैसे कुछ पत्रकार इसकी लगातार रिपोर्टिंग कर रहे थे, लेकिन ये खबरें मुख्यधारा से लगभग गायब कर दी गईं। कुछ लोगों को ‘मकान’ दिए गए, लेकिन ‘जहाँ झुग्गी, वहाँ मकान’ के नारे के विपरीत, ये मकान उनकी मूल बस्तियों में नहीं थे। यह सिलसिला अभी भी जारी है।

झुग्गी बस्तियों को उजाड़ने और वाहनों की धरपकड़ की खबरों के बीच एक और खबर आई-दिल्ली में कृत्रिम बारिश कराने की। इसे जुलाई के दूसरे हफ्ते में लागू करने की योजना थी। इस संदर्भ में संबंधित एजेंसियों से बातचीत और तैयारियों का प्रबंधन जोर-शोर से चल रहा था। कृत्रिम बारिश का उद्देश्य दिल्ली के प्रदूषण को कम करना था। यह वाकई हैरान करने वाली बात थी, क्योंकि इस साल मानसून ने ऐतिहासिक रिकॉर्ड बनाते हुए समय से पहले दस्तक दे दी थी, और दिल्ली की हवा अपने बेहतरीन दौर से गुजर रही थी।

पिछले 15 दिनों के प्रदूषण मानकों को देखें, तो दिल्ली की आबोहवा पहले से कहीं बेहतर थी। इसके अलावा, मौसम विभाग ने उसी समय जोरदार बारिश की भविष्यवाणी की थी। हालाँकि, बारिश उतनी नहीं हुई, जितनी उम्मीद थी, लेकिन बारिश का सिलसिला चल रहा था। कृत्रिम बारिश के निर्णय को अंततः टाल दिया गया, और इसे आगामी महीनों के लिए स्थगित कर दिया गया।

लेकिन, प्रदूषण रोकने और वायु गुणवत्ता सुधारने के प्रयासों में कमी नहीं आई है। सरकार ने एक और निर्णय लिया, जिसमें ‘स्वच्छ हवा के जोन’ बनाने की बात कही गई। पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने दिल्ली के नेहरू पार्क में 150 एयर प्यूरीफायर लगाने की घोषणा की। उनके अनुसार, 9 फीट ऊँचे ये उपकरण 2.5 माइक्रोन के कणों को अवशोषित कर सकते हैं। लेकिन इन मशीनों की क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं।

क्या ये मशीनें वाकई दिल्ली जैसे बड़े शहर में स्वच्छ हवा की गारंटी दे सकती हैं? नेहरू पार्क, जो दिल्ली के सबसे पॉश इलाकों में है, वहाँ सामान्यतः वायु गुणवत्ता पहले से बेहतर रहती है। ऐसे में, कुछ पार्कों में इन मशीनों के लगाने से कितने लोगों को स्वच्छ हवा मिल पाएगी?

दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण के लिए भाजपा सरकार ने 2030 तक की प्राथमिक योजना बनाई है। इसके साथ ही, पेट्रोलियम आधारित वाहनों को चलन से बाहर करने की योजना भी सामने आई थी, जिसमें कई अपवाद शामिल थे। हालाँकि, इस पर कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया, और इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

अभी तक के निर्णय दिल्ली के प्रदूषण से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं दिख रहे। ये नीतियाँ उन लोगों पर बोझ डाल रही हैं, जो दिल्ली की आर्थिक रीढ़ हैं-अर्थात् बहुसंख्यक आबादी, जो काम-काज के लिए सड़कों और उत्पादन स्थलों पर सक्रिय है। इन प्रयासों से इस समूह के हितों की रक्षा कम और नुकसान अधिक होता दिख रहा है।

यमुना के प्रदूषण के सवाल पर सरकार की अपनी रिपोर्ट ही पर्याप्त है, जिसमें प्रदूषण के मुख्य कारणों में औद्योगिक कचरा, निर्माण कार्य और बिना उपचारित सीवर का पानी शामिल हैं। जब तक इन पर प्रभावी हस्तक्षेप नहीं होगा, यमुना को जीवन नहीं मिलेगा। यमुना के तटों के साथ लगातार छेड़छाड़ भी इसके प्रदूषण को बढ़ा रही है।

प्रदूषण एक आधुनिक अवधारणा है, जो पूँजीवादी उत्पादन पद्धति और शहरी जीवन से जुड़ी है। स्वच्छ आबोहवा की चाह हर जीवन की जरूरत है। लेकिन प्रदूषण से मुक्ति के लिए उसी जीवन पर हमला करना-जैसे आवास के समाधान के लिए लोगों को उनके घरों से बेदखल करना-एक गलत नीति है। यह कोई अनहोनी घटना नहीं है; इतिहास में ऐसा पहले भी हुआ है। लेकिन, भारत में जिस तरह यह हो रहा है, उसमें क्रूरता, हिंसा और नीतिगत झूठ का स्तर अभूतपूर्व है।

(अंजनी कुमार पत्रकार हैं)

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